कच्चाथीवू द्वीप विवाद

कच्चाथीवू द्वीप विवाद

GS-2: अंतर्राष्ट्रीय संबंध

 (IAS/PCS)

 

प्रीलिम्स के लिए प्रासंगिक:

कच्चाथीवू द्वीप, धनुषकोडी, रामेश्वरम, पाकजलडमरूमध्य।

मेंस के लिए प्रासंगिक:

कच्चाथीवू द्वीप विवाद, संबंधित राजनीतिक फ़्लैशप्वाइंट, भारत और श्रीलंका के बीच समझौता, भारत के लिए कच्चाथीवू द्वीप का महत्व आगे की राह, निष्कर्ष।

02/04/2024

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस, द हिंदू

मुख्य परीक्षा प्रश्न:

कच्चाथीवू द्वीप का भारत के लिए भू-राजनीतिक महत्व का विश्लेषण कीजिए। कच्चाथीवू द्वीप विवाद के समाधान हेतु आगे की राह पर चर्चा कीजिए। (250 शब्द)

 

सन्दर्भ:

हाल ही के दिनों में पाक जलडमरूमध्य में भारत और श्रीलंका के बीच एक छोटा सा द्वीप कच्चाथीवू, तमिलनाडु में एक राजनीतिक फ्लैशप्वाइंट के रूप में फिर से सुर्ख़ियों में है।

  • कच्चाथीवू द्वीप ब्रिटिश काल से ही भारत और श्रीलंका के बीच एक विवादित क्षेत्र रहा है। दोनों देशों के मछुआरे कच्चाथीवु द्वीप का उपयोग करते थे, जो शुरू में मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा था।
  • आज़ादी के बाद इस द्वीप के चारों ओर मछली पकड़ने के अधिकार को लेकर एक बार फिर से भारत और श्रीलंका के मध्य विवाद छिड़ गया और भारत सरकार इस द्वीप पर पुन: अपने नियंत्रण में लेना चाहती है।

इस मुद्दे से संबंधित राजनीतिक फ़्लैशप्वाइंट क्या है:

  • दरअसल यह द्वीप सत्तापक्ष सरकार के लिए अगस्त 2014 से एक राष्ट्रवाद का मुद्दा बना हुआ है और पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार इस द्वीप को भारतीय भूभाग में शामिल करना चाहती है ताकि भारतीय मछुआरों के हितों को पोषित किया जा सके और इस क्षेत्र में चीन के भू-राजनीतिक वर्चस्व ख़त्म किया जा सके।
  • गौरतलब है कि कच्चाथीवू द्वीप वर्ष 1974 के द्विपक्षीय उदारता अधिनियम के तहत श्रीलंका को सौंप दिया गया था।
  • दरअसल समझौते के दौरान इस द्वीप का रणनीतिक महत्व बहुत कम था, लेकिन पिछले दशक में, चीन के बढ़ते दबदबे और श्रीलंका पर उसके बढ़ते प्रभाव के कारण भू-राजनीतिक आयाम बदल गए, जिससे यह भारत के लिए एक रणनीतिक महत्व का स्थान बन गया।

भारत और श्रीलंका के बीच समझौता:

  • जून 1974 में, भारत और श्रीलंका के तत्कालीन प्रधानमंत्रियों, इंदिरा गांधी और सिरिमा आर.डी. भंडारनायके ने पाक जलडमरूमध्य से एडम ब्रिज तक के पानी में अपने देशों के बीच सीमा को परिभाषित करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।
  • 28 जून, 1974 को जारी एक संयुक्त बयान में घोषणा की गई कि सीमा की स्थापना "ऐतिहासिक साक्ष्य, अंतर्राष्ट्रीय कानूनी सिद्धांतों और मिसालों के अनुसार" की गई थी। इसके अलावा, बयान में संकेत दिया गया कि "यह सीमा निर्जन कच्चाथीवू के पश्चिमी तट से एक मील दूर है।"
  • इस समझौते ने अक्टूबर 1921 से चल रही बातचीत की परिणति को चिह्नित किया, जो शुरू में मद्रास और सीलोन की सरकारों के बीच आयोजित की गई थी।

कच्चाथीवू द्वीप के बारे:

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

  • मध्ययुगीन काल: प्रारंभिक मध्ययुगीन काल के दौरान, यह द्वीप श्रीलंका के जाफना साम्राज्य के नियंत्रण में था। हालाँकि, 17वीं शताब्दी तक, यह भारत के रामनाथपुरम में स्थित रामनाड साम्राज्य में बदल गया था।
  • कच्चाथीवू कभी रामनाद जमींदारी का हिस्सा था। रामनाथपुरम रियासत (या रामनाद) की स्थापना 1605 में मदुरै के नायक राजवंश द्वारा की गई थी।
  • इसमें 69 तटीय गाँव और 11 टापू शामिल थे, जिनमें कच्चातिवू भी शामिल था।
  • 1622 और 1635 के बीच रामनाथपुरम के संप्रभु कुथन सेतुपति द्वारा जारी एक तांबे की पट्टिका, वर्तमान श्रीलंका में थलाईमन्नार तक फैले क्षेत्र के भारतीय स्वामित्व की गवाही देती है, जिसमें कच्चाथीवु भी शामिल है, जो सेतुपति राजवंश के लिए नियमित राजस्व का एक स्रोत था।
  • 1767 में, डच ईस्ट इंडिया कंपनी ने द्वीप को पट्टे पर देने के लिए मुथुरामलिंगा सेतुपति के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे
  • 1822 में, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस द्वीप को रामास्वामी सेतुपति से पट्टे पर ले लिया था। ब्रिटिश शासन के तहत, द्वीप को मद्रास प्रेसीडेंसी के हिस्से के रूप में प्रशासित किया गया था।
  • वर्ष 1983 में लंकाई गृहयुद्ध के फैलने के बाद से, यह द्वीप भारतीय तमिल मछुआरों और सिंहली-प्रभुत्व वाली लंकाई नौसेना के बीच लड़ाई का युद्धक्षेत्र बना हुआ है।

उत्पत्ति:

  • इस द्वीप की उत्पत्ति 14वीं सदी के ज्वालामुखी विस्फोट के कारण हुई थी।                                                                                                                                                                                                                                 

भोगोलिक अवस्थिति:

  • धनुषकोडी के उत्तर में बीस मील से थोड़ा अधिक दूरी पर कच्चातिवू (तमिल में जिसका अर्थ है 'बंजर द्वीप') का विवादित क्षेत्र है, जो 285 एकड़ का एक निर्जन द्वीप है। इसमें मीठे पानी के स्रोत का अभाव है, जिससे यह रहने योग्य नहीं है।
  • यह भारत के रामेश्वरम से पाक जलडमरूमध्य में लगभग 33 किमी उत्तर पूर्व और श्रीलंका के सबसे उत्तरी बिंदु जाफना से लगभग 62 किमी दक्षिण पश्चिम में स्थित है।
  • स्वामित्व: 1921 से, भारत और श्रीलंका दोनों ने समुद्री मछली पकड़ने की सीमा तय करने के लिए द्वीप के स्वामित्व का दावा किया है।

 

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भारत के लिए कच्चाथीवू द्वीप का महत्व:

आर्थिक

  • तमिलनाडु के मछुआरों को इस क्षेत्र में आजीविका के आर्थिक साधन सुलभ कराए जा सकते हैं क्यों भारतीय तमिल मछुआरों को अक्सर श्रीलंकाई अधिकारियों से दंडात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ता है।
  • पिछले 20 वर्षों में कम से कम 6,184 भारतीय मछुआरों को हिरासत में लिया गया है। इसी अवधि में श्रीलंकाई अधिकारियों ने 1,175 भारतीय मछली पकड़ने वाली नौकाओं को जब्त कर लिया है।

पर्यटन:

  • द्वीप पर एकमात्र संरचना सेंट एंथोनी चर्च है, जिसे 20वीं सदी की शुरुआत में बनाया गया था। वार्षिक रूप से, एक त्योहार के दौरान, भारत और श्रीलंका दोनों के ईसाई पादरी संयुक्त सेवाओं का नेतृत्व करते हैं, जो दोनों देशों के तीर्थयात्रियों को आकर्षित करते हैं।
  • 2023 में, 2,500 भारतीय भक्तों ने उत्सव में भाग लेने के लिए रामेश्वरम से कच्चाथीवू की यात्रा की।

 

सामरिक:

इस क्षेत्र में पड़ोसी देशों पर निगरानी रखने के लिए भारत नोसेना के लिए एक बेस का निर्माण कर सकता है। चीन के विस्तार को रोका जा सकता है।  

आगे की राह:

  • शांतिपूर्ण समाधान के लिए दोनों देशो को कोई साझा दृष्टिकोण अपनाना चाहिए ताकि चीन इसका लाभ न ले सके।
  • मछुआरों को जमानत राशि के रूप में एक करोड़ रुपये का दंड देने के  कठोर कदम को रोकने के लिए भारत को श्रीलंका का कड़ा विरोध करना चाहिए।
  • इस द्वीप की दोनों देशों की नौसेना बलों द्वारा "समन्वित गश्त" के लिए सहमत किया जाना चाहिए ताकि समुद्रीय जैव संसाधनों के अवैध दोहन को रोका जा सके।
  • आरोपियों को हिरासत में लिया जाए और उनके संबंधित देशों को सौंप दिया जाए, जहां उन्हें दूसरे देश की कठोर और बर्बर परिस्थितियों के बजाय उसी अपराध के लिए दंडित किया जाए।
  • स्थिति की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए, मछुआरों पर ध्यान देना और उन्हें नीचे तक मछली पकड़ने के लिए स्थायी विकल्प प्रदान करना अनिवार्य है, जो मौजूदा द्विपक्षीय संबंधों को खतरे में डाले बिना भारतीय और श्रीलंकाई मछुआरों दोनों के भविष्य को सुरक्षित करेगा।

निष्कर्ष:

कच्चाथीवू द्वीप समुद्री जैविक संसाधनों और सामरिक तौर पर दोनों देशो के लिए महत्वपूर्ण है इसलिए यह विवाद आपसी विचार-विमर्श के माध्यम से हल किया जाना चाहिए। हालाँकि, कच्चाथीवू विवाद इतना जटिल है कि इसे अंधराष्ट्रवादी प्रवचनों या संकीर्ण चिंताओं तक सीमित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यह औपनिवेशिक दक्षिण एशिया की भूराजनीतिक उलझनों की विरासत का एक अवशेष है।

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