12.06.2025
भारत पर प्रभाव
अल्पकालिक दबाव
- भारत के ईवी और ऑटो क्षेत्र को मैग्नेट स्टॉक घटने से उत्पादन में बाधा आ रही है।
इलेक्ट्रिक मोटर और उन्नत इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की उत्पादन समय-सारणी प्रभावित हो रही है।
दीर्घकालिक रणनीतिक अंतर
- भारत के पास पाँचवां सबसे बड़ा REE भंडार है, परंतु बड़े पैमाने पर परिशोधन या मैग्नेट निर्माण की क्षमता नहीं है।
- IREL (Indian Rare Earths Limited), एक सार्वजनिक उपक्रम, घरेलू उत्पादन में प्रमुख भूमिका निभाता है, जिससे लचीलापन सीमित हो जाता है।
4. नीतिगत प्रतिक्रियाएँ और औद्योगिक रणनीतियाँ
अल्पकालिक उपाय
- चीन से निर्यात मंजूरी प्राप्त करने हेतु द्विपक्षीय कूटनीति में सक्रियता।
- वियतनाम, ऑस्ट्रेलिया और कुछ अफ्रीकी देशों से वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं की खोज।
- पुराने इलेक्ट्रॉनिक्स, बैटरियों और वाहनों से REEs का पुन: उपयोग और रीसायक्लिंग।
- अस्थायी रूप से फेराइट मैग्नेट का उपयोग, हालांकि वे तकनीकी रूप से कमज़ोर हैं।
रणनीतिक रोडमैप
- घरेलू परिशोधन और मैग्नेट निर्माण सुविधाओं की स्थापना।
- वैकल्पिक सामग्रियों और सतत निष्कर्षण तकनीकों में अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहन।
- तकनीकी रूप से उन्नत और संसाधन-संपन्न देशों के साथ संयुक्त उपक्रमों को प्रोत्साहित करना, जिससे ज्ञान और तकनीक हस्तांतरण हो सके।
5. राष्ट्रीय सुरक्षा और भू-राजनीतिक प्रभाव
REEs केवल आर्थिक घटक नहीं, बल्कि रणनीतिक संसाधन भी हैं। भारत की मिसाइल प्रणाली, उपग्रह, और स्मार्ट हथियार इन तत्वों की स्थिर उपलब्धता पर निर्भर करते हैं। चीन पर अत्यधिक निर्भरता, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जोखिम पैदा करती है और यह इंगित करती है कि भारत को प्रमुख तकनीकों में आत्मनिर्भर बनने की आवश्यकता है।
6. आगे की दिशा: भारत के REE पारिस्थितिकी तंत्र को सशक्त बनाना
भारत को अपनी निर्भरता कम करने और लचीलापन बढ़ाने के लिए एक बहु-आयामी रणनीति अपनानी चाहिए:
- घरेलू खोज और निष्कर्षण में तेजी लाना, जिसमें सार्वजनिक और निजी क्षेत्र दोनों की भागीदारी हो।
- खनन, परिशोधन, अनुसंधान, और अंतिम उपयोगों में समन्वय हेतु एक राष्ट्रीय दुर्लभ पृथ्वी मिशन शुरू करना।
- उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना में REEs को शामिल करना ताकि निवेश आकर्षित किया जा सके और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिले।
- ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील और कुछ अफ्रीकी देशों जैसे अप्रयुक्त भंडार वाले देशों के साथ अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी को सशक्त बनाना।
- ई-कचरे और निष्क्रिय ईवी वाहनों से दुर्लभ तत्वों की पुनःप्राप्ति हेतु एक मज़बूत रीसायक्लिंग प्रणाली विकसित करना।
निष्कर्ष
भारत की विदेश-नियंत्रित दुर्लभ पृथ्वी आपूर्ति श्रृंखला पर निर्भरता, उसकी आर्थिक आकांक्षाओं और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक गंभीर चुनौती है। चीन के निर्यात प्रतिबंधों ने इन कमजोरियों को उजागर कर दिया है, लेकिन यह भारत के लिए अपनी नीति को पुनः परिभाषित करने का एक समयोचित अवसर भी है। समन्वित नीतिगत प्रयासों, तकनीकी निवेशों और रणनीतिक साझेदारियों के माध्यम से, भारत अपनी REE क्षमता को एक आत्मनिर्भर और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मक लाभ में परिवर्तित कर सकता है।