डिजिटल तकनीक से बेरोजगारी पर नियंत्रण

 

डिजिटल तकनीक से बेरोजगारी पर नियंत्रण

GS-3: भारतीय अर्थव्यवस्था  (यूपीएससी/राज्य पीएससी)

 

सन्दर्भ:

भारत में बेरोजगारी की समस्या का समाधान एक जटिल कार्य है, लेकिन सतत विकास के लिए यह आवश्यक है।

  • मांग और आपूर्ति के दोनों पक्षों को व्यापक नीतिगत दृष्टिकोण अपनाना, कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करना और समावेशिता सनिश्चित करना महत्त्वपर्ण कदम हैं।
  • नवीन वित्तपोषण तंत्रों और डिजिटल तकनीकों को अपनाने से इस चुनौती से निपटने में मदद मिल सकती है।

बेरोजगारी के बारे में:

  • बेरोज़गारी उस स्थिति को संदर्भित करती है जहां सक्रिय रूप से रोजगार की इच्छा रखने वाला व्यक्ति नौकरी प्राप्त करने में असमर्थ रहता है।
  • इसका प्रयोग प्राय: समग्र आर्थिक कल्याण के संकेतक के रूप में किया जाता है।
  • राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) विशिष्ट गतिविधियों के आधार पर रोजगार और बेरोज़गारी को परिभाषित करता है:
  • नियोजित (Employed): ऐसे व्यक्ति जो वर्तमान में आर्थिक गतिविधियों में लगे हुए हैं।
  • बेरोज़गार (Unemployed): ऐसे व्यक्ति जो कार्य की तलाश/खोज कर रहे हैं, लेकिन वर्तमान में उनके पास रोजगार नहीं है।
  • कार्य की तलाश न करना या उपलब्ध न होना: ऐसे व्यक्ति जो न तो सक्रिय रूप से रोजगार की तलाश कर रहे हैं और न ही रोजगार के लिए उपलब्ध हैं। नियोजित और बेरोज़गार व्यक्तियों का संयोजन (combination) को श्रम बल (Work Force) कहा जाता है, और बेरोज़गारी दर की गणना ऐसे श्रम बल के प्रतिशत के रूप में की जाती है, जिसके पास कार्य नहीं हैं।
  • गणना का सूत्र इस प्रकार है:
  • बेरोज़गारी दर = (बेरोज़गार श्रमिकों की संख्या/कुल श्रम बल) × 100

आधिकारिक आंकड़े:

  • आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि राष्ट्रीय बेरोजगारी दर (the national unemployment rate) 2017-18 में 6.1% से घटकर 2022-23 में 3.2% हो गई है।
  • समग्र बेरोजगारी दर में गिरावट के बावजूद, उच्च शिक्षित युवाओं को रोजगार हासिल करने में असंगत चुनौतियों (disproportionate challenges) का सामना करना पड़ता है, जो भारत की अर्थव्यवस्था में एक लगातार संरचनात्मक मुद्दा (structural issue) बना हुआ है।
  • 1993-94 से 2022-23 तक के विश्लेषण से पता चलता है कि उच्च शिक्षा वाले व्यक्तियों को लगातार उच्च बेरोजगारी दर (High unemployment rate) का सामना करना पड़ा है, विशेष रूप से 2022-23 में स्नातकों के लिए 13% तक पहुंच गया है।
  • 18 से 29 वर्ष की आयु के युवा स्नातकों को विशेष रूप से उच्च बेरोजगारी दर का सामना करना पड़ा, 2017-18 में लगभग 36% को बेरोजगारी की लंबी अवधि का सामना करना पड़ा, जो 2022-23 तक घटकर 27% हो गया, लेकिन पिछली अवधि की तुलना में अभी भी अधिक है।
  • आधिकारिक आंकड़ों और वर्तमान परिदृश्य दोनों से स्पष्ट है कि भारत लगातार रोजगार संकट से जूझ रहा है।

श्रम बाजार

  • भारत के श्रम बाजार में रोजगार के दो प्राथमिक रूप शामिल हैं।
  • पहला, वैतनिक रोजगार, जो नियोक्ताओं के लाभ कमाने की इच्छा से प्रेरित होता है, और दूसरा, स्व- रोजगार।
  • यहां मुख्य चिंता का विषय वैतनिक रोजगार अर्थात औपचारिक क्षेत्र है जिसमें नियमित वेतन या अपेक्षाकृत बेहतर वेतन वाली नौकरियां शामिल हैं।

श्रम की मांग में कमी के कारण:

  • ऐतिहासिक रूप से भारत को खुली बेरोजगारी और अनौपचारिक रोजगार के उच्च स्तर का सामना करना पड़ा है जिसे सामान्यत 'प्रच्छन्न बेरोजगारी' कहा जाता है।
  • गैर- कृषि क्षेत्र में वेतनभोगी श्रमिकों की रोजगार में वृद्धि दर पिछले चालीस वर्षों में स्थिर रही है, जिसका मुख्य कारण औपचारिक क्षेत्र में अवसरों की कमी को माना जा सकता है।
  • औपचारिक गैर-कृषि क्षेत्र में श्रम की मांग दो प्रमुख कारकों से प्रभावित होती है। पहला, यह आर्थिक वृद्धि से जुड़े फर्मों द्वारा बेचे जा सकने वाले उत्पादन पर निर्भर करता है।
  • दूसरा, यह तकनीकी उन्नति से प्रभावित होता है जो किसी इकाई उत्पादन के लिए आवश्यक श्रमिकों की संख्या को निर्धारित करता है।

रोजगार वृद्धि दर प्रभावित होना

  • उत्पादन वृद्धि दर और श्रम उत्पादकता वृद्धि दर। भारत में, 2000 के दशक में तीव्र जीडीपी वृद्धि दर के बावजूद, औपचारिक गैर-कृषि क्षेत्र में रोजगार वृद्धि दर अप्रभावी रही। इस घटना को रोजगारविहीन संवृद्धि कहा जाता है।
  • इस प्रकार उच्च आर्थिक वृद्धि आवश्यक नहीं कि उच्च रोजगार वृद्धि में परिवर्तित हो।
  • भारत में रोजगारविहीन संवृद्धि आर्थिक नीतिगत चुनौती को गुणात्मक रूप से अन्य देशों की तुलना में भिन्न बनाती है।
  • यह केवल उच्च सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि के विषय में ही नहीं है बल्कि यह  उन विशिष्ट कारकों के बारे में भी है जो उत्पादन वृद्धि और रोजगार वृद्धि के बीच सकारात्मक सहसंबंध में बाधा उत्पन्न करते हैं।
  • इसी कारण उच्च काल्डोर-वडून गुणांक भारत में अन्य विकासशील देशों की तुलना में श्रम उत्पादकता वृद्धि दर व उत्पादन वृद्धि दर के प्रति अधिक संवेदनशील है। इसका अर्थ है कि उत्पादन में वृद्धि के बावजूद श्रम की मांग उसके अनुरूप नहीं बढ़ती है।

भारत की रोजगार चुनौती के लिए क्या जरूरी है?

  • विशेषज्ञों का कहना है कि उपलब्ध आंकडों से स्पष्ट है कि केवल जीडीपी वृद्धि पर ध्यान केंद्रित करना पर्याप्त नहीं है। भारत में बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए जीडीपी वृद्धि के अतिरिक्त रोजगार केंद्रित नीतिगत दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। तभी जाकर बेरोजगारी दर को कम किया जा सकेगा।
  • विशेषज्ञों का कहना है कि बढ़े हुए सार्वजनिक व्यय के साथ राजकोषीय अनुशासन को संतुलित करना, अल्पकालिक रोजगार सृजन और दीर्घकालिक कौशल विकास दोनों को प्राथमिकता देना और श्रम बाजार में समावेशिता सुनिश्चित करना परिवर्तनकारी बदलाव की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम हैं।

सरकार के रोजगार सृजन कार्यक्रम

  • आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना (ABRY)
  • प्रधानमंत्री रोज़गार प्रोत्साहन योजना (PMRPY)
  • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA)
  • आजीविका - राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM)
  • पं. दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना (DDU-GKY)
  • पीएम-स्वनिधि योजना(PM-SNY)
  • प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY)

मांग और आपूर्ति को संतुलित करने हेतु आगे की राह:

  • व्यापक आर्थिक पुनर्संरचना: रोजगार को केंद्रीय विषय के रूप में शामिल करने के लिए व्यापक आर्थिक ढांचे का पुनर्मूल्यांकन आवश्यक है।
  • श्रम-गहन क्षेत्रों को बढ़ावा देना: आर्थिक वृद्धि को रोजगार सृजन के साथ सम्बद्ध करने के लिए श्रम-गहन क्षेत्रों को बढ़ावा देना आवश्यक है।
  • कार्यबल की कौशल वृद्धि: बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के माध्यम से कार्यबल की गुणवत्ता में सुधार करना आवश्यक है।
  • कौशल अंतराल को कम करना: लक्षित प्रशिक्षण कार्यक्रमों और उद्योगों के साथ साझेदारी के माध्यम से कौशल अंतराल को कम करना आवश्यक है।
  • सार्वजनिक रोजगार सृजनः श्रम की मांग को प्रोत्साहित करने के लिए प्रत्यक्ष सार्वजनिक रोजगार सृजन पहल लागू करना जरूरी है।

निष्कर्ष:

सार्थक रोजगार के बिना आर्थिक विकास असमानता को बढ़ावा देता है और विकास को कमजोर करता है।

अंततः, नवीन समाधानों को अपनाकर और व्यापक आर्थिक नीति ढांचे की पुनर्कल्पना करके, भारत रोजगारहीन वृद्धि की चुनौतियों का समाधान कर सकता है।

डिजिटल तकनीक की व्यापकता आटोमेशन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे कारणों से पिछले एक दशक-डेढ़ दशक में अनेक क्षेत्रों में नौकरियों का परिदृश्य बदल गया है और इसमें निरंतर बदलाव भी जारी है। सरकार को इस परिवर्तन को निकटता से समझते हुए इस पर ध्यान देना चाहिए।

स्रोत: द हिंदू

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मुख्य परीक्षा प्रश्न

डिजिटल तकनीक से बेरोजगारी दर और श्रम बाजार में संतुलन स्थापित किया जा सकता है, चर्चा कीजिए।