‘गिग अर्थव्यवस्था’ में रोजगार के मुक्त अवसर

गिग अर्थव्यवस्था’ में रोजगार के मुक्त अवसर

मुख्य परीक्षा:सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3

(गिग अर्थव्यवस्था)

01 अगस्त, 2023

भूमिका:

  • दुनियाभर के नौजवान इस समय बेरोजगारी से परेशान हैं। भारत जैसे आबादी बहुल देश में रोजगार का संकट कुछ अधिक है। कोविड के दौर में नौकरियों में कटौती का जो सिलसिला दो-ढाई साल पहले शुरू हुआ था, वह कृत्रिम मेधा (एआइ- आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस) के खतरे के मद्देनजर और गहरा गया है। लेकिन गिग अर्थव्यवस्था ने युवाओं को सेवा क्षेत्र में रोजगार को बढ़ावा देकर राहत प्रदान की है।

 गिग अर्थव्यवस्था:

  • यह एक ऐसी आर्थिक प्रणाली है, जिसमें लोग स्वतंत्र होकर काम करते और ठीक-ठाक आय अर्जित करते हैं।
  • ऐसे श्रमिकों को गिग कहा जाता है, जो किसी कंपनी या संगठन से परोक्ष रूप से जुड़ते हैं, लेकिन उन्हें स्थायी कर्मचारी जैसे लाभ हासिल नहीं होते। ऐसे श्रमिकों को स्वास्थ्य, दुर्घटना बीमा और सेवानिवृत्ति वाले कोई लाभ न मिलने के कारण पूरी दुनिया में चिंता फैली हुई है।
  • गिग अर्थव्यवस्था की ओर उल्लेखनीय ध्यान कोविड महामारी के दौर में दिया गया, जब इस अर्थव्यवस्था से जुड़े कर्मचारियों ने एक थमी हुई दुनिया को चलाए रखने का जिम्मा उठाया। हालांकि स्वतंत्र रूप से कुछ पेशे काफी पहले से अस्तित्व में हैं। इनमें लेखन से लेकर फोटोग्राफी आदि दर्जनों कामकाज ‘फ्रीलांसिंग’ शब्द के तहत आते हैं और इनके जरिए लोग काफी धन, सम्मान और सामाजिक सुरक्षा-प्रतिष्ठा आदि हासिल करते रहे हैं।
  • गिग कर्मचारियों वाली रोजगार की यह अपेक्षाकृत एक नई व्यवस्था है, जो दुनिया में पिछले एक दशक के दौरान ज्यादा तेजी के साथ उभरी है।
  • दरअसल, दुनिया भर के नियोक्ता एक नए व्यावसायिक माडल पर काम कर रहे हैं, जिसे ऐप आधारित कैब सेवा- उबर ने लोकप्रिय बनाया है।
  • भारत में इससे संबंधित सरकारी आंकड़े को देखें तो देश के ‘ई-श्रम पोर्टल’ पर एक साल के अंदर 28 करोड़ 62 लाख गिग कर्मियों ने पंजीकरण कराया है। इसका नतीजा यह निकलने को है कि अगले साल तक भारत के कुल कार्यबल का तकरीबन चार फीसद हिस्सा ‘गिग क्षेत्र’ में बदलने वाला है।
  • वित्तीय सेवा देने वाले मंच ‘स्ट्राइडवन’ ने 2023 में जारी रिपोर्ट के अनुसार, भारत में पक्की नौकरी के बजाय संविदा आधारित, फ्रीलांस और अंशकालिक सेवाओं वाले बाजार यानी गिग अर्थव्यवस्था ने साल 2020-21 में सिर्फ अस्सी लाख लोग कार्यरत थे।
  • 2024 तक 2.35 करोड़ श्रमिकों को गिग अर्थव्यवस्था से संबंधित कामकाज मिलने का अनुमान है।
  • भारत में सबसे अधिक ‘गिग श्रमिक’ सेवा क्षेत्र में रखे जा रहे हैं। इसके बाद शिक्षा सेवा और मीडिया-मनोरंजन का स्थान है। इस सूची में पांचवां स्थान ‘ई-कामर्स’ और ‘स्टार्टअप’ का है।
  • इस पर विचार-विमर्श चल रहा है कि कैसे गिग श्रमिकों के हितों का संरक्षण किया जाए।

गिग श्रमिकों के हितों के संरक्षण हेतु कर्नाटक और राजस्थान सरकारों की पहल

  • हाल ही में देश में कर्नाटक सरकार ने गिग कर्मचारियों को दो से चार लाख रुपए का स्वास्थ्य और दुर्घटना बीमा मुफ्त देने का ऐलान किया।
  • इसी तरह राजस्थान ऐसा पहला राज्य है, जिसने ‘गिग श्रमिक विधेयक’ विधानसभा में पेश किया। इसमें गिग श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा की गारंटी देने का प्रयास किया गया है। अगर कोई इस अधिनियम के नियमों का पालन करने में नाकाम रहता है, तो उस पर भारी जुर्माना लगाया जा सकता है।
  • हाल में जी-20 देशों के श्रम और रोजगार मंत्रियों की इंदौर बैठक में भारत के प्रधानमंत्री ने कहा कि गिग प्रणाली वाली अर्थव्यवस्था में युवाओं के लिए रोजगार पैदा करने की अभूतपूर्व क्षमता है।
  • उल्लेखनीय है कि जी-20 की इस बैठक में गिग श्रेणी के कर्मचारियों को पर्याप्त और टिकाऊ सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ उचित रोजगार देने पर जोर दिया गया।
  • गिग अर्थव्यवस्था का सबसे ज्यादा असर देश के सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में होगा।
  • आज के युवा ‘वर्क-लाइफ बैलेंस’ वाली शैली को अपनाने के कारण गिग शैली वाले कामकाज को प्राथमिकता देने लगे हैं।

गिग अर्थव्यवस्था के फायदे:

  • 2017 में किए गए एक विश्लेषण के अनुसार, ‘गिग वर्किंग’ बढ़ने के कारण दस साल बाद घर से पसंदीदा समय के मुताबिक दफ्तर का काम करने का फायदा मिलेगा।
  • कंपनियां को कम से कम लागत में गिग श्रमिकों को चुनने की स्वतंत्रता मिलेगी।
  • इसमें सेवा और सूचना प्रौद्योगिकी वाली कंपनियां को स्थायी और अस्थायी दोनों तरह के कर्मचारी आसानी से मील सकेंगे।
  • विशेष कार्यों हेतु नियोक्ताओं को पेशेवर और प्रशिक्षित कर्मचारी कम कीमत में आसानी से मिल सकेंगे।
  • तेज इंटरनेट सेवा और तकनीकी सुविधाओं के कारण घर से काम करना आसान हो गया है।
  • घर से दूर स्थित दफ्तर आने-जाने में लगने वाले समय और मौसम तथा ट्रैफिक जाम जैसी समस्याओं से बचा जा सकेगा। इससे पर्यावरण प्रदूषित होने की संभावना कम होगी।
  • महिलाओं को कार्य करने हेतु सुरक्षित वातावरण प्रदान करता है।
  • यह अतिरिक्त आय सृजन करने अवसर प्रदान करती है।
  • यह घर और ऑफिस के कार्यों संतुलन बनाने में मददगार है।  

गिग अर्थव्यवस्था के दोष:

  • इस अर्थव्यवस्था में रोजगार अस्थायी होता है।
  • इसमें गिग कार्मिकों को किसी तरह की सामाजिक सुरक्षा नहीं मिलती है।  
  • यह इकोनोमी वेतन में असमानता को बढ़ावा देती है  
  • जिस तरह सरकार सेना में अस्थायी भर्ती कर उन्हें जल्दी सेवा मुक्त करने के पक्ष में है, उसी तरह निजी कंपनियां बाजार में भारी अनिश्चितताओं के कारण कर्मचारियों के प्रति अपने दायित्वों से मुक्त होने के पक्ष में रहती हैं।
  • इसमें सख्त ‘हाईटेक निगरानी’ के कारण स्थायी कर्मचारियों नौकरी छोड़ने को मजबूर होने लगते हैं।

निष्कर्ष:  

  • पूरी दुनिया में स्थायी किस्म की नौकरियां घट रही हैं और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी तकनीकों के कारण स्थायी नौकरियों पर और अधिक दबाव पैदा हो गया है। इसलिए बहुत से युवा स्थायी नौकरी को एक झंझट मान सकते हैं। इसके विपरीत युवाओं को फ्रीलांसिंग वाली अस्थायी नौकरियां देने वाली गिग अर्थव्यवस्था ज्यादा रास आ सकती है, क्योंकि इसमें काम, छुट्टी और वर्क-लाइफ बैलेंस का फैसला खुद उनके हाथ में होता है। इसके साथ जुड़ी अहम समस्या सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य देखभाल की है, जिसके बारे में जी-20 की बैठक में विचार किया गया। अगर गिग नौकरियों में सामाजिक सुरक्षा आदि लाभ मिलने लगेंगे, तो नियोक्ता और कर्मचारी- दोनों के लिए स्थिति बेहतर होगी।

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मुख्य परीक्षा प्रश्न

गिग अर्थव्यवस्था क्या है? इसके लाभ तथा दोषों की विवेचना कीजिए।