आर्थिक विकास बनाम बढ़ती बेरोजगारी

आर्थिक विकास बनाम बढ़ती बेरोजगारी

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन(ILO) की रिपोर्ट का विश्लेषण

GS-3: भारतीय अर्थव्यवस्था

 (IAS/UPPCS)

प्रीलिम्स के लिए प्रासंगिक:

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन(ILO), संयुक्त राष्ट्र, आर्थिक विकास, बेरोजगारी, असंगठित क्षेत्र।

मेंस के लिए प्रासंगिक:

आर्थिक विकास और बेरोजगारी-आंकड़े, भारत में बेरोजगारी के कारण, आगे की राह, निष्कर्ष।

24/04/2024

स्रोत: जनसत्ता

प्रसंग:

वर्तमान में, भारत की जीडीपी दर आर्थिक उन्नति के उच्च स्तर पर है। लेकिन लगातार अच्छी विकास दर के बावजूद भारत में कई पुरानी समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं। रोजगार विहीन विकास वाली इस भारतीय अर्थव्यवस्था से भारत का आम आदमी बहुत अधिक कुंठित एवं अचंभित है। मसलन, बेरोजगारी की समस्या या रोजगार के अवसरों में वृद्धि का मुद्दा भारतीय समाज तथा भारतीय आर्थिक नीतियों को हमेशा से प्रभावित करता रहा है।

  • यह लेख अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन(ILO) की रिपोर्ट पर आधारित है जो भारत के प्रति व्यक्ति आर्थिक विकास की एक बहुत चिंताजनक तस्वीर प्रस्तुत करता है।

आर्थिक विकास और बेरोजगारी:

संयुक्त राष्ट्र की संस्था अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आइएलओ) की रिपोर्ट के अनुसार,

  • भारत में इस समय अल्प-बेरोजगारी की दर बेरोजगारी की दर से अधिक है।
  • भारत में रोजगार के मामले में वर्ष 2000 से लेकर अब तक भारत में कुल श्रम संख्या 17 करोड़ बढ़ी है, तो वहीं बेरोजगारों की संख्या 92 लाख से बढ़कर करीब ढाई करोड़ हो गई है।
  • पिछले तेईस वर्षों में भारत में बेरोजगारी की दर दोगुनी से अधिक हो गई है।

कोरोना महामारी के दौरान बेरोजगारी-

  • वर्ष 2019 के दौरान कोरोना महामारी में, भारत में बेरोजगारों की संख्या तकरीबन तीन करोड़ यानी 5.9 फीसद थी।
  • फिर वर्ष 2022 में कुल बेरोजगारों की संख्या 2.29 करोड़ और बेरोजगारी दर घट कर चार फीसद पर आ गई।
  • इससे स्पष्ट है कि भारत में बेरोजगारी एक अंतहीन समस्या बनी हुई है, बावजूद इसके कि यहां अच्छी आर्थिक विकास दर है।

रोजगार की उपलब्धता:

  • वर्तमान समय में भारत में प्रतिदिन का कार्य औसतन आठ घंटे के हिसाब से निश्चित है।
  • भारत की आबादी के एक बड़े तबके को प्रतिदिन के हिसाब से अत्यंत कम समय के लिए रोजगार उपलब्ध हो रहा है।
  • कोई व्यक्ति पांच घंटे के लिए रोजगार कर रहा है, तो कोई तीन घंटे के लिए या कोई उससे भी कम समय के लिए।

प्रभाव:

  • इसके चलते ऐसे व्यक्तियों की प्रतिदिन की आय बहुत कम है, पर उन्हें रोजगार उपलब्ध है।
  • अल्प-बेरोजगारी की दर 2012 में पुरुष और महिलाओं में एक समान 8.1 फीसद थी, जो 2019 में बढ़ कर क्रमश 9 और 9.6 फीसद रही।
  • हालांकि 2022 में इस दर में कमी आई और पुरुषों में यह अब 7.7 फीसद तथा महिलाओं में 7.1 फीसद दर्ज की गई है।

स्वरोजगार (असंगठित क्षेत्र):

  • भारतीय समाज में असंगठित क्षेत्र के अंतर्गत सड़क के किनारे रेहड़ी लगाने वाले, दूध और सब्जी बेचने वाले, किसी सोसाइटी में ‘इलेक्ट्रीशियन’ और ‘प्लंबर’ का कार्य करने वाले जैसे लोग आते हैं।
  • प्रतिदिन की बहुत ही कम आमदनी के कारण ये लोग आर्थिक रूप से सक्षम नहीं होते हैं।
  • वर्ष 2000 से लेकर अब तक भारत में कुल श्रम संख्या का पचास से पचपन फीसद तक हिस्सा रोजगार के लिए खुद के प्रयासों पर निर्भर है, जिन्हें इस रपट में स्वरोजगार की श्रेणी में रखा गया है।
  • वर्ष 2000 में इस श्रेणी में 52.5 फीसद लोग थे, तो 2022 में इनकी संख्या बढ़कर 55.8 फीसद हो गई।

नियमित रोजगार:

  • भारत में नियमित रोजगारों के अंतर्गत व्यक्तियों का फीसद वर्ष 2019 तक लगातार बढ़ा है, पर उसके बाद इसमें गिरावट देखी गई है।
  • आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2000 में भारत में कुल श्रम संख्या के 14.2 फीसद लोग नियमित रोजगार में थे, जबकि 2012 में इनका फीसद बढ़ कर 17.9 हो गया था और 2019 में यह सबसे अधिकतम 23.8 फीसद रहा, पर 2022 में इसमें काफी गिरावट दर्ज हुई और यह 21.5 फीसद हो गया।
  • नियमित रोजगार वाले श्रमिकों की श्रेणी में तकरीबन 60 फीसद लोगों के पास किसी भी तरह का कोई लिखित अनुबंध या रोजगार की शर्तें उपलब्ध नहीं हैं।

अनियमित रोजगार:

  • भारत में अस्थायी कर्मचारियों का फीसद लगातार कम होता जा रहा है। मसलन, वर्ष 2000 में यह 33 फीसद था, जो वर्ष 2022 में घट कर 22 फीसद पर दर्ज हुआ।

वेतन:

  • भारत में हर तरह के रोजगार, चाहे वह नियमित हो या अनियमित या स्वरोजगार की श्रेणी में, सबमें पिछले एक दशक में प्रति व्यक्ति औसत वेतन में कमी देखी गई है।

नियमित श्रमिक:

  • आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2012 में नियमित श्रमिकों का प्रतिमाह औसत वेतन 12,100 रुपए था, जो 2019 में 11,155 तथा 2022 में 10,925 पाया गया।

अनियमित श्रमिक:

  • अनियमित रोजगार की श्रेणी में तो वेतन नियमित श्रमिकों से भी बहुत कम है, पर इस वेतन में पिछले एक दशक में तुलनात्मक रूप से कुछ वृद्धि दर्ज हुई है।
  • वर्ष 2012 में अनियमित कर्मचारियों के लिए प्रति माह औसत वेतन 3700 रुपए था जो 2022 में 4712 रुपए हो गया।

असंगठित क्षेत्र:

  • असंगठित क्षेत्र में स्वरोजगार या आत्मनिर्भर श्रमिकों का वेतन प्रतिमाह 2019 में 7017 रुपए था, जो 2022 में घट कर 6840 पाया गया।

भारत में बेरोजगारी के कारण:

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की रपट के अनुसार-

  • कुशल प्रशिक्षण का अभाव: भारत में अस्सी फीसद से अधिक युवाओं के बेरोजगार होने का प्रमुख कारण उनका व्यावसायिक कार्यों में अधिक कुशल न होना है।
  • कर्मचारियों की छंटनी: भारत में बेरोजगारी का मुख्य कारण कोरोना के दौरान हर संस्थान द्वारा कर्मचारियों की छंटनी है।
  • कृषि पर निर्भरता: आज भी भारत की आबादी का बड़ा हिस्सा रोजगार के लिए कृषि पर ही निर्भर है।
  • सेवा क्षेत्र में रोजगार का अभाव: भारत की अर्थव्यवस्था को नब्बे के दशक के बाद से सेवा क्षेत्र द्वारा संचालित किया जा रहा है। लेकिन रोजगार में इसका अंशदान तुलनात्मक रूप से बहुत कम है।
  • सेवा क्षेत्र भारत में तकरीबन 55 फीसद के आसपास जीडीपी में अंशदान देता है।
  • लचर आर्थिक नीतियां: लचर आर्थिक नीतियों के कारण बेरोजगारी में वृद्धि होने की संभावना बढ़ जाती है।
  • असंगठित क्षेत्र का प्रभुत्व: भारत में रोजगार का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा असंगठित क्षेत्र में है, जिसमें रोजगार सुरक्षा, सामाजिक-सुरक्षा लाभ और स्थिर आय का अभाव है। असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को अनिश्चित रोजगार संभावनाओं का सामना करना पड़ता है, जो समग्र बेरोज़गारी को बढावा देती है।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के बारे में

  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की स्थापना वर्ष 1919 में हुई थी। वर्ष 1946 में आई.एल.ओ. नवगठित संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी बन गई।
  • वर्तमान समय में आई.एल.ओ. के 187 सदस्य हैं। आई.एल.ओ. के वर्तमान महानिदेशक गाय राइडर हैं।
  • इसका मुख्यालय-स्विट्जरलैंड जेनेवा में है।
  • इस संगठन को वर्ष 1969 में इसकी 50वीं वर्षगांठ पर नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया था।
  • यह संगठन सदस्य देशों की सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिकों को एक साथ लाता है। यह श्रम मानकों को निर्धारित करने, नीतियों को विकसित करने और सभी महिलाओं व पुरुषों के लिये सभ्य कार्य संस्कृति को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों का विकास करता है।
  • वर्ष 2019 में आई.एल.ओ. ने ‘कार्य के भविष्य हेतु आई.एल.ओ. शताब्दी घोषणा, 2019’ जारी किया।

आगे की राह:

  • लोगों को कौशल प्रदान करना, बेहतर शिक्षा, श्रम-प्रधान क्षेत्रों पर अधिक ध्यान केंद्रित करना आदि सहित एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाकर भारत बेरोज़गारी दर को काफी हद तक कम करने में सक्षम हो सकता है।
  • कृषि, विनिर्माण तथा सेवा क्षेत्र में रोजगार वृद्धि हेतु आर्थिक नीतियों में नए सुधारों की जरूरत है। अगर अर्थव्यवस्था में जीडीपी लगातार बढ़ती है तो आर्थिक नीतियों की जवाबदेही रोजगार तथा प्रति व्यक्ति आय बढ़ने के लिए सौ फीसद निर्धारित होनी चाहिए। अन्यथा जीडीपी का बढ़ना आर्थिक विकास के प्रति बहुत सकारात्मक रूप को एक पक्ष को स्थापित करने में विफल रहेगा।

निष्कर्ष:

आइएलओ की यह रिपोर्ट भारत में बेरोजगारी की विकट स्थितियों को स्पष्ट करती है। इस रिपोर्ट के अनुसार पचास फीसद से अधिक तबका असंगठित क्षेत्र में स्वरोजगार की श्रेणी में है और तकरीबन 25 फीसद लोग अपना जीवन यापन नियमित रोजगार के माध्यम से कर रहे हैं। यानी देश के 75 फीसद लोगों के जीवन में रोजगार तो है, लेकिन रोजगार में स्थायित्व की कमी है।

चर्चा है कि अगर भारत की अर्थव्यवस्था पांच लाख करोड़ डालर की हो जाएगी तो बेरोजगारी आधी रह जाएगी। यह जमीनी हकीकत से बहुत दूर दिखता है।

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मुख्य परीक्षा प्रश्न

भारत में आर्थिक विकास के बावजूद बेरोजगारी चरम पर है। बेरोजगारी के कारणों के समाधान पर चर्चा कीजिए।