15.10.2025
- सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम 20
संदर्भ
: सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम, 2005 के दो दशक पूरे होने के साथ, इसके घटते प्रभाव को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं। नागरिक समाज और पारदर्शिता के पैरोकार आगाह करते हैं कि संस्थागत कमज़ोरी, रिक्तियाँ और डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (डीपीडीपीए), 2023 के प्रतिबंधात्मक प्रावधान इस कानून के मूल लोकतांत्रिक उद्देश्य के लिए ख़तरा हैं।
आरटीआई अधिनियम के बारे में
2005 में लागू किया गया आरटीआई अधिनियम नागरिकों को न्यूनतम लागत पर सरकारी अधिकारियों से सूचना प्राप्त करने का अधिकार देता है। इसकी परिकल्पना पारदर्शी, जवाबदेह और सहभागी शासन के एक स्तंभ के रूप में की गई थी।
मुख्य विशेषताएं:
- त्रिस्तरीय संरचना: लोक सूचना अधिकारी, प्रथम अपीलीय प्राधिकारी, और केंद्रीय/राज्य सूचना आयोग (सीआईसी/एसआईसी)।
- अनिवार्य प्रकटीकरण: धारा 4 में सरकारी आंकड़ों के सक्रिय प्रकाशन की आवश्यकता है।
- समयबद्ध प्रक्रिया: 30 दिनों के भीतर, या अत्यावश्यक मामलों के लिए 48 घंटों के भीतर उत्तर।
- जुर्माना: देरी या इनकार के लिए ₹25,000 तक।
- लोकतांत्रिक पहुंच: संसद को उपलब्ध जानकारी नागरिकों के लिए भी खुली होनी चाहिए।
प्रभाव और उपलब्धियां
20 वर्षों में, आरटीआई अधिनियम ने राज्य-नागरिक संबंधों को नया रूप दिया है:
- नागरिकों को सशक्त बनाना: 2.5 करोड़ से अधिक आरटीआई आवेदनों से सहभागी लोकतंत्र को मजबूती मिली।
- भ्रष्टाचार पर अंकुश: 2जी, राष्ट्रमंडल खेल और आदर्श हाउसिंग जैसे घोटालों का पर्दाफाश।
- बेहतर शासन: निर्णय लेने और निधि उपयोग में पारदर्शिता को प्रोत्साहित किया गया।
- न्यायिक समर्थन: न्यायालयों ने राजनीतिक दलों और पीएमओ को आरटीआई के अंतर्गत शामिल करने की पुष्टि की।
- समावेशी पहुंच: हाशिए पर पड़े समूहों को कल्याण और अधिकार प्राप्त करने में सक्षम बनाया गया।
चुनौतियाँ और चिंताएँ
अपनी उपलब्धियों के बावजूद, आरटीआई ढांचे को कई बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है:
- रिक्तियां और विलंब: लंबे समय तक लंबित कार्य प्रभावशीलता को कमजोर करते हैं।
- स्वायत्तता में कमी: 2019 के संशोधन ने निश्चित कार्यकाल और वेतन समानता को हटा दिया, जिससे कार्यकारी नियंत्रण में वृद्धि हुई।
- कमजोर प्रवर्तन: केवल 1% चूककर्ता अधिकारियों को ही दंड का सामना करना पड़ता है।
- राजनीतिक हस्तक्षेप: नियुक्तियों में अक्सर पारदर्शिता का अभाव होता है।
- कानूनी बाधाएं: डीपीडीपीए की "व्यक्तिगत डेटा" प्रकटीकरण की सीमाएं सार्वजनिक व्यय में पारदर्शिता को बाधित करती हैं।
- अस्पष्टता और निष्क्रियता: डेटा रोकना और न्यायिक प्रतिबंध गैर-अनुपालन को बढ़ावा देते हैं।
आगे बढ़ने का रास्ता
आरटीआई की जीवंतता को बहाल करने के लिए सुधारों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए:
- संस्थागत सुदृढ़ीकरण: सीआईसी/एसआईसी रिक्तियों को शीघ्र भरें।
- स्वायत्तता बहाली: स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए निश्चित कार्यकाल और समानता को बहाल करना।
- कानूनी सामंजस्य: गोपनीयता और जवाबदेही के बीच संतुलन बनाने के लिए डीपीडीपीए में संशोधन करें।
- डिजिटल आधुनिकीकरण: ऑनलाइन ट्रैकिंग और सुनवाई के लिए एकीकृत आरटीआई पोर्टल का विस्तार।
- नागरिक सतर्कता: सूचना के अधिकार की रक्षा के लिए नागरिकों, मीडिया और न्यायालयों को सशक्त बनाना।
निष्कर्ष:
20 वर्षों के बाद भी, सूचना का अधिकार अधिनियम एक महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक सुरक्षा कवच बना हुआ है, लेकिन संस्थागत उपेक्षा और प्रतिबंधात्मक कानूनों से ग्रस्त है। इसे पुनर्जीवित करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति, स्वतंत्र निगरानी और नागरिक सहभागिता की आवश्यकता है। पारदर्शिता शासन के केंद्र में बनी रहनी चाहिए, जिससे जवाबदेही और जनता का विश्वास सुनिश्चित हो।