भारत में ग्लेशियर बचाने के लिए उच्च स्तरीय समिति बनाने की मांग

भारत में ग्लेशियर बचाने के लिए उच्च स्तरीय समिति बनाने की मांग

मुख्य परीक्षा सामान्य अध्ययन:3

(पर्यावरणसे संबंधित मुद्दे एवं चुनौतियां)

संदर्भ:

  • पिछले कुछ वर्षो के दौरान देश में ग्लेशियर पिघलने की घटनाओं में तेजी आई है।
  • हिमालयी क्षेत्रों में हिमनदों, हिम नद झीलों और संभावित हिमनद झीलों के फटने से बाढ़ की घटनाएं बढ़ी हैं। इस चिंता से भविष्य में निपटने के लिए हाल ही में संसद की विशेष समिति ने केंद्र सरकार को उच्च स्तरीय समिति बनाने की मांग की है।

मुख्य बातें :

  • इसस्थितिसेभविष्यमेंनिपटनेकेलिएजलशक्तिमंत्रालयकीविशेषसमितिनेकेंद्रसरकारसेसिफारिशकीहै।
  • यह रिपोर्ट जल शक्ति मंत्रालय की जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग ने तैयार की है और समिति के सभापति परबतभाई सवाभाई पटेल ने लोकसभा के पटल पर इसे पेश किया गया है।

विशेष समिति की सिफारिशें

  • इससमिति में लोकसभा व राज्यसभा के कुल 31 सदस्य शामिल थे।
  • इसके तहत ग्लेशियर को बचाने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन होना चाहिए और हिमालय क्षेत्र की निगरानी को बढ़ाना चाहिए।
  • इन पहल से इन प्राकृतिक आपदाओं से लड़ने का रास्ता निकाला जा सकेगा।
  • एक पृथक समर्पित पर्वत संकट और अनुसंधान संस्थान की स्थापना की जानी चाहिए ताकि इस जगह का एक विस्तृत डाटा आंकलन उपलब्ध हो और पूर्व चेतावनी की व्यवस्थाओं को लागू किया जा सके।
  • इसके अतिरिक्त हिमनद अनुसंधान के लिए पर्याप्त बजटीय आबंटन किए जाने की आवश्यकता है, इसकी मदद से धन की कमी से अनुसंधान संबंधित गतिविधियों को रोकने बचा सकेगा।

ग्लेशियर पिघलने मुख्य कारण

  • समिति ने बताया कि उसे भारतीय भू वैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआइ) ने बताया कि भारतीय हिमालयी क्षेत्र में 9775 हिमनद है। इसके अलावा कुल 1306.1 घन किमी बर्फ की मात्रा सिंधु, गंगा, और ब्रह्मपुत्र के हिमनदित घाटियों में संरक्षित है।
  • हालांकि सरकार के पास अलग से बर्फ और बर्फ के पानी की मात्रा उपलब्ध नहीं है।
  • ग्लेशियर पिघलने की मुख्य वजह हिमालयी काराकोरम क्षेत्र का गर्म होना : समिति ने रिपोर्ट में बताया है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) ने जानकारी दी है कि हिमालयी काराकोरम क्षेत्र वैश्विक औसत से 0.5 डिग्री सेल्सियस की दर से गर्म हो रहा है। जिससे वर्षा और हिमपात की घटनाओं से बुनियादी ढांचे को भी नुकसान होगा।
  • हिमालयी क्षेत्र में छोटे हिमनद जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील हैं और उनकी सिकुड़न दर बड़े हिमनद की तुलना में अधिक है।
  • इस वजह से वर्ष 2006 से 2018 के बीच किए गए अनुमानों के अनुसार वैश्विक औसत समुद्र स्तर लगभग 3.7 मिमी प्रतिवर्ष की दर से बढ़ रहा है।

हिमालयी ग्लेशियर के बारे में

  • हिमालय पर्वत शृंखला, अंटार्कटिका और आर्कटिक के बाद दुनिया में बर्फ और हिम का तीसरा सबसे बड़ा भंडार है।
  • हिमालय क्षेत्र में 600 बिलियन टन बर्फ कायह भंडार दो हज़ार किलोमीटर में विस्तारित है।
  • हिमालयीक्षेत्रमें9775 हिमनद ग्लेशियर लगभग 800 मिलियन लोगों के लिये सिंचाई, जलविद्युत और पीने के पानी के मुख्यस्रोतहैं।
  • भारत सहितपाकिस्तान और बांग्लादेश में 750 मिलियन से अधिक लोग हिमालय के हिमनदोंसे निकलने वाली नदियों से पानी प्राप्त करते हैं।
  • हिमालय क्षेत्रमें स्थित गंगोत्री ग्लेशियर इस क्षेत्र के सबसे बड़े ग्लेशियरों में से एक है जिससे गंगा नदी निकलतीहै। यह नदी भारत सहित बांग्लादेश की कृषि अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में सहयोग करती है

ग्लेशियरोंके पिघलने के प्रमुख कारण

  • ग्लेशियर पिघलने के पीछे मुख्य कारण मानवीय गतिविधियों को माना जाताहै।
  • कार्बन डाईऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से बढ़ते तापमान के कारण हिमनद तेजी से पिघल रहे हैं ।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार,कार्बन डाईऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों के तीव्रउत्सर्जन की इस दर से वर्ष 2040 की गर्मियों तक आर्कटिक क्षेत्र में बर्फ पूरी तरह समाप्त हो जाएगी
  • जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली ग्लोबल वार्मिंग को भी ग्लेशियरों के पिघलने का एक बड़ा कारण माना जाता है।
  • स्थानीय वायु प्रदूषण के साथ-साथ पहाड़ों में तेजी से बढ़ती व्यावसायिक गतिविधियों के कारण हिमनदों के पिघलने की दर बढ़ी है।
  • हिमालय क्षेत्र में बढ़तीपर्यटक गतिविधियोंसे हिमनदों के आस-पास क्षेत्र की पारिस्थितिकी काप्रभावित होना भी एक मुख्य कारण रहा  है।
  • वनों के अंधाधुंध कटाई से पारिस्थितिकीय तंत्र प्रभावित हुआहै जिसने ग्लेशियरों के पिघलने में योगदान दिया है।

ग्लेशियरों के पिघलने का प्रभाव:

  • नदियों, झीलों और समुद्र जैसे पानी के अन्य स्रोतों के जलस्तर में अचानक वृद्धि हो जाना।
  • ग्लेशियरों के पिघलने से जैव विविधता को भारी क्षति पहुंचतीहै और जीव-जंतुओं के आवास नष्ट हो जाते हैं।
  • पानी का बढ़ता तापमान और जलस्तर समुद्री जैव विविधता के लिए खतरा बन जाता है यह समुद्र के सभी जलीय जंतुओं एवं जलीय पादपों को प्रभावित करता है।
  • इसका प्रभाव प्रवाल भित्तियों पर भी पड़ता है, जिन्हें प्रकाश संश्लेषण के लिये सूर्य की रोशनी की आवश्यकता होती है, लेकिन जब जलस्तर में वृद्धि होती है तो सूर्य का प्रकाश उन तक पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुँच पाता।
  • ग्लेशियरों के पिघलने से ताज़े पानी की मात्रा में कमी आने की संभावना बढ़ जाती है।

ग्लेशियरोंकामहत्व

  • ग्लेशियरों की तलछट फसलों के लिये उपजाऊ मृदा प्रदान करती है।
  • रेत और बजरी का उपयोग कंक्रीट और डामर बनाने के लिये किया जाता है।
  • ग्लेशियर मीठे पानी का सबसे बड़ा स्रोत हैं। बहुत सी नदियाँ पानी के लिये ग्लेशियरों की बर्फ पर निर्भर करती हैं।
  • विश्व की अधिकांश झीलों के बेसिन का निर्माण ग्लेशियरों की वजहसे ही होता है।
  • पृथ्वी और महासागरों के लिये बर्फ एक सुरक्षा कवच की तरह काम करती है। यह अतिरिक्त ऊष्मा को वापस अंतरिक्ष में भेजकर पृथ्वी को ठंडा रखती है।
  • ग्लेशियर कई सौ से लेकर कई हज़ार साल पुराने हो सकते हैं, जिससे इस बात का वैज्ञानिक रिकॉर्ड मिल जाता है कि समय के साथ जलवायु में किस प्रकार परिवर्तन हुए।

निष्कर्ष:

  • हिमनदों के पिघलने की दर को कम करने के लिए दुनियाभर के सभी देशों को एक ठोस रणनीति पर काम करना चाहिए ताकि हिमनदों पर आश्रित लाखों लोगों की आजीविका प्रभावित न हो।

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