हिन्दू वृद्धि दर

हिन्दू वृद्धि दर

मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन-3

(भारतीय अर्थव्यवस्था से संबंधित मुद्दे एवं चुनौतियां)

संदर्भ:

  • हाल ही में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व गवर्नर और अर्थशास्त्री रघुराम राजन ने भारतकीनिम्नआर्थिक विकास दर के संदर्भ में अपनीचिंता व्यक्त की है।

प्रमुख बिंदु:

  • रघुरामराजन ने कहा कि निजी क्षेत्र के कमजोर निवेश, उच्च ब्याज दर और धीमे वैश्विक विकास दर के कारण भारत हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ से खतरनाक रूप से काफी नजदीक है।
  • राजन ने कहा कि पिछले महीने राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा जारी राष्ट्रीय आय के ताजा अनुमान से पता चलता है कि तिमाही वृद्धि में सिलसिलेवार मंदी चिंताजनक है।
  • आंकड़ेबताते हैं कि चालू वित्तीय वर्ष की तीसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद दूसरी तिमाही में 6.3 प्रतिशत और पहली तिमाही में 13.2 प्रतिशत से घटकर 4.4 प्रतिशत पहुंच गई है। जबकि, पिछले वित्तीय वर्ष वर्ष की तीसरी तिमाही में विकास दर 5.2 फीसदी थी।
  • रघुराम राजन ने कहा कि मैं अनुक्रमिक मंदी के बारे में चिंतित हूं। आरबीआई अभी भी विकासदरों में वृद्धि कर रहा है जबकिवर्ष के अंत में वैश्विक विकास दर के कमहोने की संभावना है। उन्होंने कहा, सबसे बड़ा सवाल यह है कि वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारतीय विकास दर क्या होगी। अगर अगले वर्ष यह विकास दर पांच प्रतिशत भीरहती, तो यह भारत के लिए एक अच्छी बात होगी।
  • उन्होंने कहा कि सरकारद्वारा जो भी विकासात्मक कार्य किए गए हैं उनसेअभी तक कोईलाभ नहीं मिला है।
  • हाल ही में मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने पिछले वर्षों के लिए राष्ट्रीय आय के अनुमानों के ऊपर की ओर संशोधन के लिए धीमी तिमाही वृद्धि को जिम्मेदार मानाथा।

क्या है हिंदू ग्रोथ रेट:

  • भारतीय अर्थव्यवस्था की 1950 से लेकर 1980 तक निम्न वृद्धि दर को हिन्दू वृद्धि दर कहा जाता है।
  • हिंदू ग्रोथ रेट 1950 से 1980 के दशक तक कम भारतीय आर्थिक विकास दर का वर्णन करने वाला एक शब्द है।
  • यह शब्द वर्ष1978 में एक भारतीय अर्थशास्त्री राज कृष्ण द्वारा धीमी वृद्धि दरका वर्णन करने के लिए गढ़ा गया था।
  • यहां इस शब्द का हिन्दू धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। दरअसल, 'हिन्दू रेट ऑफ ग्रोथ' इकोनोमिक्स की एक थ्योरी है। आर्थिक मंचों पर अक्सर इस शब्दावली का उपयोग होता है। बात आजादी के बाद की है। सन 1947 में देश आजाद हुआ तो उस समय भारत की आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं थी। अधिकतर लोग खेती पर आश्रित थे। समाज में भयंकर गरीबी थी। इंफ्रास्ट्रक्चर के नाम पर सिर्फ रेलवे था। सड़कों का अभाव था। लेकिन देश मेंइन चीजों का निर्माण धीरे-धीरे होने लगा। इसलिए आजादी के बाद तीन दशकों (1950 से 1980) तक देश का ग्रोथ रेट बेहद कम रहा। इस अवधि में देश की औसत वार्षिक आर्थिक वृद्धि दर महज 3.5 फीसदी के आस-पास थी। इसी धीमी विकास दर को जाने माने अर्थशास्त्री प्रोफेसर राज कृष्ण 1978 में 'हिन्दू रेट ऑफ ग्रोथ' का नाम दिया। तब से इस शब्द का प्रचलन आर्थिक जगत में हो रहा है।

 

विकास दर कब बढ़ी:

  • भारत में सन 1991 में आर्थिक सुधार का दौर शुरू हुआ। नरसिंह राव की सरकार ने उदारीकरण की शुरुआत की। उसके बाद से ही देश की विकास दर 'हिन्दू रेट ऑफ ग्रोथ' की धीमी चाल को छोड़कर तेजी से बढ़ी। विशेषकरसाल 2003 से 2008 के बीच देश की विकास दर औसतन 9 फीसदी के आस-पास रही थी।

कैसे तय होती है विकास दर:

  • देश के स्तर पर सकल घरेलू उत्पाद(जीडीपी) और राज्यों के स्तर पर सकल राज्य घरेलू उत्पाद(जीएसडीपी​​​​) को आधार बनाया जाता है।
  • इसके तहत मूलत: उद्योग और कृषि क्षेत्र में होने वाले उत्पादन को देखा जाता है।
  • पिछले वर्ष से तुलना करके उत्पादन में वृद्धि होने पर उसे विकास दर के रूप में देखा जाता है। जैसे किसी प्रदेश में किसी वर्ष 100 रुपए का उत्पादन हो और अगले वर्ष 110 रुपए का उत्पादन हो तो इसे 10 प्रतिशत की विकास दर माना जाता है।
  • उत्पादन कम होने पर नेगेटिव (नकारात्मक-माइनस) ग्रोथ रेट भी गिनी जाती है। जैसे 100 रुपए की तुलना में 80 रुपए का उत्पादन होना 20 प्रतिशत की माइनस ग्रोथ रेट कहलाती है।

आर्थिक विकास दर में वृद्धि हेतु उपाय:

  • विकास दर बढ़ाने के लिये कृषि को प्राथमिकता दिया जाना चाहिए। यद्यपि स्वतंत्रता के समय देश की जीडीपी में कृषि का हिस्सा लगभग 50 प्रतिशत था, जो अब घटकर 14 प्रतिशत रह गया है।फिर भी कृषि उत्पादन में गिरावट विकास दर को निश्चित ही प्रभावित करती है।
  • भारतीय अर्थव्यवस्था की सर्वाधिक बड़ी चुनौतियों में से एक है रोज़गार सृजन की चुनौती है। इस समस्या के समाधान के लिये एक समग्र दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए।
  • अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप वर्तमान शिक्षा क्षेत्र के नियमों एवं प्रावधानों को बदलने की आवश्यकता है।
  • शिक्षा क्षेत्र में डिजिटलीकरण की भूमिका को बढ़ाया जाना चाहिए।
  • सरकारी बैंक निजी कंपनियों कोकर्ज़ देने में बेहद सावधानी बरतनी चाहिए ताकि क्रेडिट ग्रोथ बढ़ सके।
  • भारत की अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने के लिये केंद्र सरकार को प्रोत्साहन पैकेज के साथ-साथ निजी निवेश को बढ़ावा देना चाहिए।
  • उच्च विकास दर के लिए विनिर्माण क्षेत्र को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष: 

  • वर्तमान में विकास दर का निरंतर कम होनादेश के लिए एक चिंता का कारण हो सकता है। विकास दर कम होने से देशमेंनिर्मित वस्तुओं का न केवल निर्यात कमहोनेलगताहैबल्कि देश की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साख परभी नकारात्मक प्रभाव पड़ने लगता है इसलिए आर्थिक विकास से जुड़ी गंभीर चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार को घरेलू स्तर पर अर्थव्यवस्था को मज़बूती प्रदान करनी चाहिए।

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मुख्य परीक्षा प्रश्न:

हिंदू विकास दर क्या है? आर्थिकविकास दरसे संबंधित चुनौतियों एवं उनके समाधान के बारे में चर्चा कीजिए।