26.05.2025
भारत की तटरेखा अब 11,988 किलोमीटर लंबी
संदर्भ:
भारत ने हाल ही में 1970 के दशक के बाद पहली बार अपनी आधिकारिक तटरेखा की लंबाई को अद्यतन किया है। उन्नत मानचित्रण तकनीक और आधुनिक उपकरणों का उपयोग करते हुए, सर्वे ऑफ इंडिया ने तटरेखा की लंबाई में लगभग 47% की उल्लेखनीय वृद्धि का खुलासा किया है।
समाचार के बारे में:
- भारत की तटरेखा को 7,516 किमी से बढ़ाकर 11,988 किमी कर दिया गया है।
- यह संशोधन GIS, LiDAR और उपग्रह डेटा जैसे आधुनिक उपकरणों के उपयोग से किया गया।
- सर्वे ऑफ इंडिया ने हाई-टाइड लाइन के आधार पर मानचित्रण किया।
- सबसे अधिक वृद्धि गुजरात में दर्ज की गई, उसके बाद पश्चिम बंगाल में।
विशेषताएँ:
- 1:4,500,000 के बजाय उच्च-रिज़ॉल्यूशन 1:250,000 स्केल का उपयोग।
- खाड़ियों, मुहानों, इनलेट्स और फ्रैक्टल तटीय विशेषताओं को शामिल किया गया।
- "कोस्टलाइन पैराडॉक्स" सिद्धांत अपनाया गया—मापन की सटीकता बढ़ने पर लंबाई भी बढ़ती है।
- लो टाइड के दौरान या बुनियादी ढांचे से जुड़े इनशोर द्वीपों को शामिल किया गया।
- 2011 के इलेक्ट्रॉनिक नेविगेशन चार्ट्स और उपग्रह/हवाई छवियों का उपयोग किया गया।
- सटीकता और योजना के लिए हर 10 वर्षों में मापन की समीक्षा की जाएगी।
चुनौतियाँ:
- नियमात्मक अंतराल: पुराने कोस्टल ज़ोन मैनेजमेंट प्लान (पुराने नक्शों पर आधारित) को अब संशोधित करना होगा।
उदाहरण: पुराने डेटा पर आधारित CRZ मानचित्र विकास क्षेत्रों को गलत वर्गीकृत कर सकते हैं।
- आपदा तैयारी जोखिम: गलत तटरेखा डेटा पर आधारित आपातकालीन योजना।
उदाहरण: बाढ़-प्रवण तटीय गांवों को निकासी योजना में गलत रूप से दर्शाया जा सकता है।
- पर्यावरणीय कुप्रबंधन: गलत तटीय डेटा नाजुक पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुँचा सकता है।
उदाहरण: मैंग्रोव संरक्षण क्षेत्र स्थानांतरित हो सकते हैं, जिससे जैव विविधता संरक्षण प्रभावित होता है।
- प्रशासनिक टकराव: तटीय राज्यों के बीच सीमा विवाद उत्पन्न हो सकते हैं।
उदाहरण: मुहाने क्षेत्रों में संसाधनों के बंटवारे पर नए कानूनी विवाद हो सकते हैं।
आगे की राह:
- संशोधित डेटा का उपयोग कर कोस्टल रेगुलेशन ज़ोन (CRZ) मानचित्रों को अपडेट करें।
उदाहरण: तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के नए CRZ ज़ोन वास्तविक तटरेखा दर्शाएं।
- विस्तारित समुद्री सीमाओं को ध्यान में रखते हुए तटीय सुरक्षा ढांचे को सुदृढ़ करें।
उदाहरण: नौसेना और तटरक्षक बल को गुजरात जैसे विस्तृत तटों पर गश्त करनी होगी।
- आपदा लचीलापन और ज़ोनिंग को भू-स्थानिक मानचित्रण से मजबूत करें।
उदाहरण: ओडिशा के चक्रवात-प्रवण क्षेत्रों के लिए अद्यतन संवेदनशीलता मानचित्र तैयार हों।
- सटीक भूमि-समुद्र इंटरफेस के साथ एकीकृत तटीय विकास योजनाओं को बढ़ावा दें।
उदाहरण: महाराष्ट्र में बंदरगाह विस्तार को नए डेटा के अनुरूप बनाएं।
निष्कर्ष:
भारत की संशोधित तटरेखा लंबाई केवल एक संख्यात्मक अपडेट नहीं है—यह इस बात को दर्शाता है कि हम अपने तटों को कैसे समझते हैं, शासित करते हैं और उनकी सुरक्षा करते हैं। यह भविष्य की तटीय योजना और नीतियों में प्रौद्योगिकी, पर्यावरणीय सुरक्षा और समुद्री सुरक्षा को एकीकृत करने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।