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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और रॉयल्टी

11.12.2025

 

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और रॉयल्टी

 

प्रसंग

जैसे-जैसे जेनरेटिव AI मॉडल बढ़ रहे हैं, इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी को लेकर एक बड़ी बहस छिड़ गई है। मुख्य झगड़ा AI डेवलपर्स के बीच है जो अपने मॉडल को ट्रेन करने के लिए बहुत सारा ऑनलाइन डेटा इस्तेमाल करते हैं और कंटेंट क्रिएटर्स के बीच है जिन्हें अपने काम के इस्तेमाल के लिए कोई पैसा नहीं मिलता है।

समस्या

  • डेटा स्क्रैपिंग: AI मॉडल (जैसे चैटबॉट को पावर देने वाले LLM) अपने एल्गोरिदम को ट्रेन करने के लिए इंटरनेट से टेक्स्ट, इमेज और कोड को सिस्टमैटिक तरीके से "स्क्रैप" या हार्वेस्ट करते हैं।
  • मुआवज़े की कमी: अभी, इस ओरिजिनल कंटेंट के क्रिएटर्स—लेखकों, कलाकारों और पब्लिशर—को तब कोई मुआवज़ा नहीं दिया जाता जब उनके डेटा का इस्तेमाल AI रिस्पॉन्स जेनरेट करने या नया कंटेंट बनाने के लिए किया जाता है।

सरकारी प्रस्ताव

  • रेगुलेटरी फ्रेमवर्क: सरकार अभी एक पॉलिसी फ्रेमवर्क का ड्राफ्ट बना रही है, जिसका मकसद AI कंपनियों को उनके इस्तेमाल किए गए डेटा के लिए रॉयल्टी या कॉपीराइट फीस देने के लिए मजबूर करना है।
  • मकसद: उन कंटेंट क्रिएटर्स को सही मेहनताना देना जिनके डिजिटल एसेट्स इन सिस्टम्स की इंटेलिजेंस को बढ़ाते हैं।

चुनौतियां

  • लागू करने में मुश्किल: खास AI आउटपुट को ट्रेनिंग डेटा के खास हिस्सों से जोड़ना टेक्निकली मुश्किल है, जिससे सही रॉयल्टी का कैलकुलेशन बहुत मुश्किल हो जाता है।
  • लिटिगेशन रिस्क: ऐसे फ्रेमवर्क को लागू करने से मुकदमों की बाढ़ आ सकती है, क्योंकि स्टेकहोल्डर्स ओनरशिप, इस्तेमाल और वैल्यूएशन पर विवाद करेंगे।
  • इंडस्ट्री का रुख: टेक्नोलॉजी सेक्टर इन तरीकों का ज़्यादातर विरोध करता है, अक्सर "फेयर यूज़" सिद्धांतों का हवाला देता है और तर्क देता है कि ऐसी फीस इनोवेशन और डेवलपमेंट को रोक सकती हैं।

आगे बढ़ने का रास्ता

  • हाइब्रिड लाइसेंसिंग मॉडल: एक टियर वाला सिस्टम बनाएं जहां एकेडमिक रिसर्च के लिए डेटा का इस्तेमाल खुला रहे, लेकिन कमर्शियल एप्लीकेशन के लिए बातचीत वाले लाइसेंस या डेटा रिपॉजिटरी तक सब्सक्रिप्शन-बेस्ड एक्सेस की ज़रूरत हो।
  • टेक्नोलॉजिकल एट्रिब्यूशन: वॉटरमार्किंग और मेटाडेटा स्टैंडर्ड (जैसे, C2PA) जैसी टेक्नोलॉजी में इन्वेस्ट करें , जो AI सिस्टम को ओरिजिनल सोर्स को ऑटोमैटिकली पहचानने और क्रेडिट देने में मदद करती हैं, जिससे सही रॉयल्टी डिस्ट्रीब्यूशन में मदद मिलती है।
  • ग्लोबल तालमेल: भारत को G20 और WIPO जैसी इंटरनेशनल संस्थाओं के साथ मिलकर स्टैंडर्ड ग्लोबल नियम बनाने चाहिए, ताकि यह पक्का हो सके कि AI रेगुलेशन की वजह से टेक इन्वेस्टमेंट उन जगहों पर न जाए जहां कॉपीराइट कानून ढीले हैं।

निष्कर्ष

डिजिटल इकॉनमी के भविष्य के लिए AI की ज़बरदस्त ग्रोथ और इंसानी क्रिएटर्स के आर्थिक अधिकारों के बीच बैलेंस बनाना बहुत ज़रूरी है। रॉयल्टी लागू करने में टेक्निकल दिक्कतें आती हैं, लेकिन एक सही कम्पेनसेशन मॉडल ज़रूरी है ताकि यह पक्का हो सके कि इन एल्गोरिदम को चलाने वाली इंसानी क्रिएटिविटी आगे बढ़ती रहे।

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