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दालों में आत्मनिर्भरता का मिशन

14.10.2025

 

दालों में आत्मनिर्भरता का मिशन

 

संदर्भ:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), नई दिल्ली में दलहन में आत्मनिर्भरता मिशन का शुभारंभ किया । इस मिशन का उद्देश्य दिसंबर 2027 तक भारत को दलहन के मामले में आत्मनिर्भर बनाना और 2030-31 तक एक सुदृढ़ एवं समावेशी दलहन क्षेत्र का निर्माण करना है। यह दलहन उत्पादन और उपभोग के लिए एक स्थायी पारिस्थितिकी तंत्र बनाने हेतु प्रौद्योगिकी, खरीद सुधारों और किसान सशक्तिकरण को एकीकृत करता है।

मिशन के बारे में इसे
दलहन आत्मनिर्भरता मिशन
भी कहा जाता है , इस राष्ट्रीय कार्यक्रम का उद्देश्य घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना, आयात निर्भरता को कम करना और मूल्य श्रृंखला दृष्टिकोण के माध्यम से किसान कल्याण में सुधार करना है।

  • घोषणा: केंद्रीय बजट 2025-26 में
     
  • कैबिनेट की मंजूरी: 1 अक्टूबर, 2025
     
  • अवधि: 2025–26 से 2030–31
     
  • नोडल मंत्रालय: कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय
     
  • प्रमुख साझेदार: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर), कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके), राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (नेफेड), राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता संघ (एनसीसीएफ) और नीति आयोग।
     
  • डिजिटल प्लेटफॉर्म: SATHI (भारत के लिए बीज प्रमाणीकरण और ट्रेसेबिलिटी हब) पोर्टल, जिसका प्रबंधन राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) द्वारा किया जाता है।
     

मिशन का लक्ष्य 2030-31 तक
350 लाख टन
दालों का उत्पादन करना है, तथा 2027 तक पूर्ण आत्मनिर्भरता प्राप्त करना है। इसका उद्देश्य तुअर (अरहर), उड़द और मसूर के आयात को कम करना, चावल की परती भूमि सहित 310 लाख हेक्टेयर तक खेती का विस्तार करना और मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए अंतरफसल को बढ़ावा देना है।

यह चार वर्षों के भीतर प्रमुख दालों के लिए 100% न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीद सुनिश्चित करता है और पारदर्शी डिजिटल खरीद प्रणाली शुरू करता है। लगभग 88 लाख बीज किट और 126 लाख क्विंटल प्रमाणित बीज वितरित किए जाएँगे, जिससे दो करोड़ से ज़्यादा किसानों को बेहतर उत्पादकता और आय स्थिरता का लाभ मिलेगा।

मिशन की मुख्य विशेषताएं

  1. प्रौद्योगिकी और बीज नवाचार:
     
    • वास्तविक समय बीज ट्रैकिंग और गुणवत्ता आश्वासन के लिए SATHI पोर्टल का शुभारंभ।
       
    • आईसीएआर और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों (एसएयू) के माध्यम से कीट प्रतिरोधी और जलवायु अनुकूल किस्मों का विकास।
       
  2. मूल्य श्रृंखला विकास:
     
    • फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने तथा ग्रामीण रोजगार सृजन के लिए
      1,000 प्रसंस्करण एवं पैकेजिंग इकाइयों की स्थापना ।
    • मूल्य संवर्धन के लिए किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) आधारित एकत्रीकरण और सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहन।
       
  3. संस्थागत ढांचा:
     
    • आईसीएआर के नेतृत्व में राज्य-विशिष्ट बीज उत्पादन योजनाएँ।
       
    • मूल्य आश्वासन के लिए प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम-आशा) के साथ तालमेल।
       
    • कृषि सचिव और महानिदेशक, आईसीएआर की सह-अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय संचालन समिति के माध्यम से निगरानी।
       
  4. क्लस्टर-आधारित मॉडल:
     
    • पता लगाने योग्य बीज वितरण के लिए “एक ब्लॉक - एक बीज गांव” मॉडल।
       
    • क्षेत्र-विशिष्ट फसल समूह - मध्य प्रदेश और राजस्थान में चना, महाराष्ट्र और कर्नाटक में तुअर, तथा तमिलनाडु में उड़द।
       
  5. पोषण एकीकरण:
     
    • प्रोटीन सेवन बढ़ाने और कुपोषण को दूर करने के लिए
      सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) , एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) और मध्याह्न भोजन (पीएम पोषण) योजनाओं में दालों को शामिल करना ।

परिचालन रणनीति:
राज्य आईसीएआर और राज्य बीज निगमों के सहयोग से पंचवर्षीय बीज उत्पादन योजनाएँ तैयार करेंगे। राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (एनएमएसए) के अंतर्गत सूक्ष्म सिंचाई, संतुलित उर्वरक उपयोग और जैविक संशोधनों के माध्यम से मृदा स्वास्थ्य सुधार को बढ़ावा दिया जाएगा। मशीनीकरण, विस्तार सेवाएँ और बड़े पैमाने पर प्रदर्शन प्रौद्योगिकी को अपनाना सुनिश्चित करेंगे। ई-नाम और उत्पादन डैशबोर्ड जैसे डिजिटल उपकरण बाज़ार की पारदर्शिता और वास्तविक समय की निगरानी में सुधार लाएँगे।

अपेक्षित परिणाम

  • 2027 तक आत्मनिर्भरता: 15,000 करोड़ रुपये के वार्षिक आयात का अंत और स्थिर घरेलू कीमतें।
     
  • किसानों की आय में वृद्धि: उत्पादकता में वृद्धि, सुनिश्चित खरीद और जोखिम में कमी।
     
  • पोषण सुरक्षा: कमजोर आबादी के लिए बेहतर प्रोटीन पहुंच।
     
  • पर्यावरणीय लाभ: दालों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण से मृदा उर्वरता में सुधार होता है तथा जलवायु-अनुकूल कृषि को बढ़ावा मिलता है।
     

महत्व:
आर्थिक रूप से, यह मिशन आयात पर निर्भरता कम करते हुए आपूर्ति श्रृंखलाओं और ग्रामीण उद्यमिता को मज़बूत करता है। सामाजिक रूप से, यह महिलाओं के नेतृत्व वाले किसान उत्पादक संगठनों (FPO) सहित छोटे और सीमांत किसानों को सशक्त बनाता है। पोषण की दृष्टि से, यह प्रोटीन की कमी को दूर करता है, और पारिस्थितिक रूप से, यह स्थायी मृदा प्रबंधन और विविध फसल प्रणालियों को बढ़ावा देता है।

निष्कर्ष:
दलहन में आत्मनिर्भरता मिशन (2025-26 से 2030-31)
खाद्य एवं पोषण सुरक्षा की दिशा में एक निर्णायक कदम है। अनुसंधान-संचालित नवाचार, संस्थागत सुधार और कल्याण एकीकरण के संयोजन से, भारत सतत दलहन उत्पादन में एक वैश्विक नेता के रूप में उभरने के लिए तैयार है। यह पहल भारत की आयात निर्भरता से आत्मनिर्भरता की यात्रा को बदल देगी , जिससे आने वाले दशकों में आर्थिक सशक्तिकरण, पोषण संबंधी कल्याण और पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित होगी।

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