ओडिशा में 1,300 साल पुरानेबौद्ध स्तूप की खोज

ओडिशा में 1,300 साल पुरानेबौद्ध स्तूप की खोज

ख़बरों में क्यों:

  • हाल हीमें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई)को ओडिशा में खोंडालाइट पत्थर खनन स्थल पर 1,300 साल पुराना बौद्ध स्तूपमिला है।

प्रमुख बिंदु:

  • सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, यह स्तूप 4.5 मीटर लंबाहै और प्रारंभिक आकलन से पता चला है कि यह स्तूप 7वीं या 8वीं शताब्दीका हो सकता है।
  • ओडिशा के जाजपुर जिलेमें स्थितइस खनन स्थल से पुरी में 12वीं शताब्दी के श्री जगन्नाथ मंदिर के आसपास सौंदर्यीकरण परियोजना के लिए खोंडालाइट पत्थरोंकी आपूर्ति की गयीथी।
  • इस स्तूप की खोज ओडिशा के प्रभादी स्थलसेहुई थी। प्रभादी स्थल एक प्रमुख बौद्ध परिसर ललितागिरीके पास स्थित है।
  • एएसआईपुरातात्विक खोजों को संरक्षित करने के उद्देश्य से इस स्थलको अपने कब्जे में ले सकता है। एएसआईइससेपहले भीसुखुआपाड़ा जैसे कई स्थलों को अपने कब्जे में ले चुकाहै।
  • समस्या यह है कि इन क्षेत्रों से खोंडालाइट पत्थरों काखननबड़े पैमाने पर ABADHA योजनाको पूरा करने के लिए किया जाता है। 

ABADHA योजना के बारे में:

  • ABADHA का अंग्रेजी में पूरा नाम है: Augmentation of Basic Amenities and the Development of Heritage and Architecture
  • इस योजना के तहत ओडिशा सरकारमठ विकास पहल, अथरनाला विरासत परियोजना, पुरी झील विकास, जगन्नाथ बल्लव तीर्थ केंद्र आदि परियोजनाओंको लागू कर रही है।
  • इसके लिए ओडिशा सरकार ने 3,208 करोड़ रुपये भीआवंटित किए हैं।
  • ऐसे में ASI द्वारा इनस्थलों को अपने कब्जे में लेने से अबाधा योजना का कार्यान्वयन प्रभावित होगा।

ओडिशा के प्राचीन ऐतिहासिक स्थल:

  • ओडिशा में उदयगिरि पहाड़ियों के मध्य ललितगिरि, रत्नागिरि और उदयगिरिबौद्ध वास्तु कला के लिए प्रसिद्ध स्थल हैं।

ललितगिरी

  • ललितगिरी बौद्ध स्थल अनेकस्तूप, बुद्ध चित्र और मठ के लिए प्रसिद्ध है।
  • एक पत्थर के ताबूत के अंदर बुद्ध के एक विशाल स्तूप की खोज के कारण ललितगिरि बौद्ध स्थल को तीन साइटों (ललितगिरि, रत्नागिरि और उदयगिरि) में सबसे पवित्र माना जाता है।
  • प्रथम शताब्दी का ललितगिरि इनतीनों मेंसबसे पुराना स्थलहै।
  • ललितगिरि में हाल ही में हुई खुदाई में महत्त्वपूर्ण पुरातात्विक सामग्री मिली है, जिससे ज्ञात होता है कि यह बौद्ध आकर्षण का एक महान् केन्द्र था।
  • रत्नागिरि और उदयगिरि पहाड़ियों के मिलने से ललितगिरी में'डायमंड त्रिभुज' रूप का निर्माण हुआ है। येतीनोंपहाडियाँ मिलकर बौद्ध मठों के खंडहरों की रक्षा करती हैं।
  • यहाँ बौद्ध काल में निर्मितभगवान महावीर की एकविशाल मूर्ति है, जो पुष्‍पागिरि पहाड़ी पर स्थित है।

उदयगिरि

  • यहइनतीनों ऐतिहासिक स्थलों में से विशालतम स्थल है, जोबिरुपा नदी(विलुप्त) के किनारे स्थित है। 
  • चीनीयात्री ह्वेन त्सांग ने इस क्षेत्र को पुष्पगिरि नामक समृद्ध बौद्ध विश्वविद्यालय के रूप में देखा था।
  • गुप्तोत्तर काल में यह स्थान बौद्ध शिल्प का सम्भवतः सबसे बड़ा केन्द्र था।यहाँहाल में हुई खुदाई मेंमाधवपुरा महाविहार नाम का एक बौद्ध मठमिलाहै।

रत्नगिरि

  • इनपहाड़ियोंमेंसबसेमहत्वपूर्ण रत्नगिरि है, ज़िले तत्कालीन समय का उल्लेखनीय बौद्ध केन्द्र माना गया है।

खोंडालाइट चट्टान के बारेमें: 

  • खोंडालाइट एक प्रकार की रूपांतरित(कायांतरित) चट्टान है जो भारत के पूर्वी घाट में विशेष रूप से ओडिशा राज्य में पायीजाती है। 
  • इसका नाम चट्टानों के खोंडालाइट समूह के नाम पर रखा गया है।
  • इन चट्टानों को लगभग 1.6 अरब वर्ष पहले प्रोटेरोज़ोइक युग का माना जाता है।
  • ये चट्टानें मुख्य रूप से फेल्डस्पार, क्वार्ट्ज़ और अभ्रक से बनी होतीहै और इनका रंग गुलाबी-ग्रे होताहै। इन चट्टानों को सामान्यतः निर्माण में एक सजावटी पत्थर के रूप में उपयोग किया जाता है।
  • ये चट्टानें  विशेष स्थायित्व और अपक्षय प्रकृति के कारण बहुत खी कीमती होती हैं।
  • प्राचीन मंदिरों के निर्माण में इनखोंडालाइट पत्थरों का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता था।
  • ओडिशा सरकार ने विरासत सुरक्षा क्षेत्र, जगन्नाथ बल्लभ तीर्थ केंद्र आदि के सौंदर्य को बनाए रखने हेतु इन पत्थरों कोव्यापक रूप से उपयोग करने का प्रस्ताव कियाहै।

स्तूप के बारे में :

  • स्तूप वैदिक काल से भारत में शवाधान को ढकने के लिए विशेष आकार वाले निर्मित टीले थे।स्तूप कासंस्कृत भाषा में अर्थ ढेरहोता है ।

स्तूप की संरचना

  • स्तूप एक गोल टीले के आकार की संरचना है। यह एक बेस पर बनाया जाता है। जो एक चबूतरा होता है जिसे वेदिका कहते हैं।
  • इस के ऊपर स्तूप का निर्माण होता है। वेदिका के ठीक ऊपर एक अर्ध अंडाकार आकृति बनाई जाती है जिसे अंडा ही कहते हैं।
  • इसके नीचे और वेदिका के ऊपर एक दीवार नुमा आकृति होता है उसे मेढ़ी कहा जाता है।
  • वेदिका के भीतर , एक पथ होता है उसे प्रदर्शिका कहा जाता है। यह परिक्रमा पथ है।
  • अडाकार भाग के ऊपर एक चकोर आकृति होती है उसे हर्मिका कहा जाता है। इसमें अवशेष होते हैं। उसके ऊपर तीन छतरियां बनाई जाती हैं।जिन्हें छत्र भी कहते हैं।
  • इसके चार प्रवेश द्वार होते हैं। जिस द्वार से प्रवेश करते हैं उसे तोरण कहते हैं।

स्तूप चार प्रकारके होते हैं:

  • शारीरिक स्तूप: इसकी हर्मिका में भगवान बुद्ध या शिष्यों के शरीरिक अवशेष होते है।
  • पारभोमिक स्तूप:इसकी हर्मिका में भगवान बुद्ध या शिष्यों के द्वारा उपयोग होने वाली वस्तुएं रखी जाती हैं।
  • उदेशिक स्तूप:जहां जहां भगवान बुद्ध ने यात्रा की ये स्तूप वहां बनवाएं गए। इसकी हर्मिका खाली होती है।
  • संकल्पित स्तूप:इस तरह का स्तूप श्रद्धालुओं द्वारा किसी भी स्थान पर बनवाया जा सकता है।इसमें हर्मिका का होना अनिवार्य नहीं है।

बुद्ध से संबंधित स्तूप:

  • मध्य प्रदेश में सांची स्तूप अशोक केसभीस्तूपों में सबसे प्रसिद्ध है।
  • उत्तर प्रदेश में पिपरहवा स्तूप सबसे पुराना स्तूप है।
  • बुद्ध की मृत्यु के बाद राजगृह, वैशाली, कपिलवस्तु, अल्लकप्पा, रामग्राम, वेथापिडा, पावा, कुशीनगर और पिप्पलिवन स्तूपों को बनायागया था।
  • बैराट, राजस्थान में एक गोलाकार टीला और एक प्रदक्षिणा पथ के साथ एकभव्य स्तूप मौजूद है।
  • भारत के मशहूर स्तूपों में साँची, सारनाथ, अमरावती और भरहुत आते हैं।

स्तूप का महत्व:

  • बौद्ध धर्म में आज अगर किसी प्रतीक चिन्ह का सबसे ज्यादा महत्व है तो वह है स्तूप। स्तूप बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए आस्था का वह प्रतीक है जिसे सीधे तौर पर भगवान बुद्ध से जोड़ा जाता है। उनका मानना है कि भगवान बुद्ध उन स्तूपों में निवास करते हैं और उन्हें मुक्ति का मार्ग दिखाते हैं।
  • अशोक ने बौद्ध धर्म का प्रचार सबसे ज्यादा करवाया। उन्होंने गौतम बुद्ध के अवशेषों को सुदूर देशों तक पहुंचाया। यह स्तूप सिर्फ भारत में ही नहीं ,कई अन्य देशों में भी पाए जाते हैं। बौद्ध भिक्षु इन स्तूपों को बौद्ध धर्म का प्रतीक मानकर ना सिर्फ इनकी परिक्रमा करते हैं, यहां बैठकर ध्यान भी केंद्रित करते हैं।

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मुख्य परीक्षा प्रश्न:

                          स्तूप क्या होते हैं? भारत में निर्मित महत्वपूर्ण स्तूपों के महत्व का उल्लेख कीजिए।