अंतरिक्ष में भारत की प्रगति के बढ़ते कदम

अंतरिक्ष में भारत की प्रगति के बढ़ते कदम

GS -3: अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी

(यूपीएससी/राज्य पीएससी)

प्रारंभिक परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण:

गगनयान, CE20 क्रायोजेनिक इंजन, लॉन्च व्हीकल मार्क-3 (LVM3), क्रू माड्यूल।

मुख्य परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण:

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में इसरो की उपलब्धियाँ-गगनयान, क्रायोजेनिक इंजन सीई-20, इनका महत्त्व, निष्कर्ष।

02/03/2024

न्यूज़ में क्यों:

हाल ही में, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने गगनयान अभियान की चरणबद्ध तैयारी में क्रायोजेनिक इंजन सीई-20 को स्वदेशी तकनीक से विकसित करने में सफलता अर्जित की है।

  • यह भारत के लिए अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक बहुत बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है क्योंकि अंतरिक्ष अभियानों के उड़ान में आवश्यक “क्रायोजेनिक इंजन” के लिए भारत को अभी तक यूएस, रसिया और चीन की तकनीकी पर निर्भर रहना पड़ रहा था और इस लिहाज से भारत अंतरिक्ष अभियानों की सफलता में इन देशों से अपेक्षाकृत पीछे चल रहा था।

क्रायोजेनिक इंजन सीई-20 के विकास से पूर्व की कहानी क्या है:

  • अभी तक, भारतीय वैज्ञानिकों ने अनेक विपरीत परिस्थितियों और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के बावजूद इस क्षेत्र में अद्वितीय उपलब्धियां हासिल की हैं। अन्यथा एक समय ऐसा भी था, जब अमेरिका के दबाव में रूस ने क्रायोजेनिक इंजन देने से मना कर दिया था।
  • दरअसल, भारत ने शुरुआत में रूस से इंजन खरीदने का अनुबंध किया था। मगर 1990 के दशक के आरंभ में अमेरिका ने मिसाइल तकनीक नियंत्रण व्यवस्था (एमटीसीआर) का हवाला देते हुए इसमें बाधा उत्पन्न कर दी थी। इसका असर यह हुआ कि रूस ने तकनीक तो नहीं दी, लेकिन शुल्क लेकर छह क्रायोजेनिक इंजन भारत को भेज दिए थे। कालांतर में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की मदद से भारत को एमटीसीआर क्लब की सदस्यता भी मिल गई, लेकिन इसके पहले ही इसरो के वैज्ञानिकों ने कठोर परिश्रम और दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर स्वदेशी तकनीक से इंजन विकसित कर लिया।

क्रायोजेनिक इंजन सीई-20 के बारे में:

  • CE20 क्रायोजेनिक इंजन, लॉन्च व्हीकल मार्क-3 (LVM3) के लिए इसरो द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित इंजन है।
  • CE20 इंजन में प्रमुख संशोधनों में, 3D-मुद्रित LOX (लिक्विड ऑक्सीजन) और LH2 (लिक्विड हाइड्रोजन) टर्बाइन एग्जॉस्ट केसिंग और थ्रस्ट कंट्रोल वाल्व (TCV) शामिल हैं।
  • क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन के  प्रमुख घटक हैं: दहन कक्ष (थ्रस्ट चैंबर), पायरोटेक्निक इनिशिएटर, फ्यूल इंजेक्टर, फ्यूल क्रायोपंप, ऑक्सीडाइजर क्रायोपंप, गैस टर्बाइन, क्रायो वाल्व, रेगुलेटर, फ्यूल टैंक और रॉकेट इंजन नोजल।
  • ईंधन: क्रायोजेनिक इंजन, ईंधन के रूप में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का उपयोग करता है, और पानी को उप-उत्पाद के रूप में छोड़ता है।
  • यह ईंधन के रूप में -265 डिग्री सेल्सियस पर तरल हाइड्रोजन और ऑक्सीकारक के रूप में -240 डिग्री सेल्सियस पर तरल ऑक्सीजन का प्रयोग करता है।
  • दक्षता: यह इंजन, गगनयान को मानव मिशन के योग्य बनाने की दृष्टि से सक्षम है और इसका चार अलग-अलग स्थितियों में ‘39 हाट फायरिंग’ की मदद से परीक्षण किया जा चुका है।

विशेषताएं:

  • CE-20 इंजन के शामिल होने से अतिरिक्त प्रणोदक लोडिंग के साथ LVM3 की पेलोड क्षमता 450 किलोग्राम तक बढ़ जाएगी, क्योंकि यह इंजन अधिक थ्रस्ट उत्पन्न करने में सक्षम है, और अंतरिक्ष में बहुत अधिक पेलोड द्रव्यमान उठा सकता है।
  • क्रायोजेनिक इंजन एक रॉकेट इंजन है, जो क्रायोजेनिक ईंधन या ऑक्सीडाइज़र का उपयोग करता है , अर्थात इसके ईंधन या ऑक्सीडाइज़र (या दोनों) गैसों को तरलीकृत किया जाता है, और बहुत कम तापमान पर संग्रहीत किया जाता है।
  • इसमें प्रणोदक के रूप में तरल गैसों का उपयोग किये जाने के कारण, क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन को तरल प्रणोदक रॉकेट इंजन भी कहा जाता है।
  • पारंपरिक ठोस और तरल प्रणोदक रॉकेट इंजनों की तुलना में, यह इंजन जलाए गए प्रत्येक किलोग्राम ईंधन के लिए अधिक थ्रस्ट प्रदान करते है।
  • वर्तमान में छह देशों ने अपने क्रायोजेनिक इंजन विकसित किए हैं: अमेरिका, फ्रांस/यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, रूस, चीन, जापान और भारत।

क्रायोजेनिक इंजन सीई-20 का महत्त्व:

  • यह इंजन भारत के पहले मानव अंतरिक्ष अभियान “गगनयान” को लेकर अंतरिक्ष की उड़ान भरेगा।
  • यह भारत के भविष्य के अंतरिक्ष कार्यक्रमों की प्रगति के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
  • इससे ईंधन के प्रति इकाई द्रव्यमान में उच्च ऊर्जा निकलती है, जो इसे अंतरिक्ष मिशनों के लिए विशेष रूप से उपयोगी बनाती है।
  • यह इंजन एलवीएम-3 प्रक्षेपण वाहन के ऊपरी चरण को शक्ति प्रदान करेगा।
  • यह इंजन अंतरिक्ष उड़ानों से लेकर उपग्रहों और मिसाइल प्रक्षेपण में काम आता है।
  • इस इंजन की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि इसके उपयोग से कोई प्रदूषण नहीं होता है।

गगनयान:

  • यह भारत का प्रस्तावित पहला मानव उड़ान मिशन है जिसमें तीन सदस्यीय दल को तीन दिनों की अवधि के लिए 400 किमी की कक्षा में भेजने और उन्हें पृथ्वी पर वापस लाने की परिकल्पना की गई है।
  • पहला मानवरहित गगनयान-1 मिशन 2024 के मध्य में अंतरिक्ष में भेजा जाना निर्धारित है।
  • पहले भारत ने 2022 तक अंतरिक्ष में मानव भेजने की घोषणा की थी, लेकिन इस पर समय रहते क्रियान्वयन नहीं हो पाया।
  • अंतरिक्ष में मानवरहित और मानवचालित दोनों तरह के यान भेजे जाएंगे। पहले चरण में योजना की सफलता को परखने के लिए अलग-अलग समय में दो मानवरहित यान अंतरिक्ष की उड़ान भरेंगे।
  • प्रधानमंत्री और इसरो के वैज्ञानिकों द्वारा 2035 में भारत का अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने तथा 2040 में चंद्रमा पर भारतीय नागरिक के पहुँचने के लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं।
  • इस यान में तीन भारतीय अंतरिक्ष यात्री तीन दिन अंतरिक्ष की सैर करेंगे।
  • इस मिशन में ‘रोबोट-मानव’ भी साथ ले जाया जा सकता है।
  • इस मिशन के लिए दस हजार करोड़ रुपए मंजूर किए जा चुके हैं।
  • भारत ने गगनयान को अंतरिक्ष में भेजने की दृष्टि से श्रीहरिकोटा में जीएसएलवी मार्क-3 को स्थापित करने की तैयारी शुरू कर दी है। इसी मुहिम के तहत इसरो ने परीक्षण के तौर पर ‘क्रू एस्केप माड्यूल’ का पहला पड़ाव पार कर लिया है। इसे धरती से 2.7 किमी की ऊंचाई पर भेजने के बाद राकेट से अलग किया और फिर पैराशूट की मदद से बंगाल की खाड़ी में उतार कर जमीन के निकट लाने में सफलता प्राप्त की।
  • प्रधानमंत्री द्वारा गगनयान मिशन पर जाने वाले वैज्ञानिकों के नामों की घोषणा भी कर दी गई है। इन वैज्ञानिक के नाम हैं: प्रशांत नायर, अंगद प्रताप, अजित कृष्णन और शुभांशु शुक्ला
  • इनकी कामयाबी के बाद मानवयुक्त यान अपनी मंजिल का सफर तय करेगा।
  • मानवयुक्त गगनयान की कामयाबी के बाद भारत अमेरिका, रूस और चीन की श्रेणी में आ जाएगा।

प्रयुक्त लॉन्च वाहन: LVM3 या GSLV-MK3 

  • LVM3 रॉकेट, को भारत का सबसे भारी प्रक्षेपण यान माना जाता है, इसे पहले GSLV-MK3 के नाम से जाना जाता था। इसरो द्वारा इस वाहन यानी प्रक्षेपण यान को गगन मिशन में उपयोग किया गया है
  • LVM3, इसरो द्वारा विकसित तीन चरणों वाला भारी लिफ्ट प्रक्षेपण यान है।
  • LVM3 में शामिल हैं:
  • ठोस ईंधन जलाने में मदद करने वाली दो ठोस स्ट्रैप-ऑन मोटरें।
  • एक कोर-स्टेज तरल बूस्टर, जो तरल ईंधन के संयोजन को जलाता है।
  • C25 क्रायोजेनिक इंजन ऊपरी चरण में तरल ऑक्सीजन के साथ तरल हाइड्रोजन को जलाने में मदद करता है।
  • LVM3 रॉकेट को 4 टन वर्ग के उपग्रहों को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) और लगभग 8 टन के उपग्रहों को लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में ले जाने के लिए विकसित किया गया है।
  • इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे मानव को अंतरिक्ष में ले जाने के लिए कॉन्फ़िगर किया जा सकता है।
  • LVM-3 रॉकेट का उपयोग, वर्ष 2024 के अंत में भारत की पहली मानव अंतरिक्ष उड़ान के लिए किया जाएगा।

क्रू माड्यूल:

  • यह चालक दल बचाव प्रणाली (CES) है एक घटक है जो लांच वाहन के पेलोड के साथ यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजने और जमीन पर सुरक्षित वापस लाने में सक्षम है
  • क्रू माड्यूल वह स्थान है, जहां गगनयान मिशन के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में पृथ्वी जैसे वातावरण में रखा जाएगा।
  • यह डीआरडीओ की आगरा स्थित प्रयोगशाला एडीआरडीई में बनाया गया है।

विशेषताएं:

  • यह अंतरिक्ष यात्रियों को सुरक्षा कवच प्रदान करता है।
  • क्रू माड्यूल’ तीन लोगों को अंतरिक्ष में ले जाने की क्षमता रखता है। इसमें सवार यात्रियों को एक सप्ताह तक भोजन-पानी और हवा उपलब्ध करा कर जीवित रखा जा सकता है।
  • यह ‘क्रू माड्यूल’ पैराशूट के माध्यम से सुरक्षित भूमि पर उतारा जा सकता है।

अंतरिक्ष में जाने वाले भारतीय वैज्ञानिक:

अगर देखा जाए तो अब तक भारतीय या भारतीय मूल के तीन वैज्ञानिक अंतरिक्ष की यात्रा कर चुके हैं।

  • राकेश शर्मा: राकेश शर्मा अंतरिक्ष में जाने वाले पहले भारतीय हैं। राकेश शर्मा रूस के अंतरिक्ष यान सोयुज टी-11 से 3 अप्रैल 1984 को अंतरिक्ष में गए थे।
  • कल्पना चावला: भारतीय मूल की कल्पना चावला अमेरिकी कार्यक्रम के तहत अंतरिक्ष में तीन बार जा चुकी थीं। अंतरिक्ष में उनकी पहली उड़ान 1998 में शुरू हुई थी
  • सुनीता विलियम्स: 9 दिसंबर 2006 को सुनीता विलियम्स पहली बार नासा अभियान के तहत स्पेस में गईं थीं जो अमेरिकी मूल की दूसरी भारतीय अंतरिक्ष यात्री बनीं।

अंतरिक्ष में सफल उड़ान भरने वाले विदेशी मिशन:

  • रूस ने 12 अप्रैल, 1961 को रूसी अंतरिक्ष यात्री यूरी गागरिन को अंतरिक्ष में भेजा था। गागरिन दुनिया के पहले अंतरिक्ष यात्री थे।
  • अमेरिका ने 5 मई, 1961 को एलन शेपर्ड को अंतरिक्ष में भेजा था। ये अमेरिका से भेजे गए पहले अंतरिक्ष यात्री थे।
  • चीन ने 15 अक्तूबर, 2013 को यांग लिवेई को अंतरिक्ष में भेजने में कामयाबी हासिल की थी।

निष्कर्ष:

इसरो की यह महत्वाकांक्षी सफलता भारत की अंतरिक्ष पर्यटन की पृष्ठभूमि का एक हिस्सा है। यह अंतरिक्ष मिशन, भारतीय मानव मिशन यानी गगनयान के सफल होने के बाद ही चंद्रमा और मंगल पर मानव भेजने का रास्ता खोजने में मदद करेगा। भविष्य में भारत द्वारा अंतरिक्ष में बस्तियां बसाए जाने की संभावनाएं भी बढ़ जाएंगी और आने वाले वर्षों में अंतरिक्ष पर्यटन के भी बढ़ने की उम्मीद है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस, जनसत्ता

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मुख्य परीक्षा प्रश्न:

  • गगनयान के आलोक में भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो की महत्वपूर्ण उपलब्धि पर चर्चा कीजिए।
  • गगनयान के सन्दर्भ में क्रायोजेनिक इंजन सीई-20, प्रक्षेपण यान (LVM3) और क्रू माड्यूल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ।