
क्या है भोजशाला-कमाल मौला कॉम्प्लेक्स विवाद
क्या है भोजशाला-कमाल मौला कॉम्प्लेक्स विवाद
GS-1: कला एवं संस्कृति
(IAS/UPPCS)
प्रीलिम्स के लिए प्रासंगिक:
भोजशाला मंदिर-कमाल मौला मस्जिद कॉम्प्लेक्स, परमार राजा भोज, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई), कार्बन डेटिंग।
मेंस के लिए प्रासंगिक:
भोजशाला मंदिर-कमल मौला मस्जिद परिसर की वास्तुकला, भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) के बारे में, कार्बन डेटिंग, निष्कर्ष।
20/04/2024
स्रोत: TH
न्यूज़ में क्यों:
हाल ही में, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को धार जिले में अवस्थिति भोजशाला मंदिर-कमल मौला मस्जिद कॉम्प्लेक्स का वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया है।
क्या है विवाद:
- भोजशाला परिसर का विवाद कई दशक पुराना है जो मध्य प्रदेश के इंदौर संभाग का धार जिले के हिंदू और मुसलमान समुदायों की धार्मिक आस्था एवं परंपराओं से जुड़ा हुआ है।
- वर्तमान स्थिति: वर्ष 2003 से बनी व्यवस्था के अनुसार, इस परिसर में हिंदू मंगलवार को पूजा करते हैं जबकि मुस्लिम शुक्रवार को नमाज अदा करते हैं।
- हिंदू इसे वाग्देवी (देवी सरस्वती) का मंदिर मानते हैं और मुसलमान इसे कमाल मौलाना मस्जिद मानते हैं।
- दोनों समुदायों के मध्य विवाद की स्थिति उस समय गंभीर हो जाती है, जब दोनों के धार्मिक त्यौहार एक ही दिन होते हैं।
- याचिकाकर्ता: हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस नामक एक समूह ने परिसर की मूल स्थिति को पुनर्जीवित करने और संपत्ति को हिंदुओं को हस्तांतरित करने की मांग करते हुए कोर्ट में याचिका दायर की है।
- इस समूह ने तर्क दिया कि कमल मौला मस्जिद का निर्माण 13वीं और 14वीं शताब्दी के बीच अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल के दौरान पहले से निर्मित हिंदू मंदिरों की प्राचीन संरचनाओं को नष्ट करके किया गया था।
- साक्ष्य: हिंदू पक्ष के अनुसार, 1875 में यहां की गई खुदाई में सरस्वती देवी की प्रतिमा निकली थी जिसे मेजर किनकेड नामक अंग्रेज द्वारा लंदन ले जाया गया जो कि वर्तमान में लंदन के एक म्यूजियम में रखी हुई है।
- बस इसी विवाद के समाधान हेतु इंदौर हाई कोर्ट ने एएसआई को इस परिसर का वैज्ञानिक सर्वे करने का निर्देश दिया था।
- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) इस में विवादित स्थल में मौजूद वस्तुओं की कार्बन डेटिंग परीक्षण से प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर अपनी अनुशंसाएं प्रस्तुत करेगी।
भोजशाला मंदिर-कमल मौला मस्जिद परिसर:
- भोजशाला मंदिर-कमाल मौला मस्जिद परिसर मूल रूप से 11वीं शताब्दी ई. में परमार राजा भोज द्वारा निर्मित देवी सरस्वती का मंदिर था।
- मस्जिद का निर्माण मंदिर के अवशेषों का उपयोग करके किया गया है। स्मारक में संस्कृत और प्राकृत साहित्यिक कृतियों के साथ अंकित कुछ स्लैब भी मौजूद हैं।
- कहा जाता है कि कला और साहित्य के महान संरक्षक के रूप में विख्यात राजा भोज ने परिसर में एक स्कूल की स्थापना की थी, जिसे अब भोजशाला के नाम से जाना जाता है।
- द्वारा निर्मित: ऐसा माना जाता है कि यह मूल रूप से 11वीं शताब्दी ईस्वी में परमार राजा भोज द्वारा निर्मित देवी सरस्वती का मंदिर था और यह शहर लंबे समय तक मालवा की राजधानियों में से एक था।
- दिल्ली सल्तनत: 14वीं शताब्दी की शुरुआत में मालवा दिल्ली सल्तनत के अधीन आ गया और उसके तुरंत बाद, गिरे हुए मंदिरों के हिस्सों का उपयोग करके एक हाइपोस्टाइल मस्जिद का निर्माण किया गया।
- 1331 ई. में चिश्ती सूफी संत कमाल-अल-दीन की मृत्यु के बाद, उनकी कब्र मस्जिद के बगल में स्थापित की गई, और इमारत को कमल मौला मस्जिद के नाम से जाना जाने लगा। इससे पता चलता है कि इमारत का निर्माण 1331 से पहले किया गया था।
भोजशाला मंदिर-कमल मौला मस्जिद परिसर की वास्तुकला:
- स्तंभ: परिसर में 11वीं और 12वीं शताब्दी के अलग-अलग डिजाइन के कई बलुआ पत्थर के खंभे हैं।
- मस्जिद के निर्माण के दौरान खंभों को फिर से तैयार किया गया और साथ ही अजमेर और दिल्ली के कुतुब परिसर में देखी गई इमारत प्रथाओं का पालन करते हुए छत की ऊंचाई बढ़ाने के लिए एक के ऊपर एक रखा गया।
- निर्माण की शैली: जटिल कस्पिंग और कमल आकृतियों से सजाए गए ट्रैबीट निर्माण के गुंबदों को जोड़ा गया है।
- इस मंदिर में मेहराब और मीनारों को मालवा सल्तनत के समय मांडू के राजाओं द्वारा 1400 के दशक में जोड़ा गया था।
- शिलालेख: परिसर में दीवारों और फर्शों पर संस्कृत और प्राकृत शिलालेखों के साथ पत्थर के पैनलों की एक श्रृंखला स्थापित है। इनमें संस्कृत व्याकरण के नियम और गूढ़ रेखाचित्र शामिल हैं।
- चौकी (भोजशाला) पर जैन शिलालेख में वाग्देवी (सरस्वती) की एक मूर्ति का उल्लेख है, जिससे पता चलता है कि धार में सरस्वती देवी की पूजा होती थी।
भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) के बारे में:
- भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) संस्कृति मंत्रालय के तहत देश की सांस्कृतिक विरासत के पुरातात्त्विक अनुसंधान और संरक्षण के लिये प्रमुख संगठन है।
- यह 3650 से अधिक प्राचीन स्मारकों, पुरातात्त्विक स्थलों और राष्ट्रीय महत्त्व के अवशेषों का प्रबंधन करता है।
- इसकी गतिविधियों में पुरावशेषों का सर्वेक्षण करना, पुरातात्त्विक स्थलों की खोज तथा उत्खनन, संरक्षित स्मारकों का संरक्षण एवं रखरखाव आदि शामिल हैं।
- इसकी स्थापना वर्ष 1861 में ASI के पहले महानिदेशक अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा की गई थी। अलेक्जेंडर कनिंघम को “भारतीय पुरातत्त्व का जनक” भी कहा जाता है।
कार्बन डेटिंग के बारे में:
- कार्बन डेटिंग तकनीक की खोज 1949 में हुई थी। अमेरिका के शिकागो यूनिवर्सिटी के विलियर्ड फ्रैंक लिबी ने इसका अविष्कार किया था।
- कार्बन डेटिंग एक वैज्ञानिक तकनीक है जिसका उपयोग किसी नमूने में मौजूद कार्बन-14 की मात्रा को मापकर कार्बनिक पदार्थों की आयु निर्धारित करने के लिए किया जाता है।
- कार्बन-14 कार्बन का एक रेडियोधर्मी समस्थानिक है जो ऊपरी वायुमंडल में उत्पन्न होता है जब ब्रह्मांडीय किरणें नाइट्रोजन परमाणुओं के साथ परस्पर क्रिया करती हैं।
- कार्बन-14 पौधों और जानवरों द्वारा प्रकाश संश्लेषण और उपभोग के माध्यम से अवशोषित किया जाता है, और जीवित जीवों में इसकी संकेन्द्रण लगभग स्थिर होती है।
- जब कोई जीव मरता है, तो वह कार्बन-14 को अवशोषित करना बंद कर देता है, और उसके शरीर में कार्बन-14 अनुमानित दर से क्षय होने लगता है।
- एक नमूने में शेष कार्बन-14 की मात्रा को मापकर, वैज्ञानिक यह गणना कर सकते हैं कि जीव को मरे हुए कितना समय हो गया है।
- कार्बन डेटिंग तकनीक द्वारा लगभग 50,000 वर्ष पुराने पदार्थ की आयु निर्धारित की जा सकती है।
- यह तकनीक पुरातत्व, भूविज्ञान और अन्य क्षेत्रों में व्यापक रूप से उपयोग की जाती है।
निष्कर्ष:
पिछले एक-दो वर्षों में देश के अन्दर अनेक धार्मिक स्थल जैसे वाराणसी में ज्ञानवापी मंदिर-मस्जिद, अयोध्या रामजन्मभूमि, आगरा का ताज महल, मथुरा की कृष्ण जन्मभूमि आदि विवाद का मुद्दा रहे हैं। और इन विवादों के कारण देश में अस्थिरता का वातावरण उत्पन्न होता रहा है।
इस विवादों के समाधान में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा कार्बन डेटिंग परीक्षण के आधार को कोर्ट द्वारा तार्किक एवं औचित्यपूर्ण माना जाता रहा है। हालांकि इस परीक्षण से प्राप्त निष्कर्ष कितने सत्य हैं यह निर्भर करता है जांच करने वाली टीम की वस्तुनिष्ठता पर।
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मुख्य परीक्षा प्रश्न
भोजशाला-कमाल मौला कॉम्प्लेक्स विवाद क्या है? इस विवाद का समाधान भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा कार्बन डेटिंग परीक्षण के आधार कितना औचित्यपूर्ण हो सकता है? विवेचना कीजिए।