अनुच्छेद 14 और 21 का विस्तार

अनुच्छेद 14 और 21 का विस्तार

GS-2: गवर्नेंस

(IAS/UPPCS)

प्रीलिम्स के लिए प्रासंगिक:

अनुच्छेद 14 और 21, जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के विरुद्ध अधिकार, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (जीआईबी), अनुच्छेद 48ए, अनुच्छेद 51ए ।

मेंस के लिए प्रासंगिक:

जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के खिलाफ अधिकार से संबंधित SC के मुख्य विचार,निर्णय, अनुच्छेद 14 और 21के बारे में, आगे की राह, निष्कर्ष।

09/04/2024

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

न्यूज़ में क्यों:

हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने "जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के खिलाफ अधिकार" को शामिल करने के लिए अनुच्छेद 14 और 21 के प्रभाव का विस्तार किया है।

जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के खिलाफ अधिकार से संबंधित SC के मुख्य विचार:

  • सुप्रीम कोर्ट ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (जीआईबी) को बिजली ट्रांसमिशन लाइनों के कारण अपना निवास स्थान खोने से बचाने की याचिका पर सुनवाई कर रहा था।
  • कोर्ट ने जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य के अधिकार, स्वदेशी अधिकार, लैंगिक समानता और विकास के अधिकार सहित विभिन्न मानवाधिकारों के बीच अंतर्संबंध पर भी प्रकाश डाला है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने गरिमामय अस्तित्व के विभिन्न पहलुओं को शामिल करने के लिए समय-समय पर मौलिक अधिकार अध्याय का विस्तार किया है।
  • हालाँकि, यह पहली बार है कि इसमें "जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के विरुद्ध अधिकार" को शामिल किया गया है।
  • कोर्ट ने इस बात पर प्रकाश डाला कि "नुकसान को रोकने और समग्र कल्याण सुनिश्चित करने के लिए नागरिकों की देखभाल करना राज्यों का कर्तव्य है और स्वस्थ और स्वच्छ वातावरण के अधिकार की रक्षा करना निस्संदेह इस कर्तव्य का एक हिस्सा है।“

निर्णय:

  • स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार पर ढेर सारे निर्णयों, जलवायु परिवर्तन को एक गंभीर खतरे के रूप में पहचानने वाले कुछ निर्णयों और जलवायु परिवर्तन से निपटने की राष्ट्रीय नीतियों के बावजूद, यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि लोगों को जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के खिलाफ अधिकार है।
  • जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन से होने वाली तबाही साल-दर-साल बढ़ती जा रही है, इसे एक अलग अधिकार के रूप में व्यक्त करना आवश्यक हो जाता है।
  • इसे अनुच्छेद 14 और 21 द्वारा मान्यता प्राप्त है जो स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार और जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के खिलाफ अधिकार के महत्वपूर्ण स्रोत हैं।

अनुच्छेद 14 के बारे में:

  • भारतीय संविधान के भाग 3 में मौलिक अधिकारों के तहत अनुच्छेद 14 के अंतर्गत विधि के समक्ष समता एवं विधियों के समान संरक्षण का उपबंध किया गया है। संविधान का यह अनुच्छेद भारत के राज्य क्षेत्र के भीतर भारतीय नागरिकों एवं विदेशी दोनों के लिये समान व्यवहार का उपबंध करता है।
  • प्रथम अवधारणा अर्थात् ‘कानून के समक्ष समानता’ का मूल ब्रिटिश व्यवस्था में निहित है। यह अवधारणा किसी भी व्यक्ति के पक्ष में विशेषाधिकार के अभाव को दर्शाता है। इसका तात्पर्य देश के अंतर्गत सभी न्यायालयों द्वारा प्रशासित कानून के सामने सभी व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार किया जाएगा, चाहे व्यक्ति अमीर हो या गरीब, सरकारी अधिकारी हो या कोई गैर-सरकारी व्यक्ति, क़ानून से कोई भी ऊपर नहीं है।
  • दूसरी अवधारणा अर्थात् ‘कानून का समान संरक्षण’ अमेरिकी संविधान से प्रेरित है। इसका तात्पर्य कानून द्वारा प्रदत्त विशेषाधिकारों और दायित्वों के संदर्भ में समान परिस्थितियों में समान व्यवहार और सभी व्यक्तियों के लिये एक ही तरह के कानून का एक जैसे अनुप्रयोग से है।
  • इस तरह यह कहा जा सकता है कि प्रथम अवधारणा यानी ‘कानून के समक्ष समानता’ एक नकारात्मक अवधारणा है जबकि दूसरा ‘कानून के समान संरक्षण’ सकारात्मक है। हालाँकि दोनों ही अवधारणाओं का उदेश्य कानून और न्याय की समानता सुनिश्चित करना है।

अनुच्छेद 21 के बारे में:

  • अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को मान्यता देता है।
  • यह बताता है कि, किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा।
  • यह गारंटी देता है कि जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता को कानून की मंजूरी के बिना नहीं छीना जाएगा। यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति को केवल कुछ प्राधिकारियों की सनक के आधार पर दंडित या कैद नहीं किया जा सकता है। उसे केवल कानून के उल्लंघन के लिए दंडित किया जा सकता है।
  • संविधान के 86वें संशोधन अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 21 के बाद एक नया अनुच्छेद 21-ए जोड़ा गया है।
  • इस संशोधन अधिनियम द्वारा शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार बना दिया गया है

पर्यावरण संरक्षण हेतु अन्य संवैधानिक प्रावधान:

अनुच्छेद 48ए:

  • संविधान के अनुच्छेद 48ए में प्रावधान है कि राज्य पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने तथा देश के वनों और वन्यजीवों की सुरक्षा करने का प्रयास करेगा।

अनुच्छेद 51ए:

  • अनुच्छेद 51ए के खंड (जी) में कहा गया है कि जंगलों, झीलों, नदियों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना और जीवित प्राणियों के प्रति दया रखना भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा।
  • ये संविधान के न्यायसंगत प्रावधान नहीं हैं लेकिन पर्यावरण का महत्व, जैसा कि इन प्रावधानों द्वारा दर्शाया गया है, संविधान के अन्य भागों में एक अधिकार बन जाता है।

आगे की राह:

  • जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के खिलाफ अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश की आवश्यकता है। नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश न केवल इन जरूरी पर्यावरणीय चिंताओं को दूर करता है बल्कि इससे कई सामाजिक-आर्थिक लाभ भी मिलते हैं। हालांकि इस क्षेत्र में सौर और पवन ऊर्जा क्षमता का विस्तार किया जा चुका है।
  • जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण हेतु गैर-जीवाश्म ईंधन में परिवर्तन और उत्सर्जन में कमी के लिए भारत सरकार द्वारा अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को पूरी तरह अमल में लाने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष:

भारत के संविधान में भाग III में अनुच्छेद 14 से 32 तक मौलिक अधिकारों का उल्लेख किया गया है।

ये अधिकार  आचरण, नागरिकता, न्याय, स्वतंत्रता और समानता के लिए मानक प्रदान करते हैं। भारत में विभिन्न सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक समस्याएँ मौलिक अधिकारों को महत्वपूर्ण बनाती हैं। ये अधिकार न्यायसंगत हैं, जिसका अर्थ है कि यदि सरकार या किसी अन्य द्वारा इन अधिकारों का उल्लंघन किया जाता है, तो व्यक्ति को अपने मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालयों से संपर्क करने का अधिकार है।

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मुख्य परीक्षा प्रश्न:

जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के खिलाफ अधिकारों को अनुच्छेद 14 और 21 के दायरे के विस्तार की तर्कसंगता को स्पष्ट कीजिए