27.06.2025
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) बैठक: भारत की रणनीतिक असहमति
प्रसंग:
हाल ही में चीन द्वारा आयोजित एक SCO बैठक में, भारत ने अंतिम संयुक्त घोषणा पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया।
समाचार के बारे में:
- भारत ने SCO की संयुक्त घोषणा पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया।
- यह निर्णय भारत की प्रमुख सुरक्षा चिंताओं को नजरअंदाज किए जाने के कारण लिया गया।
- यह बयान केवल बलूचिस्तान में हुए हमलों पर केंद्रित था।
- पहलगाम जैसे भारतीय मुद्दों की अनदेखी ने आतंकवाद पर चयनात्मक दृष्टिकोण को उजागर किया।
- राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बैठक में भाग लिया।
- उनकी उपस्थिति ने असहमति के बावजूद भारत की सक्रिय भागीदारी को दर्शाया।
SCO के बारे में:
- वर्ष 2001 में ‘शंघाई फाइव’ से विकसित होकर SCO की स्थापना हुई।
- यह एक चीन-प्रेरित क्षेत्रीय पहल के रूप में सुरक्षा सहयोग पर केंद्रित थी।
- इसमें अब कुल 10 स्थायी सदस्य देश हैं।
स्थायी सदस्य देश:
बेलारूस, चीन, भारत, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान
पर्यवेक्षक देश:
अफगानिस्तान, मंगोलिया
- यह संगठन एक विशाल भौगोलिक और आर्थिक क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है।
- इसका मुख्य उद्देश्य आतंकवाद से लड़ना और क्षेत्रीय शांति को बढ़ावा देना है।
- RATS (क्षेत्रीय आतंकवाद-रोधी संरचना) के माध्यम से सुरक्षा सहयोग प्रमुख फोकस है।
- RATS का मुख्यालय ताशकंद, उज्बेकिस्तान में स्थित है।
- यह सदस्य देशों के बीच खुफिया जानकारी और आतंकवाद-रोधी अभियानों का समन्वय करता है।
- SCO की आधिकारिक भाषाएं चीनी और रूसी हैं।
- यह इसकी स्थापना करने वाले देशों के प्रभुत्व को दर्शाता है।
- SCO का सामूहिक GDP लगभग 23 ट्रिलियन डॉलर है।
- आर्थिक एकीकरण भी इसका एक उभरता हुआ लक्ष्य है।
SCO का महत्व:
1. रणनीतिक सुरक्षा मंच:
SCO एक साझा तंत्र प्रदान करता है जो आतंकवाद, उग्रवाद और अलगाववाद से निपटने में सैन्य सहयोग व समन्वित अभियानों के माध्यम से क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित करता है।
2. व्यापक भू-राजनीतिक प्रभाव:
विश्व की 40% से अधिक जनसंख्या और विशाल भौगोलिक क्षेत्र को कवर करते हुए, SCO एक प्रभावशाली संगठन है जो यूरेशियाई राजनीति, अर्थव्यवस्था और सुरक्षा को प्रभावित करता है।
3. आर्थिक और ऊर्जा सहयोग को बढ़ावा:
यह संगठन व्यापार, ऊर्जा संवाद, और निवेश को प्रोत्साहित करता है, जिससे सदस्य देशों के बीच साझा विकास संभव होता है।
4. क्षेत्रीय संपर्क को मजबूती:
SCO सीमा-पार संपर्क और परिवहन गलियारों को बढ़ावा देता है, जो चीन की BRI और भारत के मध्य एशिया से संपर्क जैसे लक्ष्यों के अनुकूल है।
5. बहुपक्षीय कूटनीति को प्रोत्साहन:
यह भारत सहित अन्य देशों को बहुपक्षीय कूटनीतिक मंच प्रदान करता है, जहां वे रणनीतिक हितों को संतुलित ढंग से आगे बढ़ा सकते हैं।
चुनौतियाँ:
- आतंकवाद पर चयनात्मक दृष्टिकोण विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचाता है।
उदाहरण: पहलगाम हमले की अनदेखी आतंकवाद-विरोधी एजेंडे को कमजोर करती है।
- चीन-पाक गठजोड़ अक्सर भारत की चिंताओं को अलग-थलग कर देता है।
उदाहरण: BRI परियोजना, जिसका भारत विरोध करता है, एक प्रमुख विभाजन बिंदु है।
- पाकिस्तान की सदस्यता आतंकवाद-विरोधी लक्ष्यों से मेल नहीं खाती।
उदाहरण: आतंकवादी समूहों को संरक्षण देने का उसका रिकॉर्ड सामूहिक प्रयासों को कमजोर करता है।
- भाषा और राजनीतिक संरेखण भारतीय प्रस्तावों को हाशिए पर डालते हैं।
उदाहरण: केवल चीनी और रूसी भाषा का आधिकारिक उपयोग समावेशी संवाद को सीमित करता है।
आगे की राह:
- आतंकवाद पर संतुलित दृष्टिकोण के लिए दबाव बनाना चाहिए।
उदाहरण: SCO की रिपोर्ट में सभी प्रासंगिक हमलों को शामिल करने की मांग करनी चाहिए।
- SCO के भीतर भारत को रणनीतिक साझेदारियों को मजबूत करना चाहिए।
उदाहरण: मध्य एशियाई देशों और रूस से संबंध और मजबूत करने चाहिए।
- निर्णय-प्रक्रियाओं में सुधार की मांग उठानी चाहिए।
उदाहरण: बहुभाषी संवाद को आधिकारिक रूप देना चाहिए।
- भारत को अपने लोकतांत्रिक मूल्यों और आतंकवाद-विरोधी छवि को प्रमुखता से प्रस्तुत करना चाहिए।
उदाहरण: सीमा-पार खतरों को निष्क्रिय करने में भारत की सफलता को उजागर करना चाहिए।
निष्कर्ष:
SCO की संयुक्त घोषणा पर हस्ताक्षर से भारत का इनकार आतंकवाद पर चयनात्मक दृष्टिकोण के विरुद्ध एक सशक्त कूटनीतिक संकेत है। भारत एक उत्तरदायी सदस्य के रूप में क्षेत्रीय सहयोग के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन वह इसे राष्ट्रीय सुरक्षा और सिद्धांतों की कीमत पर नहीं करेगा। आने वाले समय में भारत SCO को अधिक न्यायसंगत बहुपक्षीय मंच बनाने और वास्तविक सुरक्षा सहयोग की दिशा में मार्गदर्शन करने में अहम भूमिका निभा सकता है।