विज्ञान में भारतीय महिला वैज्ञानिकों की अमिट यादें

विज्ञान में भारतीय महिला वैज्ञानिकों की अमिट यादें

जीएस-1: महिलाओं से संबंधित मुद्दे (भारतीय समाज)

(यूपीएससी/राज्य पीएससी)

प्रारंभिक परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण:

महिला दिवस, विज्ञान में विशिष्ट योगदान देने वाली भारतीय महिलाओं का इतिहास, विज्ञान ज्योति योजना, किरण योजना, गति योजना ।

मुख्य परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण:

विज्ञान क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी की स्थिति, विज्ञान में विशिष्ट योगदान देने वाली भारतीय महिलाओं का इतिहास, भारतीय महिला विज्ञानियों का संघर्ष का परिचय, चुनौतियां, विज्ञान में महिलाओं की भागीदारी हेतु प्रमुख प्रयास, निष्कर्ष।

07/03/2024

सन्दर्भ:

महिला दिवस के अवसर पर, हम उन सभी महिला वैज्ञानिकों के महत्वपूर्ण और अमिट योगदान को याद करते हैं जिन्होंने सभी बाधाओं को तोड़ दिया, एक सार्थक विरासत छोड़ी तथा विज्ञान में एक खुले, विविध और समतावादी दृष्टिकोण का आह्वान किया।

विज्ञान क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी की स्थितिः

  • उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण 2020-2021 के अनुसार, भारत में विज्ञान के शोधकर्ताओं की संख्या वर्ष 2014 की 30,000 से बढ़कर वर्ष 2022 में दोगुनी से अधिक लगभग 60 हजार हो गयी है।
  • बायोटेक्नोलॉजी(40%) और चिकित्सा(35%) के क्षेत्र में महिलाओं की सर्वाधिक भागीदारी दर्ज की गयी थी।   

विज्ञान में विशिष्ट योगदान देने वाली भारतीय महिलाओं का इतिहास:

आनंदीबाई गोपालराव जोशी (1865-1887)

  • यह संयुक्त राज्य अमेरिका से पाश्चात्य चिकित्सा में डिग्री के साथ अध्ययन और स्नातक करने वाली पहली भारतीय महिला थीं।
  • इन्हें अमेरिका की धरती पर पैर रखने वाली पहली भारतीय महिला माना जाता है।

कादम्बिनी गांगुली (1861-1923)

  • यह भारत की पहली महिला चिकित्सक के साथ पूरे दक्षिण एशिया में पश्चिमी चिकित्सा की प्रथम महिला चिकित्सक के तौर पर प्रसिद्ध हैं।

विभा चौधरी (1913-1991)

  • यह भारत की पहली महिला उच्च ऊर्जा भौतिक विज्ञानी और TFIR में पहली महिला वैज्ञानिक रह चुकी हैं।
  • IAU ने उनके नाम पर एक सफेद पीले वामन तारे का नामकरण करके उन्हें सम्मानित किया था।

एडावलेठ कक्कट जानकी अम्माल (1897-1984)

  • इन्होंने आनुवंशिकी, उद्विकास, वनस्पति भूगोल और ऐधनोबॉटनी/ मानव वनस्पति विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
  • इन्हें इलाहाबाद स्थित केंद्रीय वनस्पति प्रयोगशाला की पहली निर्देशक के तौर पर नियुक्त किया गया था।

देबाला मित्रा (1925-2003)

  • यह पहली भारतीय पुरातत्वविद थीं और इन्होंने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक के रूप में कार्य किया था।
  • इन्होंने कई बौद्ध स्थलों के अन्वेषण और उत्खनन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

कमला सोहोनी (1911-1998)

  • यह विज्ञान विषय में पीएचडी करने वाली पहली भारतीय महिला थीं और इन्होंने एंजाइम साइटोक्रोम सी (जो ऊर्जा संश्लेषण में मदद करता है) की खोज की थी।

अन्ना मणी (1918-2001)

  • यह मौसम विभाग में शामिल होने वाली पहली महिला थीं।

कमल रणदिवे (1917-2001)

  • इन्होंने मुंबई में भारतीय अनुराधान केंद्र में भारत की पहली ऊतक संवर्द्धन अनुसंधान प्रयोगशाला की स्थापना की थी।

संघमित्रा बंद्योपाध्याय

  • इन्हें वर्ष 2022 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था।
  • इन्हें भारतीय सांख्यिकी संस्थान की पहली महिला निदेशक के तौर पर नियुक्त किया गया था।

सुश्री सुजाता रामदोराई

  • इन्हें वर्ष 2003 में पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
  • वह वर्ष 2006 में प्रसिद्ध आईसीटीपी रामानुजन पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय बनी थीं।
  • इन्हें वर्ष 2004 में भारत सरकार द्वारा वैज्ञानिक क्षेत्र में सर्वोच्य सम्मान के तौर पर शांतिस्वरूप भटनागर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
  • इन्हें गणित अनुसंधान में असाधारण योगदान के लिए वर्ष 2020 के क्राइगर नेल्शन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

महिला विज्ञानियों के समक्ष चुनौतियां:

प्रचलित पूर्वाग्रह:

  • विज्ञान में महिलाओं के प्रति स्पष्ट और अंतर्निहित पूर्वाग्रह मौजूद हैं। लोग सोचते थे कि पुरुष विज्ञान में शोध के लिए अपेक्षाकृत अधिक उपयुक्त होते हैं और महिलाओं की स्वाभाविक रूप से इसमें कोई दिलचस्पी नहीं होती है।
  • मटिल्डा प्रभाव (Matilda effect) उन महिला वैज्ञानिकों की उपलब्धियों को स्वीकार करने के प्रति एक पूर्वाग्रह है जिनके काम का श्रेय उनके पुरुष सहकर्मियों को दिया जाता है।
  • शब्द "मटिल्डा इफ़ेक्ट(Matilda effect)" 1993 में विज्ञान इतिहासकार मार्गरेट डब्ल्यू. रॉसिटर द्वारा गढ़ा गया था ।

अवसरों का अभाव:

  • विज्ञान के क्षेत्र में महिला विज्ञानियों अपनी उपलब्धियों के लिए कम सराहना मिलती है जबकि उन्हें भत्तों, पदोन्नति और अवसरों में भेदभाव का सामना करना पड़ता है। जबकि विज्ञान में केवल पुरुषों और उनके अनुसंधान का एकाधिकार नहीं होना चाहिए।

मनोवैज्ञानिक दबाव:

  • महिलाओं को अपनी वैज्ञानिक यात्रा में मनोवैज्ञानिक दबावों और प्रणालीगत चुनौतियों से लड़ना पड़ता है।

पितृसत्तात्मक उत्पीड़न:

  •  पितृसत्तात्मक उत्पीड़न एक विकृत मानसिकता को जन्म देता है जो महिलाओं के खिलाफ काम करती है और उनकी प्रगति में बाधा बन जाती है।

नेतृत्व का अभाव:

  • वर्ष 1934 में बैंगलोर में स्थापित भारतीय विज्ञान अकादमी में, भौतिक विज्ञानी और नोबेल पुरस्कार विजेता सी.वी. रमन के नेतृत्व में कभी कोई महिला वैज्ञानिक नहीं रही।
  • इस अकादमी के आँकड़े बताते हैं कि भारत में कार्यरत वैज्ञानिकों में लगभग 14% महिलाएँ हैं; देश भर के विभिन्न अनुसंधान संस्थानों में केवल 15% संकाय सदस्य महिलाएँ हैं।

पुरस्कार एवं प्रोत्साहन का अभाव:

  • जीव विज्ञान, रसायन विज्ञान, भौतिकी, इंजीनियरिंग, गणित, चिकित्सा और पर्यावरण विज्ञान में उल्लेखनीय अनुसंधान के लिए वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद द्वारा प्रतिवर्ष दिया जाने वाला विज्ञान और प्रौद्योगिकी के लिए शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार 1958 और 2023 के बीच 571 वैज्ञानिकों को प्रदान किया गया है।
  • पिछले 65 वर्षों में, केवल 20 महिला वैज्ञानिकों को भारत का सबसे प्रतिष्ठित विज्ञान पुरस्कार मिला है - पहली बार 1961 में और आखिरी बार 2020 में।

पहचान का अभाव:

  • 1951 में डीएनए की संरचना की खोज में योगदान देने वाले ब्रिटिश रसायनज्ञ रोज़लिंड फ्रैंकलिन और 1967 में पहले रेडियो पल्सर की खोज करने वाले खगोल भौतिकीविद् जॉक्लिन बेल को उनके करियर के दौरान पहचान नहीं मिली।

भारतीय महिला विज्ञानियों का संघर्ष का परिचय:

  • राजिंदर जीत हंस-गिल ने 1950 के दशक के मध्य में पंजाब के एक स्कूल में गणित का अध्ययन करने की अनुमति पाने के लिए पगड़ी और लड़कों की वर्दी पहनी थी, बायोकेमिस्ट कमला सोहोनी सत्याग्रह पर बैठी थीं ताकि आईआईएससी, बैंगलोर महिलाओं के लिए अपने दरवाजे खोल सके।
  • लैब होपिंग: वुमेन साइंटिस्ट्स इन इंडिया-
  • यह पुस्तक रूढ़िवादिता, उदासीनता और लिंगवाद को तोड़ने पर एक नया दृष्टिकोण प्रदान करती है।
  • लीलावतीज़ डॉटर्स: द वुमेन साइंटिस्ट्स ऑफ इंडिया-
  • राम रामास्वामी और रोहिणी गोडबोले द्वारा संपादित यह पुस्तक महिला वैज्ञानिकों के संघर्ष और जीत और उनके कम प्रतिनिधित्व पर प्रकाश डालती है।
  • इस पुस्तक में 12वीं शताब्दी के प्रसिद्ध गणितज्ञ भास्कराचार्य ने अपनी मेधावी पुत्री लीलावती को बीजगणित, ज्यामिति और गणित की समस्याएं हल करने के लिए प्रेरित किया था।
  • अंजना चट्टोपाध्याय की 'वुमेन साइंटिस्ट्स इन इंडिया: लाइव्स, स्ट्रगल्स एंड अचीवमेंट्स'-
  • यह पुस्तक विज्ञान में महिलाओं के योगदान की उपेक्षा को उजागर करती है।
  • ए ब्रेडेड रिवर: द यूनिवर्स ऑफ इंडियन वुमेन इन साइंस-
  • क्रिस्टोफर कोली, क्रिस्टी ग्रेसेल और अभिजीत ढिल्लन द्वारा लिखित इस पुस्तक में, यह बताया गया है कि लैंगिक असमानता किस प्रकार से विज्ञान में राष्ट्रीय विकास कमजोर को करती है।

विज्ञान में महिलाओं की भागीदारी हेतु प्रमुख प्रयास:

कंसोलिडेशन ऑफ यूनिवर्सिटी रिसर्च थ्रू इनोवेशन एंड एक्सीलेंस इन वूमेन यूनिवर्सिटीज (CURIE):

  • यह योजना महिला विश्वविद्यालयों को अनुसंधान अवसंरचना विकसित करने और अत्याधुनिक अनुसंधान प्रयोगशालाओं के निर्माण में सहायता करती है।

विज्ञान ज्योति योजना:

  • विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डी.एस.टी) ने इसे एसटीईएम में इच्छुक छात्राओं के हाई स्कूलों की बराबर भागीदारी को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से शुरू किया था।
  • यह गांवों की छात्राओं को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में उनके करियर की योजना बनाने में सहायता करता है।

किरण योजना:

  • इस योजना की शुरुआत 2014- 2015 में केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा की गई,जिससे महिला वैज्ञानिकों के लिए शैक्षणिक और प्रशासनिक उन्नति संभव हुई।
  • KIRAN का अर्थ ‘शिक्षण द्वारा अनुसंधान विकास में ज्ञान की भागीदारी’ (Knowledge Involvement in Research Advancement through Nurturing) है।
  • इसके विभिन्न कार्यक्रमों में से एक, ‘महिला वैज्ञानिक योजना’ बेरोजगार महिला वैज्ञानिकों और तकनीशियनों को रोजगार के अवसर प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त, इसने स्पष्ट रूप से उन लोगों की मदद की जिन्हें किसी कारणवश अपने रोजगार से विराम  लेना पड़ा।
  • KIRAN योजना विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र में लैंगिक समानता से संबंधित चुनौतियों के समाधान हेतु प्रयासरत है।

 जेंडर एडवांसमेंट फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंस्टीट्यूशंस(GATI): 

  • यह योजना एस.टी.ई.एम(S.T.E.M.) के क्षेत्र में लैंगिक समानता का मूल्यांकन करने के लिए एक व्यापक ढांचा प्रदान करती है।

निष्कर्ष:

वर्षों से, भारत ने विज्ञान में लड़कियों और महिलाओं को प्रोत्साहित करने के लिए पहल की है, लेकिन भारतीय महिलाओं को उनके वैज्ञानिक करियर में सहायता करने का जटिल मुद्दा कई दृश्य और अदृश्य बाधाओं के साथ बना हुआ है।

यह पहले से कहीं अधिक स्पष्ट है कि STEM क्षेत्रों में महिलाओं के पास दुनिया को प्रभावित करने की अपार क्षमता है। शिक्षकों, माता-पिता और समग्र रूप से समाज को लड़कियों को विज्ञान में गौरवान्वित महिला बनने के लिए प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। STEM में महिलाओं का प्रतिनिधित्व अभी भी कम है, लेकिन एक महत्वपूर्ण बदलाव के तौर पर इसमें विविधता की मौजूदा कमी में सुधार की आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू

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मुख्य परीक्षा प्रश्न:

भारत में महिला विज्ञानियों के ऐतिहासिक परिचय का रेखांकन करते हुए इनके समक्ष चुनौतियों के समाधान हेतु प्रमुख प्रयासों पर चर्चा कीजिए।