आर्कटिक में बढ़ती भारत की आकांक्षाएं

आर्कटिक में बढ़ती भारत की आकांक्षाएं

GS-1,2,3: भौगोलिक घटनाएं, सरकारी नीतियां, पर्यावरण संरक्षण

(IAS/UPPCS)

प्रीलिम्स के लिए प्रासंगिक:

आर्कटिक क्षेत्र (Arctic Region) के बारे में, स्वालबार्ड संधि-1920, हिमाद्रि, राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं महासागर अनुसंधान केंद्र (NCPOR), स्वालबार्ड द्वीपसमूह, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI)

मेंस के लिए प्रासंगिक:

भारत की आर्कटिक नीति, भारत की आकांक्षाएं, आर्कटिक क्षेत्र का महत्त्व, उभरती चुनौतियाँ, आगे की राह, निष्कर्ष।

20/04/2024

स्रोत: TH

संदर्भ:

मार्च 2024 में, आर्कटिक रीजन में भारत का पहला शीतकालीन अभियान सफलतापूर्वक समाप्त हुआ। यह अभियान हिमाद्री से संबंधित था जिसके लिए दिसंबर 2023 में, चार भारतीय जलवायु वैज्ञानिक आर्कटिक में नार्वे के लिए रवाना हुए थे।

  • इस अभियान के तहत सर्दियों (नवंबर से मार्च) के दौरान आर्कटिक में भारतीय वैज्ञानिक अभियान शोधकर्ताओं को ध्रुवीय रातों के दौरान अद्वितीय वैज्ञानिक अवलोकन करने की अनुमति प्रदान की गयी थी, जहां लगभग 24 घंटे तक सूरज की रोशनी नहीं होती है और तापमान शून्य से नीचे (-15 डिग्री सेल्सियस से कम) होता है।
  • इससे आर्कटिक, विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन, अंतरिक्ष मौसम, समुद्री-बर्फ और महासागर परिसंचरण गतिशीलता, पारिस्थितिकी तंत्र अनुकूलन आदि की समझ बढ़ाने में मदद मिलेगी, जो मानसून सहित उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में मौसम और जलवायु को प्रभावित करते हैं।

भारत की आर्कटिक नीति:

  • भारत की आर्कटिक नीति में विज्ञान एवं अनुसंधान; पर्यावरण संरक्षण; आर्थिक और मानव विकास; परिवहन और कनेक्टिविटी; शासन और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग; और राष्ट्रीय क्षमता निर्माण शामिल हैं।
  • इसका उद्देश्य आर्कटिक क्षेत्र के साथ विज्ञान एवं अन्वेषण, जलवायु तथा पर्यावरण संरक्षण, समुद्री व आर्थिक सहयोग में राष्ट्रीय क्षमताओं और दक्षता को मज़बूती प्रदान करना है।
  • भारत की आर्कटिक नीति को एक कार्य योजना और अंतर-मंत्रालयी अधिकार प्राप्त आर्कटिक नीति समूह को शामिल करते हुए एक प्रभावी शासन और समीक्षा तंत्र के माध्यम से लागू किया जाएगा।
  • भारत की आर्कटिक नीति को लागू करने में शिक्षा जगत, अनुसंधान समुदाय, व्यवसाय और उद्योग सहित कई हितधारक शामिल होंगे।

आर्कटिक क्षेत्र में भारत की आकांक्षाएं:

  • आर्कटिक क्षेत्र में भारत को अपार संभावनाओं की तलाश है इसके लिए, डेनमार्क और फ़िनलैंड के साथ, अपशिष्ट प्रबंधन, प्रदूषण नियंत्रण, नवीकरणीय ऊर्जा और हरित प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में भारत को सहयोग मिलने की संभावना है।
  • कई लोगों का मानना है कि नॉर्वे के साथ साझेदारी भारत के लिए परिवर्तनकारी हो सकती है क्योंकि यह आर्कटिक परिषद के कार्य समूहों में अधिक भारतीय भागीदारी को सक्षम बनाएगी, जिससे नीली अर्थव्यवस्था, कनेक्टिविटी, समुद्री परिवहन, निवेश और बुनियादी ढांचे और जिम्मेदार संसाधन विकास जैसे मुद्दों से निपटा जा सकेगा।
  • भारत सरकार आर्कटिक रीजन में समुद्री खनन और संसाधन दोहन से लाभ उठाने की इच्छुक है, इसलिए उसे स्पष्ट रूप से निष्कर्षण के एक स्थायी तरीके का समर्थन करना चाहिए।
  • भारत आर्कटिक समुद्री मार्गों, मुख्य रूप से उत्तरी समुद्री मार्ग के खुलने से उत्साहित है, और इस क्षेत्र के माध्यम से भारतीय व्यापार करना चाहेगा।
  • इससे भारत को माल भेजने में समय, ईंधन और सुरक्षा लागत के साथ-साथ शिपिंग कंपनियों की लागत कम करने में मदद मिल सकती है।

आर्कटिक क्षेत्र (Arctic Region) के बारे में:

भौगोलिक अवस्थिति:

  • यह क्षेत्र आर्कटिक वृत्त के अक्षांश 66° 34 उत्तर के ऊपर का क्षेत्र है।
  • इस क्षेत्र में आठ देश – कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे, रूस, स्वीडन और अमेरिका शामिल हैं। ये सभी देश आर्कटिक परिषद के सदस्य हैं। 
  • इस क्षेत्र में अत्यधिक ठंडे तापमान का अनुभव होता है, विशेषकर शीतकाल में अधिकांश क्षेत्र हिम से ढका रहता है।

जलवायु और पर्यावरण:

  • आर्कटिक की विशेषता इसकी ठंडी जलवायु है, जहाँ तापमान प्रायः शून्य से नीचे चला जाता है।
  • यह क्षेत्र हिम से आच्छादित है, जिसमें समुद्री हिम और हिमच्छद (ice caps) शामिल हैं, जो सूर्य के प्रकाश को प्रतिबिंबित करके पृथ्वी की जलवायु को विनियमित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • आर्कटिक में एक अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र पाया जाता है, जहाँ ध्रुवीय भालू, सील, व्हेल और पक्षियों की विभिन्न प्रजातियाँ वास करती हैं।

आर्कटिक क्षेत्र का महत्त्व:

आर्थिक महत्त्व:

  • आर्कटिक रीजन 22% अज्ञात संसाधनों का भंडार है। इस क्षेत्र में कोयला, जिप्सम, हीरे, जस्ता, सीसा, प्लसर सोना और क्वार्ट्ज के समृद्ध एवं पर्याप्त भंडार हैं।
  • वर्तमान में ग्रीनलैंड में 25% दुर्लभ पृथ्वी तत्त्वों का भंडार मौजूद है।
  • आर्कटिक में अभी तक अनन्वेषित हाइड्रोकार्बन संसाधनों का भी बड़ा भंडार मौजूद है, जो विश्व के गैर-आविष्कृत प्राकृतिक गैस का 30% है।
  • इस प्रकार, आर्कटिक संभावित रूप से भारत की ऊर्जा सुरक्षा आवश्यकताओं और रणनीतिक एवं दुर्लभ मृदा खनिजों की कमी को संबोधित कर सकता है।

भौगोलिक महत्त्व:

  • आर्कटिक विश्व की महासागरीय धाराओं के परिसंचरण और ठंडे एवं गर्म जल को दुनिया भर में ले जाने में मदद करता है।
  • इसके अलावा, आर्कटिक समुद्री हिम ग्रह के शीर्ष पर एक विशाल श्वेत परावर्तक के रूप में कार्य करता है, जो सूर्य की कुछ किरणों को वापस अंतरिक्ष में भेज देता है, जिससे पृथ्वी को एक समान तापमान पर रखने में मदद मिलती है।

भू-राजनीतिक महत्त्व:

  • आर्कटिक के हिम के पिघलने से भू-राजनीतिक तापमान भी उस स्तर तक बढ़ रहा है जो शीत युद्ध के बाद से नहीं देखा गया। चीन ने ट्रांस-आर्कटिक शिपिंग मार्गों को ‘पोलर सिल्क रोड’ के रूप में संदर्भित किया है, जहाँ इसे बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के लिए तीसरे परिवहन गलियारे के रूप में चिह्नित किया है और रूस के अलावा वह एकमात्र देश है जो ‘न्यूक्लियर आइस-ब्रेकर’ का निर्माण कर रहा है।
  • इस परिदृश्य में, आर्कटिक में चीन की सॉफ्ट पावर चालों का मुक़ाबला करना अत्यंत आवश्यक है और इसी क्रम में भारत भी अपनी आर्कटिक नीति के माध्यम से आर्कटिक राज्यों में गहरी दिलचस्पी ले रहा है।

पर्यावरणीय महत्त्व:

  • आर्कटिक और हिमालय हालाँकि भौगोलिक रूप से दूर स्थित हैं, लेकिन आपस में संबद्ध हैं और सदृश चिंताएँ साझा करते हैं। आर्कटिक का पिघलन वैज्ञानिक समुदाय को हिमालय में हिमनदों के पिघलन को बेहतर ढंग से समझने में मदद कर रहा है। गौरतलब है कि हिमालय को प्रायः ‘तीसरा ध्रुव’ (third pole) कहा जाता है और यह उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुवों के बाद मीठे जल का का सबसे बड़ा भंडार रखता है।

आर्कटिक में भारत की उपस्थिति:

  • इस क्षेत्र में भारत की भागीदारी पेरिस में स्वालबार्ड संधि पर हस्ताक्षर के साथ 1920 से चली आ रही है।
  • 2007 में, भारत ने आर्कटिक सूक्ष्म जीव विज्ञान, वायुमंडलीय विज्ञान और भूविज्ञान की जांच के लिए अपना पहला अनुसंधान मिशन शुरू किया।
  • 2008 में, चीन के अलावा भारत हिमाद्री नामक आर्कटिक अनुसंधान आधार स्थापित करने वाला एकमात्र विकासशील देश बन गया।
  • यह ज्यादातर गर्मियों (अप्रैल से अक्टूबर) के दौरान वैज्ञानिकों की मेजबानी करता रहा है।
  • 2013 में आर्कटिक काउंसिल द्वारा 'पर्यवेक्षक' का दर्जा दिए जाने के बाद, भारत ने 2014 में स्वालबार्ड में एक मल्टी-सेंसर मूर्ड वेधशाला और 2016 में एक वायुमंडलीय प्रयोगशाला शुरू की।
  • दिसंबर 2023 में, केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने आर्कटिक रीजन में भारत का पहला शीतकालीन वैज्ञानिक अभियान शुरू किया था।
  • यह अभियान स्वालबार्ड के नॉर्वेजियन द्वीपसमूह के अंदर नाइ-एलेसुंड(Ny-Ålesund) में स्थित देश के आर्कटिक अनुसंधान स्टेशन “हिमाद्रि” से संबंधित है।
  • इस अभियान के पहले बैच में मेज़बान राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र (NCPOR), भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) मंडी, भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM) और रमन अनुसंधान संस्थान के शोधकर्त्ता  शामिल हैं।
  • इन स्टेशनों पर काम आर्कटिक बर्फ प्रणालियों और ग्लेशियरों और हिमालय और भारतीय मानसून पर आर्कटिक पिघलन के परिणामों की जांच पर केंद्रित है।

उभरती चुनौतियाँ:

  • आर्कटिक में भारतीय भागीदारी का मुद्दा देश के शैक्षणिक और नीति समुदायों को विभाजित करता है।
  • भारत की अर्थव्यवस्था पर आर्कटिक में बदलती जलवायु के संभावित प्रभावों पर राय विभाजित है।
  • चिंता मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन के लिए क्षेत्र में खनन से उत्पन्न होती है, एक ऐसा क्षेत्र जहां भारत ने अभी तक एक स्पष्ट आर्थिक रणनीति तैयार नहीं की है।
  • आर्कटिक में आर्थिक शोषण के समर्थक इस क्षेत्र में, विशेषकर तेल और गैस की खोज और खनन के क्षेत्र में व्यावहारिक दृष्टिकोण की वकालत करते हैं।
  • संशयवादी संभावित पर्यावरणीय परिणामों के बारे में चेतावनी देते हैं और एक अधिक संतुलित नीति ढांचे की आवश्यकता पर जोर देते हैं जो समुद्री संसाधन शोषण के नकारात्मक पहलुओं को पहचानता है।
  • आर्कटिक में चीन के बढ़ते निवेश ने भारत की चिंता बढ़ा दी है।
  • चीन को उत्तरी समुद्री मार्ग तक विस्तारित पहुंच प्रदान करने के रूस के फैसले ने इस चिंता को और गहरा कर दिया है।
  • आर्कटिक पर भारत का ध्यान ऐसे समय में बढ़ रहा है जब इस क्षेत्र में तनाव बढ़ गया है, जो रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण बढ़ा है और विभिन्न क्षेत्रीय सहकारी मंचों के निलंबन से बढ़ा है।

आगे की राह:

  • आर्कटिक कई मायनों में अति महत्वपूर्ण क्षेत्र है; इसलिए, वैज्ञानिकों को इस ग्रह पर जीवन और अस्तित्व को प्रभावित करने वाले क्षेत्रों को संबोधित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।
  • भारत को अपनी आर्कटिक नीति के कुशलतापूर्वक लागू करने के लिए नॉर्वे से सहयोग लेने की आवश्यकता है क्योंकि इस क्षेत्र में यह अनुसंधान के मामले में भारतीय वैज्ञानिकों की जरूरतों को पूरा कर सकता है।
  • नॉर्वे के साथ साझेदारी वैज्ञानिक अनुसंधान और जलवायु और पर्यावरण संरक्षण पर केंद्रित होने की संभावना है।
  • चूंकि आर्कटिक में वैश्विक भू-राजनीतिक तनाव भी बढ़ रहा है, इसलिए दबाव कम करने के लिए रचनात्मक और गैर-संवेदनशील तरीके खोजना भारत और नॉर्वे दोनों के हित में होगा।
  • भारत की आर्कटिक नीति देश को ऐसे भविष्य के लिए तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी जहां जलवायु परिवर्तन जैसी मानव जाति की सबसे बड़ी चुनौतियों को सामूहिक इच्छा और प्रयास के माध्यम से संबोधित किया जा सकता है।

निष्कर्ष:

आर्कटिक क्षेत्र भारत की आकांक्षाओं को पूरा करने वाला एक अति संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र है जो पृथ्वी की जलवायु को विनियमित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। हालाँकि, जलवायु परिवर्तन के कारण इसे अभूतपूर्व पर्यावरणीय परिवर्तनों का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें हिम का तीव्र गति से पिघलना और तापमान का बढ़ना शामिल है।

आर्कटिक के संवेदनशील पर्यावरण को संरक्षित करने और इसकी दीर्घकालिक व्यवहार्यता सुनिश्चित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की विशेष आवश्यकता है।

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मुख्य परीक्षा प्रश्न

आर्कटिक क्षेत्र से भारत की आकांक्षाएं इतनी अधिक क्यों है? आर्कटिक क्षेत्र में उभरती चुनौतियों और उनसे निपटने के समाधानों पर चर्चा करें।