
अमेरिका-चीन संबंध
अमेरिका-चीन संबंध
प्रिलिम्स के लिए महत्वपूर्ण:
अमेरिका-चीन संबंध, एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग सम्मेलन, अमेरिका-ताइवान संबंध, गैलियम, जर्मेनियम और ग्रेफाइट, सैन्य समुद्री परामर्श अकादमी, अमेरिका-ताइवान संबंध अधिनियम
मेन्स के लिए महत्वपूर्ण:
GS-2: अमेरिका-चीन संबंध, पृष्ठभूमि, अमेरिका-चीन संबंधों का भारत पर प्रभाव, आगे की राह
11 दिसंबर,2023
चर्चा में क्यों:
हाल ही में, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 15 नवंबर को एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग सम्मेलन (Asia-Pacific Economic Cooperation conference) के साथ सैन फ्रांसिस्को में मुलाकात की।
- इस बैठक का मुख्य उद्देश्य तनावपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों में सुधार करना था, जो 1979 में अमेरिका और चीन के बीच राजनयिक संबंधों(diplomatic ties) की स्थापना के बाद से सबसे चुनौतीपूर्ण है।
इस शिखर सम्मेलन के मुख्य परिणाम
- दोनों देशों के मध्य सैन्य-से-सैन्य संचार की बहाली का मार्ग प्रशस्त हुआ जो परमाणु-सशस्त्र राज्यों के बीच गलत धारणाओं के लिए आवश्यक था।
- 1998 से सैन्य समुद्री परामर्श अकादमी के तहत संचार चैनल को फिर से खोला गया।
- इससे पहले अगस्त 2022 में नैन्सी पेलोसी की ताइवान की विवादास्पद यात्रा के बाद यह बंद कर दिया गया था।
ताइवान एक केन्द्रीय मुद्दे के रूप में:
ताइवान पर चीन का दृष्टिकोण:
- चीन, मुख्य भूमि के साथ ताइवान के पुनर्मिलन की वकालत करते हुए, अमेरिकी कार्यों को उत्तेजक मानता है।
- "एक-चीन" नीति को वाशिंगटन द्वारा स्वीकार किया जाता है, जो बीजिंग को चीन की एकमात्र वैध सरकार के रूप में मान्यता देता है लेकिन ताइवान को चीन के हिस्से के रूप में समर्थन नहीं करता है।
- अमेरिका-ताइवान संबंध अधिनियम के तहत ताइवान को सुरक्षा गारंटी भी प्रदान करता है।
ताइवान पर यूएस का दृष्टिकोण:
- राष्ट्रपति बिडेन ने संकेत दिया है कि अगर चीन ने ताइवान पर हमला किया तो अमेरिका हस्तक्षेप करेगा।
पेलोसी की यात्रा पर चीन की प्रतिक्रिया:
- बीजिंग ने इसे यथास्थिति का गंभीर उल्लंघन मानते हुए पेलोसी की यात्रा की निंदा की।
- चीन ने ताइवान के पास सैन्य अभ्यास और बैलिस्टिक मिसाइल फायरिंग से यूएसए को जवाब दिया।
- हाल ही में हाउस स्पीकर केविन मैक्कार्थी ने कैलिफोर्निया में ताइवान की राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन से मुलाकात की।
दोनों देशों के मध्य व्यापार विवाद:
व्यापार नीति और प्रतिबंध:
- अमेरिका ने अपनी व्यापार नीति के तहत चीनी कंपनियों पर कई प्रतिबंध लगाए हैं।
- राष्ट्रपति बिडेन ने ट्रम्प प्रशासन द्वारा शुरू की गई नीतियों को जारी रखा और विस्तारित किया, जिसमें "चीनी सैन्य-औद्योगिक परिसर" में शामिल कंपनियों को ब्लैकलिस्ट करना और चीन को उन्नत कंप्यूटर चिप्स के निर्यात पर नियंत्रण लगाना शामिल है।
- जवाब में, चीन ने गैलियम, जर्मेनियम और ग्रेफाइट जैसे महत्वपूर्ण खनिजों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था।
- चीन ने अपने जासूसी विरोधी और डेटा संरक्षण कानूनों को भी कड़ा कर दिया, जिसका असर चीन में काम करने वाली विदेशी कंपनियों पर पड़ा।
अमेरिका-चीन संबंधों की पृष्ठभूमि:
- 19वीं सदी के दौरान अमेरिकी मिशनरियों चीन के प्रति सहानुभूति को दिखाकर राष्ट्रवादी होने परिचय दिया था।
- द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका ने जापानी कब्जे के खिलाफ लड़ाई में चीनी राष्ट्रवादियों का समर्थन किया था।
- अमेरिका ने 1949 से चीन को अलग-थलग करने की कोशिश की जब कम्युनिस्ट राष्ट्रवादियों पर हावी हो गए।
- 1970 के दशक में सोवियत संघ का मुकाबला करने के लिए अमेरिका और साम्यवादी चीन ने एकजुटता दिखाई थी।
- 1980 के दशक में दोनों देशों के मध्य आर्थिक संबंधों की शुरुआत हुई जो 1990 के दशक से एक विशाल वाणिज्यिक और तकनीकी साझेदारी में बदल गई।
- 21वीं सदी के दौरान अमेरिका में कुछ लोग चीन को संभावित खतरे के रूप में देखने लगे।
- अमेरिका का मानना था कि चीन की बढ़ती आर्थिक समृद्धि अनिवार्य रूप से उसके समाज के अधिक लोकतंत्रीकरण को बढ़ावा देगी।
- पिछले दो वर्षों में अमेरिका-चीन के मध्य व्यापार, तकनीकी और दक्षिण चीन सागर में नौसैनिक गतिविधियाँ आदि कारणों से प्रतिद्वंद्विता तेज हो गई है।
महत्त्व:
- दोनों देशों के मध्य चल रहे द्विपक्षीय विवादों का समाधान हो जाएगा
- इससे वैश्विक ध्रुवीकरण की नीति में शिथिलता आएगी।
- दोनों देशों के मध्य अलगाव' के बजाय सह-अस्तित्व के नए व्यावहारिक मार्ग प्रशस्त होंगे।
- इस बैठक से द्विपक्षीय संबंधों में और अधिक स्थिरता आएगी।
- चीन के प्रति अमेरिका का तीन-स्तंभीय दृष्टिकोण - "निवेश करें, संरेखित करें, प्रतिस्पर्धा करें प्रभावित होगा।
अमेरिका-चीन संबंध का भारत पर प्रभाव:
- अमेरिका-चीन संबंधों के प्रति भारत का दृष्टिकोण बहुआयामी है।
- इन वैश्विक बदलावों के बीच भारत खुद को एक जटिल स्थिति में पाता है। इसे चीन के साथ लगातार सीमा तनाव का सामना करना पड़ रहा है, जिसका उदाहरण 2020 में गलवान घाटी संघर्ष है। अमेरिका-चीन संबंधों की बदलती गतिशीलता अपने उत्तरी पड़ोसी के प्रति भारत के दृष्टिकोण को प्रभावित कर सकती है।
- हालाँकि, अमेरिका के दृष्टिकोण में स्पष्ट बदलाव, अधिक आक्रामक रुख से आगे बढ़ते हुए चीन के साथ अपने आर्थिक संबंधों को "जोखिम से मुक्त" करना और विश्वास-निर्माण के लिए उच्च-स्तरीय वार्ता फिर से शुरू करना, बीजिंग से निपटने में एक सूक्ष्म रणनीति का संकेत देता है।
- यह बदलाव दोनों देशों के बीच पर्याप्त आर्थिक जुड़ाव पर आधारित है क्योंकि 2022 में द्विपक्षीय व्यापार लगभग 700 बिलियन डॉलर तक पहुंचा था।
आगे की राह:
- भारत को अमेरिका, चीन और रूस के बीच संबंधों में बदलाव का लगातार आकलन करना चाहिए ताकि भारत का प्रभुत्व बना रहे।
- भारत का जोर अमेरिका के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने और अपनी स्थिति को बनाए रखने के लिए नई संभावनाओं का लाभ उठाने पर होना चाहिए।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली में भारत को यूएस संबंधों में किसी भी अचानक बदलाव को प्रभावी ढंग से समाधान करने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष:
- एशिया और इंडो-पैसिफिक में हालिया संरेखण ने भारत और अमेरिका को अपने संबंधों को और आगे बढ़ाने पर विचार करने के लिए प्रेरित किया है, खासकर इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती मुखरता के मद्देनजर।
- इंडो-पैसिफिक क्षेत्र अमेरिका के लिए एक उच्च प्राथमिकता वाला क्षेत्र रहा है, और अमेरिका इस क्षेत्र पर चीन के आधिपत्य के दावे को चुनौती दे रहा है और चीन के प्रभाव को संतुलित करने के लिए गठबंधन जुटा रहा है।
स्रोत: द हिंदू
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मुख्य परीक्षा प्रश्न
वर्तमान परिदृश्य में यूएस-चीन संबंधों का भारत के अंतर्राष्ट्रीय हितों पर पड़ने वाले प्रभावों की विवेचना कीजिए।