भारत में गरीबी और समावेशी विकास

भारत में गरीबी और समावेशी विकास

मुख्य परीक्षा:सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3

(सतत एवं समावेशी विकास)

23 अगस्त, 2023

भूमिका:

  • हाल के वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण संरचनात्मक परिवर्तन हुए हैं। समावेशी विकास एक प्रमुख नीतिगत प्राथमिकता है, जिसके तहत विकास के लाभ को आबादी के एक बड़े हिस्से द्वारा साझा किया जाता है। गरीबी और अन्य असमानताओं को कम करने और तीव्र आर्थिक विकास हेतु समावेशी विकास जरूरी है। गरीबी से संघर्ष में महत्त्वपूर्ण रणनीतियां और नीतिगत हस्तक्षेप के रूप में भौतिक, सामाजिक और आर्थिक बुनियादी ढांचे की उपलब्धता और पहुंच जरूरी है।
  • सतत विकास का एजेंडा भारत सहित दुनिया की सार्वभौमिक आकांक्षाओं की पूर्ति का समतामूलक, समावेशी सामाजिक-आर्थिक विकास का सामूहिक प्रयास है। वैश्विक गरीबी अपने दायरे और तीव्रता के कारण नीति विश्लेषकों के लिए चिंता का सबब रही है।

भारत में गरीबी:

  • दुनियाभर में लगभग आधे गरीब दक्षिण एशिया में रहते हैं। वर्ष 2003 में दक्षिण एशिया में 53.4 करोड़ व्यक्ति वर्ष 2003 में प्रतिदिन एक डालर से कम पर जीवन यापन करते थे, उनमें से 30 करोड़ लोग भारत में रहते थे।
  • वर्ष 2004-2005 में भारत में राष्ट्रीय गरीबी रेखा के अनुमानों में 27.5 फीसद यानी एक चौथाई से अधिक आबादी गरीबी रेखा से नीचे थी।
  • संख्या के हिसाब से, भारत में 30.2 करोड़ गरीब थे, जिनमें एक बड़ा हिस्सा जीवनयापन के जरूरी मानदंडों के अनुसार अति-गरीब था।
  • अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा, प्रतिदिन एक डालर की आय, के हिसाब से भारत की लगभग 34 फीसद आबादी गरीब थी। प्रतिदिन दो डालर की आय को गरीबी सीमा मानने पर, यह लगभग 80 फीसद होगा।
  • वर्तमान में भारत की लगभग 130 करोड़ आबादी में लगभग 60 फीसद, विश्व बैंक की औसत गरीबी रेखा प्रतिदिन 3.10 डालर के आय स्तर से कम पर जीवनयापन करती है, जबकि 21 फीसद यानी लगभग 25 करोड़ आबादी, प्रतिदिन दो डालर आय स्तर से कम पर गुजारा कर रही है।
  • सुरेश तेंदुलकर समिति के अनुसार, 43 करोड़ यानी 37.2 फीसद आबादी गरीबी रेखा के नीचे थी।

अंतरराष्ट्रीय एजेंसी आक्सफैम

  • नवउदारवाद के दौर में जैसे-जैसे भारत एक वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में उभरा, देश में अमीर और अमीर होते गए, गरीब अधिकतर गरीब ही रह गए।
  • अंतरराष्ट्रीय एजेंसी आक्सफैम की वर्ष 2017 की रपट के अनुसार, भारत में दस फीसद अमीरों के पास देश की 80 फीसद संपत्ति, 16 लोगों की संपत्ति 60 करोड़ लोगों की संपत्ति के बराबर तथा शीर्ष एक फीसद के पास देश की लगभग 58 फीसद संपत्ति थी।

गरीबी उन्मूलन हेतु भारत सरकार के प्रयास:

  • आर्थिक विकास, गरीबी कम करने का एक प्रभावी उपकरण है, पर काफी हद तक यह विकास के ढर्रे और असमानता के स्तर पर भी निर्भर करता है।
  • भारत जैसे देशों की बुनियादी प्राथमिकताओं में गरीबी उन्मूलन सतत विकास का एक महत्त्वपूर्ण लक्ष्य है। इसमें वर्ष 2030 तक सभी उम्र की बहुआयामी गरीब आबादी के हिस्से को कम से कम आधा करना है।

बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI)

  • गरीबी उन्मूलन की कोशिशों में भारत के नीति आयोग ने राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) पर आधारित बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) तैयार किया है, जो राष्ट्रीय, 36 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों और 707 प्रशासनिक जिलों के बहुआयामी गरीबी की पहचान करता है।
  • यह अपनी तरह का पहला सूचकांक है, जो स्वास्थ्य और पोषण, शिक्षा और जीवनस्तर के आयामों में अभावों को एक साथ मापता है।
  • ताजा राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक वर्ष 2019-21 के एनएफएचएस-5 के आधार पर तैयार किया गया है तथा वर्ष 2015-16 की तुलना में बहुआयामी गरीबी कम करने में भारत की सफलता को दिखाता है।
  • यह ‘आक्सफर्ड पावर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इनिशिएटिव’ और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा विकसित पद्धति के आधार पर राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर पर गरीब जनसंख्या अनुपात और बहुआयामी गरीबी गहनता को प्रस्तुत करता है।
  • गरीबी का आकलन मुख्यतया आय स्तर पर निर्भर रहता था। पर एमपीआइ, स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवनस्तर में बहुआयामी अभावों को देखता है।
  • गरीबी के गैर-आय आयाम जैसे शिशु और मातृत्व मृत्यु दर, साक्षरता स्तर और लैंगिक असमानताएं, गहन गरीबी को प्रदर्शित करते हैं।
  • एमपीआइ के तीनों समान महत्त्व वाले आयाम स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर में कुल बारह संकेतक समाहित हैं।
  • यह गरीबी उन्मूलन की कोशिशों के लिए तथ्य आधारित निर्णय लेने, नीति निर्माण और लक्षित हस्तक्षेप में मदद कर सुनिश्चित करेगा कि ‘कोई भी पीछे न छूटे’।
  • एमपीआइ के साथ, भारत गरीबी की जटिलताओं की गहरी समझ हासिल कर समावेशी विकास सुनिश्चित कर सकेगा।
  • दुनिया में छठे हिस्से की आबादी के साथ भारत समावेशी विकास में अपनी भूमिका और जिम्मेदारी समझता है। पहले एमपीआइ 2015-16 में लगभग 64.5 करोड़ यानी 55.4 फीसद भारतीय गरीबी रेखा से नीचे थे।
  • भारत ने अपनी समष्टि सामाजिक-आर्थिक नीतियों के जरिए आवास, बिजली, खाद्यान्न, स्वच्छता जैसी आवश्यक सेवाओं तक पहुंच सुनिश्चित करने तथा वंचित वर्गों की सुरक्षा हेतु सामाजिक सुरक्षा उपायों को प्राथमिकता दी है। इससे भारत में बहुआयामी गरीबों की हिस्सेदारी में 9.89 फीसद अंकों की भारी गिरावट के साथ वर्ष 2015-16 में 24.85 फीसद से घटकर 2019-2021 में 14.96 फीसद हो गई। एमपीआइ अंकों में सुधार दिखाता है कि भारत में बहुआयामी गरीबी लगभग आधी रह गई।
  • वर्ष 2015-16 और 2019-21 के मध्य 13.6 करोड़ आबादी बहुआयामी गरीबी से बाहर आ गई है।
  • साथ ही, गरीबी की तीव्रता, जो बहुआयामी गरीबी में रहने वाले लोगों के बीच औसत अभाव को मापती है, वह 47.14 फीसद से घटकर 44.39 फीसद हो गई।
  • बहुआयामी गरीबों के अनुपात में सबसे तेज गिरावट उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, ओड़ीशा और राजस्थान में देखी गई।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में बहुआयामी गरीबों में सबसे तेज गिरावट के साथ वर्ष 2015-16 में 32.59 फीसद की तुलना में वर्ष 2019-21 में 19.28 फीसद रह गई।
  • शहरी क्षेत्रों में गरीबी वर्ष 2015-16 में 8.65 फीसद से घटकर वर्ष 2019-21 में 5.27 फीसद हो गई। बहुआयामी गरीबी में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच अब भी असमानताएं मौजूद हैं। पर, साथ ही यह भी सच है कि शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों के एमपीआइ में तेजी से कमी देखी गई।
  • वर्ष 2015-16 में सर्वाधिक गरीब आबादी वाले राज्य बिहार, के एमपीआइ मूल्य में सबसे तेज गिरावट देखी गई।
  • वर्ष 2019-21 में बहुआयामी गरीबी अनुपात 51.89 फीसद से घटकर 33.76 फीसद हो गया। उसके बाद सबसे तेज गिरावट मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश में क्रमश: 20.63 और 22.93 फीसद है।
  • संख्या की दृष्टि से पिछले पांच वर्षों में 3.43 करोड़ लोगों के बहुआयामी गरीबी से बाहर निकलने के साथ उत्तर प्रदेश प्रथम, 2.25 करोड़ के साथ बिहार द्वितीय तथा मध्यप्रदेश 1.36 करोड़ के साथ तीसरा सबसे बड़ा राज्य है।

निष्कर्ष:

  • एमपीआइ में गिरावट में पोषण, स्कूली शिक्षा में सुधार, स्वच्छता और खाना पकाने के ईंधन की सुलभता की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। विगत पांच वर्षों में सभी बारह संकेतकों सहित तीनों आयामों- स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवनस्तर में तेज सुधार देखा गया है। कुल मिलाकर पोषण, स्कूली शिक्षा के वर्ष, स्वच्छता आदि में सुधार से एमपीआइ मूल्य में गिरावट आई है, हालांकि इसमें अभी और गुंजाइश है।
  • साथ ही महत्त्वपूर्ण है अर्थव्यवस्था का बेहतर समष्टि आर्थिक प्रबंधन, जो गरीबी के आकार में एक झटके में बदलाव की क्षमता रखता है। प्रगतिशील और स्थायित्व भरे समष्टि अर्थतंत्र में राष्ट्रीय एमपीआइ गरीबी अनुमान के मौजूदा तरीकों तथा गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कर कार्यक्रम कार्यान्वयन से प्राप्त सबक के आधार पर रणनीतिक हस्तक्षेप के लिए विकल्प सुझाने में सक्षम बनाएगी। अब भी गरीबी कम करने हेतु बुनियादी ढांचे, वित्तीय समावेशन और सामाजिक क्षेत्र में सार्थक हस्तक्षेप की जरूरत है।

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मुख्य परीक्षा प्रश्न

सतत एवं समावेशी विकास के सन्दर्भ में,भारत में गरीबी की स्थिति को स्पष्ट कीजिए