भारत में गरीबी की वास्तविक स्थिति

 

भारत में गरीबी की वास्तविक स्थिति

मुख्य परीक्षा:सामान्य अध्ययन प्रश्न 3

(भारत में गरीबी की स्थिति)

10 अगस्त,2023

भूमिका:

  • नीति आयोग के अनुसार, वर्तमान में देश में 13.5 करोड़ से अधिक लोग गरीब नहीं रहे हैं। गरीबी बढ़ने की रफ्तार 47 से घटकर 44 फीसद रह गई है। जबकि देश में गरीबी की वास्तविक स्थिति कुछ और है।

गरीबी से संबंधित नीति आयोग के आंकड़े:

  • उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, ओडिशा और राजस्थान में गरीबों की संख्या तेजी से कम हो रही है। आकड़ों में यह गिरावट सबसे ज्यादा ग्रामीण क्षेत्रों में चित्रित की गई है, जिसके मुताबिक, गरीबी 32.59 फीसद से घटकर 19.28 फीसद हो गई हैं
  • यह शहरों में भी 8.65 फीसद से घटकर 5.27 फीसद हो गई है।
  • हालांकि रिपोर्ट में यह भी स्वीकार किया गया है कि देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा फिलहाल, पोषण, स्वास्थ्य शिक्षा आदि बुनियादी जरूरतों के लिए जूझ रहा है।

भारत में गरीबी की वास्तविक स्थिति:

आक्सफैम, 2023 रिपोर्ट

  • 'आक्सफैम (जनवरी 2023 में) आई रिपोर्ट भारत में गरीबी की तो कुछ और ही हकीकत बयान कर रही है।
  • इस रिपोर्ट के अनुसार इस समय पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा गरीब भारत में हैं, जिनमें से 22.89 करोड़ लोग तो असहनीय गरीबी में जी रहे हैं
  • जबकि देश में अरबपतियों की संख्या में 62.7451 फीसद का इजाफा हो गया है। है न अचरज की बात  एक साथ, गरीबी घटने और अमीरों की संख्या बढ़ने के इस विषम अनुपात पर गहराई से नजर दौड़ाएं तो कुछ और ही सच्चाई सामने आती है।

पावटी ऐंड शेयर्ड प्रास्पैरिटी, 2022

  • विश्वबैंक की 'पावटी ऐंड शेयर्ड प्रास्पैरिटी, 2022' रपट के अनुसार, बीते दो वर्षों में देश के 5.6 करोड़ लोग अपनी निम्न मध्यवर्ग की हैसियत से फिसल कर गरीबी रेखा के नीचे पहुंच गए हैं।
  • दुनिया भर में जो गरीबों की कुल संख्या 7.1 करोड़ बढ़ी है, उनमें से 80 फीसद तो अकेले भारत के हैं।
  • भारत की अत्यंत विषमतापूर्ण अर्थव्यवस्था का आकलन करने वाली 'विश्व असमानता रिपोर्ट' बताती है कि देश के कमजोर, वंचित परिवारों की नई पीढ़ी का भविष्य तेजी से असुरक्षित हो रहा है।
  • शीर्ष दस फीसद प्रभुवर्ग राष्ट्रीय आय का 57 फीसद व्यय कर रहा है और इस दस फीसद आबादी के शीर्ष एक फीसद अमीर 22 फीसद आय के मालिक बन चुके हैं, जिससे राष्ट्रीय आय में निचले स्तर के 50 फीसद की हिस्सेदारी सिमट कर सिर्फ 13 फीसद रह गई है।

बुनियादी कारण:

  • ऐसे हालात के लिए कई एक बुनियादी कारण हैं, जिन्हें यहां रेखांकित किया जा सकता है।
  • भयावह महंगाई और बेकाबू बेरोजगारी इस हालात के बुनियादी कारण हो सकते हैं।
  • देश में बसावटों के जनतांत्रिक ढांचे का गांव और शहर, दो इकाइयों में विभाजित होना, आधारभूत संरचनाओं में भारी अंतर होना
  • हठधर्मी योजनाओं, आर्थिक उपक्रमों में अदूरदर्शिता-अन्यायसंगति के चलते, सभ्य-असभ्य विकास और पिछड़ेपन होना।
  • श्रमबल, जमीन, पशुधन, अन्न, दूध, फल, सब्जियों आदि की बिक्री के लिए गांवों के किसानों का शहरी अनुत्पादक तंत्र पर निर्भर रहना
  • श्रम कानूनों को लागू करने में सरकार की उदासीनता और अनिच्छा
  • जीवन यापन के मुख्य आधार गांवों के उत्पादक वर्गों को कारपोरेट महाशक्तियों की सहमति और साझेदारी द्वारा नियंत्रित होना,
  • बाजार पोषित आधुनिक विकास-प्रबंधन के कारण देश में गरीबी में बढ़ोत्तरी होना।
  • अभावग्रस्त लोगों की संख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी होना
  • वर्ष 2022 में अभाव ग्रस्त लोगों की संख्या 19 करोड़ से बढ़कर 35 करोड़ तक पहुंच चुकी है।
  • देश के सत्तर करोड़ लोगों की संपत्ति से ज्यादा पूंजी इक्कीस अमीरों के हिस्से में होना
  • दोहरे मानदंडों वाली इसी पटकथा के एक और पन्ने पर दर्ज है, कर्मचारियों की तनख्वाह में 3.19 फीसद की कटौती और सीईओ के वेतन में नौ फीसद तक इजाफा होना।
  • जबकि अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की अनुशंसा है कि न्यूनतम वेतन सीमा इस तरह निर्धारित की जाए, जिससे श्रमिक परिवारों की आवश्यक जरूरतें बाधित न हों।
  • इसी असमानता-विषमता की कोख से यह सच्चाई भी पैदा हुई है कि देश के सत्तर करोड़ लोगों की संपत्ति से ज्यादा पूंजी इक्कीस अमीरों के हिस्से हो चुकी है। गुजरे दो वर्षों में ही उनकी कुल संपत्ति में 121 फीसद के इजाफे के साथ, उनकी संख्या भी 101 से बढ़कर 166 हो चुकी है।
  • बेतरतीब विकास, नवशहरीकरण की अवधारणाओं और आधुनिक बाजारों का बोलबाला होना
  • ग्रामस्वराज्य की अवधारणा का धूमिल होना।
  • सहजीवी ताने –बाने का तेजी से तितर-बितर होना, जिसका प्रभाव गहरे तक, खासकर ग्राम्य परिवेश के रिश्ते-नातों को अनुत्पादक बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहा है।
  • मनरेगा कार्यक्रम का पूरी पारदर्शिता के साथ क्रियान्वित न होना
  • खाद्यान्न का भारी मात्रा में आयात किया जाना
  • गांवों, पिछड़े इलाकों से लगातार पलायन का बढ़ना, दूसरी ओर मालदार वर्गों के लोगों का  देश के महानगरों से निकलकर विदेशों में जाकर बस जाना।
  • विकास योजनाओं में अदूरदर्शिता होना।

आगे की राह:

  • हमें विदेशी आयात को कम करना होगा और निर्यात को बढ़ाना होगा
  • सोचिए कि जब पचास लाख टन दाल हम विदेशों से मंगा लेंगे, तो बुंदेलखंड की ‘दालों के कटोरे’ की कैसी गत बन जाएगी। लगभग 130 लाख टन खाने का तेल भी विदेशों से आयात हो रहा है। आयात बिल देश के कुल कृषि बजट से तीन गुना ज्यादा हो चुका है। बीते एक दशक में ही आयात बिल डेढ़ सौ फीसद तक बढ़ गया है।
  • कारपोरेट घरानों और शहरों को समृद्ध बनाने के बजाय देश के किसानों और वंचितों के हितों को पूरा करने लिए सरकार को कार्य करना चाहिए
  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली के स्थान पर ग्राम स्वराज्य की अवधारणा पर जोर दिया जाना चाहिए।
  • कृषि नीतियों के निर्माण हेतु कृषि विशेषज्ञों का पैनल बनाया जाना चाहिए ताकि वह गरीबी को समाप्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण सुझाव दे सके।

निष्कर्ष:

  • देश में अब जय जवान-जय किसान का नारे का प्रभाव खत्म हो चुका है। वर्तमान में देश के नए अरबपतियों की सूची में बत्तीस स्वास्थ्य क्षेत्रों के, सात दवा उद्योग के अमीर शामिल हैं, लेकिन कोई एक भी कृषक शामिल नहीं है। इसीलिए, कभी हमारी समृद्ध संस्कृति के प्रतीक रहे गांवों में गरीबी घटने के दावों पर विश्वास करना आज मुश्किल हो जाता है। यह सब ऊपर-ऊपर थोपने-दिखाने के लिए ‘अमीरी में गरीबी की मिलावट’ जैसा लगता है।

मुख्य परीक्षा प्रश्न

वर्तमान में भारत की आकलित गरीबी, वास्तविक गरीबी से काफी भिन्न है। इस संदर्भ में गरीबी के कारणों को रेखांकित करते हुए अपने सुझाव लिखिए।