स्मॉल सैटेलाइट लांच व्हीकल (SSLV-D2)

 

RACE IAS : Best IAS Coaching in Lucknow  I    स्मॉल सैटेलाइट लांच व्हीकल  I   Current Affairs

 

स्मॉल सैटेलाइट लांच व्हीकल

(SSLV-D2)

मुख्य परीक्षा सामान्य अध्ययन:3

(विज्ञान और प्रोद्योगिकी)

चर्चा में क्यों:

  • हाल ही में इसरो ने अपना सबसे छोटा रॉकेट SSLV-D2 को सफलता पूर्वक लांच किया
  • इस रॉकेट को 10 फरवरी, 2023 को सतीश धवन स्पेस सेंटर श्रीहरिकोटा,आंध्र प्रदेश से प्रक्षेपित किया गया।

प्रमुख बिंदु:

  • SSLV-D2 रॉकेट के साथ तीन सैटेलाइट्स को भी अंतरिक्ष में भेजा गया।
  1. EOS-07

पृथ्वी का अवलोकन करने हेतु यह उपग्रह इसरो द्वारा निर्मित है 

इसका वजन 156.3 कि.ग्रा. है

  1. Azaadi-SAT

यह उपग्रह चेन्नई की स्पेस स्टार्टअप स्पेसकिड्ज द्वारा बनाया गया है 

इसका वजन 8.7 कि.ग्रा.है

यह उपग्रह भारत की 750 छात्राओं द्वारा बनाया गया है   

  1.  Janus-1

यह अमेरिकी कंपनी अंतारिस की सैटेलाइट है 

इसका वजन 10.2 कि.ग्रा.है ।

  • इन तीनों सैटेलाइट्स को 450 किलोमीटर दूर सर्कुलर ऑर्बिट में स्थापित किया गया।
  • इसरो ने बीते साल भी इस रॉकेट को SSLV-D1 नाम से लांच करने की कोशिश की थी। लेकिन यह सफल साबित नहीं हुआ था।

SSLV-D2 के बारे में:

  • यह रॉकेट तीन ठोस प्रणोदन चरणों वाला है जिसमें एक तरल प्रणोदन आधारित वेग टर्मिनल मॉड्यूल भी है। 
  • इसका उद्देश्य लघु एवं सूक्ष्म उपग्रहों द्वारा वाणिज्यिक बाजारों की लॉन्च ऑन डिमांड को पूरा करना।
  • यह छोटे उपग्रहों को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने पर आधारित है।
  • SSLV-D2 का कुल वजन लगभग 120 टन है।  
  • ISRO के अनुसार, एसएसएलवी रॉकेट की लागत करीब 56 करोड़ रुपए है।
  • इसकी लंबाई 34 मीटर और चौड़ाई 2 मीटर है।

विशेषताएं:

  • इसरो के मुताबिक यह रॉकेट लॉन्च ऑन डिमांड की तकनीक पर काम करता है।
  • यह पृथ्वी की निचली कक्षाओं में 500 किलोग्राम के उपग्रहों के प्रक्षेपण को पूरा करने की क्षमता रखता है।
  • इसकी लागत बहुत ही कम है।
  • इसमें एक से अधिक उपग्रहों को समायोजित करने की क्षमता है
  • उपग्रहों के प्रक्षेपण हेतु कम से कम बुनियादी ढांचे की आवश्यकता पड़ती है
  • इसका टर्न अराउंड टाइम बहुत ही कम है यानि यह बहुत कम समय में ऑर्बिट की परिक्रमा पूरी करने में सक्षम है। 

महत्व:

  • छोटे उपग्रहों के विकास को बढ़ावा मिलेगा। 
  • रोजगार के अनेक अवसर पैदा होंगे।  
  • देश में सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थाओं को अपने प्रयोग हेतु लघु उपग्रह प्रक्षेपित करने का अवसर प्राप्त होगा। 
  • आने वाले वर्षों में लघु उपग्रहों की मांग बढ़ेगी। 
  • व्यावसायिक एवं वाणिज्यिक गतिविधियों के अवसर बढ़ेंगे। 
  • तकनीकी के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर भारत की साख बढ़ेगी।

रॉकेट क्या है: 

  • रॉकेट एक अंतरिक्ष यान है  जो किसी वाहन या पेलोड को हवा में आगे बढ़ाने का काम करता है। रॉकेट इंजन किसी वस्तु को आसमान की तरफ बढ़ाने के लिए थ्रस्ट यानी  एक प्रकार का बल पैदा करता है।

रॉकेट कैसे काम करता है:

  • रॉकेट में भी अन्य इंजन की भांति ईंधन का दहन होता है।  रॉकेट ईंधन को गर्म गैस में परिवर्तित करते हुए गैस को पीछे बाहर की ओर धकेलकर आगे की तरफ बढ़ता है।
  • रॉकेट में ईंधन को जलाने के लिए आक्सीकारक होते हैं। इन आक्सीकारकों को प्रोपेलएंट्स कहा जाता है। ये प्रोपेलएंट्स ठोस और तरल अवस्था में होते हैं। 
  • रॉकेट ‘न्यूटन के गति के तीसरे नियम क्रिया-प्रतिक्रिया’ के आधार पर अंतरिक्ष में गति करते हैं। 

रॉकेट के प्रकार:

  • रॉकेट इंजन में प्रयोग होने वाले ईंधन के आधार पर मुख्यत: दो भागों में वर्गीकृत किया जाता है:
  • तरल ईंधन रॉकेट: आधुनिक रॉकेट के इंजनों में तरल ईंधन का प्रयोग किया जाता है। जैसे-  स्पेस शटल का मुख्य इंजन और रसियन सोयूज रॉकेट।
  • ठोस ईंधन रॉकेट: अंतरिक्ष यान के साइडों में दो सफेद रंग के ठोस प्रणोदकों का प्रयोग किया जाता है। आतिशबाजी में ठोस ईंधन वाले रॉकेट का प्रयोग किया जाता है।
  • आयन और प्लाज्मा पर आधारित रॉकेटों का भी प्रयोग किया जाता है। 

रॉकेट का प्रक्षेपण:

  • उपग्रहों को कक्षाओं में आसानी स्थापित करने के लिए सदैव उच्च अक्षांश पर भूमध्य रेखा से लांच किया जाता है। 

रॉकेट के उपयोग:

  • अंतरिक्ष उड़ान हेतु।
  • पैराशूट की हार्ड लैंडिंग को सॉफ्ट लैंडिंग में बदलने के लिए भी रॉकेट का इस्तेमाल किया जाता है।
  • विज्ञान और अनुसंधान के क्षेत्र में।
  • सैन्य गतिविधियों हेतु।   
  • खेल और मनोरंजन के क्षेत्र में। 

रॉकेट से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य:

  • दुनियाभर रॉकेट का सबसे पहले उपयोग चीन द्वारा सन 1200 में किया गया था।  
  • अमेरिका द्वारा वर्ष 1969 में Saturn V रॉकेट की सहायता से पहली बार मानव को चंद्रमा पर उतारा था।
  • भारत ने अपना पहला रॉकेट 21 नवंबर, 1963 को लॉन्च किया था।  यह रॉकेट भारत ने अमेरिका से लिया था।
  • भारत  ने अपना पहला स्वदेशी रॉकेट रोहिणी-75 को 20 नवंबर 1967 को लॉन्च किया था।
  • पृथ्वी के निचली कक्षा में जाने के लिए रॉकेट की स्पीड 7.8 km/s (यानी 28,100 km/h) होती है।
  • पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से बचने और किसी दूसरे गृह या चाँद पर जाने के लिए रॉकेट को पलायन वेग 11.19 km/s  (यानी 40,284 km/h) से अधिक स्पीड पर लांच किया जाता है।  

निष्कर्ष:

  • भारत के इसरो द्वारा प्रक्षेपित यह रॉकेट वर्ष 2023 का पहला सफल परीक्षण रहा है।
  • वर्ष 2023 में इसरो द्वारा निम्नलिखित अभियानों को शुरू किए जाने की योजना है: मानवयुक्त अंतरिक्ष अभियान ‘गगनयान’, वनवेब इंडिया-2, पीएसएलवी-सी 55, रीयूजेबल प्रक्षेपण यान और नासा-इसरो सार अभियान(निसार)। 

-----------------------------------------------

मुख्य परीक्षा प्रश्न:

       हाल ही में इसरो द्वारा प्रक्षेपित SSLV-D2 रॉकेट की विशेषताओं एवं इसके महत्व के बारे में लिखिए।