10.09.2025
भारत, ईरान और वैश्विक व्यवस्था
प्रसंग
पश्चिमी नेतृत्व वाले प्रभुत्व के कमजोर होने के बीच, बहुध्रुवीयता पर चर्चा, विशेष रूप से वैश्विक दक्षिण के लिए, न्यायसंगत और समतापूर्ण वैश्विक व्यवस्था को बढ़ावा देने में भारत और ईरान की सभ्यतागत भूमिकाओं पर जोर देती है।
वैश्विक व्यवस्था में संकट
- पश्चिमी प्रभुत्व में गिरावट: वित्तीय प्रणालियों, तकनीकी एकाधिकार और वैश्विक संस्थाओं पर नियंत्रण पर आधारित दीर्घकालिक प्रभुत्व अपनी प्रभावशीलता खो रहा है।
- संकट के संकेतक: अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन, लगातार व्यापार युद्ध, कमजोर होता बहुपक्षवाद और पारिस्थितिक क्षरण प्रणालीगत अस्थिरता को दर्शाते हैं।
- उभरती शक्तियों की भूमिका: वैश्विक दक्षिण के देश स्वदेशी मॉडल विकसित करके, विज्ञान और रक्षा में आत्मनिर्भरता को आगे बढ़ाकर, तथा बाहरी प्रभुत्व का विरोध करके स्वतंत्रता का दावा कर रहे हैं।
भारत और ईरान की सभ्यतागत भूमिका
- साझी विरासत: विश्व की सबसे पुरानी सतत सभ्यता भारत और अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के साथ ईरान ने ऐतिहासिक रूप से शांति, विविधता और आक्रामकता के विरुद्ध लचीलेपन को बढ़ावा दिया है।
- आधुनिक योगदान: गुटनिरपेक्ष आंदोलन में भारत का नेतृत्व और ईरान का तेल राष्ट्रीयकरण एवं क्रांति, बाह्य नियंत्रण के प्रतिरोध और संप्रभुता की रक्षा का उदाहरण है।
- सामान्य मूल्य: शांति, आध्यात्मिकता और प्रकृति के प्रति सम्मान समकालीन संरचनात्मक हिंसा, सामाजिक पतन और पर्यावरणीय संकटों से निपटने के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत बने हुए हैं।
सहयोग के मार्ग
- रणनीतिक परियोजनाएं: अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (आईएनएसटीसी) यूरेशिया, भारत, अफ्रीका और पश्चिम एशिया को जोड़ने वाले सभ्यतागत सेतु के रूप में कार्य करता है, जिससे संपर्क और स्थिरता बढ़ती है।
- बहुपक्षीय मंच: ब्रिक्स जैसे ढांचे डी-डॉलरीकरण, न्यायसंगत व्यापार और प्रतिबंधों के विकल्प के अवसर प्रदान करते हैं, जिससे दक्षिण-दक्षिण सहयोग मजबूत होता है।
- न्यायपूर्ण व्यवस्था की ओर: अंतर्राष्ट्रीय कानून की वकालत करके, एकतरफा हस्तक्षेप का विरोध करके, तथा फिलिस्तीन जैसे संप्रभुता आंदोलनों का समर्थन करके, भारत और ईरान एक सहभागी और मानवीय वैश्विक व्यवस्था के निर्माण में मदद कर सकते हैं।
निष्कर्ष
भारत और ईरान अपनी सभ्यतागत विरासत और रणनीतिक सहयोग का लाभ उठाते हुए, वैश्विक दक्षिण को एक बहुध्रुवीय, न्यायसंगत और लचीली विश्व व्यवस्था की ओर ले जा सकते हैं, जिसमें संप्रभुता, विकास और पर्यावरणीय प्रबंधन में संतुलन स्थापित किया जा सके।