विद्यार्थियों में बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति

विद्यार्थियों में बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति

मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1

(भारतीय समाज)

संदर्भ:

  • देश के युवा वर्ग और खासकर अठारह वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चों में आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति एकगंभीर चिंता का विषय है।

भूमिका:

  • दुनियाभर में आत्महत्याएंकी घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं, लेकिन भारत में आत्महत्याओं का आंकड़ा काफी चिंताजनक है। युवाओंमें अवसाद निरंतर बढ़ रहा है, जिसके चलते कुछ युवाआत्महत्या जैसा हृदय विदारक कदम उठा बैठते हैं। जीवन से निराश होकर आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति गंभीर चिंता का सबब बन रही है।

आत्महत्याओं से जुड़े मामले:

  • देश के प्रमुख कोचिंग केंद्र कोटा, राजस्थान में प्रतियोगी छात्रों द्वारा आत्महत्याओं के मामले
  • कोटा में 8 से 25 मई, 2023 के बीच 4छात्रों द्वारा आत्महत्या करने की खबरें सामने आर्इं हैं।
  • आइआइटी जैसे भारत के सर्वश्रेष्ठ इंजीनियरिंग संस्थानों और कुछ अन्य प्रतिष्ठित उच्च शिक्षण संस्थानों में भी विद्यार्थियों की आत्महत्या के मामले।
  • पिछले दिनों सीबीएसई की बारहवीं कक्षा का परीक्षा परिणाम आने पर केवल दिल्ली में ही तीन छात्रों की आत्महत्या की खबर भी स्तब्ध करने वाली थी।

आत्महत्याओं के पीछे के कारण:

  • अत्यधिक मानसिक दबाव के कारण जब-तब विद्यार्थियों द्वारा आत्महत्या की घटनाएं सामने आती रहती हैं।
  • परीक्षाओं के दौरान प्रश्नपत्र सही से हल नहीं कर पाने और कई बार परीक्षा की समुचित तैयारी नहीं होने पर भी कुछ मामलों में विद्यार्थी हताश होकर जान देने लगे हैं।
  • शिक्षा और करिअर में गलाकाट प्रतिस्पर्धा और माता-पिता और शिक्षकों की बढ़ती अपेक्षाओं के चलते विद्यार्थियों पर पढ़ाई का बढ़ता अनावश्यक दबाव इसका सबसे बड़ा कारण है कई बच्चे इस दबाव को झेल नहीं पाते, जिसके चलते उनमें अवसाद पनपता है।
  • इंजीनियरिंग और मेडिकल कालेजों में अधिकसीटें होने से विद्यार्थियोंमें बहुत ज्यादा प्रतिस्पर्धा होना।
  • दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे शिक्षण संस्थानों में सामान्य स्नातक पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए जबरदस्त प्रतिस्पर्धाहोना।
  • अनेक अध्ययनों से यह स्पष्ट हो चुका है कि परीक्षाएं नजदीक आने के साथ ही विद्यार्थियों में चिंता और अवसाद बढ़ने लगता है और कुछ मामलों में यही बढ़ता अवसाद उनके आत्महत्या करने का कारण बन जाता है।
  • ऐसे में विद्यार्थी अपनी शिक्षा और भविष्य को लेकर गहरे असमंजस में रहते हैं। किसी को करिअर या नौकरी की चिंता है तो कोई पारिवारिक वित्तीय संकट से जूझ रहा है। परीक्षा में अपेक्षा से कम या रैंक मिलने पर कुछ बच्चे आत्महत्या का मार्ग चुन लेते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि अंकों की दौड़ में पिछड़ जाने के कारण उनका भविष्य अंधकारमय हो गया है।
  • मनोचिकित्सकों के अनुसार, आत्महत्या करना काफी गंभीर समस्या है और आत्महत्या करने के पीछे अधिकांशत: अवसाद को ही जिम्मेदार ठहराया जाता है, जो ऐसे लगभग 90 फीसद मामलों का प्रमुख कारण है। आत्महत्या करने का विचार किसी इंसान के अंदर तब पनपता है, जब वह किसी मुश्किल से बाहर नहीं निकल पाता।
  • जहां तक विद्यार्थियों की बात है तो उनके बीच बढ़ते आत्महत्या के मामलों के लिए कहीं न कहीं अभिभावक भी दोषी हैं। दरअसल, अधिकांश मामलों में देखने को मिलता है कि ज्यादातर माता-पिता या अभिभावक अपने बच्चों की क्षमता और अभिरुचि को सही ढंग से नहीं समझ पाते और उनसे जरूरत से ज्यादा अपेक्षाएं रखते हुए परीक्षा के समय भी उनकी मनोदशा से अनभिज्ञ रहते हैं।

विद्यार्थियों की आत्महत्या के आंकड़ों पर नजर :

  • राज्यसभा में दी गई एक जानकारी के अनुसार,2018 से 2023 के बीच पांच वर्षों की अवधि में आइआइटी, एनआइटी, आइआइएम जैसे देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में ही 61छात्रों ने आत्महत्या की, जिनमें 33छात्र आइआइटी के थे।
  • राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े देखें तो जहां 2020 में देशभर में कुल 12,526 विद्यार्थियों ने आत्महत्या की, वहीं 2021 में यह आंकड़ा बढ़कर 13,089 हो गया। आत्महत्या करने वाले विद्यार्थियों में 56.54 फीसद लड़के और 43.49 फीसदी लड़कियां थीं।
  • 18साल से कम आयु के 10,732 किशोरों में से 864 ने तो परीक्षा में विफलता के कारण मौत को गले लगा लिया।2021 के एनसीआरबी के आंकड़े समाज को झकझोरने के लिए पर्याप्त हैं।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनिया में हर चालीस सेकंड में एक व्यक्ति आत्महत्या करता है। यानी प्रतिवर्ष दुनियाभर में लगभग8लाख लोग आत्महत्या के जरिए अपनी जीवनलीला खत्म कर डालते हैं, जिनमें से बड़ी संख्या में आत्महत्या के मामले 15 से 29 वर्ष के लोगों के बीच होते हैं, जबकि आत्महत्या का प्रयास करने वालों का आंकड़ा इससे बहुत ज्यादा है।
  • डब्लूएचओ के आंकड़ों के अनुसार, दुनियाभर में 79 फीसद आत्महत्या निम्न और मध्यवर्ग वाले देशों के लोग करते हैं और इसमें बड़ी संख्या ऐसे युवाओं की होती है, जिनके कंधों पर किसी भी देश का भविष्य टिका होता है। बीते वर्षों में दुनियाभर में आत्महत्या की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं, लेकिन भारत में आत्महत्याओं का आंकड़ा काफी चिंताजनक है।

सुझाव:

  • आत्महत्याओंको रोकने में आसपास मौजूद लोगों और परिजनों की भूमिका महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।वे ऐसे व्यक्ति या युवा को भावनात्मक, मानसिक या शारीरिक, जैसी भी जरूरत हो, सहयोग करें, उसका मनोबल बढ़ाने का प्रयास करें, ताकि वह खुद को अकेला महसूस न करे।
  • कई मामलों में ऐसे छात्र जरूरत से ज्यादा मानसिक दबाव के कारण गलत कदम उठा बैठते हैं। ऐसे मामलों में विद्यार्थियों को मानसिक दबाव से बाहर निकालने में सबसे बड़ी भूमिका अभिभावकों, करीबी लोगों और शिक्षकों की ही हो सकती है, जो उन्हें सहानुभूतिपूर्वक समझाएं कि किसी भी असफलता से उनके जीवन का निर्धारण नहीं होता और हमारा यह जीवन एकमात्र ऐसी चीज है, जिसे हम दोबारा नहीं पा सकते। उन्हें इस बात के लिए प्रोत्साहित करें कि वे सकारात्मक सोच के साथ अपनी क्षमतानुसार मेहनत करके भी सफलता की बुलंदियों को छू सकते हैं।

निष्कर्ष:

  • किसी राजनीतिक दल के लिए विद्यार्थियों की आत्महत्याएं भले ही कोई चुनावी मुद्दा न हों, लेकिन समाज के लिए ये आत्महत्याएं चिंतनीय और दुर्भाग्यपूर्ण अवश्य हैं। हालांकि सरकार, सामाजिक संस्थाओं और शिक्षण संस्थानों की ओर से हाल के वर्षों में विद्यार्थियों की काउंसलिंग के साथ उनकी पढ़ाई में मदद करने और जरूरत महसूस होने पर चिकित्सीय परामर्श मुहैया कराने के प्रयास हो रहे हैं, लेकिन इन प्रयासों में और तेजी लाने की जरूरत है।
  • विद्यार्थियों में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता लाकर आत्महत्या जैसे मामलों को कम किया जा सकता है। किसी भी युवा के मन में आत्महत्या का विचार आए ही नहीं, ऐसा वातावरण तैयार करना परिवार के साथ-साथ समाज की भी बड़ी जिम्मेदारी है।

स्रोत-जनसत्ता

-----------------------------------

मुख्य परीक्षा प्रश्न

भारतीय समाज में युवाओं के मध्य बढ़ती आत्महत्याओं के पीछे के कारणों को स्पष्ट करते हुए,इसे रोकने हेतु अपने सुझाव लिखिए।