पश्चिमी विक्षोभ का बदलता प्रतिरूप
पश्चिमी विक्षोभ का बदलता प्रतिरूप
मुख्य परीक्षा सामान्य अध्ययन:3
(भौगोलिक पारिस्थितिकी से संबंधित घटनाएं)
संदर्भ:
- हाल ही में विशेषज्ञों नेपश्चिमी विक्षोभके बदलते पैटर्न को लेकर चिंता व्यक्त की है क्योंकि इसके असामान्य रूप से परिवर्तित होने से इस वर्ष भारत में रबी फसलों की उपज को भारी कमी का सामना करना पड़ सकता है।
- भारत में पिछले तीन साल से सर्दियों का मौसम सामान्य नहीं रहा है। इस देश में मॉनसून के बाद दूसरा सबसे अधिक नमी वाला मौसम, यानी जाड़ा असामान्य तौर पर सूखा और गर्म रहा है।
पश्चिमी विक्षोभ :
- पश्चिमी विक्षोभ या वेस्टर्न डिस्टर्बन्स (Western Disturbance) भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी क्षेत्रोंमें सर्दियों के मौसम में आने वाले तूफानहैं।
- पश्चिमी विक्षोभ ऐसे चक्रवाती तूफान हैं, जो जमीन पर बनते हैं। ये तूफान ज्यादातर मेडिटेरेनियन क्षेत्र के तापमान में उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों से गर्म हवा और उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्रों से ठंडी हवा के मिश्रण की वजह से होने वाले उतार-चढ़ाव के कारण बनते हैं।
- पश्चिमी विक्षोभ का आकार एक घुमावदार, सर्पीला होता है। इसके नीचे का मुंह छोटा होता है (जो समुद्र तल से लगभग 5,500 मीटर की ऊंचाई पर बनता है) और ऊपर का मुंह चौड़ा होता है (जो समुद्र तल से 9,000 मीटर से अधिक की ऊंचाई पर बनता है)।
- वैसे तो स्टॉर्म सिस्टम पूरे साल बनते रहते हैं, लेकिन ये ज्यादातर दिसंबर और अप्रैल के बीच भारत आते हैं, क्योंकि उन्हें एक जगह से दूसरी जगह ले जाने वाली उपोष्णकटिबंधीय पछुआ जेट स्ट्रीम के रास्ते में सर्दियों के दौरान बदलाव आ जाता है और वह हिमालय के नजदीक पहुंच जाता है। बाकी साल के लिए ये जेट स्ट्रीम हिमालय के ऊपर से होते हुए तिब्बती पठार और चीन के ऊपर से गुजरती है। इस जेट स्ट्रीम का रास्ता सूरज की स्थिति के अनुसार बदलता रहता है।
- पश्चिमी विक्षोभ अपनी यात्रा के दौरान भूमध्य सागर, काला सागर और कैस्पियन सागर से नमी एकत्र करते हैं और पश्चिमी हिमालय से टकराने से पहले ईरान और अफगानिस्तान से होकर गुजरते हैं। मजबूत पश्चिमी विक्षोभ मध्य और पूर्वी हिमालय तक पहुंचते हैं और नेपाल व पूर्वोत्तर भारत में बारिश और बर्फबारी का कारण बनते हैं। पिछली बार 2019 में ये स्टॉर्म सिस्टम पूरे ताकत के साथ इस देश आए थे। तब से उनके आने में या तो देरी हुई है या फिर वे कमजोर रहे हैं।
- कम दबाव वाले ये तूफान उत्तर-पश्चिम भारत में किसानों को रबी की फसल उगाने, हिमालय में बर्फ लाने और उत्तरी नदियों के प्रवाह को बनाए रखने में मदद करते हैं। वे पूरे साल धरती के चक्कर लगाने वाली उपोष्णकटिबंधीय पछुआ जेट स्ट्रीम नाम के वायु प्रणाली के माध्यम से इस देश तक पहुंचते हैं।
- किसी बढ़ते हुए पश्चिमी विक्षोभ से पहले गर्म, नम हवा आती है और उसके बाद ठंडी, शुष्क हवा।
- यह पश्चिमी विक्षोभ दिसंबर और जनवरी जैसे अत्यधिक सर्दियों वाले महीनों में तापमान गर्म रखता है और फरवरी और मार्च में तापमान को बढ़ने से रोकता है।
- पश्चिमी विक्षोभ बर्फबारी का पहला स्रोत भी है, जिससे सर्दियों के दौरान हिमालय के ग्लेशियरों पर दोबारा बर्फ जम पाती है। इन्हीं ग्लेशियरों से गंगा, यमुना और सिंधु जैसी प्रमुख हिमालयी नदियों के साथ-साथ अनगिनत पहाड़ी झरनों और दूसरी नदियों को भरपूर पानी मिल पाता है।
- पश्चिमी विक्षोभ जो कुछ लाता है, वह सब का सब अच्छा हो, ऐसा जरूरी नहीं है। वे ओले भी लाते हैं, जिसकी वजह से खेत में खड़ी फसलों को नुकसान पहुंचता है। साथ ही यह कोहरे के लिए जिम्मेदार हैं, जिससे वायु, रेल, और सड़क सेवाओं में रुकावट आती है और इनकी वजह से ही बादल फटते हैं, जिससे अचानक बाढ़ आती है।
पश्चिमी विक्षोभ के बदलते प्रतिरूप का प्रभाव :
- भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार, वर्ष 2021का दिसंबर माहदेश में अब तक का सबसे गर्म महीनाथा। उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में पूरे साल की 30 फीसदी बारिश सर्दियों में होती है। लेकिन, इस बार यहां बरसात में 83 फीसदी तक की कमी देखी गई। इसके बाद जनवरी का मौसम सामान्य रहा, लेकिन सारे रेकॉर्ड तोड़ते हुए 1901 के बाद इस बार की फरवरी सबसे गर्म रही। उत्तर पश्चिमी क्षेत्र में 76 फीसदी कम बारिश हुई।
- 2020-21 के बाद के वर्षों में असामान्य सर्दी का प्रमुख कारण पश्चिमी विक्षोभ के बदलता प्रतिरूप है, जो मेडिटेरेनियन क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले चक्रवाती तूफानों की एक श्रृंखला निर्मित करता है।
- पश्चिमी विक्षोभ से बनने वाले बादलों का सर्दी के मौसम के दौरान अधिकतम तापमान पर हल्का प्रभाव पड़ता है। लेकिन, ये बादल इस बार की सर्दी में गायब थे, इसलिए हिमालय से बहने वाली ठंडी उत्तरी हवाओं के कारण उत्तर भारतीय मैदानी इलाकों में दिसंबर और जनवरी के अधिकांश दिनों में तेज शीत लहरें और ठंड महसूस की गई।
- देश में पिछले साल कमजोर पश्चिमी विक्षोभ के कारण मार्च में तापमान बढ़ गया था। इस कारण पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में 30-40 फीसदी तक गेहूं की फसल का नुकसान हो गया। इसके नतीजे बहुत गंभीर रहे। घरेलू गेहूं की कीमतें आसमान छू गईं और केंद्र को गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से लेकर अपने गेहूं के भंडार को कम कीमतों पर बेचने तक, कई मुश्किल फैसले लेने के लिए मजबूर होना पड़ा।
- पिछले 3 वर्षों से दुनिया ला नीना फेज में है। इसका संबंध प्रशांत महासागर में समुद्री सतह के ठंडा होने से है। इसकी वजह से गर्म ट्रॉपिकल हवा का तापमान गिर जाता है और पश्चिमी विक्षोभ को बनाने के लिए जरूरी तापमान का उतार-चढ़ाव कमजोर पड़ जाता है।
- आमतौर पर अल नीनो-दक्षिणी दोलन (ईएनएसओ) के ला नीना फेज के दौरान पश्चिमी विक्षोभ कमजोर पड़ जाते हैं। इस कारण सर्दियां शुष्क हो जाती हैं। वहीं, अल नीनो फेज में हालात इसके उलट होते हैं।
- पश्चिमी विक्षोभ उत्तरी अटलांटिक महासागर पर हवा के दबाव के आकस्मिक उतार-चढ़ाव यानी उत्तरी अटलांटिक दोलन से भी प्रभावित होते हैं। इसमें मध्य उत्तरी अटलांटिक में अजोरस द्वीप समूह के ऊपर उच्च दबाव क्षेत्र और आइसलैंड पर कम दबाव वाले क्षेत्र बनते हैं।
पश्चिमी विक्षोभ के बदलते प्रतिरूप का कारण :
- यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग, यूके के अनुसार “पश्चिमी विक्षोभ आमतौर पर कमजोर होते जा रहे हैं और इसलिए अपने साथ कम बारिश लाते हैं। लेकिन, जब वे ज्यादा बारिश लेकर आते हैं, तब हालात बहुत खराब हो जाते हैं। बीते 8 वर्षों के दौरान दिसंबर माहमें आए पश्चिमी विक्षोभ 2017 और 2019 को छोड़कर काफी कमजोर रहे हैं।
- इसका मुख्य कारण दिसंबर में उपोष्णकटिबंधीय पछुआ जेट स्ट्रीम का उत्तर की ओर खिसकना है।
- इस तरह के बदलाव से न केवल पश्चिमी विक्षोभ के भारत से टकराने की संभावना कम हो जाती है, बल्कि इससे तिब्बती पठार या यहां तक कि चीन और रूस तक उच्च अक्षांशों को प्रभावित करने की संभावना भी बढ़ जाती है।
- यह अप्रत्यक्ष रूप से दक्षिण-पश्चिम मॉनसून को प्रभावित कर सकता है, जो भारत की सालाना बारिश के 80 फीसदी हिस्से के लिए जिम्मेदार है। बर्फ अपने ऊपर पड़ने वाली सूरज की अधिकांश किरणों को परावर्तित कर देती है और जमीन को गर्म होने से रोकती है। इस घटना को अल्बेडो प्रभाव कहा जाता है।
- अगर तिब्बती पठार पर ज्यादा बर्फबारी होती है, तो यह उतना गर्म नहीं होगा, जितना इसे होना चाहिए। यह हालात जून में आने वाली मॉनसूनी हवाओं में रुकावट डालेंगे। सर्दियों के मौसम में जब उपोष्णकटिबंधीय पछुआ जेट स्ट्रीम ध्रुवीय जेट स्ट्रीम से मिलती है, तब वह ऊपर की ओर बढ़ती है। आर्कटिक वॉर्मिंग की वजह से इस तरह के मेल की संभावना बढ़ जाती है, जो ध्रुवीय जेट स्ट्रीम को लहरदार बनाती है।
- हालांकि, भारत में सर्दियों के दौरान पश्चिमी विक्षोभ का आना काफी कम हो गया है, लेकिन गर्मियों में इसके आने की संभावना काफी बढ़ गई है।
- आर्कटिक क्षेत्र में वॉर्मिंग के कारण उपोष्णकटिबंधीय पछुआ जेट स्ट्रीम गर्मी के मौसम में नीचे की ओर बढ़ रही है। इससे गर्मी, मॉनसून और उसके बाद पश्चिमी विक्षोभ के दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के संपर्क में आने की संभावना बढ़ जाती है।
- इसके साथ ही बंगाल की खाड़ी या अरब सागर से उत्तर की ओर बढ़ने वाली स्थानीय संवहन प्रणालियों जैसे कि उष्णकटिबंधीय अवसाद से भी उसके संपर्क की संभावना बढ़ जाती है। इस तरह का संपर्क विनाशकारी मौसमी आपदाओं का कारण बन सकता है।
- पश्चिमी विक्षोभ के कारण उपोष्णकटिबंधीय अवसाद भारत के उन हिस्सों में भारी बारिश का कारण बनते हैं, जहां वे आमतौर पर नहीं जाया करते। जून 2013 में पश्चिमी विक्षोभ के कारण हीउत्तराखंड में बाढ़ आई थी, जिसमें 6,000 से अधिक लोग मारे गए और 1.1 अरब अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ था।
- दक्षिण-पश्चिम मॉनसून से जुड़े एक उष्णकटिबंधीय अवसाद के बाद पश्चिमी विक्षोभ में नमी आई और फिर बाढ़ आने की शुरुआत हुई। मई 2021 में गुजरात के तट पर तौकते चक्रवातआया था। इस चक्रवात के पश्चिमी विक्षोभ से मिलने के कारण दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में भारी बारिश हुई। इस कारण राष्ट्रीय राजधानी का अधिकतम तापमान 16 डिग्री तक गिर गया।
निष्कर्ष:
- हर दिन गर्म होती दुनिया में मौसमी घटनाएं और अधिक अप्रत्याशित हो रही हैं। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि अभी सटीक प्रभाव का अध्ययन किया जाना बाकी है।
स्रोत- डाउनटू अर्थ
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मुख्य परीक्षा प्रश्न:
- भारत में पश्चिमी विक्षोभ के कारणों एवं प्रभावों को स्पष्ट कीजिए।