समावेशी विकास हेतु समावेशी ढांचे की आवश्यकता

समावेशी विकास हेतु समावेशी ढांचे की आवश्यकता

मुख्य परीक्षा सामान्य अध्ययन:3

(भारतीय अर्थव्यवस्था से संबंधित मुद्दे एवं चुनौतियां)

संदर्भ:

  • देश में समावेशी विकास के लिए समावेशी ढांचे का होना आवश्यक होता है।
  • गांवों में बुनियादी सुविधाएं न होना, गांवों से पलायन और शहरों में जनसंख्या का दबाव बढ़ना, कृषि से जुड़ी अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ना, समावेशी विकास की दृष्टि से सही नहीं है। विशेषज्ञों की राय है कि भारत में तीव्र समावेशी विकास का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए कृषि क्षेत्र पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • आजादी के बाद भारत के सामने प्रमुख रूप से दो चुनौतियां रही हैं: पहली, राष्ट्र निर्माण और दूसरी सामाजिक-आर्थिक प्रगति। इनके समाधान हेतु विकास प्रशासन द्वारा समाज के बहुमुखी और नियोजित विकास पर जोर दिया जाने लगा। इस तरह के आवाजविहीन, जड़विहीन और भविष्यविहीन विकास से देश का समावेशी विकास नहीं हो पाया है।

समावेशी विकास क्या है:

  • समावेशी विकास, विकास की एक ऐसी परिकल्पना है, जिसमें रोजगार के अवसर निहित होते हैं और यह गरीबी को कम करने में मदद करता है। यह अवसर की समानता तथा शिक्षा और कौशल के माध्यम से लोगों को सशक्त करता है। समावेशी विकास की लक्ष्योन्मुख अवधारणा में सभी बुनियादी सुविधाएं निहित होती हैं, जैसे- आवास, भोजन, पेयजल, स्वास्थ्य और आजीविका के साधन आदि।
  • समावेशी विकास में सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और तकनीकी विकास सहित अन्य सभी विकास शामिल होते हैं।
  • समावेशी विकास की अवधारणा सबसे पहले 11वीं पंचवर्षीय योजना में प्रस्तुत की गयी थीI
  • उल्लेखनीय है कि वर्ष 2012-17 के दौरान 12वीं पंचवर्षीय योजना पूरी तरह से समावेशी विकास पर केंद्रित थी तथा इसकी थीम ‘तीव्र, समावेशी एवं सतत विकास थी I

समावेशी विकास हेतु सरकार की पहलें/योजनाएं:

सरकार द्वारा समावेशी विकास का सामाजिक-आर्थिक ढांचागत विकास हेतु निम्नलिखित योजनाएं शुरू की गयी हैं:

  • इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में देश में समावेशी विकास के ढांचे को सशक्त करने के लिए वर्ष 2006 में नरेगा योजना को शुरू किया गया था। गौरतलब है कि इस नरेगा को 2 अक्तूबर 2009 को महात्मा गांधी के नाम पर मनरेगा की संज्ञा दी गई।
  • इस योजना के माध्यम से देश के करोड़ों नागरिक लाभान्वित हो चुके हैं। यह योजना ग्रामीण रोजगार की दृष्टि से एक क्रांतिकारी पहल है। इसने देश के समावेशी ढांचे को न केवल पुख्ता किया, बल्कि पलायन से लेकर गरीबी और भुखमरी आदि पर भी अंकुश लगाने में कारगर सिद्ध हुई है।

सामाजिक विकास हेतु

दीनदयाल अंत्योदय योजना,  समेकित बाल विकास कार्यक्रम,  मिड-डे मील,  मनरेगा,  सर्व शिक्षा अभियान

वित्तीय समावेशन हेतु:

मोबाइल बैंकिंग,  प्रधानमंत्री जन धन योजना,  प्रधानमंत्री मुद्रा योजना,  वरिष्ठ पेंशन बीमा  

महिला उत्थान हेतु:

महिलाओं के लिए स्टार्ट-अप इंडिया, सपोर्ट टू ट्रेनिंग एंड एम्प्लॉयमेंट प्रोग्राम फॉर वीमेन, महिला उद्यमिता मंच

प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना

किसानों एवं कृषि के विकास हेतु

मृदा स्वास्थ्य कार्ड,  नीम कोटेड यूरिया, प्रधानमंत्री कृषि सिचाई,

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन

दिव्यागजनों के विकास हेतु

निःशक्तता अधिनियम 1995,  कल्याणार्थ राष्ट्रीय न्यास अधिनियम 1999,  सिपडा,  सुगम्य भारत अभियान,

स्वावलंबन योजना, दिव्यांगजन अधिकार नियम, 2017

संयुक्त राष्ट्र ने 2030 तक गरीबी के सभी रूपों, मसलन बेरोजगारी, निम्न आय और भुखमरी आदि को समाप्त करने का लक्ष्य तय किया है।

समावेशी विकास से संबंधित चुनौतियां :

  • ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन में वृद्धि: समावेशी विकास के अभाव में गांवों से शहरों की पलायन में वृद्धि हो जाती है। गावों में बुनियादी सविधाएँ न होने के कारण लोग गाँव से शहरों की तरफ पलायन करते हैं। इससे शहरों में जनसंख्या में अत्यधिक बढ़ोत्तरी होने से विविध समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं।
  • कृषि उत्पादकता में गिरावट: शहरी क्षेत्रों की तरफ पलायन से कृषि अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और इससे कृषि उत्पादकता में कमी होने लगती है।
  • भ्रष्टाचार:  भ्रष्टाचार से न केवल जनता में सरकार के प्रति अविश्वास की भावना बढ़ती है बल्कि इसका किसी देश की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अत: भ्रष्टाचार समावेशी विकास की गति में बाधा उत्पन्न करता है।
  • रोजगार सृजन में कमी: ग्रामीण क्षेत्रों में समावेशी विकास के अभाव में स्थायी एवं दीर्घकालीन रोज़गार साधनों की हमेशा कमी रहती है। ग्रामीण क्षेत्रों में पहले से संचालित योजनाएं लोगों को स्थाई रोजगार देने में समर्थ नहीं होती हैं।

समावेशी विकास हेतु समाधान:

  • पिछड़े राज्यों को प्राथमिकता: अन्य राज्यों की तुलना में पिछड़े राज्यों को भौतिक एवं मानव पूंजी, प्रौद्योगिकी, संस्थानों के निर्माण और बेहतर अभिशासन आदि में निवेश करते हुए अधिक सहयोग प्रदान करने की आवश्यकता है।
  • अर्थव्यवस्था का औपचारिकीकरण: सामाजिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने हेतु औपचारिक क्षेत्र में रोजगार सृजित किए जाने चाहिए। वर्तमान में 90% से अधिक रोजगार असंगठित क्षेत्र से संबंधित है।
  • शासन में सुधार: संसाधनों के समान वितरण को सुनिश्चित करने हेतु शासन को जवाबदेह, कुशल और सहभागी बनाने के साथ इसकी कार्य प्रणाली में सुधार किए जाने चाहिए।
  • सामाजिक अवसंरचना को सुदृढ़ बनाना: सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज, बीमा कवरेज में वृद्धि, कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने और रोजगार सृजन और उद्यमिता को प्रोत्साहित करने वाले परिवेश तथा स्वास्थ्य एवं शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय में वृद्धि करने की दिशा में प्रयास किए जाने चाहिए।
  • सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योगों (एमएसएमई) को बढ़ावा देना: चूंकि एमएसएमई एक श्रम गहन क्षेत्र है, इसलिए इसे राज्य के समर्थन के माध्यम से प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पहुंच सुनिश्चित करने हेतु विद्युत् कटौती, जीएसटी के कारण अनुपालन लागत में वृद्धि, विपणन कौशल का अभाव आदि विद्यमान चुनौतियों का समाधान किया जाना चाहिए।
  • कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देना: इस क्षेत्र को प्रौद्योगिकी के उपयोग और कम लागत के उर्वरक तथा कीटनाशकों दवाओं की सुविधाएं सरकार को उपलब्ध करनी चाहिए।

निष्कर्ष:

  • सरकार ने देश के समावेशी विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले मनरेगा के लिए केंद्रीय बजट 2023-24 में साठ हजार करोड़ रुपए आबंटित किए गए हैं।
  • यह 2022-23 के बजट में तिहत्तर हजार करोड़ के मुकाबले अट्ठारह फीसद और संशोधित अनुमान से करीब बत्तीस फीसद कम है।
  • मनरेगा में बजट की कटौती ग्रामीण रोजगार की दिशा में जारी समावेशी विकास के लिए एक नई समस्या बन सकती है।
  • मनरेगा दुनिया का सबसे बड़ा सामाजिक कल्याण कार्यक्रम है, जिसने ग्रामीण श्रम में एक सकारात्मक बदलाव को प्रेरित किया है।
  • देश में समावेशी विकास के समावेशी ढांचे के विकास हेतु सरकार द्वारा राज्य में खेतिहर मजदूरों को मजदूरी का भुगतान न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 के नियमों के तहत किया जाना चाहिए।
  • पंचायती राज शासन प्रणाली के विकेंद्रीकरण के साथ समावेशी ढांचे को मजबूत किया जाना चाहिए।
  • सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य तय किया था। विशेषज्ञों की राय है कि भारत में तीव्र समावेशी विकास का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए कृषि क्षेत्र पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

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मुख्य परीक्षा प्रश्न:

समावेशी विकास की अवधारणा क्या है? समावेशी विकास से संबंधित चुनौतियों एवं उनके समाधान के बारे में चर्चा कीजिए।