
दुनिया का पहला इलेक्ट्रिक फ्लेक्स फ्यूल वाहन लॉन्च
दुनिया का पहला इलेक्ट्रिक फ्लेक्स फ्यूल वाहन लॉन्च
यह टॉपिक आईएएस/पीसीएस की प्रारंभिक परीक्षा के करेंट अफेयर और मुख्य परीक्षा के सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3 के पर्यावरण संरक्षण से संबंधित है
01 सितंबर, 2023
चर्चा में:
- हाल ही में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने दुनिया का पहला BS-VI (स्टेज-II), इलेक्ट्रिक फ्लेक्स फ्यूल वाहन लॉन्च किया।
फ्लेक्स फ्यूल व्हीकल के बारे में:
- यह उन्नत वाहन इनोवा हाइक्रॉस पर आधारित है जिसे टोयोटा किर्लोस्कर मोटर द्वारा तैयार किया गया।
- यह वाहन भारत के सख्त उत्सर्जन मानकों का पालन करने के अनुरूप तैयार किया गया है।
- यह वाहन वैश्विक स्तर पर पहले बीएस 6 स्टेज II 'इलेक्ट्रिफाइड फ्लेक्स फ्यूल व्हीकल' का प्रोटोटाइप है।
- ये ऐसे इंजन से युक्त वाहन होते हैं, जो एक साथ कई ईंधनों का प्रयोग कर सकते हैं।
- इस वाहन से संबंधित तकनीक की खोज 1980 में की गयी थी।
- इसमें प्रयुक्त होने वाले ईंधनों में पेट्रोल और इथेनॉल का मिश्रण या 100% तक इथेनॉल उपयोग किया जा सकता है।
इस व्हीकल के लाभ:
- कार्बन फुटप्रिंट को कम किया जा सकेगा।
- देश की पारंपरिक ईंधन स्रोतों पर निर्भरता कम हो जाएगी।
- हाइड्रोजन, फ्लेक्स-ईंधन, जैव ईंधन इत्यादि जैसे वैकल्पिक ईंधनों का उपयोग बढ़ेगा।
- यह व्हीकल '40 प्रतिशत' बिजली भी पैदा करेगा, जिससे इथेनॉल की प्रभावी कीमत काफी कम हो जाएगी।
जैव ईंधन के बारे में:
- इस व्हीकल के परिचालन से ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में भारी कमी लायी जा सकती है।
- कोई भी हाइड्रोकार्बन ईंधन, जो किसी कार्बनिक पदार्थ (जीवित अथवा मृत पदार्थ) से कम समय (दिन, सप्ताह या महीने) में निर्मित होता है, जैव ईंधन (Biofuels) माना जाता है।
- जैव ईंधन प्रकृति में ठोस, तरल या गैसीय अवस्था में हो सकते हैं।
- ठोस जैव ईंधन लकड़ी, पौधों से प्राप्त सूखी हुई सामग्री तथा खाद से प्राप्त होते हैं।
- तरल जैव ईंधन बायोएथेनॉल और बायोडीज़ल के रूप में होते हैं।
- गैसीय जैव ईंधन बायोगैस के रूप में पाए जाते हैं।
जैव ईंधन की श्रेणियाँ
पहली पीढ़ी के जैव ईंधन:
- ये खाद्य स्रोतों जैसे कि चीनी, स्टार्च, वनस्पति तेल या पशु वसा से पारंपरिक तकनीक का उपयोग करके बनाए जाते हैं।
- सामान्य रूप से पहली पीढ़ी के जैव ईंधन में बायो अल्कोहल, बायोडीज़ल, वनस्पति तेल, बायोएथर्स, बायोगैस आदि शामिल हैं।
दूसरी पीढ़ी के जैव ईंधन:
- ये गैर-खाद्य फसलों या खाद्य फसलों के कुछ हिस्सों से उत्पन्न होते हैं जो खाद्य अपशिष्ट के रूप में माने जाते हैं, जैसे: डंठल, भूसी, लकड़ी के टुकड़े और फलों के छिलके और गुद्दे।
- ऐसे ईंधन के उत्पादन के लिये थर्मोकेमिकल अभिक्रियाओं या जैव रासायनिक रूपांतरण प्रक्रियाओं का उपयोग किया जाता है।
- उदाहरण: सेल्यूलोज़ इथेनॉल और बायोडीज़ल।
तीसरी पीढ़ी के जैव ईंधन:
- ये शैवाल जैसे सूक्ष्म जीवों से उत्पन्न होते हैं। उदाहरण: ब्यूटेनॉल (Butanol)
- शैवाल जैसे सूक्ष्म जीवों को खाद्य उत्पादन के लिये अनुपयुक्त भूमि और जल से उगाया जा सकता है, इससे घटते जल स्रोतों पर दबाव को कम किया जा सकता है।
चौथी पीढ़ी के जैव ईंधन:
- इन ईंधनों के उत्पादन के लिये उन फसलों को चुना जाता है जिनमें आनुवंशिक रूप से अधिक मात्रा में कार्बन अभिनियांत्रित होते हैं, उन्हें बायोमास के रूप में उगाया और काटा जाता है।
- उसके बाद फसलों को दूसरी पीढ़ी की तकनीकों का उपयोग करके ईंधन में परिवर्तित किया जाता है।
- ईंधन का पूर्व दहन करके कार्बन का पता लगाया जाता है। तब कार्बन भू-अनुक्रमित होता है, जिसका अर्थ है कि कार्बन कच्चे तेल या गैसीय क्षेत्र में या अनुपयुक्त पानी के खेतों में जमा हो जाता है।
- इनमें से कुछ ईंधन को कार्बन नकारात्मक माना जाता है क्योंकि उनका उत्पादन पर्यावरण से कार्बन की मात्रा को नष्ट करता है।
इथेनॉल के बारे में:
- यह एक जल रहित एथिल अल्कोहल है, जिसका रासायनिक सूत्र C2H5OH होता है
- यह गन्ना, मक्का, गेहूं आदि से प्राप्त किया किया जा सकता है, जिसमें स्टार्च की उच्च मात्रा होती है।
- भारत में इथेनॉल का उत्पादन मुख्य रूप से किण्वन प्रक्रिया (Fermentation) द्वारा गन्ना के शीरा (Molasses) से किया जाता है
- इथेनॉल को अलग-अलग प्रकार के मिश्रण उत्पाद बनाने के लिये गैसोलीन के साथ मिश्रित किया जाता है।
इथेनॉल का महत्त्व:
- इथेनॉल एक स्वदेशी, पर्यावरण-अनुकूल और नवीकरणीय ईंधन है, जिसमें भारत के लिए अनेक संभावनाएं निहित हैं।
- इस फ्यूल के उपयोग से ऊर्जा आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
- किसानों की आय दोगुनी करने, उन्हें अन्नदाता के रूप में समर्थन जारी रखते हुए ऊर्जादाता में तब्दील करने और पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव डालने में मदद मिलेगी।
- इस फ्यूल के उपयोग से इथेनॉल अर्थव्यवस्था 2 लाख करोड़ की हो जाएगी।
- कृषि विकास दर मौजूदा 12 प्रतिशत से बढ़कर 20 प्रतिशत हो जाएगी।
- वर्तमान में पेट्रोलियम आयात के लिए उपयोग की जाने वाली विदेशी मुद्रा की पर्याप्त मात्रा को बचाने में मदद मिल सकती है।
- यह ग्रामीण और अपशिष्ट प्रबंधन क्षेत्र में रोज़गार के अवसरों का विकास करने के साथ किसानों के अनुपयोगी जैव-कचरे के सदुपयोग के माध्यम से उनकी आय में वृद्धि करने में सहायक होगा।
भारत में इथेनॉल सम्मिश्रण की स्थिति के बारे में:
- भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा खपत वाला देश है। भारत की बढ़ती ऊर्जा को पूरा करने और अन्य देशों से कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता को कम करने के लिए, भारत ने 2001 में पायलट आधार पर पेट्रोल में इथेनॉल का मिश्रण शुरू किया।
- इथेनॉल आपूर्ति और सम्मिश्रण प्रतिशत में मजबूत वृद्धि को देखते हुए, भारत सरकार ने मूल रूप से निर्धारित वर्ष 2025 के बजाय इसे अग्रानीत करते हुए इथेनॉल के साथ इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल को 20% तक बेचने का लक्ष्य वर्ष 2023 कर दिया है।
- 20% सम्मिश्रण स्तर पर, इथेनॉल की मांग 2025 तक बढ़कर 1,016 करोड़ लीटर हो जाने की उम्मीद है। इसलिए इथेनॉल उद्योग का मूल्य 500% से अधिक बढ़कर लगभग ₹9,000 करोड़ से बढ़कर ₹50,000 करोड़ से अधिक हो जाएगा।
- वर्तमान में, भारत अपनी घरेलू मांग को पूरा करने के लिए लगभग 16 लाख करोड़ रुपये का 85% से अधिक तेल आयात करता है।
- जीवाश्म ईंधन के उच्च स्तर के साथ इथेनॉल मिश्रण पेश करके, सरकार का लक्ष्य आयात पर इस निर्भरता को कम करना है।
- भारत में इथेनॉल सम्मिश्रण 8 गुना से अधिक बढ़ गया है। यह 2014 में 1.53% से बढ़कर लगभग 11.5% (मार्च 2023) हो गया है जिससे आयात बिल में बचत हुई है और कार्बन उत्सर्जन भी कम हुआ है।
- वैश्विक ऊर्जा खपत में भारत की हिस्सेदारी 2050 तक दोगुनी होने की संभावना है। इसलिए केंद्र सरकार ने 2025 तक पूरे भारत में 20% इथेनॉल मिश्रण हासिल करने का लक्ष्य रखा है, जिससे तेल आयात बिल में सालाना 35,000 करोड़ रुपये की बचत होने की उम्मीद है।
- असम के नुमालीगढ़ स्थित इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन की रिफाइनरी से जैव इथेनॉल के निर्माण के लिए बांस का उपयोग किया जा रहा है।
- विश्व जैव ईंधन दिवस 10 अगस्त को मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने की शुरुआत 2015 में हुई थी।
- विश्व जैव ईंधन दिवस 2022 की थीम 'स्थिरता और ग्रामीण आय के लिए जैव ईंधन' है।
----------------------------
मुख्य परीक्षा प्रश्न
जैव-ईंधन से परिचालित वाहन समुदायों को व्यापक रूप से पर्यावरणीय, सामाजिक-आर्थिक और स्वास्थ्य लाभ उपलब्ध कराते हैं। विवेचना कीजिए।