15.10.2025
मैत्री-2
प्रसंग
भारत अंटार्कटिका में अपना चौथा अनुसंधान केंद्र, मैत्री-2, स्थापित कर रहा है, जो ध्रुवीय वैज्ञानिक अनुसंधान और पर्यावरणीय स्थिरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह पहल अंटार्कटिक संधि प्रणाली और वैश्विक जलवायु अनुसंधान प्रयासों के प्रति भारत की दीर्घकालिक प्रतिबद्धता के अनुरूप है।
मैत्री-2 का विवरण
- स्थिति: अंटार्कटिका में चौथा भारतीय अनुसंधान केंद्र।
- स्थान: पूर्वी अंटार्कटिक क्षेत्र के लिए योजनाबद्ध।
- समय-सीमा एवं लागत: जनवरी 2029 तक सात वर्षों में पूरा किया जाएगा, वित्त मंत्रालय द्वारा 2,000 करोड़ रुपये का कुल परिव्यय स्वीकृत किया जाएगा।
- उद्देश्य: पुराने हो चुके मैत्री-1 (1989) को एक आधुनिक, पर्यावरण-स्थायी सुविधा से प्रतिस्थापित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जो जलवायु, भूवैज्ञानिक और हिमनद संबंधी अनुसंधान पर केंद्रित है।
- कार्यान्वयन एजेंसी: राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं महासागर अनुसंधान केंद्र (एनसीपीओआर), गोवा, जो पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अधीन कार्यरत है।
सामरिक और वैज्ञानिक महत्व
- जलवायु अनुसंधान: बर्फ पिघलने, तापमान में परिवर्तन और समुद्र-स्तर में वृद्धि का निरंतर अवलोकन संभव बनाता है, जो भारत के तटों पर जलवायु परिवर्तन के वैश्विक प्रभाव का आकलन करने के लिए आवश्यक है।
- पर्यावरण निगरानी: समुद्री धाराओं, वायुमंडलीय संरचना और ध्रुवीय जैव विविधता पर दीर्घकालिक डेटा संग्रह का समर्थन करता है।
- भू-राजनीतिक प्रासंगिकता: चीन, रूस, अमेरिका और ब्रिटेन जैसी प्रमुख शक्तियों के साथ अंटार्कटिका में भारत की उपस्थिति और प्रभाव को बनाए रखता है।
- भविष्य की संभावना: यदि वैश्विक अंटार्कटिका नियम विकसित होते हैं तो संभावित संसाधन अन्वेषण अधिकारों के लिए भारत की पात्रता को बनाए रखा जाएगा।
भारत के अंटार्कटिक स्टेशन
- दक्षिण गंगोत्री (1983): भारत का पहला स्टेशन; अब बर्फ के नीचे दबा हुआ है लेकिन आपूर्ति बेस के रूप में कार्य करता है।
- मैत्री-1 (1989): परिचालन अनुसंधान स्टेशन, जिसका स्थान मैत्री-2 लेगा।
- भारती (2012): पूर्णतः कार्यात्मक, समुद्र विज्ञान और जलवायु अध्ययन का समर्थन।
- मैत्री-2 (2029 तक प्रस्तावित): टिकाऊ अनुसंधान अवसंरचना, उन्नत लॉजिस्टिक्स और नवीकरणीय ऊर्जा उपयोग पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
निष्कर्ष
मैत्री-2 परियोजना ध्रुवीय विज्ञान, जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलेपन और वैश्विक पर्यावरणीय सहयोग के प्रति भारत की निरंतर प्रतिबद्धता का प्रतिनिधित्व करती है। यह अंटार्कटिका में भारत के वैज्ञानिक नेतृत्व को सुदृढ़ करती है और साथ ही आने वाले दशकों के लिए एक स्थायी और तकनीकी रूप से उन्नत अनुसंधान उपस्थिति सुनिश्चित करती है।