21.06.2025
इच्छामृत्यु (Euthanasia)
प्रसंग:
जून 2025 में यूनाइटेड किंगडम ने टर्मिनल बीमारियों से पीड़ित रोगियों के लिए सहायता प्राप्त मृत्यु (Assisted Dying) को वैध कर दिया। इससे भारत में पुनः बहस शुरू हो गई है, जहाँ निष्क्रिय इच्छामृत्यु (Passive Euthanasia) को कानूनी मान्यता है, परंतु सक्रिय इच्छामृत्यु (Active Euthanasia) अवैध है। अब चर्चा इस बात पर केंद्रित है कि भारत को अपने कानूनों की पुनः समीक्षा करनी चाहिए या नहीं।
समाचार से संबंधित जानकारी (यूके का कानून)
- यूके ने टर्मिनल रूप से बीमार वयस्कों के लिए सहायता प्राप्त मृत्यु को वैध किया।
→ ऐसे वयस्क जिनके पास जीवन के छह महीने से कम का समय है, अब चिकित्सकीय सहायता से मृत्यु चुन सकते हैं।
- यह कानून केवल इंग्लैंड और वेल्स में लागू है।
→ स्कॉटलैंड जैसे यूके के अन्य हिस्सों में यह लागू नहीं है।
- डॉक्टरों, न्यायालयों और लिखित सहमति की आवश्यकता होती है।
→ निर्णय चिकित्सा और कानूनी समीक्षा से गुजरता है।
- 2013 से लंबित इस मुद्दे पर कई असफल प्रयासों के बाद 2025 में कानून पास हुआ।
इच्छामृत्यु के प्रकार
1. सक्रिय इच्छामृत्यु (Active Euthanasia)
इसमें मरीज के जीवन को चिकित्सा साधनों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से समाप्त किया जाता है, जैसे कि घातक इंजेक्शन देना।
- स्वैच्छिक (Voluntary): जब रोगी खुद सहमति देता है।
उदाहरण: एक टर्मिनल कैंसर रोगी डॉक्टर से जीवन समाप्त करने की दवा देने का अनुरोध करता है।
- गैर-स्वैच्छिक (Non-voluntary): रोगी निर्णय देने की स्थिति में नहीं होता।
उदाहरण: कोमा में पड़े व्यक्ति को परिवार के निर्णय पर इच्छामृत्यु दी जाती है।
- अस्वैच्छिक (Involuntary): रोगी की सहमति के बिना किया जाता है।
उदाहरण: एक मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति को बिना सहमति के इच्छामृत्यु दी जाती है (जो अक्सर अवैध माना जाता है)।
2. निष्क्रिय इच्छामृत्यु (Passive Euthanasia)
इसमें जीवन रक्षक उपचार को बंद कर दिया जाता है, जिससे व्यक्ति अपनी बीमारी से स्वाभाविक रूप से मृत्यु को प्राप्त करता है।
उदाहरण: ब्रेन डेड व्यक्ति का वेंटिलेटर हटाना या डिमेंशिया के अंतिम चरण में पोषण देना बंद करना।
यह आमतौर पर पूर्व निर्देशों (Advance Directives) या परिवार की सहमति से किया जाता है जब रोगी स्वयं निर्णय लेने में असमर्थ हो।
भारत की तुलना में मुख्य विशेषताएँ
- भारत में केवल निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति है।
→ उपचार हटाया जा सकता है, पर जान लेने की सीधी कार्रवाई वैध नहीं।
- सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में मंजूरी दी थी (Common Cause बनाम भारत संघ केस)।
→ अनुच्छेद 21 के तहत “सम्मानपूर्वक मृत्यु का अधिकार” मान्यता प्राप्त।
- केवल टर्मिनल अवस्था में अचेतन रोगियों को ही शामिल किया गया है।
→ रोगी को अपरिवर्तनीय अवस्था में होना आवश्यक है।
- लिविंग विल (Living Will) की कानूनी मान्यता है।
→ व्यक्ति भविष्य में जीवन रक्षक सहायता न लेने की इच्छा दर्ज करा सकता है।
- भारत में चिकित्सा बोर्ड की मंजूरी अनिवार्य है।
→ निष्क्रिय इच्छामृत्यु के लिए डॉक्टरों के समूह की सहमति जरूरी।
- भारत में सक्रिय इच्छामृत्यु पर कोई कानून नहीं है।
→ जानबूझकर जीवन समाप्त करने की कार्रवाई (जैसे घातक इंजेक्शन) अभी भी अवैध है।
भारत के लिए चुनौतियाँ
- नैतिक और धार्मिक विरोध:
→ कई समुदाय इसे जीवन के मूल्य के विरुद्ध मानते हैं, विशेष रूप से ग्रामीण और धार्मिक क्षेत्रों में।
- लिविंग विल के प्रति कम जागरूकता:
→ शिक्षित लोग भी नहीं जानते कि इसे कैसे और कब इस्तेमाल किया जा सकता है।
- सुरक्षा उपायों की कमी में दुरुपयोग का खतरा:
→ गरीब या वृद्ध लोगों पर मृत्यु के लिए दबाव डाला जा सकता है।
- प्रशिक्षित चिकित्सा नैतिकता बोर्डों की कमी:
→ अधिकांश अस्पतालों में इच्छामृत्यु के मामलों का मूल्यांकन करने की उचित प्रणाली नहीं है।
भारत के लिए आगे का मार्ग
- नागरिकों में निष्क्रिय इच्छामृत्यु के कानूनों की जानकारी बढ़ाना।
→ लिविंग विल और कानूनी सुरक्षा के बारे में जनजागरूकता फैलाना।
- डॉक्टरों के लिए स्पष्ट राष्ट्रीय दिशानिर्देश बनाना।
→ अस्पतालों और नैतिकता बोर्डों के लिए एकरूप प्रक्रियाएं तय करना।
- पैलिएटिव केयर सुविधाओं को मजबूत करना।
→ दर्द प्रबंधन और जीवन के अंतिम चरण में सहयोग प्रदान कर इच्छामृत्यु की मांग को कम करना।
- सुरक्षा उपायों के साथ सक्रिय इच्छामृत्यु पर चर्चा की शुरुआत करना।
→ यूके और नीदरलैंड जैसे देशों से सीख लेकर सावधानीपूर्वक कानूनों पर विचार करना।
निष्कर्ष
भारत की इच्छामृत्यु से जुड़ी कानूनी यात्रा सतर्क किन्तु प्रगतिशील रही है। जहाँ निष्क्रिय इच्छामृत्यु को अनुमति दी गई है, वहीं सहायता प्राप्त मृत्यु पर चर्चा अब भी जारी है। यूके जैसे देशों के हालिया कानूनों और बढ़ती जन-जागरूकता के चलते, भारत को अपने नीति ढांचे की समीक्षा करनी पड़ सकती है ताकि दया, सहमति और देखभाल के बीच संतुलन सुनिश्चित किया जा सके।