
प्रवासी पक्षियों हेतु आर्द्रभूमि क्षेत्रों का संरक्षण
प्रवासी पक्षियों हेतु आर्द्रभूमि क्षेत्रों का संरक्षण
उत्तर प्रदेश विशेष- आर्द्रभूमि तथा पर्यावरण संरक्षण हेतु करेंट अफेयर
चर्चा में क्यों:
- हाल ही में, पश्चिमी यूपी के हैदरपुर आर्द्रभूमि क्षेत्र से झील का पानी समय से पहले निकालने के कारण वहां पहुंचे हजारों प्रवासी पक्षी वापस चले गए हैं।
- कई जलीय जंतुओं का जीवन खतरे में पड़ गया है। बड़ी संख्या में मछलियां भी मर गई हैं।
प्रमुख बिंदु:
- पानी के अभाव में यह पूरा क्षेत्र जलीय जीवों के लिए संकट बना गया है।
- केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने इस मामले में हस्तक्षेप कर राज्य सरकार को जलनिकासी रोकने का निर्देश दिया है।
- पर्यावरण मंत्रालय ने प्रवासी पक्षियों के संरक्षण हेतु राज्य सरकार को जल प्रबंध करने का निर्देश भी दिया है।
- दरअसल, इस क्षेत्र से पानी की निकासी उन किसानों के दबाव में की गई थी, जिन्होंने अपने खेतों में जल जमाव की शिकायत की थी।
- जल प्रबंधन का कार्य इस क्षेत्र में सिंचाई विभाग और वन विभाग मिलकर करते हैं।
- सर्दियों के मौसम में फरवरी के अंत या मध्य मार्च तक पक्षियों की तीन सौ से ज्यादा प्रजातियां इस क्षेत्र में आती हैं।
हैदरपुर आर्द्रभूमि क्षेत्र:
- मुजफ्फरनगर और बिजनौर जिलों की सीमा पर स्थित हैदरपुर आर्द्रभूमि क्षेत्र में सर्दियों के मौसम में हजारों विदेशी पक्षी कलरव करते हुए नजर आते हैं।
- इस क्षेत्र को पिछले साल ही रामसर स्थल के रूप में मान्यता मिली थी।
- गंगा और सोनाली नदी के बीच करीब सात हजार हेक्टेअर में फैला यह क्षेत्र जैव विविधता का महत्त्वपूर्ण केंद्र है।
- यह हस्तिनापुर वन्यजीव अभयारण्य का एक हिस्सा होने के कारण पहले से ही संरक्षित श्रेणी में आता है।
- यह आर्द्रभूमि अंतरराष्ट्रीय महत्व का एक रामसर स्थल है।
- बिजनौर गंगा बैराज के करीब सात हजार हेक्टेयर क्षेत्र में स्थित हैदरपुर वेटलैंड एक मानव निर्मित झील है।
- साल 1984 में मध्य गंगा बैराज के निर्माण के दौरान यह झील बनाई गई थी ताकि बाढ़ आने पर ज्यादा पानी इस झील में चला जाए।
- यहां हिरन, डाल्फिन, कछुए, घड़ियाल समेत कई जानवरों, पेड़-पौधों की दर्जनों प्रजातियां, पक्षियों की तीन सौ से ज्यादा प्रजातियों के अलावा कई अन्य जलीय जीव-जंतु भी पाए जाते हैं।
आर्द्रभूमि क्षेत्र
- रामसर स्थल की परिभाषा के अनुसार, आर्द्रभूमि क्षेत्र ऐसा स्थान है, जहां वर्ष में कम से कम आठ महीने पानी भरा रहता हो और जहां दो सौ से ज्यादा प्रजातियों के पक्षी मौजूद रहते हों।
- ईरान के शहर रामसर में 2 फरवरी 1971 को एक सम्मेलन हुआ था जिसमें शामिल देशों के बीच आर्द्रभूमि क्षेत्र के संरक्षण से संबंधित एक समझौता हुआ था।
- यह समझौता 21 दिसंबर 1975 से प्रभाव में आ गया।
- अगस्त,2022 तक भारत में 13,26,677 हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करते हुए कुल 75 रामसर स्थल थे।
- 1971 में ईरान के रामसर में रामसर संधि पत्र पर हस्ताक्षर के अनुबंध करने वाले पक्षों में से भारत एक है।
- भारत ने 1 फरवरी, 1982 को इस पर हस्ताक्षर किए थे।
- भारत में तमिलनाडु में रामसर स्थलों की संख्या सर्वाधिक 14 है। इसके पश्चात उत्तर प्रदेश में रामसर के 10 स्थल हैं।
उत्तर प्रदेश में कुल रामसर स्थल (घोषित वर्ष):
1. ऊपरी गंगा नदी (नरौरा) – 2005
2. नवाबगंज पक्षी अभयारण्य – 2019
3. साण्डी पक्षी अभयारण्य - 2019
4. समसपुर पक्षी अभयारण्य - 2019
5. समन पक्षी अभयारण्य - 2019
6. पार्वती अरगा पक्षी अभयारण्य- 2019
7. सरसई नावर झील- 2019
8. हैदरपुर वेटलैंड- 2021
9. बखिरा वन्यजीव अभयारण्य- 2022
10. सुर सरोवर झील– 2020
आगे की राह:
- किसानों के हित एवं प्रवासी पक्षियों के पलायन को रोकने के लिए इस क्षेत्र से धीरे-धीरे पानी की निकासी की जानी चाहिए।
- पर्यावरणविदों का कहना है कि वन्यजीव अधिनियम और आर्द्रभूमि क्षेत्र अधिनियम के तहत आर्द्रभूमि से पानी निकालने पर रोक लगाई जानी चाहिए।
- जल निकासी करने से पहले सिंचाई विभाग को वन विभाग के साथ समन्वय करना चाहिए ।
- जल निकासी के लिए पक्षियों के प्रवासी पैटर्न के अनुरूप ही योजना बनायी जानी चाहिए।
- सिंचाई विभाग को निर्देश दिया जाए कि वह आर्द्रभूमि क्षेत्र से पानी निकासी को रोके ताकि प्रवासी पक्षियों के लिए आवश्यक पानी उपलब्ध रहे।
- पर्यावरणविद आशंका जता रहे हैं कि इस क्षेत्र का सूखा होना वहां की वनस्पतियों और जंतुओं के साथ ही समग्र पारिस्थितिकी पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालेगा। इसलिए प्रवासी पक्षियों उपस्थिति बनाए रखने के लिए जल प्रबंधन आवश्यक है।
- इन स्थलों को रामसर सूची में नामित करने से आर्द्रभूमियों के संरक्षण और प्रबंधन तथा इनके संसाधनों के कौशलपूर्ण रूप से उपयोग करने में सहायता मिलेगी।
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मुख्य परीक्षा प्रश्न-
उत्तर प्रदेश में आर्द्र भूमियों के महत्व को देखते हुए इनका संरक्षण आवश्यक है। इस संदर्भ में अपना मत व्यक्त कीजिए।