कौशल विकास के मायने

कौशल विकास के मायने

मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन 3

( अर्थव्यवस्था-कौशल विकास )

संदर्भ:

  • वर्तमान में भारत की बहुसंख्य आबादी परंपरागत आजीविका गतिविधियों द्वारा गुजर-बसर कर रही है।
  • भारत में तीस फीसदी उच्च शिक्षित लोग बेरोजगार हैं90 फीसदी कामगारों की उत्पादकता बहुत ही कम है
  • ऐसे में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति और कौशल विकास को गरीबी तथा बेरोजगारी सहित देश की अनेक सामाजिक-आर्थिक समस्याओं के संदर्भ में समझने की जरूरत है।

कौशल विकास क्या है?

  • कौशल विकास का उपयोग आमतौर पर औपचारिक, गैर-औपचारिक, अनौपचारिक और ऑन-द-जॉब सेटिंग्स में सीखने और प्रशिक्षण के सभी स्तरों के माध्यम से प्राप्त उत्पादक क्षमताओं को संदर्भित करने के लिए किया जाता है।

कौशल विकास का महत्व :

  • कौशल विकास, श्रम को प्रतिस्पर्धी और अधिक उत्पादक बनाकर संरचनात्मक बदलाव के जरिए सामाजिक-आर्थिक विकास में योगदान देता है।
  • यह न केवल उत्पादकता में वृद्धि कर अधिक और बेहतर नौकरियां सृजित करता, बल्कि लोगों का जीवन स्तर भी सुधारता है।
  • यह व्यक्तियों को आजीविका में पूरी तरह से और उत्पादक रूप से संलग्न होने और रखने में सक्षम बनाता है।
  • यह बदलती मांगों और अर्थव्यवस्था और श्रम बाजार के अवसरों को पूरा करने के लिए इन क्षमताओं को अनुकूलित करने का अवसर प्रदान करता है।

वर्तमानमेंभारत में श्रमबल की स्थिति :

  • देश का 50 प्रतिशत श्रमबल ग्रामीण रोजगार में और 90 प्रतिशत से अधिक कामगार असंगठित क्षेत्र में हैं, जिनकी उत्पादकता कम है।
  • भारत की करीब दो-तिहाई आबादी 15 से 59 वर्ष की कामकाजी उम्र में तथा 54 फीसद आबादी 25 वर्ष से कम की है।
  • ‘स्किल इंडिया रिपोर्ट 2018’ के अनुसार, भारत में जनांकिकी लाभांश का मुख्य कारण अगले छह वर्षों तक आबादी की औसत आयु 29 वर्ष से कम रहना है।
  • वर्ष 2019 की यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार,2030 तक लगभग 47 फीसद भारतीय युवाओं के पास रोजगार के लिए जरूरी शिक्षा और कौशल की कमी होगी, जिससे रोजगार प्रभावित होगा।
  • अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन का अनुमान है कि 2030 तक लगभग तीन करोड़ का कौशल अंतर होगा, जो भारत की राष्ट्रीय आय को प्रभावित करेगा।
  • अगले कुछ वर्षों में श्रमबल में लगभग 2फीसद यानी 70लाख की वृद्धि का अनुमान है।

देश में कौशल विकास के समक्ष चुनौतियां :

  • पहुँच का अभाव :देश में कौशल विकास और व्यावसायिक प्रशिक्षण तक सभी की पहुंच न होना एक गंभीर चुनौती है।
  • औपचारिक शिक्षा की कमी :अनेक छात्र औपचारिक शिक्षा से वंचित रह जाते हैं, जो जीवनपर्यंत उनकी आय क्षमता को प्रभावित करता है।
  • परंपरागत भारतीय व्यवसाय कापरित्याग:परंपरागत भारतीय व्यवसायों में पीढ़ी-दर-पीढ़ी कौशल हस्तांतरण के कारण उद्यमिता और आजीविका के पर्याप्त अवसर रहते थे। पर समय के साथ परंपरागतव्यवसायों में कमी तथा अवसरों की प्रकृति में बदलाव आया है।
  • आजाद भारत में गांधीवादी आर्थिक विकास माडल की जगह महालनोबिस माडल में उच्च व्यावसायिक संस्थानों पर जोर की वजह से स्कूली व्यावसायिक शिक्षा पीछे छूट गई।
  • शिक्षा और कौशल विकास में अलगाव बढ़ा, व्यक्तिगत उन्नति उच्च शिक्षा से जुडी, न कि कौशल विकास से। परिणामस्वरूप आज, मात्र दो फीसद पेशेवर व्यावसायिक कामगार औपचारिक तौर पर कुशल हैं।

कौशलविकास हेतु भारत सरकार की प्रमुख पहलें:

  • कौशल विकास के लिए राष्ट्रीय कौशल नीति 2009के साथ-साथ राष्ट्रीय कौशल विकास निगम, राष्ट्रीय कौशल विकास एजेंसी, राष्ट्रीय कौशल योग्यता ढांचे का निर्माण तथा क्षेत्र कौशल परिषदों की स्थापना द्वारा शिक्षा और कौशल में समन्वय की कोशिशें जारी हैं।
  • राष्ट्रीय कौशल योग्यता ढांचा, औपचारिक तथा व्यावसायिक शिक्षा में गतिशीलता प्रदान कर शिक्षा और कौशल विकास को एकीकृत करता है।
  • कौशल विकास तथा उद्यमिता मंत्रालय कौशल विकास कार्यक्रमों में समन्वय स्थापित करता है।
  • मेक इन इंडिया तथा स्किल इंडिया कार्यक्रम शिक्षा तथा कौशल विकास के अंतर्संबंधों को मजबूत कर, औपचारिक कौशल के प्रति युवाओं की रुचि बढ़ाने तथा शैक्षिक योग्यता के साथ कौशल प्रमाणन को मान्यता देता है।
  • लगभग 20मंत्रालय तथा विभाग कौशल विकास कार्यक्रमों के माध्यम से देश में कुशल सक्षम कार्यबल तैयार हो रहे हैं।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020

  • यह नीतिव्यापक संज्ञानात्मक कौशल पर बल देती है, जिसमें अनुभव तथा तर्क से जटिल विचारों को सीखने, समझने तथा अपनाने की क्षमता शामिल है।
  • तकनीकी कौशल में किसी विशिष्ट कार्य को करने हेतु आवश्यक ज्ञान और विशेषज्ञता होती है। डिजिटल कौशल अन्य सभी कौशलों तक पहुंच, प्रबंधन, संवाद, समझ, मूल्यांकन तथा अंगीकृत करने की क्षमता देता है।
  • एनईपी लीक से हटकर नई सोच तथा रटने की जगह रचनात्मक और आलोचनात्मक सोच के साथ निर्णय लेने पर केंद्रित होगी। इसमें बहुविषयक दृष्टिकोण के साथ-साथ, छात्र पाठ्यक्रमों को अपनी जरूरत के अनुसार चुन सकेगें।
  • एनईपी उद्योगों की जरूरतों के अनुरूप शिक्षा में कौशल विकास पाठ्यक्रम, भारतीय युवाओं को कुशल और स्वावलंबी बनाने में महत्वपूर्णसाबित होगी।
  • एनईपी कौशल विकास और व्यावसायिक शिक्षा को शिक्षा प्रणाली में समाहित कर उद्योगों की जरूरत के मुताबिक न केवल कार्यबल तैयार करेगी, बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता में भी वृद्धि करेगी।
  • व्यावसायिक शिक्षा को स्कूली शिक्षा से समन्वित करने का उद्देश्यशिक्षा को रोजगारपरक बनाते हुए कौशल विकास के जरिए युवाओं को स्वावलंबी बनाना है।
  • इसमें पारंपरिक कौशल विकास के लिए बढ़ईगीरी, प्लंबिंग, इलेक्ट्रीशियन, बागवानी, कुंभारगीरी, कढ़ाई-बुनाई आदि में व्यावहारिक प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाएगी।
  • वर्ष 2025 तक पचास फीसद छात्रों को व्यावसायिक कौशल प्रदान करने का लक्ष्य है।

राष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क (एनएसक्यूएफ) गुणवत्ता आश्वासन

  • यहराष्ट्रीय स्तर का एकीकृत शिक्षा और योग्यता आधारित कौशल ढांचा प्रदान करता है
  • इसके अलावा यह व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण, सामान्य शिक्षा और तकनीकी शिक्षा में क्षैतिज तथा उर्ध्व संयोजन यानी अनेक अवसर प्रदान करने तथा साथ ही एक को दूसरे कौशल विकास स्तर से जोड़ता है।

राष्ट्रीय क्रेडिट फ्रेमवर्क (एनसीआरएफ)

  • यहराष्ट्रीय स्तर पर क्रेडिट संचय और हस्तांतरण प्रणाली को औपचारिक बनाते हुए कौशल विकास को शिक्षा प्रणाली का अभिन्न हिस्सा बनाने का दस्तावेज है।
  • यह सामान्य शिक्षा तथा व्यावसायिक शिक्षा को एकीकृत कर कौशल विकास के साथ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के अवसर सुनिश्चित करेगा।
  • एनसीआरएफ व्यापक, बहुविषयक, समग्र शिक्षा की रूपरेखा है, जो आवश्यकता आधारित पाठ्यचर्या के साथ विषयों तथा उनके रचनात्मक संयोजनों के विकल्प भी प्रस्तुत करेगा।
  • एनसीआरएफ, सीखने के विभिन्न क्षेत्रों को समान महत्त्व देकर कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करता है। उच्चशिक्षा में कौशल प्रशिक्षण हेतु क्रेडिट अर्जन का प्रावधान कार्यबल के कौशल स्तर को बढ़ाकर अप्रेंटिसशिप तथा रोजगार को बढ़ावा देगा, क्षेत्रीय विकास हेतु कुशल कार्यबल प्रदान करेगा।

आगे की राह :

  • बड़ी आबादी को गरीबी और बेरोजगारी के दायरे से बाहर लाना है, तो उभरते रोजगार क्षेत्रों के तौर-तरीकों के अनुसार कौशल विकास करना होगा।
  • भारत में पहले की शिक्षा प्रणाली आजीविका की गारंटी नहीं देती थी। कौशल अंतराल सभी स्तरों पर मौजूद है। इसीलिए तीस फीसद से अधिक उच्च शिक्षित युवा बेरोजगार हैं। कुशल श्रम की कमी नियोक्ताओं के सामने अड़चन है, जिससे उनकी नवाचार क्षमता प्रभावित होती है। भारत को ऐसे कुशल मानव संसाधन की जरूरत है, जो नवाचार और विकास में प्रेरक बन सकें।
  • राज्य सरकारों द्वारा व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को सामान्य पाठ्यक्रमों के बराबर मान्यता दी जानी चाहिए।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लोगों को उन्नतिशील बनाने की दिशा में कौशल विकास पर ही नहीं, कौशल आधारित रोजगार के अवसरों पर भी जोर देने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष:

  • एनईपी 2020, शिक्षा और कौशल विकास में अलगाव समाप्त करेगी। वह दिन दूर नहीं, जब भारत का युवा, कौशल विकास और व्यावसायिक, रोजगारपरक शिक्षा के जरिए आजीविका खोजने वाला नहीं, बल्कि देने वाला बनेगा। इसके लिए भारत को कौशल विकास पर ही नहीं, कौशल आधारित रोजगार के अवसरों पर भी जोर देना होगा।
  • उद्योगों की जरूरतों के अनुसारकौशल विकास शिक्षित बेरोजगारी के संकट से छुटकारा दिला सकता है। यह पूरी तरह यथार्थ है कि भारत में गरीबी सहित ग्रामीण बेरोजगारी और असंगठित क्षेत्र के कामगारों की दिक्कतों का निदान कौशल विकास से ही संभव है।

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मुख्य परीक्षा प्रश्न

वर्तमान में भारत में कौशल विकास संबंधी चुनौतियों के समाधान हेतु सरकार की प्रमुख पहलों की समीक्षा कीजिए।