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प्रोजेक्ट आकाशतीर

10.04.2024

 

प्रोजेक्ट आकाशतीर

 

प्रारंभिक परीक्षा के लिए: प्रोजेक्ट आकाशतीर के बारे में,भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) के बारे में

 

खबरों में क्यों ?                                                                    

भारतीय सेना ने अपनी वायु रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने के लिए 'प्रोजेक्ट आकाशतीर' के तहत नियंत्रण और रिपोर्टिंग सिस्टम को शामिल करने की पहल की है।

 

मुख्य बिंदु:

आकाशतीर ने वायु रक्षा अभियानों में क्रांति ला दी है और भारत के सशस्त्र बलों को अत्याधुनिक क्षमताओं से सशक्त बनाया है।

 

प्रोजेक्ट आकाशतीर के बारे में:

  • 'प्रोजेक्ट आकाशतीर' एक महत्वपूर्ण पहल है जिसका उद्देश्य भारतीय सेना की वायु रक्षा क्षमताओं को बढ़ाना है।
  • इसे भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) द्वारा 'आत्मनिर्भर भारत' पहल के हिस्से के रूप में विकसित किया गया है।
  • यह परियोजना वायु रक्षा नियंत्रण और रिपोर्टिंग प्रक्रियाओं को डिजिटलीकरण करके स्वचालित करने के लिए डिज़ाइन की गई है।
  • यह प्रणाली सभी स्तरों पर रडार और संचार प्रणालियों को एक एकीकृत नेटवर्क में एकीकृत करती है, जो अभूतपूर्व स्तर की स्थितिजन्य जागरूकता और नियंत्रण प्रदान करती है।
  • यह शत्रुतापूर्ण लक्ष्यों पर तेजी से हमला करने में सक्षम बनाता है, भ्रातृहत्या के जोखिम को काफी कम करता है, और विवादित हवाई क्षेत्र में मित्रवत विमानों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
  • 'आकाशतीर' का एक उल्लेखनीय पहलू गतिशीलता और लचीलेपन पर जोर देना है।
  • सिस्टम के नियंत्रण केंद्र, जिन्हें वाहन-आधारित और मोबाइल बनाया गया है, चुनौतीपूर्ण संचार वातावरण में भी परिचालन क्षमताओं को बनाए रख सकते हैं।
  • इस परियोजना से सेना की वायु रक्षा तंत्र की परिचालन दक्षता और एकीकरण में उल्लेखनीय वृद्धि होने की उम्मीद है।
  • परियोजना की कुल लागत लगभग 1,982 करोड़ रुपये है।

 

भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) के बारे में

  • यह भारत सरकार के स्वामित्व वाली एयरोस्पेस और रक्षा इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी है।
  • यह मुख्य रूप से जमीनी और एयरोस्पेस अनुप्रयोगों के लिए उन्नत इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद बनाती है।
  • यह भारत के रक्षा मंत्रालय के तहत नौ सार्वजनिक उपक्रमों में से एक है। भारत सरकार द्वारा इसे नवरत्न का दर्जा दिया गया है।
  • इसकी स्थापना 1954 में बैंगलोर, कर्नाटक, भारत में हुई थी

 

                                       स्रोत: द इकोनॉमिक टाइम्स