त्रिपुरा में ग्रेटर टिपरालैंड की मांग

त्रिपुरा में ग्रेटर टिपरालैंड की मांग  I   RACE IAS : Best IAS coaching in lucknow I  Current Affairs

 

त्रिपुरा में ग्रेटर टिपरालैंड की मांग
चर्चा में क्यों:  
•    हाल ही के दिनों में त्रिपुरा में एक राजनीतिक दल, टिपरा स्वदेशी प्रगतिशील क्षेत्रीय गठबंधन मोथा द्वारा ग्रेटर टिपरालैंड की मांग की जा रही है।
•    टिपरा मोथा नें एक विजन डॉक्यूमेंट के माध्यम से कहा कि वह भारत के संविधान के अनुसार त्रिपुरा के स्वदेशी लोगों के अधिकारों को बनाए रखने के लिए एक स्थायी समाधान चाहता है। 
ग्रेटर टिपरालैंड के बारे में: 
•    ग्रेटर टिपरालैंड, टिपरा मोथा की एक मुख्य वैचारिक मांग है।
•    सबसे पहले वर्ष 2000 में गठित इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा ने टिपरालैंड की मांग की थी। 
•    ग्रेटर टिपरालैंड, इंडिजेनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा द्वारा त्रिपुरा के आदिवासियों के लिये एक पृथक राज्य के रूप में टिपरालैंड की मांग का ही विस्तार है।
•    प्रथक राज्य का यह प्रस्तावित मॉडल ‘त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद’ के बाहर स्वदेशी क्षेत्र या गाँव में रहने वाले प्रत्येक आदिवासी व्यक्ति को शामिल करता है। 
•    यह भारत के असम, मिजोरम, नागालैंड आदि राज्यों में रह रहे त्रिपुरियों को भी शामिल करता है।
•    टिपरा, टिपरासा, ट्विप्रा के नाम से चर्चित त्रिपुरी त्रिपुरा का मूल नृजातीय समूह है। 
•    त्रिपुरी राज्य की प्रमुख जनजातियाँ हैं। वे 2011 की जनगणना के अनुसार त्रिपुरा राज्य की आबादी का 50% से अधिक हिस्सा हैं। 
•    इन जनजातियों में  बंदरबन, चटगाँव, खगराचारी और पड़ोसी बांग्लादेश के अन्य सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोग भी आते हैं।
टिपरा मोथा पार्टी राजनीतिक दल के बारे में:  
•    इस राजनीतिक दल की स्थापना प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देब बर्मा ने की थी। 
•    इस पार्टी की मुख्य मांग “ग्रेटर टिप्रालैंड” है। टिपरालैंड त्रिपुरियों के लिए एक प्रस्तावित क्षेत्र है। 
•    वे अब त्रिपुरा राज्य का हिस्सा हैं। वे त्रिपुरा राज्य के 68% हिस्से की मांग करते हैं। साथ ही यह पार्टी क्षेत्र से बाहर रह रहे त्रिपुरियों को भी जोड़ना चाहती है।
ग्रेटर टिपरालैंड की मांग के कारण: 
•    वर्ष 1941 के दशक दौरान, त्रिपुरा में आदिवासियों और गैर-आदिवासियों दोनों की जनसंख्या का अनुपात लगभग 50:50 था। 
•    हालांकि, 1950 के दशक में पूर्वी पाकिस्तान से अधिक से अधिक शरणार्थियों के आने के कारण इन जनजातियों की आबादी 37% से से भी कम हो गयी थी। 
•    1950 और 1952 के दौरान, 1.5 लाख से अधिक शरणार्थियों ने स्थायी निवास हेतु त्रिपुरा में प्रवेश किया था। 
•    इन शरणार्थियों के आने से मूल आदिवासियों और गैर-आदिवासियों के बीच बढ़ते मतभेदों के कारण वर्ष 1980 तक संघर्ष और बढ़ गया और अंतत: इस संघर्ष ने सशस्त्र विद्रोह का रूप ले लिया। 
•    वर्तमान में इस नए राज्य की मांग ने संप्रभुता और स्वतंत्रता का रूप ले लिया है।
त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद:
•    त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद का गठन वर्ष 1985 में संविधान की छठी अनुसूची के तहत किया गया था।
•    इसका उद्देश्य त्रिपुरी समुदायों से संबंधित क्षेत्रों का विकास सुनिश्चित करना।  
•    जनजातीय समुदायों के लोगों के अधिकारों और उनकी सांस्कृतिक विरासत को सुरक्षित करना है।
•    इस परिषद के पास विधायी और कार्यकारी दोनों शक्तियां  हैं।  
•    राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग दो-तिहाई भाग इस परिषद के अंतर्गत आता है।
•    त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद को राज्य के कुल बजट में से केवल दो प्रतिशत ही प्राप्त होता है, जबकि इसमें राज्य की 40% आबादी रहती है।
•    त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद के साथ होने वाले इस भेदभाव का कारण भी ग्रेटर टिपरालैंड की मांग बढ़ती जा रही है।
संवैधानिक विशेषताएं:
•    त्रिपुरी संविधान के अनुच्छेद 2 और 3 के अनुसार एक अलग राज्य बनाना चाहते हैं। 
•    अनुच्छेद 2 कहता है कि अधिग्रहित या भारत सरकार के नियंत्रण वाले क्षेत्रों को एक अलग राज्य में परिवर्तित किया जाएगा। 
•    अनुच्छेद 3 एक नया राज्य बनाने के नियमों और प्रक्रियाओं की व्याख्या करता है। यह मौजूदा राज्य की सीमाओं को बदलने की बात भी करता है।
•    6 वीं अनुसूची:  संविधान की छठी अनुसूची असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्रों में जनजातियों के अधिकारों की रक्षा करती है। इस अनुसूची को 22वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1969 के माध्यम से संविधान में जोड़ा गया था। यह अनुसूची संसद को कुछ आदिवासी क्षेत्रों और स्थानीय विधानमंडल या मंत्रिपरिषद या दोनों के लिए एक स्वायत्त राज्य स्थापित करने का अधिकार देती है।
त्रिपुरा राज्य के बारे में:  
•    इस राज्य का गठन 21 जनवरी 1972 में हुआ था। यह उत्तर-पूर्वी सीमा पर स्थित भारत का तीसरा सबसे छोटा राज्य है। अगरतला त्रिपुरा की राजधानी है। 
•    इसका क्षेत्रफल 10,4 91 वर्ग किमी है। इसके उत्तर, पश्चिम और दक्षिण में बांग्लादेश स्थित है जबकि पूर्व में असम और मिजोरम स्थित हैं।
•    सन 2011 में इस राज्य की जनसंख्या लगभग 36  लाख 71 हजार थी। 
•     बंगाली और त्रिपुरी इस राज्य की मुख्य भाषाएं  हैं।
•    इस राज्य का विधानमण्डल एक सदनीय है जिसमें 60 विधानसभा सीटें हैं।  
•    यहां राज्य सभा हेतु 1 सीट और लोकसभा हेतु 2 सीटें निर्धारित हैं। 
निष्कर्ष: 
•    भारत में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की अलगाव एवं विभाजनकारी नीतियों के कारण पिछले कुछ दशकों से जातीय संघर्ष बढ़े हैं और साथ ही नए राज्यों की मांग भी बढ़ी है। यह सब देश के हित में नहीं है, इसलिए देश की एकता,अखंडता एवं संप्रभुता को सतत रूप से बनाए रखने के लिए केंद्र सरकार को व्यापक तथा प्रभावकारी नीतियों को लागू करने की आवश्यकता है।  
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मुख्य परीक्षा प्रश्न:
पिछले कुछ वर्षों के दौरान त्रिपुरा में  ग्रेटर टिपरालैंड राज्य बनाने की मांग बढ़ी है। नए राज्यों के निर्माण में केंद्र सरकार के सामने आने वाली चुनौतियों का उल्लेख कीजिए।