19.07.2025
रशियन सेंक्शंस एक्ट, 2025
प्रसंग:
भारत ने अमेरिका के एक नए विधायी प्रस्ताव — Russian Sanctions Act, 2025 — का कड़ा विरोध किया है। यह प्रस्ताव उन देशों पर भारी शुल्क लगाने की बात करता है जो रूसी तेल का आयात करते हैं, जैसे कि भारत। इस विधेयक को रूस-यूक्रेन संघर्ष के बीच गैर-पश्चिमी देशों पर दबाव बनाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।
क्या है Russian Sanctions Act, 2025?
यह अमेरिकी कांग्रेस में प्रस्तुत एक विधेयक है, जिसे सीनेटर लिंडसे ग्राहम द्वारा पेश किया गया और जिसे द्विदलीय समर्थन प्राप्त है।
- मुख्य उद्देश्य: रूसी ऊर्जा उत्पाद खरीदने वाले देशों को लक्षित करके रूस को आर्थिक रूप से अलग-थलग करना।
- प्रभाव क्षेत्र: रूसी मूल के तेल, गैस, कोयला, यूरेनियम और पेट्रोकेमिकल्स।
- अनुच्छेद 17: ऐसे देशों से आयात पर 500% तक का शुल्क लगाने का प्रस्ताव।
- द्वितीयक प्रतिबंध: भारत, चीन और ब्राजील जैसे देशों पर अप्रत्यक्ष आर्थिक प्रतिबंध की संभावना।
- राष्ट्रपति छूट: अमेरिकी राष्ट्रपति विशेष परिस्थितियों में 6 महीने तक लागू करने में देरी कर सकते हैं।
- त्वरित कार्यान्वयन: विधेयक लागू होने के 50 दिनों के भीतर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश।
भारत की चिंताएँ क्यों हैं?
- ऊर्जा निर्भरता: भारत वर्तमान में लगभग 38% कच्चा तेल रूस से आयात करता है। प्रतिबंध से आपूर्ति बाधित हो सकती है और मूल्य अस्थिरता आ सकती है।
- रणनीतिक स्वायत्तता: भारत इसे विदेश नीति पर पश्चिमी दबाव के रूप में देखता है।
- सरकारी प्रतिक्रिया: भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) ने पश्चिमी देशों की दोगली नीति की आलोचना की है जो स्वयं रूस से व्यापार जारी रखते हैं।
- ऊर्जा विविधता रणनीति: भारत 40+ देशों से तेल आयात करता है और ऊर्जा निर्णय राष्ट्रीय हित के अनुसार लेता है।
- आर्थिक प्रभाव: आयात लागत में वृद्धि, महंगाई, और दीर्घकालिक समझौतों में बाधा संभव।
व्यापक प्रभाव
- भूराजनीतिक तनाव: यह भारत–अमेरिका संबंधों को प्रभावित कर सकता है, विशेष रूप से QUAD, व्यापार और रक्षा मामलों में।
- आर्थिक संप्रभुता: यह सवाल उठाता है कि कैसे प्रतिबंधों का उपयोग संप्रभु निर्णयों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है।
- ऊर्जा मार्ग बदलाव: भारत को वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं की ओर रुख करना पड़ सकता है।
निष्कर्ष
Russian Sanctions Act, 2025 वैश्विक राजनीति में बढ़ते तनाव को उजागर करता है, जहां संप्रभुता बनाम प्रतिबंध की लड़ाई चल रही है। भारत को अपने आर्थिक हित और रणनीतिक स्वायत्तता के बीच संतुलन बनाना होगा। यह विधेयक भले ही लोकतांत्रिक मूल्यों की बात करता हो, लेकिन इसका क्रियान्वयन वैश्विक व्यापार को विभाजित कर सकता है और उन देशों को दंडित कर सकता है जो तटस्थ ऊर्जा नीति अपना रहे हैं।