सरोगेसी के नियम में संशोधन

 

सरोगेसी के नियम में संशोधन

जीएस-2: सामाजिक न्याय

(यूपीएससी/राज्य पीएससी)

प्रारंभिक परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण:

सरोगेसी के बारे में, सरोगेसी, सरोगेसी (विनियमन) नियम-2021।

मुख्य परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण:

सरोगेसी, सरोगेसी के लिए सरकार के निर्धारित मानदंड, सरोगेसी में संशोधन के लाभ/ प्रभाव, चुनौतियां, आगे की राह, निष्कर्ष।

26/02/2024

ख़बरों में क्यों:

हाल ही में, भारत सरकार ने सरोगेसी प्रक्रियाओं से जुड़ी चिंताओं और जटिलताओं को संबोधित करते हुए सरोगेसी (विनियमन) नियम, 2022 में महत्वपूर्ण संशोधन किए हैं।

सरोगेसी नियम में संशोधन क्यों किया गया:

  • दरअसल, पिछले साल, 2023 में सरकार द्वारा सरोगेसी नियम में किए गए संशोधन को मेयर-रोकिटांस्की-कुस्टर-हॉसर सिंड्रोम से पीड़ित एक महिला ने सुप्रीम कोर्ट में इस आधार पर चुनौती दी थी कि वह बच्चा चाहती है, लेकिन मेडिकल बोर्ड के रिकॉर्ड के अनुसार, अंडाशय या गर्भाशय की अनुपस्थिति के कारण वह अपने अंडाणु का उत्पादन करने में असमर्थ है।
  • इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के सवाल उठाए जाने के बाद केंद्र सरकार ने सरोगेसी के नियम में महत्वपूर्ण संशोधन किया है। इसके तहत प्रावधान किया गया है कि अगर कपल किसी मेडिकल समस्या से पीड़ित है तो डोनर कपल को अंडाणु या शुक्राणु दे सकेगा। जबकि पहले के नियम में कहा गया था कि सरोगेसी से संतान पाने की इच्छा रखने वाले कपल के पास अंडाणु व शुक्राणु होने चाहिए।
  • गौरतलब है कि मेयर-रोकिटांस्की-कुस्टर-हॉसर (एमआरकेएच) सिंड्रोम एक दुर्लभ जन्मजात विकार है जो अंडे के उत्पादन को प्रभावित करता है और बांझपन का कारण बन सकता है।

सरोगेसी के लिए सरकार के निर्धारित मानदंड:

  • निर्दिष्ट आयु वर्ग के भीतर विधवा या तलाकशुदा महिला को सरोगेसी के तहत बच्चा अडॉप्ट करने का अधिकार दिया गया है।
  • भारत में सेरोगेसी कानून के अनुसार, अनमैरिड लड़कियां सेरोगेसी के जरिए मां नहीं बन सकती हैं।
  • भारत में सेरोगेसी के जरिए केवल शादीशुदा कपल्स ही मां-बाप बन सकते हैं। इसके अनुसार, विधवाएं, तलाकशुदा महिलाएं, या LGBTQIA+ जोड़े सेरोगेसी के लिए योग्य नहीं हैं।
  • भारत में सेरोगेसी कानून के अनुसार, कोई भी विदेशी नागरिक सेरोगेसी से मां नहीं बन सकती है। भारत सरकार का मानना है कि विदेशियों द्वारा सेरोगेसी का दुरुपयोग हो सकता है, खासकर अगर इसे व्यावसायिक रूप से अनुमति दी जाती है। हालांकि भारतीय मूल के व्यक्ति (PIO) जो विवाहित हैं और विदेश में रहते हैं, वो सेरोगेसी जी के लिए योग्य हैं।
  • कोई भी महिला सिर्फ एक बार ही सरोगेट मदर बन सकती है। वही महिला सेरोगेसी मदर बन सकती है, दो पहले से शादीशुदा हो और उसके बच्चे हों। इसके अलावा वो कोई नशा न करती हो और मेडिकल तौर पर फिट हो।

सरोगेसी नियम में संशोधन के लाभ/प्रभाव:

  • सरोगेसी के दुरुपयोग को रोकने में मदद मिल सकती है।
  • सरोगेट मां के अधिकारों की रक्षा करना आसान हो जाएगा।
  • इससे सरकार द्वारा बच्चे के अधिकारों की रक्षा की जा सकेगी।
  • इन नए नियमों से बांझपन की समस्या से जूझ रहे दंपत्तियों को राहत मिलेगी। हालाँकि, यह केवल उन लोगों के लिए है जिनके पास गर्भाशय नहीं है, क्षतिग्रस्त गर्भाशय है, या पतली गर्भाशय परत है।

भारत में सरोगेसी के नियम:

सरोगेसी (विनियम) नियम,  2021:

  • यह नियम ऐसे व्यक्ति या जोड़े को सरोगेसी अपनाने का परमिट देता है जो चिकित्सीय मानदंडों को पूरा करते हैं।
  • यह नियम 35 से 45 वर्ष की उम्र की विधवा या तलाकशुदा महिलाएं, साथ ही कानूनी रूप से विवाहित जोड़े को ही सरोगेसी अपनाने का परमिट देता है।
  • यह नियम व्यावसायिक सरोगेसी पर सख्ती से प्रतिबंध लगाता है, जिसमें 10 साल तक की कैद और 10 लाख रुपये तक का जुर्माना जैसे गंभीर दंड शामिल हैं।
  • यह नियम उन इच्छुक जोड़ों को सरोगेसी की परमिट देता है जो सिद्ध बांझपन से पीड़ित हैं और बच्चा चाहते हैं।
  • इस नियम के तहत सरोगेसी प्रक्रिया से पैदा हुआ बच्चा, इच्छित जोड़े या इच्छुक महिला का जैविक बच्चा माना जाता है।
  • यह नियम गर्भपात पर प्रतिबंध लगाता है।

सरोगेट मदर के लिए पात्रता मानदंड:

  • एक ऐसी महिला जो इच्छुक जोड़े का कोई करीबी रिश्तेदार हो या ऐसा कोई जो निर्धारित मानकों के तहत सरोगेसी करने को इच्छुक हो।
  • एक विवाहित महिला जिसका अपना एक बच्चा है।
  • सरोगेट महिला की आयु 25 से 35 वर्ष के मध्य होना अनिवार्य है। 
  • महिलाएं अपने जीवनकाल में केवल एक बार ही सरोगेट कर सकती हैं।
  • सरोगेसी के लिए चिकित्सा और मनोवैज्ञानिक फिटनेस का प्रमाण पत्र होना चाहिए।
  • सरोगेट माँ सरोगेसी के लिए अपने युग्मक उपलब्ध नहीं करा सकती।

सरोगेसी की प्रक्रिया के बारे में:

  • फिजिकल चेकअप: इच्छुक जोड़े और सरोगेट मां की ART क्लिनिक द्वारा योग्यता परीक्षण किया जाता जिसके अंतर्गत सभी आवश्यक चेकअप किए जाते हैं।
  • सहमति पत्र: सभी पक्षों (इच्छुक जोड़े, सरोगेट मां, और ART क्लिनिक) द्वारा एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए जाते हैं।
  • गर्भाधान: IVF या IUI जैसी तकनीकों के माध्यम से सरोगेट मां का गर्भधारण कराया जाता है।
  • गर्भावस्था और प्रसव: ART क्लिनिक के दिशा-निर्देशों के अंतर्गत सरोगेट मां गर्भावस्था को पूरा करके बच्चे को जन्म देती है।
  • जन्म प्रमाण पत्र: अंतिम रूप से, बच्चे का जन्म प्रमाण पत्र इच्छुक जोड़े के नाम पर जारी कर दिया जाता है।

क्या है सरोगेसी:

  • सरल शब्दों में, अपनी पत्नी के अलावा किसी दूसरी महिला की कोख में अपने बच्चे को पालने को सरोगेसी कहा जाता है।
  • ऐसे कपल जो माता-पिता तो बनना चाहते हैं लेकिन उन्हें बच्चे पैदा करने में परेशानी आती है, वे सरोगेसी को अपनाते हैं।
  • सरोगेसी मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है जिसमें पहली ट्रेडिशनल सरोगेसी जबकि दूसरी जेस्टेशनल सरोगेसी।

ट्रेडिशनल सरोगेसी:

  • ट्रेडिशनल सरोगेसी में डोनर या पिता के शुक्राणु (Sperm) को सेरोगेट मदर के अंडाणु से मिलाने का काम किया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में बच्चे की बायोलॉजिकल मदर सरोगेट मदर ही होती है। हालांकि बच्चा जब जन्म ले लेता है तो उसके आधिकारिक माता-पिता वे कपल ही होते हैं जिन्होंने सरोगेसी के लिए ऑप्ट किया होता है।

जेस्टेशनल सरोगेसी:

  • जेस्टेशनल सरोगेसी में माता-पिता के शुक्राणु और अंडाणु को मिलाकर सेरोगेट मदर की कोख में रखने का का काम किया जाता है। इस प्रक्रिया में सरोगेट मदर केवल बच्चे को जन्म देने का काम करती है। इस प्रकार की सरोगेसी में सेरोगेट मदर का जेनेटिकली बच्चे से कोई संबंध नहीं होता है, लेकिन बच्चे की मां सरोगेसी कराने वाली महिला को ही माना जाता है।

सरोगेसी की चुनौतियाँ:

  • अनभिज्ञता: एक सरोगेट माँ मौजूदा कानूनी या चिकित्सा प्रक्रियाओं और प्रक्रिया में शामिल जोखिमों से काफी हद तक अनभिज्ञ होती है।
  • कोई कानूनी मान्यता नहीं: शायद सबसे भयानक नुकसान यह है कि भारत में सरोगेट मां को कानूनी रूप से "श्रमिक" के रूप में मान्यता नहीं दी जाती है क्योंकि वे शब्द के पारंपरिक अर्थ में मानसिक या शारीरिक श्रम नहीं बेचते हैं। परिणामस्वरूप, उनके पास कोई कानूनी अधिकार नहीं है।
  • कोई अंतरराष्ट्रीय मान्यता नहीं: सरोगेसी के लिए कोई अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त कानून नहीं हैं, इसलिए कई माता-पिता और बच्चे असुरक्षित हो सकते हैं - या यहां तक कि राज्यविहीन भी हो सकते हैं।
  • लाभ कमाने वाला पेशा: भारत में, सरोगेसी 2.3 बिलियन डॉलर का उद्योग है, जो चिकित्सकों को उनके अभ्यास को नियंत्रित करने वाले किसी भी नियम और विनियम के बिना, भारी मुनाफा कमाने की अनुमति देता है।
  • जीवन को खतरा: सरोगेसी उन गरीब महिलाओं के जीवन को खतरे में डाल देती है, जो जीविकोपार्जन के लिए सरोगेट दंपत्ति को अपनी कोख किराए पर दे देती हैं, बार-बार गर्भधारण के कारण यह काफी जोखिम में पड़ जाती है।
  • मौलिक अधिकारों का शोषण: यह प्रथा सरोगेट मां के मौलिक अधिकारों को नष्ट कर देती है। जबकि सरोगेट मां को बहुत कम राशि मिलती है, डॉक्टर और अन्य पेशेवर भारी मुनाफा कमाते हैं।
  • अन्याय: हालाँकि सरोगेट माँ बच्चे को देने से इंकार नहीं कर सकती थी, लेकिन भावी माता-पिता के पास बच्चे को देने से इंकार करने का अधिकार था।

आगे की राह:

  • सरोगेसी महिलाओं की प्रजनन पसंद के अंतर्गत आती है और इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के दायरे में एक मौलिक अधिकार के रूप में शामिल किया गया है।
  • यदि गंभीर समस्या उत्पन्न होती है, तो शिकायतों को हल करने और सभी श्रेणियों के माता-पिता के लिए पहुंच सुनिश्चित करने के लिए संशोधनों का सहारा लेना पड़ सकता है।
  • सरोगेसी को दंडित करने के बजाय, सरोगेसी के लिए गर्भ उपलब्ध कराने वाले व्यक्ति को उचित बीमा और चिकित्सा जांच सुनिश्चित करते हुए एक अनुबंध के साथ सुरक्षित किया जाना चाहिए।
  • बिचौलियों जैसे मुद्दों को सख्ती से संभालना होगा, भले ही लोगों की संवेदनशीलता को ध्यान में रखा जाए।

निष्कर्ष:

केंद्र सरकार द्वारा 21 फरवरी,2024 को सरोगेसी (विनियमन) नियम, 2022 में किया गया संशोधन, विवाहित जोड़ों को सरोगेसी के लिए डोनर अंडाणु या शुक्राणु का उपयोग करने की अनुमति देता है। यह एक ऐसा कदम जिसने चिकित्सा जटिलताओं वाले लोगों को एक बड़ी राहत प्रदान की। इसका गलत उपयोग न हो इसके लिए भारत में सख्त कानून बना है।

स्रोत: द हिंदू

मुख्य परीक्षा प्रश्न:

सरोगेसी के लिए सरकार के निर्धारित मानदंड क्या हैं? सरोगेसी से संबंधित चुनौतियों के निपटान हेतु आगे की राह पर चर्चा कीजिए।