
कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद
कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद
प्रीलिम्स के लिए महत्वपूर्ण:
श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट, केशवदेव मंदिर, प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991, न्यायिक समीक्षा, बीर सिंह बुंदेला, औरंगजेब, जहांगीर, दाराशिकोह, भारतीय दंड संहिता (1860)
मेन्स के लिए महत्वपूर्ण:
GS-1,2: कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद, पूजा स्थल अधिनियम, 1991, समाधान
19 दिसंबर, 2023
ख़बरों में क्यों:
हाल ही में, यूपी की इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर परिसर से संलग्न तीन गुंबद वाली शाही ईदगाह में सर्वे से संबंधित निर्णय को सुरक्षित रख लिया है।
कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद
के बारे में:
- कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह से जुड़ा विवाद लगभग 350 साल पुराना है।
- यह पूरा विवाद 13.37 एकड़ जमीन से संबंधित है। इस जमीन के 11 एकड़ में श्रीकृष्ण जन्मभूमि बनी है। बाकी के 2.37 एकड़ में शाही ईदगाह है।
- हिंदू पक्ष के अनुसार, शाही ईदगाह स्थल में भगवान कृष्ण के मामा राजा कंस की जेल थी। इसी जेल में भगवान कृष्ण का जन्म हुआ इसलिए जो मौजूदा ईदगाह है वही वास्तव में भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली है।
हिंदू पक्ष की याचिका:
- हिंदू पक्ष ने ईदगाह परिसर में सर्वे की मांग की है। याचिका कर्ताओं में भगवान श्री कृष्ण विराजमान और सात अन्य लोग- वकील हरिशंकर जैन, विष्णु शंकर जैन, प्रभाष पांडेय और देवकी नंदन शामिल हैं।
- हिंदू पक्ष का दावा है कि 1670 में मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर श्री कृष्ण के जन्मस्थान पर मस्जिद का निर्माण किया गया था।
मुस्लिम पक्ष की मांग:
- वहीं, मुस्लिम पक्ष इस केस में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 लागू करते हुए हिंदू पक्ष की मांग को खारिज करने की अपील करता है।
इस ऐतिहासिक स्थल से संबंधित घटनाक्रम:
मंदिर निर्माण
- इस सारे विवाद की शुरुआत से पहले यहां 1618 में औरंगजेब के दादा जहांगीर के शासनकाल के दौरान बीर सिंह बुंदेला ने एक मंदिर का निर्माण करवाया था। यह मंदिर भगवान श्रीकृष्ण का था।
- इस मंदिर को औरंगजेब के भाई और मुगल सिंहासन के प्रतिद्वंद्वी दारा शिकोह द्वारा संरक्षण दिया गया था।
- 1670 में, मु्गल बादशााह औरंगजेब के आदेश पर यहाँ एक शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण किया गया था।
- हिंदू पक्ष का दावा है कि इसका निर्माण श्रीकृष्ण जन्मस्थल को तोड़कर किया गया।
- मस्जिद बनने के बाद यह जमीन मुसलमान पक्ष के अधिकार में आ गई। अगले लगभग 100 साल तक यहां हिंदूओं का प्रवेश प्रतिबंधित रहा।
- 1770 में, मुगलों और मराठों के बीच युद्ध हुआ। जीत मराठों की हुई। जीत के बाद मराठों ने यहां फिर से मंदिर बनवाया, इसे केशवदेव मंदिर का नाम दिया गया।
- यह मंदिर जर्जर हो गया और अंतत: भूकंप की चपेट में आकर गिर गया।
- 1815 में, बनारस के राजा पटनी मल ने यहाँ मंदिर बनवाने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी से 13.77 एकड़ जमीन खरीदी। लेकिन यहाँ मंदिर न बनने के कारण यह जगह खाली रही और मुस्लिम पक्ष ने इस जमीन पर अधिकार कर लिया है।
- 1944 में, यह जमीन मशहूर कारोबारी जुगल किशोर बिड़ला ने खरीद ली।
- देश की आजादी के बाद 1951 में गठित श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट को यह जमीन दे दी गई।
- 1953 में ट्रस्ट ने मंदिर निर्माण का काम शुरू किया। यह मंदिर 1958 में बनकर तैयार हुआ।
- 1958 में श्रीकृष्ण सेवा संस्थान नाम की एक नई संस्था बनी जिसने 1968 में मुस्लिम पक्ष के साथ समझौता करके कहा कि जमीन पर मंदिर और मस्जिद दोनों बने रहेंगे। लेकिन श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट ने इस समझौते को नहीं माना। उसका तर्क था कि श्रीकृष्ण सेवा संस्थान का जन्मभूमि पर कोई अधिकार नहीं है इसलिए इस समझौते का कोई औचित्य नहीं है।
- दिसंबर 2022 में सिविल जज सीनियर डिवीजन (थर्ड) सोनिका वर्मा ने एक आदेश जारी करके शाही ईदगाह मस्जिद का अमीन के जरिए सर्वे कराने का आदेश दिया।
- अब मथुरा की शाही ईदागाह मस्जिद को हटाने की मांग की याचिका दायर की गई है।
पूजा स्थल अधिनियम, 1991 क्या है?
- यह अधिनियम "किसी भी पूजा स्थल के रूपांतरण पर रोक लगाने और किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को बनाए रखने के लिए प्रावधान निर्धारित करता है।
- यह अधिनियम 18 सितंबर, 1991 को पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव के कार्यकाल में अयोध्या में रामजन्मभूमि विवाद को रोकने के लिए लागू किया गया था।
आलोचना
- अधिनियम को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि यह न्यायिक समीक्षा पर रोक लगाता है, जो संविधान की एक बुनियादी विशेषता है।
- यह अधिनियम मुस्लिमों, जैनियों, बौद्धों और सिखों के धर्म के अधिकार को कम करता है।
इस अधिनियम से संबंधित प्रमुख धाराएं:
धारा 3
- यह धारा किसी भी धार्मिक संप्रदाय के पूजा स्थल को पूर्णतया या आंशिक रूप से किसी भिन्न धार्मिक संप्रदाय के पूजा स्थल में बदलने पर रोक लगाती है।
धारा 4(1)
- इसमें घोषणा की गई है कि पूजा स्थल का धार्मिक चरित्र "जैसा 15 अगस्त 1947 को अस्तित्व में था वैसा ही रहेगा"।
धारा 4(2)
- इसमें कहा गया है कि 15 अगस्त, 1947 को मौजूद किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक स्वरूप में परिवर्तन के संबंध में किसी भी अदालत में लंबित कोई भी मुकदमा या कानूनी कार्यवाही समाप्त कर दी जाएगी और कोई नया मुकदमा या कानूनी कार्यवाही शुरू नहीं की जाएगी। इस उपधारा का प्रावधान उन मुकदमों, अपीलों और कानूनी कार्यवाहियों को बचाता है जो अधिनियम के प्रारंभ होने की तारीख पर लंबित हैं यदि वे कट-ऑफ तिथि के बाद पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र के रूपांतरण से संबंधित हैं।
धारा 5
- इस अधिनियम में निहित कोई भी बात उत्तर प्रदेश राज्य के अयोध्या में स्थित पूजा स्थल या पूजा स्थल, जिसे आमतौर पर राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद के रूप में जाना जाता है, पर और उक्त स्थान या पूजा स्थल से संबंधित किसी भी मुकदमे, अपील या अन्य कार्यवाही पर लागू नहीं होगी।
धारा 6
- जो कोई भी धारा 3 के प्रावधानों का उल्लंघन करेगा, उसे कारावास से दंडित किया जाएगा जिसे तीन साल तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
- जो कोई भी उप-धारा (1) के तहत दंडनीय किसी अपराध को करने का प्रयास करता है या ऐसा अपराध करने का कारण बनता है और ऐसे प्रयास में अपराध करने की दिशा में कोई कार्य करता है, वह अपराध के लिए प्रदान की गई सजा से दंडनीय होगा।
- जो कोई भी उप-धारा (1) के तहत दंडनीय अपराध के लिए उकसाता है, या करने के लिए एक पक्ष है, चाहे ऐसा अपराध ऐसे उकसावे के परिणामस्वरूप या ऐसी आपराधिक साजिश के अनुसरण में किया गया हो या नहीं किया गया हो, और किसी भी बात के बावजूद भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 116 में निहित, अपराध के लिए प्रदान की गई सजा से दंडनीय होगा।
धारा 7
- इस अधिनियम के प्रावधान तत्समय लागू किसी अन्य कानून या इस अधिनियम के अलावा किसी अन्य कानून के आधार पर प्रभाव रखने वाले किसी उपकरण में निहित किसी असंगत बात के बावजूद प्रभावी होंगे।
आगे की राह:
- आलोचनाओं और कमियों को दूर करने के लिए इस अधिनियम की गहन समीक्षा की जानी चाहिए।
- यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि यह अधिनियम न्यायिक समीक्षा को प्रतिबंधित नहीं करता है और संवैधानिक अधिकारों को बनाए रखने में न्यायपालिका की भूमिका को संरक्षित करता है।
- धार्मिक चरित्र को संरक्षित करने और विभिन्न समुदायों के अधिकारों का सम्मान करने के बीच संतुलन बनाया जाना चाहिए।
- निष्पक्षता और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक परामर्श को शामिल किया जाना चाहिए।
- पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए न्यायालय के निर्णय सभी धार्मिक मामलों में पूर्वाग्रह से मुक्त होने चाहिए।
स्रोत: द हिंदू
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मुख्य परीक्षा प्रश्न
कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद क्या है? इस विवाद के समाधान हेतु पूजा स्थल अधिनियम, 1991में सुधारों को रेखांकित कीजिए।