प्रौद्योगिकी तकनीक क्षेत्र में बेरोजगारी से जूझते युवा

प्रौद्योगिकी तकनीक क्षेत्र में बेरोजगारी से जूझते युवा

मुख्य परीक्षा:सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 3

(भारतीय अर्थव्यवस्था: बेरोजगारी)

भूमिका:

  • जनसंख्या वृद्धि में सर्वोच्च शिखर पर पहुंचने के बाद भी देश यह सोचकर खुश है कि 2050 तक भारत में युवा आबादी दुनिया में तीसरे स्थान पर होगी। अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि इस युवा कार्यबल के सहारे भारत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनकर उभरेगा। इसके सहारे देश के युवाओं को विकासशील देश बनने की प्रक्रिया में शामिल होने के सपने भी दिखाए जाने लगे हैं।
  • आंकड़ों के सहारे भविष्य बुनने की प्रक्रिया के ठीक विपरीत देश में युवाओं की वर्तमान रोजगार स्थितियां ठीक नहीं हैं। जनसंख्या के आधार पर देश में प्रतिवर्ष सवा करोड़ युवाओं को नौकरियों की आवश्यकता है। मगर प्रतिवर्ष पच्चीस लाख नौकरियां भी उपलब्ध नहीं हैं। बेरोजगार युवा चिंता और अवसाद में हैं।

भारत में रोजगार की स्थिति:

  • देश में पिछले वर्षों की तुलना में रोजगार में कमी आयी है। सरकारी नौकरियों में 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण होने के अलावा अब संविदा भर्ती होने लगी है।
  • राज्यों में सरकारी चयन प्रक्रिया में भ्रष्टाचार के नए आयाम स्थापित हो चुके हैं। बढ़ती महंगाई, कर्ज और विश्व में फैलते एआइ तकनीक के चलन ने पूरी दुनिया में नौकरियों का संकट खड़ा कर दिया है।
  • विश्व आर्थिक मंच की ‘भविष्य में रोजगार रिपोर्ट 2023’ के अनुसार, विश्व में 2027 तक 8.3 करोड़ पारंपरिक नौकरियों के समाप्त होने का खतरा है।
  • अनुमान है कि 2025 तक भारत से आइटी क्षेत्र की 22 लाख नौकरियां समाप्त होंगी।
  • भारत के बड़े शहरों से एक वर्ष की अवधि में 16 फीसद नौकरियां समाप्त हुई हैं। भारत के आइटी क्षेत्र में 50 फीसद नौकरियां कम हो रही हैं। तेजी से विकसित हुए भारतीय नव उद्यम, जो उच्च वेतनमान पर तकनीकी प्रशिक्षित युवाओं को सेवा में ले रहे थे, चालू वर्ष में ऐसे 102 नव उद्यम अपने चालीस हजार कर्मचारियों को एक माह का अतिरिक्त वेतन देकर नौकरी से बाहर कर चुके हैं।
  • 35 फीसद नव उद्यम पिछले एक वर्ष की मंदी में बंद हो चुके हैं।

रोजगार कम होने के कारण:

  • कृत्रिम मेधाएआई तकनीक के बढ़ते इस्तेमाल और सिमटते व्यापार के कारण रोजगार देने वाली इकाइयां कर्मचारी वेतन व्यय को कम कर रही हैं।
  • भारत में एआइ तकनीक आने से सबसे बड़ा खतरा औद्योगिक इकाइयों और सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों में मानव संचालित रोजगार के कम होने का है।
  • भारतीय युवा सूचना प्रौद्योगिकी रोजगार को सफेद कालर रोजगार मान कर उसके प्रति अधिक आकर्षित होते हैं। मगर एआइ तकनीक से आइटी क्षेत्र में नौकरियों के अवसर कम हुए हैं।
  • प्रौद्योगिकी तकनीक से जुड़े हर चौथे कर्मचारी पर भविष्य में रोजगार का संकट है।
  • समयानुरूप भारतीय युवा बदलती नई तकनीक को सीखने में विफल होते हैं, तो देश की युवा शक्ति के बड़े हिस्से के सामने जीवन यापन का संकट उत्पन्न होगा।
  • देश में स्थापित आइटी कंपनियों पर वैश्विक मंदी का संकट है। एआइ तकनीक के विस्तार से आइटी कंपनियों को मिलने वाली विदेशी परियोजनाओं में भारी कमी दिखाई दे रही है।
  • इसके चलते कंपनियों में कर्मचारी छंटनी की शुरुआत हो चुकी है। देश में कार्यरत पैंतीस फीसद से अधिक कंपनियां कर्मचारी भर्ती में एआइ तकनीक का इस्तेमाल कर रही हैं। इस तरह चयन प्रक्रिया में मानवीय संवेदनाएं भी खत्म हुई हैं।

रोजगार असुरक्षा का युवाओं पर प्रभाव:

  • ‘ए ग्लोबल वर्कफोर्स व्यू रिपोर्ट-2023’ 77 देशों में कार्यरत कर्मचारियो के सर्वेक्षण पर आधारित है, जिसके अनुसार भारत के 47 फीसद युवा कर्मी अपनी नौकरी की सुरक्षा के लिए सर्वाधिक चिंतित हैं। रोजगार छिनने की चिंता भारतीय युवाओं की कार्यक्षमता को कुप्रभावित करने के साथ उनके स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचा रही है।
  • रोजगार असुरक्षा का भय दिखाकर नौकरी प्रदाता कंपनियां अपने कर्मियों से न केवल तय मानक से अधिक काम ले रही हैं, बल्कि कर्मचारियों से बंधुआ मजदूरों जैसा व्यवहार करने लगी हैं।
  • देश भर में सरकारें अधिक से अधिक विदेशी निवेश को आर्कषित करने के लिए नई प्रौद्योगिकी सेवा इकाइयों को तमाम सुविधाओं के साथ नियमों के अनुपालन में शिथिलता दे रही हैं। रियायतों का लाभ ले रही इकाइयां भारत के सस्ते श्रम और लचीले श्रम कानून की वजह से कर्मचारियों को प्रताड़ना का शिकार बनाने लगी हैं।
  • शुरुआती दौर में बड़ी रिक्तियां दे रही इकाइयां समयांतराल में छंटनी, वेतन कटौती, काम के समय की अनिश्चितता के साथ कर्मचारी अवकाश में कटौती का दंश देने लगी हैं। कोविड के बाद घर से काम करने की पद्धति से अब युवा कर्मियों पर काम की अधिकता के साथ उनके वेतन और अन्य मौलिक सुविधाओं में कटौतियां की जा रही हैं।
  • विदेशी इकाइयों के भारत स्थित दफ्तरों में काम कर रहे युवाओं पर उस देश का समयकाल लागू किया जा रहा है, जिससे कार्यरत कर्मी देर रात से अलसुबह तक काम करने को मजबूर हैं। इस समय अनियमितता से कार्यरत कर्मियों की दिनचर्या, भोजन समय के साथ उनके सामाजिक व्यवहार में अवसाद देखा जा रहा है।
  • पिछले दिनों एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में उच्च वेतन पर सेवा दे रहे एक भारतीय युवा ने लिखा था कि सालाना भारी-भरकम पैकेज लेने के बाद भी वह जीवन में अकेला महसूस करता है। काम की अधिकता और घर के कमरे से कार्य संचालन से सामाजिक सरोकार समाप्त हो चुके हैं। कोविड महामारी के बाद घर से काम करने वाले युवाओं पर स्टैनबर्ड यूनिवर्सिटी और जर्मन उपक्रम ‘डब्लूएफएच’ द्वारा चौंतीस देशों में किए गए अध्ययन में यह बात सामने आई है।
  • ‘घर से काम’ की कार्यप्रणली से न केवल कर्मचारियों की मानसिकता प्रभावित हो रही है, बल्कि काम की गुणवत्ता और उत्पादकता भी कम हो रही है। एक भारतीय आइटी कंपनी ने भी माना है कि काम के अधिक घंटे लेने के बावजूद घर से काम करने वाले कर्मियों के कौशल और उत्पादकता में कार्यालीन कर्मी की तुलना में 19 फीसद की गिरावट दर्ज हुई है।

निष्कर्ष:

  • कंपनियों के लाभ और देश की जीडीपी के लिए देश के युवाओं के स्वास्थ्य से खिलवाड़ देश के भविष्य के लिए ठीक नहीं है। अवसाद के कारण युवा आत्मघाती कदम भी उठाने लगे हैं। मानवाधिकारों के उल्लंघन के साथ कर्मचारी अधिकारों को नोंचा जा रहा है। कर्मचारियों के हितों की रक्षा के लिए जवाबदेह भारतीय निगरानी विभाग कर्मचारियों की हित रक्षा में विफल साबित हो रहे हैं।
  • आम भारतीय कर्मचारी व्यवस्था और न्याय प्रणाली को त्वरित और विश्वसनीय नहीं मानता है। भारतीय कारखाना अधिनियम कर्मचारी से एक सप्ताह में 48 घंटे से अधिक और प्रतिदिन 9 घंटे से अधिक काम लेने की इजाजत नहीं देता है। वहीं लगातार पांच घंटे से अधिक काम लेने का भी निषेध करता है। अतिरिक्त घंटे काम के लिए कर्मचारी अपने नियत वेतन से दोगुना वेतन लेने का हकदार होता है।
  • भारत में श्रम अधिनियम कर्मचारियों के हित संरक्षित करने और मानवाधिकारों के हनन को रोकने के लिए रोजगार प्रदाता संस्थाओं को नियमित परीक्षण के दायरे में लाता है। श्रम कानूनों के तहत पर्यवेक्षी और मध्यम प्रबंधन कर्मियों के अहित को रोकने, कर्मचारियों के शारीरिक और मानसिक शोषण रोकने के लिए निजी कंपनियों का निरंतर निरीक्षण करना श्रम अधिकारी का कर्तव्य है।
  • मगर देश का श्रम विभाग खुद विभागीय कर्मचारियों की कमी और रिक्त पदों की समस्या से जूझ रहा है। इन हालात में भारतीय युवा कर्मियों के रोजगार और अधिकारों की सुरक्षा एक ज्वलंत मुद्दा है। इसका समय रहते हल खोजा जाना आवश्यक है। हाल में जी-20 देशों की इंदौर में संपन्न बैठक में तकनीकी मानव श्रम में असमानता के मुद्दे पर सामाजिक तथा वित्तीय सुरक्षा को रेखांकित तो किया गया है। लेकिन सवाल सहमति से अधिक मानव श्रम अधिकारों की सुरक्षा का होना चहिए।

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मुख्य परीक्षा प्रश्न

वर्तमान में प्रौद्योगिकी तकनीक क्षेत्र से जुड़े युवाओं में रोजगार असुरक्षा का खतरा किन कारणों से बढ़ा है? विवेचना कीजिए 

 

 

 

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