सीबीआइ को संवैधानिक बनाने की पहल
सीबीआइ को संवैधानिक बनाने की पहल
मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन2
(गैर-संवैधानिक संस्थाएं)
संदर्भ:
- देश में अनेक प्रयासों के बावजूद केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआइ को आजादी के पचहत्तर सालों में भी संवैधानिक वैधता नहीं मिल पाई है।
- हालिया समाचारों के अनुसार, केंद्र सरकार सीबीआइकी भूमिका और कार्यप्रणाली को वैधानिक श्रेणी में लाकर इसे देशव्यापी संस्था बनाने की तैयारी में काम कर रही है।
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के बारे में :
- सीबीआई की स्थापना की अनुशंसा, भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए, संथानम आयोग ने की थी। सीबीआई कोई वैधानिक संस्था नहीं है क्योंकि सीबीआई की स्थापना 1963 मे गृह मंत्रालय की एक संकल्प के द्वारा की गई है।
- सीबीआई को कार्य करने की शक्ति दिल्ली विशेष पुलिस अधिष्ठान अधिनियम, 1946से प्राप्त होती है।
- सीबीआई का आदर्श वाक्य उद्यम, निष्पक्षता तथा ईमानदारी है।
- यहकेंद्र सरकार की मुख्य अनुसंधान एजेंसी है।
- सीबीआई निदेशक की नियुक्ति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समितिकी अनुसंशा पर की जाती है। इस समिति में प्रधानमंत्री के आलावा लोक सभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश या उनके द्वारा नामित सर्वोच्च न्यायालय का कोई न्यायाधीश होता है।
- केन्द्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003द्वारा सीबीआई के निदेशक का कार्यकाल दो वर्ष तय किया गया।
- सीबीआई अकादमी गाजियाबाद उत्तर प्रदेश में स्थित है। इसने 1996 में कार्य करना आरंभ किया था। इसके पूर्व सीबीआई प्रशिक्षण नई दिल्ली में संचालित होते थे।
- शासन प्रशासन में भ्रष्टाचार की रोकथाम तथा सत्य निष्ठा एवं ईमानदारी बनाए रखने के लिए सीबीआई की महत्वपूर्ण भूमिका है। यह केंद्रीय सतर्कता आयोग तथा लोकपाल की भी सहायता करती है।
सीबीआईकेप्रमुखकार्य :
- केंद्र सरकार के कर्मचारिओं के भ्रष्टाचार और अनियमितता आदि के मामलों की जांच करना।
- राजकोषीय और आर्थिक कानूनों जैसे आयात-निर्यात से जुड़े कानून, विदेशी मुद्रा विनिमय आदि के उल्लंघन के मामलो की जांच करना।
- पेशेवर अपराधियों के संगठित गिरोहों द्वारा किए गए गंभीर अपराधों की जांच करना।
- भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसियों तथा विभिन्न राज्य पुलिस बलों के बीच समन्वय स्थापित करना।
- राज्य सरकारों के अनुरोध पर सार्वजनिक महत्व के मामलोंकी जांच करना।
- भारत सरकार से संबंधित ऐसे मामले जोप्रवर्तन के साथ केंद्रीय नियमों को भंग करते हों की जांच करना।
सीबीआइकोसंवैधानिकसंस्था मानने के पक्ष में तर्क:
- सुप्रीम कोर्ट ने 1990 में दिए एक फैसले में डीएसपीई अधिनियम की वैधानिकता को स्वीकार किया था।
- तीन न्यायमूर्तियों की पीठ ने 2007 में और संविधान पीठ ने 2010 में सीबीआइ के गठन को संवैधानिक ठहराया था।
- बहुचर्चित विनीत नारायण मामले में सुप्रीम कोर्ट सीबीआइ के मौजूदा स्वरूप के पक्ष कोसही माना था।
- आजादी के बाद इसके कार्यक्षेत्र में विस्तार करने के साथ 1963 में इसके दायरे में भारतीय दंड विधान की अपराध को संज्ञान में लाने वाली 91 धाराएं जोड़ दी गईं।
- 16 अन्य केंद्रीय अधिनियम और भ्रष्टाचार निरोधक कानून जोड़कर इसे व्यापक बनाया गया।
- 1 अप्रैल 1963 को गृह मंत्रालय के सचिव वी विश्वनाथन ने एक प्रस्ताव के तहत इसे कार्मिक मंत्रालय के अधीन कर दिया।
- तदर्थ संस्था होने के बावजूद, सीबीआइ तीन स्तरों पर काम करती है। पहला, केंद्र सरकार और केंद्रशासित प्रदेशों के मामले। दूसरा, उच्च और सर्वोच्च न्यायालय से मिले आदेश का पालन, तीसरा, राज्य सरकारों के आग्रह पर जांच करना।
- सीबीआइ का वर्तमान ढांचा तीन शाखाओं के अंतर्गत काम करता है। पहली, भ्रष्टाचार निरोधक शाखा, दूसरी, आर्थिक अपराध शाखा और तीसरी, विशेष अपराध शाखा।
सीबीआइकोअसंवैधानिकसंस्था मानने के पक्ष में तर्क:
- सीबीआइ के लिए अलग से कोईकानून नहीं है। सीबीआइ की श्रेणी, कार्यप्रणालीऔर क्षेत्र अधिकार निर्धारित नहीं हैं। इसकी निष्पक्षता और विश्वसनीयता पर संदेह की भावना रहती है। ऐसे अनेक कारणों से गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने इसे दस साल पहले एक आदेश के जरिए असंवैधानिक संस्था करार दिया था।
- सीबीआइ कावर्तमान में भी ‘दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टेब्लिशमेंट एक्ट 1946’ के तहत काम करना।
- सीबीआइ की मौजूदा स्थापना का कानून संसद से पारित न होना
- 1 अप्रैल, 1963 को सीबीआइ का गठन तत्कालीन सचिव वी विश्वनाथन के महज एक पृष्ठीय प्रस्ताव से किया गया था। इस लिहाज से अदालत ने सीबीआइ के तत्कालीन गठन को मौजूदा अनिवार्यताओं को पूरा करने के लिए एक अस्थायी उपाय माना था।
- इस प्रस्ताव को वैधानिक स्वरूप देने के क्रम में न तो कोई अध्यादेश जारी हुआ था और न ही कानून में कोई संशोधन हुआ।
- इसकी स्थापना में केंद्रीय मंत्रिमंडल की सहमति न होना
- इसकी कार्यप्रणाली को स्वीकृति राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृति न मिलना। इसलिए सीबीआइ के आदेश को विभागीय आदेश माना जाता है, कानूनी आदेश नहीं।
- 1946 के जिस कानून से सीबीआइ अस्तित्व में आई थी, उसके अनुसार राज्यों में अपराध दर्ज करने और जांच के लिए राज्य सरकारों की अनुमति आवश्यक है। सामान्य तौर पर राज्य सरकारें अनुमति दे देती हैं, लेकिन सीबीआइ की वैधानिकता पर उच्च न्यायालय द्वारा ही प्रश्नचिह्न लगा देने के बाद से कई राज्य सरकारों ने दी हुई सहमतियां वापस भी ले ली हैं। पिछले सात साल में नौ राज्य सरकारें सीबीआइ से सामान्य सहमति (जनरल कसेंट) वापस ले चुकी हैं।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सीबीआइ को पिंजरे का तोता कहा जाना
- वर्तमान में सीबीआइ एक ऐसा ढांचा है, जिसे एक साथ तीन- गृह, कानून और कार्मिक- मंत्रालय नियंत्रित करते हैं। इसलिए सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआइ को पिंजरे का तोता कहते हुए इसे स्वतंत्र और स्वायत्त संस्था बनाने का निर्देश दिया था।
निष्कर्ष:
- सीबीआई एक महत्वपूर्ण संस्था है।भविष्य में यहसंस्थाराजनीतिज्ञों के हाथ का खिलौना न बनेऔर दूसरे, इसकी भूमिका न्यायपालिका, निर्वाचन आयोग और नियंत्रक एवं लेखा महानिरीक्षक जैसी बने। इसलिए सरकार को इस दिशा में कोई विशिष्टपहल करनी चाहिए।
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मुख्य परीक्षा प्रश्न
वर्तमान में सीबीआइक्याएक संवैधानिकसंस्था है? इसकीतार्किक विवेचना कीजिए।