04.10.2025
- युद्धक्षेत्र और परिवर्तन
संदर्भ:
कोलकाता में संयुक्त कमांडरों के सम्मेलन 2025 के दौरान, प्रधानमंत्री ने सेना-विशिष्ट साइलो से आगे बढ़कर एकीकृत थिएटर कमांड बनाने की तत्काल आवश्यकता पर ज़ोर दिया। इस बड़े पुनर्गठन का उद्देश्य भारत के सशस्त्र बलों को जटिल, बहु-क्षेत्रीय संघर्षों के लिए तैयार करना है, जहाँ तकनीक, समन्वय और गति ही परिणाम तय करेंगे।
युद्ध की बदलती प्रकृति
समकालीन युद्ध परम्परागत भूमि, वायु और समुद्री क्षेत्रों से कहीं आगे तक फैल चुका है - अब इसमें साइबरस्पेस, बाह्य अंतरिक्ष और मनोवैज्ञानिक क्षेत्र भी शामिल हो गया है।
प्रमुख रुझान:
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता एवं स्वचालन: स्वायत्त प्रणालियों के माध्यम से त्वरित निर्णय लेने में सक्षम बनाता है, लेकिन साइबर कमजोरियों और नैतिकता से संबंधित चुनौतियां भी उत्पन्न करता है।
- ड्रोन और सटीक हथियार: किफायती ड्रोन और उच्च सटीकता वाले हथियार सामरिक युद्ध और युद्धक्षेत्र दक्षता में बदलाव ला रहे हैं।
- साइबर एवं सूचना युद्ध: डिजिटल हमले और गलत सूचना, भौतिक हमलों के बिना भी राष्ट्रीय बुनियादी ढांचे को पंगु बना सकते हैं।
- दो मोर्चों पर तैयारी: भारत को चीन और पाकिस्तान दोनों से एक साथ मिलने वाली चुनौतियों के लिए तैयार रहना होगा, जिसके लिए संरचनात्मक एकीकरण और उन्नत क्षमताओं की आवश्यकता होगी।
समन्वय से कमान तक
भारत का रक्षा प्रबंधन बुनियादी अंतर-सेवा सहयोग से एकीकृत कमान संरचनाओं की ओर विकसित हो रहा है।
विकास:
- थिएटर कमांड पहल: प्रधानमंत्री ने एकीकृत परिचालन नेतृत्व प्रदान करने के लिए एकीकृत थिएटर कमांड अपनाने पर जोर दिया।
- अंतर-सेवा नियम 2025: वास्तविक परिचालन तालमेल सुनिश्चित करने के लिए कमांडरों को प्रशासनिक और अनुशासनात्मक अधिकार प्रदान करना।
- त्रि-सेवा संरचनाएँ: मुख्यालय आईडीएस के अंतर्गत समर्पित साइबर, अंतरिक्ष और विशेष ऑपरेशन इकाइयाँ क्रॉस-डोमेन तत्परता में सुधार करती हैं।
- नई मॉड्यूलर इकाइयाँ: "रुद्र" और "भैरव" ब्रिगेड लचीली, तीव्र तैनाती के लिए कई लड़ाकू हथियारों - पैदल सेना, कवच और तोपखाने - को जोड़ती हैं।
- उभयचर सिद्धांत: भूमि-वायु-समुद्री तत्वों को एकीकृत करता है, हालांकि भारत अभी भी चीन के उन्नत संयुक्त कमांड मॉडल के साथ कदमताल मिला रहा है।
सैद्धांतिक और तकनीकी विकास
सैन्य सिद्धांत का आधुनिकीकरण और उभरती प्रौद्योगिकियों का उपयोग भारत के परिवर्तन के केन्द्र में है।
प्रमुख उपाय:
- संयुक्त सिद्धांत: मौजूदा 2017-2018 सिद्धांतों को प्रौद्योगिकी-संचालित, बहु-डोमेन युद्ध को संबोधित करने के लिए विकसित किया जाना चाहिए।
- रण संवाद सेमिनार: युद्ध और डिजिटल डोमेन जैसे कोडिंग और साइबर ऑपरेशन दोनों में कुशल “हाइब्रिड योद्धाओं” की वकालत की गई।
- नए प्लेटफार्म:
- एमक्यू-9बी ड्रोन: सभी सेवाओं में निरंतर निगरानी और सटीक हमले को सक्षम बनाते हैं।
- राफेल-एम जेट: समुद्री हमले की क्षमताओं में वृद्धि और नौसैनिक विमानन को मजबूत करना।
- आकाशतीर एआई नेटवर्क: तीव्र, स्वचालित प्रतिक्रियाओं के लिए सेना और वायु सेना की वायु रक्षा को एकीकृत करता है।
एक आधुनिक बल का निर्माण
भारतीय सेना मॉड्यूलर, चुस्त और तकनीक-सक्षम परिचालन क्षमताओं की ओर बढ़ रही है।
मुख्य बातें:
- एकीकृत युद्ध समूह (आईबीजी): "रुद्र" ब्रिगेड को बहु-डोमेन ताकत के साथ तेजी से तैनाती (12-48 घंटों के भीतर) के लिए डिज़ाइन किया गया है।
- प्रलय मिसाइलें: सुदृढ़ लक्ष्यों के विरुद्ध गहन प्रहार क्षमता के साथ भूमि-आधारित निवारण में सुधार करती हैं।
- वाहक-केन्द्रित नौसेना: राफेल-एम विमान निकट भविष्य में ताकत सुनिश्चित करता है, क्योंकि नौसेना मानवयुक्त और मानवरहित प्रभुत्व को मिलाकर दीर्घकालिक रोडमैप की योजना बना रही है।
- नागरिक-सैन्य संलयन: रक्षा नवाचार में तेजी लाने के लिए डीआरडीओ, सार्वजनिक उद्यमों, निजी फर्मों और शिक्षाविदों के बीच सहयोग।
आगे बढ़ने का रास्ता
पूर्ण-स्पेक्ट्रम एकीकरण प्राप्त करने के लिए, सुधारों को महत्वाकांक्षा और क्रमिक, व्यवस्थित कार्यान्वयन के बीच संतुलन बनाना होगा।
प्राथमिकताएं:
- चरणबद्ध कार्यान्वयन: अंतर-सेवा घर्षण को न्यूनतम करने के लिए पूर्ण विस्तार से पहले विशिष्ट थिएटर कमांड के साथ शुरुआत करें।
- मानकीकृत प्रणालियाँ: वास्तविक अंतरसंचालनीयता के लिए एकीकृत डेटा और संचार ढाँचा।
- टेक्नोलॉजिस्ट-कमांडर: व्यावसायिक सैन्य शिक्षा (पीएमई) में नेतृत्व प्रशिक्षण में एआई, कोडिंग और तकनीकी युद्ध को शामिल किया जाना चाहिए।
- गतिशील उद्योग सहयोग: तीव्र प्रोटोटाइपिंग को मजबूत करना, बार-बार क्षेत्र प्रयोग को प्रोत्साहित करना, तथा अप्रचलित प्रणालियों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना।
निष्कर्ष
भविष्य का युद्धक्षेत्र बहु-क्षेत्रीय है—जो मारक क्षमता के साथ-साथ डेटा, गति और अनुकूलनशीलता से भी संचालित होगा। भारत के लिए, एकीकृत थिएटर कमांड की स्थापना, नागरिक-सैन्य तालमेल को गहरा करना और उभरती हुई तकनीकों को रणनीति में शामिल करना आवश्यक है। इन सुधारों के माध्यम से, सशस्त्र बल बदलते वैश्विक सुरक्षा परिवेश में लचीलापन, चपलता और श्रेष्ठता का निर्माण कर सकते हैं।