सियाचिन क्षेत्र में “ऑपरेशन मेघदूत” के 40 साल पूरे

सियाचिन क्षेत्र में “ऑपरेशन मेघदूत” के 40 साल पूरे

GS-2: अंतरराष्ट्रीय संबंध

(IAS/UPPCS)

प्रीलिम्स के लिए प्रासंगिक:

सियाचिन ग्लेशियर, ऑपरेशन मेघदूत, काराकोरम पर्वतमाला, नुब्रा घाटी, साल्टोरो रिज, ऑपरेशन अबाबील।

मेंस के लिए प्रासंगिक:

सियाचिन क्षेत्र के बारे में, ऑपरेशन मेघदूत, सियाचिन क्षेत्र में सेना की मजबूती हेतु भारत सरकार की पहलें, भारत के लिए इसका महत्त्व, निष्कर्ष।

17/04/2024

प्रसंग:

वर्ष 2024 में 13 अप्रैल को ऑपरेशन मेघदूत सियाचिन क्षेत्र में अपने संचालन के 40 वर्ष पूरे का चुका है। इसी  ऑपरेशन के तहत भारतीय सेना ने पाकिस्तान को खदेड़ कर काराकोरम पर्वतमाला में नुब्रा घाटी और साल्टोरो रिज पर सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा कर लिया। हालाँकि इस क्षेत्र में युद्धविराम लागू है, फिर भी यह ऑपरेशन आज भी जारी है। यह ऑपरेशन भारतीय सेना की वीरता और भारत सरकार की रणनीतिक सूझ-बूझ को प्रदर्शित करता है।  

सियाचिन क्षेत्र के बारे में:

  • बाल्टी भाषा में सियाचिन का अर्थ है "गुलाबों की भूमि' - 'सिया' एक प्रकार की गुलाब की प्रजाति है जो इस क्षेत्र में उगती है और 'चेन' का अर्थ है "बहुतायत में"।
  • सियाचिन की ऊंचाई 15,632 फीट है। सियाचिन में साल के हर महीने बर्फ जमी रहती है। यहां का तापमान -50 से -70 डिग्री सेल्सियस तक रहता है।
  •  यह दुनिया के सबसे ऊंचे और सबसे ठंडे युद्धक्षेत्र के रूप में जाना जाता है। यह एक बहुत ही रणनीतिक स्थान पर है जिसके बायीं ओर पाकिस्तान और दाहिनी ओर चीन है।

दुर्गम क्षेत्र:

  • 15,632 फीट की ऊंचाई पर स्थित सियाचिन ग्लेशियर के बारे में एक लद्दाखी कहावत है, "जमीन इतनी बंजर है और दर्रे इतने ऊंचे हैं कि केवल सबसे अच्छे दोस्त और सबसे खूंखार दुश्मन ही यहाँ आते हैं।" यह कहावत भारत और पाकिस्तान के बीच बर्फीले ग्लेशियर पर संघर्ष को दर्शाती है।
  • सियाचिन में तैनात सैनिकों को कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है और यहां बर्फीले तूफान आते रहते हैं। इसके अलावा यहां पर हिमस्खलन भी आम बात है। सियाचिन में तैनात सैनिकों को ऑक्सीजन की कमी और भोजन की समस्याओं से भी जूझना पड़ता है। हालांकि अब स्थितियां काफी बदल गई है और इसमें काफी सुधार हुआ है।
  • इस ग्लेशियर पर चरम मौसमी घटनाएं सबसे बड़ी दुश्मन हैं। लगभग 1,150 सैनिकों ने अपनी जान गंवाई है, जिनमें से अधिकांश अत्यधिक मौसम की मार के कारण मारे गए हैं।

भारत के लिए इसका महत्त्व:

  • भारत सियाचिन के महत्व को पहले से ही समझता था और उसका मानना था कि इसपर किसी भी तरह से पाकिस्तान या चीन का नियंत्रण नहीं होना चाहिए। पाकिस्तान ने 1963 में एक समझौते के तहत यहां की शक्सगाम घाटी को चीन को सौंप दिया। जैसे ही क्षेत्र पर चीन का नियंत्रण हुआ उसने तुरंत पर्वतारोहण अभियानों को शुरू कर दिया। चीन ऐसा करके इस क्षेत्र पर अपना कब्ज जाहिर करना चाहता था और अपना नियंत्रण स्थापित करना चाहता था।
  • जनवरी 2020 में, तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे के अनुसार, सियाचिन रणनीतिक तौर भारत के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है, जहां से चीन और पाकिस्तान द्वारा भारत के खिलाफ षड्यंत्रकारी गतिविधियों को अंजाम दिया जा सकता है, इसलिए इस विशेष क्षेत्र पर भारत का अनिवार्य रूप से नियंत्रण एवं कब्ज़ा होना चाहिए।
  • पीओके से भारत में घुसपैठ करने वाले आतंकवादियों के लिए यह एक प्रमुख मार्ग था लेकिन जब से भारत ने इस पर कब्जा किया, उसके बाद से यह क्षेत्र सुरक्षित हो गया। सियाचिन पर भारत के कब्जे के बाद आतंकवाद को भी रोकने में मदद मिली है।

अधिकार की लड़ाई:

  • सियाचिन भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजन की विरासत है। 1972 के शिमला समझौते के तहत खिंची गयी नियंत्रण रेखा (एलओसी) के हिस्से के रूप में एनजे-9842 तक के क्षेत्र को भारत और पाकिस्तान के द्वारा स्वीकार किया गया था लेकिन सियाचिन ग्लेशियर को अचिह्नित ही छोड़ दिया गया था।
  • भारत 1947 के जम्मू और कश्मीर विलय समझौते और 1949 के कराची समझौते के आधार पर इस क्षेत्र पर दावा करता है, जो एनजे-9842 से आगे युद्धविराम रेखा को "ग्लेशियरों के उत्तर की ओर" के रूप में परिभाषित करता है। दूसरी ओर, पाकिस्तान साल्टोरो रिज से आगे और सियाचिन से आगे 'उत्तर-पूर्व की ओर' के क्षेत्र पर अपना दावा करता है।

पाकिस्तान के लिए इसका रणनीतिक महत्त्व:

  • सियाचिन ग्लेशियर सिंधु नदी के उद्गम स्थल के पास स्थित है। यह पाकिस्तान के लिए जल संसाधन का महत्वपूर्ण स्रोत भी है। पीओके से भारत में घुसपैठ करने वाले आतंकवादियों के लिए यह एक प्रमुख मार्ग के रूप में उपयोग किया जाता था।
  • इस क्षेत्र के जरिए पाकिस्तान को चीन से सीधी कनेक्टिविटी मिल सकती है और साथ ही लद्दाख क्षेत्र और लेह-श्रीनगर राजमार्ग पर निगरानी हेतु रणनीतिक तौर पर एक महत्वपूर्ण पॉजिशन भी मिल सकती है। इस स्थिति में भारत के लिए गंभीर खतरा पैदा हो सकता है।

ऑपरेशन मेघदूत की शुरुआत:

  • 'ऑपरेशन मेघदूत' के 40 साल पूरे हो चुके हैं। पाकिस्तान का लक्ष्य 17 अप्रैल 1984 तक सियाचिन पर कब्जा करने का था लेकिन भारतीय सेना ने अपने शौर्य का परिचय देते हुए उसे नाकाम कर दिया।
  • साल 1984 में भारतीय सेना ने सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा किया था। पाकिस्तान सियाचिन पर कब्जा करना चाहता था और उसने 'ऑपरेशन अबाबील' चलाया था। इसके जवाब में भारतीय सेना ने 'ऑपरेशन मेघदूत' को अंजाम दिया था।
  • 13 अप्रैल को ही सियाचिन में सेना ने भारत का झंडा लहरा दिया। 1984 में 13 अप्रैल को ही बैसाखी थी और पाकिस्तान को भी अंदाजा नहीं था कि भारत त्यौहार के दिन ऐसा करेगा।
  • ऑपरेशन मेघदूत पिछले 40 साल से लगातार जारी है और जब तक पाकिस्तान और चीन दोनों के साथ राजनीतिक समाधान नहीं हो जाता, तब तक यह जारी रहेगा।

सियाचिन क्षेत्र में सेना की मजबूती हेतु भारत सरकार की पहलें:

  • जलवायु परिवर्तन का खामियाजा भी इस ग्लेशियर को भुगतना पड़ रहा है। 2015 में, थूथन, जो बेस कैंप में ग्लेशियर का शुरुआती बिंदु है, उस स्थान से एक किलोमीटर से अधिक पीछे चला गया था जहां यह मूल रूप से 1984 में था।
  • पिछले चार दशकों में सियाचिन बहुत कुछ बदल गया है, विशेष रूप से प्रौद्योगिकी, सुविधाओं में सुधार और सुचारू संचालन सुनिश्चित करने और जीवन बचाने के लिए साजो-सामान समर्थन के संदर्भ में। कुछ प्रमुख सुधार आवास, संचार, गतिशीलता, रसद और चिकित्सा सहायता और हरित पहल के क्षेत्रों में हुए हैं।
  • भारतीय सेना के अधिकारियों के अनुसार, सियाचिन में भारत की युद्ध क्षमता और बढ़ी है। हेवी लिफ्ट हेलीकॉप्टर और लॉजिस्टिक ड्रोन को भी सेना के बेड़े में शामिल किया गया है और उससे सेना मजबूत हुई है। इसके अलावा सेना ने सभी इलाकों में काम आने वाले वाहनों की तैनाती भी की है और पटरियों का एक व्यापक नेटवर्क बिछाया है।
  • पिछले पांच वर्षों में मोबाइल और डेटा कनेक्टिविटी में काफी सुधार हुआ है। वीसैट तकनीक की शुरूआत ने ग्लेशियर पर संचार में क्रांति ला दी है, जिससे सैनिकों को डेटा और इंटरनेट कनेक्टिविटी प्रदान की गई है। सैनिकों को टेलीमेडिसिन, विशेष कपड़े, पर्वतारोहण उपकरण, उन्नत राशन और समय पर मौसम अपडेट की सुविधा आदि प्रदान की जा रही है।
  • ऑल-टेरेन व्हीकल (एटीवी) और एटीवी पुलों के अलावा ग्लेशियर के पार गतिशीलता में सुधार, चिनूक हेवी-लिफ्ट हेलीकॉप्टर और लॉजिस्टिक ड्रोन के शामिल होने से सर्दियों के दौरान कट जाने वाली चौकियों पर तैनात कर्मियों को आवश्यक प्रावधानों की आपूर्ति में काफी सुधार हुआ है।

निष्कर्ष:

ऑपरेशन मेघदूत भारतीय सैन्य इतिहास में एक प्रेरणादायक अध्याय है। यह वीरता, कुशलता और रणनीतिक सोच का एक प्रतीक है। इस ऑपरेशन ने भारत की रणनीतिक स्थिति को मजबूत किया और पाकिस्तान की आक्रामकता को रोकने में मदद की। आज भी सियाचिन ग्लेशियर पर भारत का नियंत्रण बना हुआ है, जो ऑपरेशन मेघदूत की ही देन है। 13 अप्रैल हमेशा भारतीय सेना के वीर जवानों की बहादुरी और बलिदान को याद दिलाता रहेगा। भविष्य में भी भारतीय सेना को इस क्षेत्र पर नियंत्रण बनाए रखने की आवश्यकता है। 

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मुख्य परीक्षा प्रश्न

सियाचिन क्षेत्र में आपरेशन मेघदूत की सफलता पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।