बिगड़ता पर्यावरण और हमारा उत्तरदायित्व

बिगड़ता पर्यावरण और हमारा उत्तरदायित्व

मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3

( पर्यावरण प्रदूषण एवं संरक्षण )

संदर्भ:

  • पर्यावरण प्रदूषण ने मानव सभ्यता की तमाम गतिविधियों और विकास पर जो प्रभाव पिछले तीन दशकों में डाला है, उसका प्रभाव कई दशकों तक बना रहेगा।

भूमिका:

  • जब से प्रदूषण से होने वाली समस्याएं बढ़ी हैं, केंद्र और राज्य सरकारों ने अपने स्तर से इससे छुटकारा पाने के लिए कई कदम उठाए हैं। प्रश्न यह है कि क्या केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा पर्यावरण प्रदूषण से निजात पाने के लिए आबंटित धन और योजनाओं से पर्यावरण को स्वच्छ बनाया जा सकता है?

विश्व पर्यावरण दिवस 2023:

  • प्रति वर्ष 5 जून को विश्व स्तर पर विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इस दिवस को मनाए जाने का उद्देश्य पर्यावरणीय मुद्दों और उनसे निपटने के लिए की जाने वाली कार्रवाई के बारे में विश्व स्तर पर जागरूकता बढ़ाना है।
  • इस बार विश्व पर्यावरण दिवस का मेज़बान आइवरी कोस्ट है। इस दिवस को #Beat Plastic Pollution के तहत मनाया जा रहा है।
  • जून 1972 में मानव पर्यावरण सम्मेलन या स्टॉकहोम सम्मेलन के बाद, संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने दिसंबर 1972 में 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में नामित किया था। 
  • यह दिन पहली बार 1974 में मनाया गया था, और तब से यह 100 से अधिक देशों में व्यापक रूप से मनाया जाता है।
  • सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा में हमारे ग्रह और अपने प्राकृतिक संसाधनों की स्थायी सुरक्षा सुनिश्चित करने के वैश्विक प्रयास की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
  • सतत विकास लक्ष्य, विशेष रूप से SDG14 और SDG15, पानी के नीचे और भूमि पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा करने पर केंद्रित हैं।

पर्यावरण प्रदूषण और इसका प्रभाव:

  • पर्यावरण प्रदूषण ने मानव सभ्यता की कई गतिविधियों और विकास पर जो प्रभाव पिछले तीन दशकों में डाला है, उसका प्रभाव कितने दशकों तक बना रहेगा, कहना मुश्किल है। दरअसल, यह ऐसा धीमा जहर है जिसका प्रभाव हमारे स्वास्थ्य सहित कई दूसरी गतिविधियों पर पड़ता रहता है। कोरोना के पहले पर्यावरण प्रदूषण कई समस्याओं, संकटों, बीमारियों, विकास में रुकावट, आर्थिक प्रगति में रुकावट और संपूर्ण वायुमंडल को जहरीला बनाने का कारण समझा जाता था। इसका मतलब यह नहीं कि पर्यावरण प्रदूषण के कारण पड़ने वाले प्रभाव, इससे बढ़ रहीं समस्याएं, संकट, बीमारियां, ऋतु चक्र में परिवर्तन जैसी अनगिनत समस्याओं को प्राथमिकता की सूची से निकाल दिया जाए।
  • वर्ष 2015 में हुए पेरिस जलवायु समझौते में निर्धारित संकल्पों के अनुरूप भारत पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन के लिए निरंतर प्रयत्नशील है। जी 20 देशों में भारत अकेला देश है, जो समझौते का अनुपालन कर रहा है। इसके तहत वन क्षेत्रों को बचाना और बढ़ाना शामिल है। वायु प्रदूषण के अलावा जल, ध्वनि, मिट्टी, अग्नि और अति प्रकाश प्रदूषण जैसी समस्याएं भी हैं, जिनके दुष्प्रभावों के प्रभाव से कई स्तरों पर समस्याएं पैदा हुई हैं।
  • पिछले 6 महीनों से पर्यावरण प्रदूषण तीव्र गति से बढ़ा है। ताजा सर्वेक्षण के अनुसार, विश्व में प्रदूषण के मामले में जिन 30 शहरों को शामिल किया गया, उनमें दिल्ली दूसरा सबसे प्रदूषित शहर है। इसके अलावा भारत के 22 दूसरे शहर भी सर्वाधिक दुनिया के प्रदूषित शहरों में शामिल हैं।
  • गौरतलब है कि पर्यावरण बेहतरी के संकल्पों को अमल में लाने के बावजूद प्रदूषण की समस्या में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया है। इसके बावजूद हम पर्यावरण को बेहतर रखने के प्रति संवेदनशील नहीं हैं।
  • वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन, बढ़ती बीमारियों, ग्लोबल वार्मिंग, सुनामी और धरती के बढ़ते तापमान की बड़ी वजह बढ़ते वायु प्रदूषण को माना है।
  • धरती का बढ़ता तापमान और ऋतु चक्र में आए बदलाव की सबसे बड़ी वजह विषैली कार्बन ऊर्जा है। हमारे देश में 2005 की तुलना में कार्बन उत्सर्जन में 21 प्रतिशत की कमी आई है, लेकिन यह बहुत कम है।
  • दिल्ली, गुरुग्राम, आगरा, गाजियाबाद, कानपुर और दूसरे शहरों में हवा अति खराब श्रेणी में लगातार बने रहने का मतलब है पर्यावरण की बेहतरी के लिए और अधिक कारगर कदम उठाने की जरूरत है।
  • पर्यावरण वैज्ञानिकों के अनुसार, देश में 2040 तक स्वच्छ ऊर्जा की मांग आज की तुलना में तीन गुना बढ़ जाएगी।
  • सर्वेक्षणों से पता चलता है कि देश के कई राज्य जहां यूरिया, अमोनिया, जिंक सल्फेट और कीटनाशक बनाने के कारखाने हैं, जिनकी चिमनियों से तरह-तरह की जहरीली गैसें निकलतीं हैं, इनसे बुरी तरह से पर्यावरण खराब होता है।
  • फूलपुर और आंवला में यूरिया बनाने के बहुत बड़े कारखाने हैं। इन कारखानों से निकले जहरीले पानी और गैस की वजह से तमाम समस्याओं से लोगों को रूबरू होना पड़ रहा है।
  • बिहार में बहने वाली कई नदियों और कोलकाता में हुगली नदी डेढ़ सौ से ज्यादा चर्म, कपड़ा, कागज, पटसन, शराब और दूसरे आधुनिक उद्योगों के उच्छिष्टों की वजह से इतनी अधिक प्रदूषित हो गई है कि इसे हाथ से छूना बीमारी को बुलाने जैसा लगता है।
  • इसी तरह भारत-नेपाल को बांटने वाली सरीसवा नदी नेपाल के उद्योगों से निकले अपशिष्टों के कारण बहुत अधिक प्रदूषित हो गई है। गौरतलब है कि सरीसावा नदी सदियों से सौ से अधिक गांवों के लिए जीवन यापन का साधन बनी हुई थी। लेकिन चर्मशोधक कारखानों, शराब फैक्ट्रियों और चीनी मिलों से निकले जहरीले पानी और उच्छिष्टों की वजह से अब यह मौत का कारण बन गई है।
  • पिछले 25 वर्षों में दस हजार से ज्यादा जानवर इसके विषैले पानी के सेवन के कारण मौत का शिकार हुए हैं। यह जल प्रदूषण के कारण हुआ है।
  • गंगा प्रदूषण निवारक समिति के अनुसार, 2033 किलोमीटर इस ऐतिहासिक नदी का 480 किलोमीटर हिस्सा उद्योगों के उच्छिष्टों और अवशिष्टों के लगातार मिलने की वजह से बुरी तरह प्रदूषित हो गया है। कृष्णा, कावेरी, गोदावरी, नर्मदा, ताप्ती, भीमा, साबरमती और यमुना भी उद्योगों से निकलने वाले उच्छिष्टों के कारण बुरी तरह प्रदूषित है। केरल की चलियार नदी रेयान कारखाने से निकले विषैले पानी के कारण इतनी प्रदूषित हो गई है कि इसका पानी किसी इस्तेमाल के काबिल नहीं रह गया है।
  • प्रदूषण की समस्याओं में हवा और जल प्रदूषण सबसे अधिक मनुष्य को प्रभावित कर रही हैं। अगर हवा में घुली विषैली गैसों की बात करें तो दिल्ली में बेंजीन कारसिनोजन की मात्रा तीन से नौ गुना तक बढ़ चुकी है। यह बेंजीन का खतरनाक स्तर है। वैज्ञानिकों के अनुसार, इससे दिल्ली में कैंसर के मामले दिनोंदिन बढ़ते जा रहे हैं।
  • इसी तरह बिहार और झारखंड में विद्युत ताप घरों से निकलने वाली जहरीली गैसों से हर साल 30 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है।
  • दिल्ली, हरियाणा और आंध्र प्रदेश में हर साल हजारों की संख्या में सांस की बीमारियों और कैंसर से हजारों लोग मौत के शिकार हो जाते हैं। मध्य प्रदेश और झारखंड में चूना भट्ठों से निकलने वाली गैसों से सांस से संबंधित कई बीमारियां होने से हजारों लोगों की मौत हो जाती है।
  • मुंबई, लुधियाना, सूरत, कोलकता और देश की दूसरी कई कपड़ा मिलों के मजदूरों में आंख और श्वास संबंधी बीमारियां होना आम बात है। मध्य प्रदेश के सतना, बानमोर, कैमोर, गोपालनगर और जामुल में सीमेंट के बड़े-बड़े कारखाने हैं। कैमोर में देश का सबसे बड़ा सीमेंट का कारखाना है। इससे और दूसरे सीमेंट के कारखानों से चौबीसों घंटे धूल उड़ती रहती है। इनकी चिमनियों से धूल के विषैले कणों के अलावा कार्बन डाइआक्साइड, कार्बन मोनोआक्साइड और सल्फर डाइआक्साइड जैसी जहरीली गैसें निकलती हैं। इनकी वजह से दमा और टीबी के अलावा खून में होमोग्लोबिन की मात्रा कम हो जाती है।
  • राजधानी दिल्ली में जितना प्रदूषण है, उसका 24 फीसद फैक्ट्रियों के माध्यम से होता है। इसके अलावा राजधानी क्षेत्र फरीदाबाद, गुरुग्राम और नोएडा में सैकड़ों फैक्टरियों से जहरीली गैसें निकलतीं हैं। उनसे 100 किलोमीटर की परिधि में नाइट्रोजन, सल्फर डाइआक्साडड, कार्बन मोनो आक्साइड और दूसरी जहरीली गैसों की मात्रा बढ़ जाने से आंख, नाक, दिमाग, फेफड़े ,गले, आंत और पाचन संबंधी बीमारियां आमतौर पर हो जाती हैं।

निष्कर्ष:

  • प्रदूषण से होने वाली समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों ने अपने स्तर से इससे छुटकारा पाने के लिए कदम उठाएं हैं। सवाल उठता है कि क्या केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा पर्यावरण प्रदूषण से निजात पाने के लिए आबंटित धन और योजनाओं से पर्यावरण को स्वच्छ बनाया जा सकता है? जाहिर है, हवा और जल प्रदूषण से निजात पाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए कदमों और पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले कारकों के संबंध में आम लोगों को भी समझाने की जरूरत है।
  • जब तक आम आदमी पर्यावरण पर लापरवाह बना रहेगा और हवा, पानी, मिट्टी और वातावरण में तेज आवाज के माध्यम से ध्वनि प्रदूषण करता रहेगा, तब तक प्रदूषण संबंधी समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता। मात्र कानून बना देने से बात बनने वाली नहीं है। इसलिए वैज्ञानिक आम लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने की सलाह देते रहते हैं। पिछले तीस सालों में दिल्ली सहित भारत के छोटे-बड़े नगरों, शहरों और कस्बों में बढ़ती समस्याओं ने यह जाहिर कर दिया है कि अगर बेहतर जिंदगी जीना है तो प्रदूषण को कम करना होगा।
  • आवश्यकता इस बात की है कि हम पर्यावरण और अपने हित में प्रदूषण करने वाले कारकों को कम से कम उपयोग करें और दूसरों को भी इसके लिए जागरूक करें। यानी बढ़ती पर्यावरण की समस्याओं को अति गंभीरता से लेना होगा। तभी हमारा पर्यावरण सुरक्षित रहेगा और हम भी सुरक्षित रहेंगे।

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मुख्य परीक्षा प्रश्न:

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