जलवायु परिवर्तन से गंभीर होते संक्रामक रोग

जलवायु परिवर्तन से गंभीर होते संक्रामक रोग

मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3

(जलवायु परिवर्तन और संक्रामक रोग)

27 सितंबर, 2023

भूमिका:

  • जलवायु परिवर्तन एक गंभीर वैश्विक समस्या है जिसके कारण हम सभी जीवन के लिए संकटपूर्ण समयों का सामना कर रहे हैं। इसके साथ ही, संक्रामक रोगों का प्रसार भी तेजी से बढ़ रहा है, और इन दोनों मुद्दों के बीच गहरा संबंध हो सकता है।
  • हाल ही में एक नए अध्ययन में विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में पक्षियों और चमगादड़ों से मनुष्यों और घरेलू जानवरों में रोग फैलाने वाले प्रोटोजोआ, बैक्टीरिया और वायरस की उपस्थिति की पुष्टि हुई है। इनमें से कई बीमारी फैलाने वाले रोगजनक सीधे तापमान या वर्षा से जुड़े पाए गए। मतलब, किसी भी संक्रमित बीमारी से ग्रसित लोगों के लिए जलवायु परिवर्तन खतरनाक साबित होने की पूरी संभावना है।

जलवायु परिवर्तन और संक्रामक रोग:

  • जलवायु परिवर्तन एक प्रकार की बदलती हुई मौसम पैटर्न और मौसम की असामान्य परिवर्तन को सूचित करता है, जो पूरे प्लैनेट को प्रभावित करता है। तापमान में वृद्धि, बारिश के पैटर्न में परिवर्तन, बर्फ की पिघलाव, चक्रवात, भूकंप और अधिक प्रभावकारी तूफान आदि जलवायु परिवर्तन में शामिल होते हैं।
  • वैश्विक जलवायु परिवर्तन से संक्रामक रोगों के प्रसार पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। जलवायु परिवर्तन से मानव स्वास्थ्य पर विशेष प्रभाव पड़ा है। जलवायु परिवर्तन संक्रामक रोग के प्रबंधन में मौजूदा असमानताओं और चुनौतियों को बढ़ा रहा है। जलवायु परिवर्तन डेंगू फैलाने वाले मच्छरों की भौगोलिक सीमा और मौसम को बदल रहा है।
  • संक्रामक रोग वे रोग होते हैं जो वायरस, बैक्टीरिया, फंगस, या अन्य माइक्रोऑर्गेनिज्म्स के कारण होते हैं और व्यक्ति से व्यक्ति के बीच फैल सकते हैं। ये रोग अक्सर बुखार, सर्दी-जुकाम, डायरिया, तपेदिक, मलेरिया, डेंगू, इन्फ्लूएंजा, टेटानस, टीबी, एचआईवी, और कोविड-19 जैसे बीमारियों के रूप में प्रकट हो सकते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन से जो संक्रामक रोग मानव के लिए अत्यधिक खतरा पैदा करा रहे हैं उनमें डेंगू बुखार, मलेरिया, टिक-जनित रोग, लीशमैनियासिस और इबोला वायरस रोग शामिल हैं।

जलवायु परिवर्तन और संक्रामक रोगों के बीच का संबंध:

  • वेक्टर-बोर्न रोग: कुछ संक्रामक रोग, जैसे कि डेंगू और मलेरिया, के प्रसार में वेक्टर्स (जैसे कि मच्छर) का महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप, बदलते मौसम पैटर्न और तापमान में वृद्धि के कारण, वेक्टर्स के बढ़ने की संभावना अधिक हो जाती है।
  • जलवायु संवेदनशीलता: जलवायु परिवर्तन के कारण, कुछ क्षेत्रों में बारिश की अधिक तीव्रता और अधिक तापमान के चलते संक्रामक रोगों के प्रसार के लिए अधिक अवसर पैदा हो सकता है।
  • जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप, कुछ बैक्टीरिया और वायरस जलवायु परिवर्तन के कारण बदलते हैं और नए अदरकर बदल देते हैं, जो संक्रामक रोगों को जन्म देते हैं जिनका मानव शरीर पहचान सकता है।

हालिया शोध विश्लेषण:

  • साइंस पत्रिका इकोग्राफी में प्रकाशित अध्ययन में लगभग 400 पक्षियों और 40 चमगादड़ों की प्रजातियों से 75 से अधिक बीमारी फैलाने वाले रोगजनकों की जानकारी एकत्र की गई। जलवायु संबंधी कारणों के साथ बीमारी की घटनाओं के आंकड़े के विश्लेषण से पता चला कि अधिकांश रोगजनकों से फैलने वाली बीमारी का संबंध तापमान या वर्षा से जुड़ी पाई गई हैं।
  • हेलसिंकी विश्वविद्यालय के फिनिश म्यूजियम आफ नेचुरल हिस्ट्री के प्रमुख अध्ययनकर्ता यान्जी जू के अनुसार, सामान्य तौर पर, गर्म और शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में रोगजनक बैक्टीरिया की घटना बढ़ गई है। वहीं दूसरी ओर, रोगजनक वायरस नम जलवायु पसंद करते हैं। अधिकांश आंकड़ों के साथ 17 रोगजनक टैक्सा पर जलवायु कारकों और रोगजनकों के बीच संबंधों की जांच की जा सकती है, इनमें देखे गए संबंध अलग-अलग थे।
  • यहां बताते चलें कि, टैक्सा एक प्रजाति के साम्राज्य से उप-प्रजाति तक का वर्गीकरण हैं। कुछ वर्गीकरण समूहों को पौधे, प्रोटिस्ट और पशु वर्गीकरण में समान रूप से वगीर्कृत किया गया है। उन्हें साम्राज्य, फाइलम, वर्ग, क्रम, परिवार, वंश, प्रजाति और उप-प्रजाति के क्रम में रखा गया है। यूनिवर्सिटी ऑफ तुर्कू इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिसिन के शोधकर्ता, आर्टो पुलिएनेन बताते हैं कि तापमान एवियन फ्लू वायरस, मलेरिया-परजीवी और पक्षियों और चमगादड़ों में क्लैमाइडिया, साल्मोनेला, क्यू-बुखार और टाइफस का कारण बनने वाले बैक्टीरिया से जुड़ा हुआ पाया गया।
  • रोग फैलाने की घटना के साथ बारिश का सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही तरह के संबंध देखा गया। उदाहरण के लिए, बढ़ती वर्षा से उसुतु, सिंदबिस और एविया फ्लू वायरस के साथ-साथ साल्मोनेला बैक्टीरिया के बीमारी फैलाने की दर बढ़ गई है।
  • अध्ययनकतार्ओं के अनुसार, उसुतु और सिंदबिस वायरस मच्छरों द्वारा फैलते हैं, बारिश मच्छरों द्वारा पसंदीदा नमी वाली जमीन में रहते हैं, जहां से इनसे फैलने वाली बीमारियां बढ़ सकती है। इसी तरह, एवियन फ्लू और साल्मोनेला विशेष रूप से पानी की पक्षी में प्रचलित हैं, जिनके लिए आर्द्रभूमि भी महत्त्वपूर्ण हैं।
  • 700 से अधिक शोध पत्रों और लगभग पांच लाख आकलनों के परिणामों को एकत्र करते हुए, यह अध्ययन इस धारणा को और मजबूत करता है कि जलवायु परिवर्तन संक्रामक रोगों के खतरों को बदलकर और खतरनाक बना सकता है।
  • जलवायु परिवर्तन रोगजनकों और उनके रहने वालों, जंगली जानवरों दोनों की वितरण सीमा को बदल देता है। पक्षियों की वितरण सीमा पहले से ही प्रति वर्ष एक किलोमीटर से अधिक उत्तर की ओर बढ़ती देखी गई है। जलवायु परिवर्तन पर्यावरण में रोगजनकों की घटना को भी प्रभावित करता है। अध्ययन में बताया गया है कि, ऐसी आशंका है कि उत्तरी यूरोप में जलवायु परिवर्तन के कारण थमोर्फिलिक रोगजनक अधिक आम होते जा रहे हैं। मालूम हो की विश्वभर में जलवायु परिवर्तन का विषय सर्वविदित है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि वर्तमान में जलवायु परिवर्तन वैश्विक समाज के समक्ष मौजूद सबसे बड़ी आवश्यकता बन गयी है। आंकड़े दर्शाते हैं कि 19 वीं सदी के अंत तक अब तक पृथ्वी की सतह का औसत तापमान लगभग 1.62 डिग्री फारेनहाईट( लगभग 0.9 डिग्री सेल्सियस) बढ़ गया है।
  • इसके अतिरिक्त पिछली सदी से अब तक समुद्र के जल स्तर में भी लगभग 8 इंच की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि यह समय जलवायु परिवर्तन की दिशा में गंभीरता से विचार करने का है।

निष्कर्ष:

  • जलवायु परिवर्तन और संक्रामक रोगों के बीच का संबंध गहरा है और हमें इन दोनों मुद्दों का सामना करने के लिए अद्यतित और सुरक्षित रूप से कदम उठाने की आवश्यकता है। जलवायु परिवर्तन के प्रति सजग रहना, जलवायु अनुकूल कृषि और जलवायु संरक्षण के माध्यमों का उपयोग करके हम संक्रामक रोगों के प्रसार को कम कर सकते हैं।

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