14.06.2025
ऑपरेशन राइजिंग लायन
प्रसंग
अप्रैल 2025 में, इज़राइल ने ऑपरेशन राइजिंग लायन नामक एक सैन्य अभियान शुरू किया, जिसका उद्देश्य ईरान की परमाणु स्थलों जैसे नतांज़ पर हमला करना था। इस हमले ने पश्चिम एशिया में तनाव को और बढ़ा दिया है और वैश्विक तेल आपूर्ति तथा क्षेत्रीय स्थिरता को लेकर गंभीर चिंताएं उत्पन्न कर दी हैं।
समाचार से जुड़ी जानकारी
इज़राइली सेना ने ईरान के अंदर 100 से अधिक प्रमुख स्थानों पर हमला किया।
अभियान का फोकस परमाणु ठिकानों और मिसाइल प्रणालियों पर था।
इज़राइल ने दावा किया कि ईरान परमाणु हथियार क्षमता के बेहद करीब पहुंच चुका है।
ईरान ने तीखी प्रतिक्रिया दी और गंभीर प्रतिशोध की धमकी दी।
परमाणु संवर्धन और रणनीतिक चिंताएं
इस संघर्ष के केंद्र में यूरेनियम संवर्धन है।
U-235 एक दुर्लभ समस्थानिक है, जो परमाणु ऊर्जा और बम दोनों के लिए आवश्यक होता है।
रिपोर्टों के अनुसार, ईरान का संवर्धन स्तर 60% से अधिक हो गया है, जो गंभीर चिंता का कारण है।
हथियार-ग्रेड यूरेनियम के लिए लगभग 90% U-235 सांद्रता आवश्यक होती है।
सेंट्रीफ्यूज मशीनों की सहायता से हल्के U-235 को भारी U-238 से अलग किया जाता है।
केवल 1 इंच संवर्धित यूरेनियम से लगभग 120 गैलन तेल के बराबर ऊर्जा उत्पन्न हो सकती है।
चुनौतियाँ
क्षेत्रीय युद्ध का खतरा बढ़ सकता है (उदाहरण: हिज़्बुल्ला हमले कर सकता है)।
भारत के लिए तेल आयात महंगा हो सकता है (उदाहरण: कच्चे तेल की कीमत $100 प्रति बैरल से ऊपर)।
ईरान के परमाणु कार्यक्रम की निगरानी बाधित हो सकती है (उदाहरण: IAEA को पहुँच से वंचित किया गया)।
होर्मुज़ जलडमरूमध्य का अवरोध वैश्विक तेल व्यापार का 20% प्रभावित कर सकता है।
आगे की राह
परमाणु हथियार नियंत्रण के लिए कूटनीतिक वार्ताओं को बढ़ावा देना चाहिए (उदाहरण: ईरान परमाणु समझौते की बहाली)।
भारत को आपात स्थितियों के लिए अपने तेल भंडार को बढ़ाना चाहिए (उदाहरण: भारतीय सामरिक पेट्रोलियम भंडार)।
स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों में अधिक निवेश करना चाहिए (उदाहरण: राष्ट्रीय सौर मिशन के लक्ष्य)।
भारत को एक संतुलित क्षेत्रीय मध्यस्थ की भूमिका निभानी चाहिए (उदाहरण: ईरान और इज़राइल दोनों के साथ संबंध बनाए रखना)।
निष्कर्ष
इज़राइल-ईरान संकट केवल एक क्षेत्रीय मुद्दा नहीं है, बल्कि वैश्विक स्तर पर तेल आपूर्ति, सुरक्षा और परमाणु सुरक्षा को प्रभावित करने वाला गंभीर संकट बन चुका है। भारत जैसे देशों को ऊर्जा विविधीकरण के माध्यम से तैयार रहना चाहिए और शांति की दिशा में कूटनीति व अंतरराष्ट्रीय सहयोग को प्राथमिकता देनी चाहिए।