29.07.2025
चोल साम्राज्य
प्रसंग :
राजेंद्र चोल प्रथम की जयंती पर , भारत के प्रधानमंत्री ने गंगईकोंडा चोलपुरम में चोल राजवंश की समुद्री शक्ति , शासन और सांस्कृतिक एकता की विरासत का जश्न मनाया ।
• प्रधानमंत्री ने स्मारक सिक्के जारी किए और राजेंद्र एवं राजराजा चोल की
प्रतिमाओं की घोषणा की । • नौसेना विस्तार और स्थानीय लोकतंत्र में चोलों की भूमिका को याद किया । •
संस्कृति और व्यापार के माध्यम से
दक्षिण पूर्व एशिया में उनके प्रभाव पर प्रकाश डाला । • प्रधानमंत्री ने आदि तिरुत्तरी उत्सव में भाग लिया और विरासत को वर्तमान राष्ट्रवाद के साथ जोड़ा।
चोल वंश के प्रमुख शासक और उनकी उपलब्धियाँ:
• कुदावोलाई प्रणाली ने ताड़ के पत्तों पर मतपत्रों का उपयोग करके
ग्राम-स्तरीय चुनावों को सक्षम बनाया । • विकेन्द्रीकृत सभाएँ (उर, सभा, नगरम) भूमि, कर और न्याय के मामलों को संभालती थीं।
• साम्राज्य भर में
कुशल अभिलेखों , सर्वेक्षणों और राजस्व अभिलेखों को बनाए रखा। • एक शक्तिशाली नौसेना थी , जिसका विस्तार श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व एशिया में था । •
नागपट्टिनम और पूम्पुहार जैसे बंदरगाहों के माध्यम से मंदिर अर्थव्यवस्थाओं और व्यापार को प्रोत्साहित किया । •
शैव और वैष्णव दोनों धर्मों का समर्थन किया , धार्मिक सद्भाव और मंदिर नेटवर्क को बढ़ावा दिया।
चोल साम्राज्य सुशासन , समुद्री उत्कृष्टता और सांस्कृतिक विस्तार का प्रतीक रहा है । इसकी विरासत भारत को ऐतिहासिक गौरव और आधुनिक राष्ट्र निर्माण की रूपरेखा प्रदान करती है ।