30.08.2024
मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में जमानत पर सुप्रीम कोर्ट का रुख
खबरों में –
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इस सिद्धांत की पुष्टि की कि "जमानत नियम है और जेल अपवाद है", यहां तक कि मनी लॉन्ड्रिंग से संबंधित मामलों में भी
शीर्ष अदालत द्वारा अवलोकन
1. कारावास पर स्वतंत्रता: अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता आदर्श है, और स्वतंत्रता से वंचित करना केवल वैध और उचित कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से ही होना चाहिए।
2. पीएमएलए की धारा 45 की व्याख्या: अदालत ने स्पष्ट किया कि धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) की धारा 45 की व्याख्या इस तरह से नहीं की जानी चाहिए कि जमानत देना असंभव हो जाए। यह धारा इस सामान्य सिद्धांत को खत्म नहीं करती है कि जमानत डिफ़ॉल्ट होनी चाहिए।
3. जमानत के लिए शर्तें: अदालत ने कहा कि धारा 45 की दो शर्तें पूरी होने पर जमानत दी जानी चाहिए:
i. यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि आरोपी प्रथम दृष्टया निर्दोष है।
ii. जमानत पर बाहर रहने के दौरान आरोपी द्वारा कोई अपराध करने की संभावना नहीं है।
4. न्यायालय ने मनीष सिसोदिया जमानत फैसले (9 अगस्त, 2024) का हवाला देते हुए इस बात पर जोर दिया कि ईडी जैसी जांच एजेंसियों की मर्जी के आधार पर जमानत से इनकार नहीं किया जा सकता।
आत्म-अपराध के खिलाफ अधिकार
1. मौलिक अधिकारों की सुरक्षा: सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि ईडी न्यायिक हिरासत में बंद आरोपी को किसी अन्य मनी लॉन्ड्रिंग मामले में आत्म-अपराध बयान देने के लिए मजबूर नहीं कर सकता। यह संविधान के अनुच्छेद 20(3) के तहत मौन रहने और आत्म-अपराध के खिलाफ सुरक्षा के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा।
2. पीएमएलए की धारा 50: धारा 50 प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को व्यक्तियों को बुलाने और दस्तावेजों या बयानों का अनुरोध करने की अनुमति देती है। हालांकि, न्यायालय ने फैसला सुनाया कि ये शक्तियां किसी व्यक्ति के आत्म-अपराध के खिलाफ अधिकार का उल्लंघन नहीं कर सकती हैं।
3. आत्म-अपराध बयानों की अस्वीकार्यता: हिरासत में बंद व्यक्ति "स्वतंत्र मन" से बयान नहीं दे सकता। इससे ईडी के दबाव में दिया गया कोई भी आत्म-दोषी बयान सबूत के तौर पर अस्वीकार्य हो जाता है। यह ऐसे बयानों को आरोपी के खिलाफ इस्तेमाल होने से रोककर निष्पक्षता और न्याय सुनिश्चित करता है।