30.06.2025
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020
प्रसंग
अप्रैल 2024 में महाराष्ट्र सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के अनुरूप तीन-भाषा नीति की घोषणा की। लेकिन जनता और राजनीतिक विरोध के चलते सरकार ने इस निर्णय को अस्थायी रूप से वापस ले लिया और इसकी व्यवहार्यता की समीक्षा हेतु एक तीन माह की समिति गठित की। यह बहस भारत की संघीय संरचना और भाषाई पहचान को लेकर चल रही चिंताओं को दर्शाती है, विशेषकर गैर-हिंदी भाषी राज्यों में।
समाचार से संबंधित प्रमुख तथ्य
- महाराष्ट्र ने यह नई नीति 16 अप्रैल 2024 को लागू की।
- हिंदी थोपने की आशंका को लेकर राजनीतिक और क्षेत्रीय विरोध हुआ।
- राज्य सरकार ने निर्णय को स्थगित कर समीक्षा के लिए समिति गठित की।
- तमिलनाडु ने भी मार्च 2024 में इस नीति को स्पष्ट रूप से अस्वीकार किया।
विशेषताएँ / प्रावधान
- प्रथम भाषा: स्थानीय भाषा या मातृभाषा, जैसे – मराठी।
- द्वितीय भाषा: कोई अन्य भारतीय भाषा, आमतौर पर हिंदी मानी जाती है।
- तृतीय भाषा: एक विदेशी भाषा, सामान्यतः अंग्रेज़ी।
- कोई भाषा अनिवार्य नहीं है, यह NEP 2020 का हिस्सा है।
- राज्य अपनी स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार भाषा चयन कर सकते हैं।
- यदि 20 छात्र कोई भाषा चुनते हैं, तो उसे पढ़ाया जा सकता है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020
I. स्कूली शिक्षा में सुधार
- सार्वभौमिक शिक्षा तक पहुंच
- उद्देश्य: 3 से 18 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को शिक्षा देना।
- प्री-स्कूल से सीनियर सेकेंडरी तक शिक्षा का दायरा बढ़ाया जाएगा।
- संरचनात्मक बदलाव: 5+3+3+4 प्रणाली
| चरण | कक्षा / आयु वर्ग | फोकस |
|------|------------------|--------|
| प्रारंभिक | प्रीस्कूल + कक्षा 1-2 (3–8 वर्ष) | खेल आधारित, गतिविधि आधारित शिक्षा |
| तैयारी | कक्षा 3–5 (8–11 वर्ष) | खोज, संवाद, भाषा विकास |
| मध्य | कक्षा 6–8 (11–14 वर्ष) | विषय आधारित परिचय, विश्लेषणात्मक सोच |
| माध्यमिक | कक्षा 9–12 (14–18 वर्ष) | बहुविषयक अध्ययन, लचीलापन |
- यह प्रारूप 10+2 प्रणाली का स्थान लेता है।
- शिक्षा की औपचारिक शुरुआत 3 वर्ष की उम्र से मानी जाएगी।
- मूलभूत साक्षरता और गणना दक्षता
- कक्षा 3 तक पढ़ने-लिखने और गणना में दक्षता प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय मिशन।
- शिक्षण परिणामों पर जोर।
- पाठ्यक्रम और विषयों में लचीलापन
- विज्ञान, कला, व्यावसायिक विषयों का संयोजन संभव।
- कक्षा 6 से व्यावसायिक शिक्षा और इंटर्नशिप की शुरुआत।
- परीक्षा और मूल्यांकन में सुधार
- लगातार और दक्षता आधारित मूल्यांकन लागू होगा।
- PARAKH नामक केंद्रीय संस्था शिक्षण परिणाम तय करेगी।
- बहुभाषिक शिक्षा नीति
- कक्षा 5 तक मातृभाषा में शिक्षण (वैकल्पिक रूप से कक्षा 8 तक)।
- संस्कृत सहित भारतीय भाषाओं को सभी स्तरों पर बढ़ावा।
- तीन-भाषा सूत्र को लचीले और समावेशी तरीके से लागू किया जाएगा।
- शिक्षक प्रशिक्षण और शिक्षा
- चार वर्षीय B.Ed. कार्यक्रम अनिवार्य।
- NCTE और NCERT द्वारा शिक्षक शिक्षा हेतु नया ढांचा तैयार किया जाएगा।
II. उच्च शिक्षा में सुधार
- बहुविषयक और समग्र शिक्षा
- लचीलापन और निकासी विकल्पों के साथ डिग्री:
- 1 वर्ष: प्रमाणपत्र
- 2 वर्ष: डिप्लोमा
- 3 वर्ष: स्नातक
- 4 वर्ष: अनुसंधान सहित स्नातक
- कौशल आधारित शिक्षा का एकीकरण।
- शैक्षणिक क्रेडिट और छात्र गतिशीलता
- Academic Bank of Credit: डिजिटल रूप से अर्जित क्रेडिट संग्रहण।
- छात्र संस्थान बदल सकते हैं बिना क्रेडिट नुकसान के।
- राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (NRF)
- सभी क्षेत्रों में अनुसंधान को वित्त, मार्गदर्शन और सशक्त करेगा।
- राष्ट्रीय अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करेगा।
- उच्च शिक्षा प्रशासन
- एकीकृत निकाय: Higher Education Commission of India (HECI)
- चार भाग:
- NHERC: मानक निर्धारण
- NAC: प्रत्यायन
- HEGC: अनुदान
- GEC: सामान्य शिक्षा परिषद
- तकनीक का उपयोग
- National Educational Technology Forum (NETF) की स्थापना।
- डिजिटल शिक्षा में सर्वोत्तम प्रथाओं का आदान-प्रदान मंच।
- भारतीय भाषाओं का संवर्धन
- संस्थाएं स्थापित होंगी:
- IITI (अनुवाद और व्याख्या संस्थान)
- पाली, फारसी, प्राकृत, संस्कृत के लिए विशेष निकाय।
- विश्वविद्यालयों में भाषा विभाग सशक्त होंगे।
- अंतरराष्ट्रीयकरण
- उच्च प्रदर्शन वाले भारतीय संस्थान विदेशी कैंपस खोल सकेंगे।
- शीर्ष विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में काम करने की अनुमति।
अन्य महत्वपूर्ण प्रावधान
- शिक्षा वित्त पोषण
- GDP का 6% शिक्षा पर व्यय करने का लक्ष्य दोहराया गया।
- संघीय सहयोग और राज्य–केंद्र समन्वय पर बल।
- प्रौढ़ और आजीवन शिक्षा
- नया राष्ट्रीय पाठ्यक्रम ढांचा (NCF) निम्न को कवर करेगा:
- मूलभूत साक्षरता, वित्तीय और डिजिटल ज्ञान
- व्यावसायिक कौशल
- समकक्ष शिक्षा (माध्यमिक स्तर तक)
- कला, संस्कृति, तकनीक में आजीवन सीख
- विद्यालय समूह और क्लस्टर
- स्कूलों को प्रशासनिक इकाइयों में समूहबद्ध किया जाएगा।
- संसाधनों, अधोसंरचना और शिक्षक प्रशिक्षण का साझाकरण।
- समानता और समावेशन पर ज़ोर
- विशेष शिक्षा क्षेत्र और लक्षित योजनाएँ – SC, ST, लड़कियाँ, दिव्यांग, अल्पसंख्यक।
- Gender Inclusion Fund और वंचित क्षेत्रों हेतु योजनाएँ।
चुनौतियाँ
- गैर-हिंदी राज्यों में हिंदी थोपने का डर
तमिलनाडु, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में स्थानीय पहचान खतरे में।
- हर स्कूल में कई भाषाओं की उपलब्धता व्यावहारिक नहीं
उदाहरण: बिहार में तमिल या असम में मराठी सिखाना मुश्किल।
- भाषा नीति में राजनीतिक पूर्वाग्रह की आशंका
विरोधियों को लगता है कि राज्य अधिकार कमजोर हो रहे हैं।
- असमान क्रियान्वयन से असमानता
उदाहरण: जहां विकल्प नहीं, वहां हिंदी डिफ़ॉल्ट भाषा बन जाती है।
आगे की राह
- राज्यों को भाषा नीति तय करने की स्वतंत्रता दी जाए
उदाहरण: तमिलनाडु का दो-भाषा मॉडल जारी।
- एक भाषा के वर्चस्व के बिना बहुभाषिकता को बढ़ावा दें
सभी भारतीय भाषाओं का समान सम्मान सुनिश्चित किया जाए।
- भाषा शिक्षकों के लिए फंडिंग और प्रशिक्षण दें
उदाहरण: ग्रामीण और जनजातीय क्षेत्रों में संसाधनों की कमी।
- डिजिटल साधनों से क्षेत्रीय भाषाओं को मजबूत करें
उदाहरण: मराठी ई-कॉन्टेंट का विस्तार सरकारी स्कूलों में।
निष्कर्ष
भारत जैसे संघीय लोकतंत्र में शैक्षिक लक्ष्य और भाषाई विविधता के बीच संतुलन अत्यंत आवश्यक है। एक लचीली और समावेशी नीति, जो क्षेत्रीय पहचान का सम्मान करती हो, ही राष्ट्रीय एकता और शैक्षिक समानता को मजबूत कर सकती है।