बेंगलुरु में जल संकट

बेंगलुरु में जल संकट

GS-1: शहरी आधारभूत ढांचा एवं विकास

(यूपीएससी/राज्य पीएससी)

प्रिलिम्स के लिए महत्वपूर्ण:

सिलिकन वैली, जल संकट, अपशिष्ट जल प्रबंधन, नीति आयोग की रिपोर्ट, 'समग्र जल प्रबंधन सूचकांक' (2018), अमृत सरोवर मिशन, कैच द रैन अभियान, 'प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना - वाटरशेड डेवलपमेंट कंपोनेंट (PMKSY-WDC)’, अटल भूजल योजना (ABHY), जल शक्ति अभियान (JSA), नमामी गंगे पहल,  राष्ट्रीय जलभृत मानचित्रण और प्रबंधन कार्यक्रम (NAQUIM)।

मेन्स के लिए महत्वपूर्ण:

बेंगलुरु में जल संकट के कारण, भारत में जल संकट, जल संकट का समाधान, भारत में जल संकट से निपटने के लिए सरकारी पहल, आगे की राह, निष्कर्ष।

16/03/2024

सन्दर्भ:

आज भारत का 'सिलिकन वैली' कहा जाने वाला बैंगलोर महानगर पानी के भीषण संकट का सामना कर रहा है।

बैंगलोर में यह जल संकट चेतावनियों पर समय रहते न चेतने का दुष्परिणाम है। साल 2018 में दक्षिण अफ्रीका के शहर केपटाउन में पानी के भीषण संकट को देखते हुए दुनिया के जिन 15 शहरों पर 'शून्य जल' स्तर के संकट का खतरा बताया गया था, उन्हें भारत के बेंगलुरु का भी नाम था।

बेंगलुरु में गहराता जल संकट पूरे भारत को जल संरक्षण के विभिन्न वैकल्पिक समाधान तलाशने के लिए प्रेरित कर रहा है।

बेंगलुरु में जल संकट के कारण:

  • वर्षा में कमी: बेंगलुरु में 2023 में वर्षा की कमी का अनुभव हुआ, जिसके कारण भूजल स्तर में गिरावट आई, विशेष रूप से शहर की परिधि प्रभावित हुई।
  • जल की बढ़ती मांग: बेंगलुरु की मीठे पानी की मांग कावेरी नदी और भूजल जैसे स्रोतों से उपलब्ध आपूर्ति से अधिक है।
  • जल निकायों का क्षरण: ऐतिहासिक रूप से, बेंगलुरु जल आपूर्ति के लिए झीलों और टैंकों के नेटवर्क पर निर्भर था। हालाँकि, तेजी से हो रहे शहरीकरण के कारण इन जल निकायों पर अतिक्रमण हो गया है और वे सूखने लगे हैं।
  • सीवेज डंपिंग के कारण झीलें भी प्रदूषित हो गई हैं, जिससे वर्षा जल संचयन की उनकी क्षमता और कम हो गई है।
  • अपशिष्ट जल प्रबंधन का अभाव: शहर के अपशिष्ट जल का केवल एक अंश ही उपचारित किया जाता है और बाहरी रूप से पुन: उपयोग किया जाता है। इसका अधिकांश भाग नीचे की ओर झीलों या नदियों में बह जाता है।
  • अर्कावथी जलाशय की कमी: अर्कावथी जलाशय, जो कभी एक महत्वपूर्ण जल स्रोत था, अनियंत्रित विकास, अतिक्रमण, अत्यधिक बोरवेल उपयोग और यूकेलिप्टस की खेती के कारण गंभीर रूप से समाप्त हो गया है और प्रदूषित हो गया है।

भारत में जल संकट:

  • भारत में दुनिया की आबादी का 18 प्रतिशत हिस्सा है, लेकिन इसके जल संसाधन केवल 4 प्रतिशत हैं, जो इसे दुनिया में सबसे अधिक जल संकट वाले देशों में से एक बनाता है।
  • नीति आयोग की रिपोर्ट, 'समग्र जल प्रबंधन सूचकांक' (2018) में कहा गया है कि भारत इतिहास में अपने 'सबसे खराब' जल संकट का सामना कर रहा है, जिसमें 600 मिलियन से अधिक लोग पानी की गंभीर कमी का सामना कर रहे हैं।

जल संकट का समाधान कैसे करें:

  • व्यक्तियों और व्यवसायों को वर्षा जल संचयन प्रथाओं को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए प्रोत्साहन या सब्सिडी प्रदान करें।
  • झीलों, तालाबों और नदियों के अतिक्रमण और प्रदूषण को रोकने के लिए सख्त नियम लागू करें।
  • डिसिल्टिंग, ड्रेजिंग और पानी की गुणवत्ता में सुधार के उपायों सहित खराब जल निकायों की बहाली में निवेश करें।
  • आगे अतिक्रमण को रोकने और उनकी पारिस्थितिक अखंडता की रक्षा के लिए जल निकायों के आसपास बफर जोन और हरित स्थान बनाएं।
  • विकेन्द्रीकृत अपशिष्ट जल उपचार प्रणालियों का कार्यान्वयन और सिंचाई, औद्योगिक प्रक्रियाओं और भूजल पुनर्भरण जैसे गैर-पीने योग्य उद्देश्यों के लिए उपचारित अपशिष्ट जल का पुन: उपयोग करें।

भारत में जल संकट से निपटने के लिए सरकारी पहल:

  • ग्रामीण क्षेत्रों में जल संकट को दूर करने के लिये भारत के प्रत्येक ज़िले में कम-से-कम 75 अमृत सरोवरों के निर्माण के लिए 24 अप्रैल, 2022 को 'अमृत सरोवर मिशन' का शुभांरभ; 15 अगस्त, 2023 तक इस मिशन का लक्ष्य 50,000 अमृत सरोवरों का निर्माण करना है।
  • जल संरक्षण के लिए लोगों के सहयोग से जन जागरुकता अभियान चलाने के लिए 2021 में 'कैच द रैन अभियान' की शुरुआत।
  • केंद्र सरकार द्वारा 'प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना - वाटरशेड डेवलपमेंट कंपोनेंट (PMKSY-WDC)' के जरिए जल संचयन और संरक्षण कार्यों के निर्माण में सहायता प्रदान की जाती है।
  • अटल भूजल योजना (ABHY)- भूजल प्रबंधन पर इस बड़ी योजना का शुभारंभ प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा 25 दिसंबर 2019 को किया गया। 6000 करोड़ रुपये की इस योजना में 50 फीसदी फंड विश्व बैंक का और 50 फीसदी भारत सरकार लगाएगी। इस योजना का मकसद देश के 7 चुनिंदा राज्यों के भूजल की कमी से जूझने वाले क्षेत्रों में बेहतर भूजल प्रबंधन करना है। इन राज्यों में गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश शामिल हैं।
  • भारत सरकार ने भारत के 256 जिलों के जल संकट वाले ब्लॉकों में भूजल की स्थिति सहित पानी की उपलब्धता में सुधार के लिए 2019 में जल शक्ति अभियान (JSA) शुरू किया।
  • गंगा बेसिन की नदियों के संरक्षण के लिए जल शक्ति मंत्रालय द्वारा 'नमामी गंगे पहल' और अन्य नदियों के संरक्षण के लिए 'राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (NRCP)' को लांच किया जा चुका है
  • सरकार के 'जल समृद्ध भारत' के दृष्टिकोण को प्राप्त करने के लिए राज्यों, जिलों, व्यक्तियों, संस्थानों, संगठनों आदि द्वारा किए गए प्रयासों को पहचानने और उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए जल शक्ति मंत्रालय द्वारा 2018 में 'राष्ट्रीय जल पुरस्कारों' की शुरुआत
  • जल जीवन मिशन (JJM) 2024 तक भारत के प्रत्येक ग्रामीण घर के परिसर के भीतर एक कार्यात्मक नल कनेक्शन प्रदान करने के उद्देश्य से 2019 में शुरू किया गया था।
  • केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) ने राष्ट्रीय जलभृत मानचित्रण और प्रबंधन कार्यक्रम (National Aquifer Mapping and Management program- NAQUIM) को 2012 में 'भूजल प्रबंधन और विनियमन' योजना के एक भाग के रूप में शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य जलभृत को सीमांकित और चिन्हित करना और देश में स्थायी भूजल प्रबंधन की योजनाओं को विकसित करना था।

आगे की राह:

  • जन जागरूकता अभियान चलाए जाएं: लोगों को जल संरक्षण और स्वच्छता प्रथाओं के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए।
  • तकनीकी समाधान खोजा जाए: अलवणीकरण, अपशिष्ट जल उपचार और वर्षा जल संचयन प्रौद्योगिकियों की खोज नए जल स्रोत प्रदान कर सकती है।
  • एक चक्रीय जल अर्थव्यवस्था को शुरू किया जाए: प्रत्येक लीटर पानी की उपयोगिता को अधिकतम करना और बाहरी स्रोतों पर शहर की निर्भरता को कम करना।

निष्कर्ष:

  • आज ‘जल संरक्षण’ वैश्विक चिंता का विषय है। मौजूदा समय में भारत की जल आवश्यकता लगभग 1,100 बिलियन क्यूबिक मीटर प्रति वर्ष होने का अनुमान है। इस उच्च आवश्यकता को पूरा करने के लिए, भारत सरकार भी विभिन्न साधनों और उपायों के जरिए जल निकायों की स्थिति और बेहतर उपचार प्रणालियों में सुधार करने को पूरी तरह प्रतिबद्ध है।

स्रोत: द हिंदू

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मुख्य परीक्षा प्रश्न:

बेंगलुरु में जल संकट के कारणों के समाधान हेतु आगे राह पर चर्चा कीजिए

भारत में जल संकट से निपटने के लिए सरकारी पहलों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए