WMO Report: ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता में वृद्धि

WMO Report: ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता में वृद्धि

प्रिलिम्स के लिए महत्वपूर्ण:

ग्रीन हाउस गैसें, विश्व मौसम-विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ), कार्बन चक्र, COP28 जलवायु शिखर सम्मेलन।

मेन्स के लिए महत्वपूर्ण:

GS-3: ग्रीन हाउस सांद्रता वृद्धि से संबंधित चिंताएं, ग्रीन हाउस सांद्रता पर नियंत्रण हेतु प्रयास।

17 नवंबर, 2023

खबरों में क्यों:

हाल ही में यूएन के विश्व मौसम-विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, वातावरण में गर्मी रोक कर पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ा रही ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता में रिकॉर्ड स्तर पर वृद्धि दर्ज की गयी है।

  • मीथेन व नाइट्रस ऑक्साइड का स्तर 2021 के मुकाबले 2022 में बढ़ा।
  • 2022 में वैश्विक औसत CO2 सांद्रता 417.9 पीपीएम थी, जबकि 2021 में यह 415.7 पीपीएम थी।
  • हालांकि, CO2 सांद्रता में यह वृद्धि दर कार्बन चक्र में अल्पकालिक बदलाव के कारण पिछले वर्ष और दशक के औसत से थोड़ी कम है।
  • 99% से अधिक संभावना है कि वर्ष 2023 रिकॉर्ड के अनुसार दुनिया का सबसे गर्म वर्ष होगा।

ग्रीन हाउस गैसें:

  • अमेरिकी समुद्र व वातावरण अध्ययन प्रशासन के अनुसार 1990 से 2022 तक ग्रीन हाउस गैसों की वातावरण में गर्मी बढ़ाने की कुल शक्ति 49 प्रतिशत बढ़ चुकी है। कार्बन की सांद्रता में 78 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
  • संगठन के अनुसार, ग्रीन हाउस गैसों की उपस्थिति, प्रभाव एवं दशाएं निम्नवत हैं :

कार्बन डाई ऑक्साइड

  • ग्रीन हाउस गैसों में कार्बन डाई ऑक्साइड का हिस्सा सबसे ज्यादा 50 प्रतिशत है और गर्मी बढ़ाने में योगदान 64 प्रतिशत।
  • हर साल इसके कुल उत्सर्जन में से 25 प्रतिशत समुद्र और 30 प्रतिशत जंगल सोख लेते हैं।

मीथेन

  • यह वातावरण में एक दशक तक बनी रहती है, गर्मी बढ़ाने में योगदान 16 प्रतिशत है।
  • 40% मीथेन प्राकृतिक स्रोतों जैसे वेटलैंड व दीमकों से आती है। 60 प्रतिशत मानवीय गतिविधियों जैसे धान की खेती, मवेशियों, जीवाश्म ईंधन उत्खनन, पराली व अन्य जैविक सामग्री जलाने से पैदा होती है।

नाइट्रस ऑक्साइड

  • यह ग्रीन हाउस के साथ ओजोन को क्षति पहुंचाने वाली गैस भी है। गर्मी बढ़ाने में योगदान 7% है।
  • इसका 60 प्रतिशत उत्सर्जन समुद्र, मिट्टी, बायोमास व जंगल जलने और 40 प्रतिशत उत्सर्जन मानवीय गतिविधियों जैसे रसायनयुक्त खाद व औद्योगिक गतिविधियों से हो रहा है।

COP28 जलवायु शिखर सम्मेलन

  • यह शिखर सम्मेलन दुबई में 30 नवंबर से 12 दिसंबर तक होने वाला है।
  • यह शिखर सम्मेलन बढ़ी हुई ग्रीन हाउस गैसों की सांद्रता पर अमल करने के लिहाज से अति महत्वपूर्ण है क्योंकि यह 2015 के पेरिस समझौते का पालन करता है, जहां देशों ने ग्लोबल वार्मिंग को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से दो डिग्री सेल्सियस से "काफी नीचे" तक सीमित करने के लिए प्रतिबद्ध किया है, यदि संभव हो तो इसे 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का और भी महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है।

ग्रीन हाउस सांद्रता वृद्धि से संबंधित चिंताएं:

  • इस सदी के अंत तक पेरिस समझौते के अंतर्गत निर्धारित तापमान में पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.5-2 डिग्री सेल्सियस से अधिक की वृद्धि होने की संभावना है।
  • कार्बन सिंक के रूप में कार्य करने वाले अमेज़न वर्षावनों का तेजी से क्षरण हो रहा है।
  • वनों की कटाई एवं आर्द्रता कम होने के कारण दुनियाभर के वनों की CO2 सोखने की क्षमता खत्म हो रही है।
  • CO2 के लंबे जीवनकाल को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि इस तापमान वृद्धि का प्रभाव कई दशकों तक कार्बन उत्सर्जन की शून्यता की स्थिति के बावजूद बना रहेगा।
  • बढ़ते तापमान के साथ-साथ तीव्र गर्मी और वर्षा, बर्फ पिघलना, समुद्र के स्तर में वृद्धि तथा समुद्र के अम्लीकरण के दूरगामी सामाजिक आर्थिक प्रभावों सहित कई चरम मौसमी स्थितियाँ उत्पन्न होंगी।

ग्रीन हाउस सांद्रता पर नियंत्रण हेतु प्रयास:  

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर:

क्योटो प्रोटोकॉल:

  • क्योटो प्रोटोकॉल एक अंतरराष्ट्रीय संधि है, जिसे ग्लोबल वार्मिंग द्वारा हो रहे जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए बनाया गया है। यह इस संधि में शामिल देशों को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए प्रतिबद्ध करती है।

मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल:

  • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल, ओज़ोन परत के संरक्षण हेतु 16 सितंबर 1987 को अपनायी गयी एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जो 1 जनवरी 1989से प्रभावी है. 
  • जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन

भारतीय स्तर पर:

  • राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन
  • हरित हाइड्रोजन मिश्रण परियोजना
  • भारत नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करके पानी के अणुओं को विभाजित करके निर्मित हरित हाइड्रोजन को बढ़ावा दे रहा है।
  • पशुओं द्वारा उत्सर्जित मीथेन को कम करने के लिये समुद्री शैवाल आधारित पशु चारा को प्रोत्साहित करना
  • भारत ग्रीनहाउस गैस कार्यक्रम शुरू करना
  • जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना लांच करना
  • भारत स्टेज-VI मानदंड लागू करना
  • जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन ( 11 जनवरी, 2010)
  • अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (30 नवंबर, 2015)
  • राष्ट्रीय पवन सौर हाइब्रिड नीति (2018)
  • पीएम कुसुम योजना (फरवरी, 2019)
  • रूफटाप सौर योजना (1 फरवरी, 2020)  

आगे की राह

  • जलवायु कार्रवाई के लिए दुनिया के सभी देशों खासकर विकसित देशों को एक साथ काम करने की आवश्यकता है।
  • ग्रीन हाउस गैसों के नियंत्रण हेतु सभी व्यक्तियों की आधुनिक, मितव्ययी और विश्वसनीय सुविधाओं एवं सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
  • भारत द्वारा जलवायु कार्यान्वयन के लिए अपने घरेलू संस्थानों के निर्माण और सुदृढ़ीकरण पर ज़ोर दिया जाना चाहिए।
  • आगामी जलवायु परिवर्तन वार्ता में भारत द्वारा ‘सामान्य लेकिन विभेदित ज़िम्मेदारी’ (Common But Differentiated Responsibility- CBDR) के दीर्घकालिक सिद्धांत को लागू करवाने का प्रयास किया जाना चाहिए।
  • भारत को वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य लक्ष्य हासिल करने के लिए विशेष रूप से बिजली उत्पादन हेतु कोयले के उपयोग को वर्ष 2060 तक 99% तक कम करने की आवश्यकता है।
  • भारत को वर्ष 2050 से वर्ष 2070 के बीच सभी क्षेत्रों में कच्चे तेल की खपत को 90% तक कम करने की आवश्यकता है।
  • भारत का ऊर्जा भविष्य विकासात्मक आवश्यकताओं और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को ध्यान में रखते हुए निर्धारित किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष:

ग्रीन हाउस गैसों के नियंत्रण हेतु, भारत 2030 तक 2005 के स्तर से उत्सर्जन की तीव्रता को 45% तक कम करने के लिए जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (यूएनएफसीसीसी) की प्रतिबद्धता को पूरा करने की राह पर है।

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मुख्य परीक्षा प्रश्न

ग्रीन हाउस गैसों के सांद्रता प्रभाव की रोकथाम हेतु भारत समेत दुनियाभर में किए गए प्रयासों की समीक्षा कीजिए।

 

WMO Report: ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता में वृद्धि

प्रिलिम्स के लिए महत्वपूर्ण:

ग्रीन हाउस गैसें, विश्व मौसम-विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ), कार्बन चक्र, COP28 जलवायु शिखर सम्मेलन।

मेन्स के लिए महत्वपूर्ण:

GS-3: ग्रीन हाउस सांद्रता वृद्धि से संबंधित चिंताएं, ग्रीन हाउस सांद्रता पर नियंत्रण हेतु प्रयास।

17 नवंबर, 2023

खबरों में क्यों:

हाल ही में यूएन के विश्व मौसम-विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, वातावरण में गर्मी रोक कर पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ा रही ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता में रिकॉर्ड स्तर पर वृद्धि दर्ज की गयी है।

  • मीथेन व नाइट्रस ऑक्साइड का स्तर 2021 के मुकाबले 2022 में बढ़ा।
  • 2022 में वैश्विक औसत CO2 सांद्रता 417.9 पीपीएम थी, जबकि 2021 में यह 415.7 पीपीएम थी।
  • हालांकि, CO2 सांद्रता में यह वृद्धि दर कार्बन चक्र में अल्पकालिक बदलाव के कारण पिछले वर्ष और दशक के औसत से थोड़ी कम है।
  • 99% से अधिक संभावना है कि वर्ष 2023 रिकॉर्ड के अनुसार दुनिया का सबसे गर्म वर्ष होगा।

ग्रीन हाउस गैसें:

  • अमेरिकी समुद्र व वातावरण अध्ययन प्रशासन के अनुसार 1990 से 2022 तक ग्रीन हाउस गैसों की वातावरण में गर्मी बढ़ाने की कुल शक्ति 49 प्रतिशत बढ़ चुकी है। कार्बन की सांद्रता में 78 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
  • संगठन के अनुसार, ग्रीन हाउस गैसों की उपस्थिति, प्रभाव एवं दशाएं निम्नवत हैं :

कार्बन डाई ऑक्साइड

  • ग्रीन हाउस गैसों में कार्बन डाई ऑक्साइड का हिस्सा सबसे ज्यादा 50 प्रतिशत है और गर्मी बढ़ाने में योगदान 64 प्रतिशत।
  • हर साल इसके कुल उत्सर्जन में से 25 प्रतिशत समुद्र और 30 प्रतिशत जंगल सोख लेते हैं।

मीथेन

  • यह वातावरण में एक दशक तक बनी रहती है, गर्मी बढ़ाने में योगदान 16 प्रतिशत है।
  • 40% मीथेन प्राकृतिक स्रोतों जैसे वेटलैंड व दीमकों से आती है। 60 प्रतिशत मानवीय गतिविधियों जैसे धान की खेती, मवेशियों, जीवाश्म ईंधन उत्खनन, पराली व अन्य जैविक सामग्री जलाने से पैदा होती है।

नाइट्रस ऑक्साइड

  • यह ग्रीन हाउस के साथ ओजोन को क्षति पहुंचाने वाली गैस भी है। गर्मी बढ़ाने में योगदान 7% है।
  • इसका 60 प्रतिशत उत्सर्जन समुद्र, मिट्टी, बायोमास व जंगल जलने और 40 प्रतिशत उत्सर्जन मानवीय गतिविधियों जैसे रसायनयुक्त खाद व औद्योगिक गतिविधियों से हो रहा है।

COP28 जलवायु शिखर सम्मेलन

  • यह शिखर सम्मेलन दुबई में 30 नवंबर से 12 दिसंबर तक होने वाला है।
  • यह शिखर सम्मेलन बढ़ी हुई ग्रीन हाउस गैसों की सांद्रता पर अमल करने के लिहाज से अति महत्वपूर्ण है क्योंकि यह 2015 के पेरिस समझौते का पालन करता है, जहां देशों ने ग्लोबल वार्मिंग को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से दो डिग्री सेल्सियस से "काफी नीचे" तक सीमित करने के लिए प्रतिबद्ध किया है, यदि संभव हो तो इसे 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का और भी महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है।

ग्रीन हाउस सांद्रता वृद्धि से संबंधित चिंताएं:

  • इस सदी के अंत तक पेरिस समझौते के अंतर्गत निर्धारित तापमान में पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.5-2 डिग्री सेल्सियस से अधिक की वृद्धि होने की संभावना है।
  • कार्बन सिंक के रूप में कार्य करने वाले अमेज़न वर्षावनों का तेजी से क्षरण हो रहा है।
  • वनों की कटाई एवं आर्द्रता कम होने के कारण दुनियाभर के वनों की CO2 सोखने की क्षमता खत्म हो रही है।
  • CO2 के लंबे जीवनकाल को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि इस तापमान वृद्धि का प्रभाव कई दशकों तक कार्बन उत्सर्जन की शून्यता की स्थिति के बावजूद बना रहेगा।
  • बढ़ते तापमान के साथ-साथ तीव्र गर्मी और वर्षा, बर्फ पिघलना, समुद्र के स्तर में वृद्धि तथा समुद्र के अम्लीकरण के दूरगामी सामाजिक आर्थिक प्रभावों सहित कई चरम मौसमी स्थितियाँ उत्पन्न होंगी।

ग्रीन हाउस सांद्रता पर नियंत्रण हेतु प्रयास:  

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर:

क्योटो प्रोटोकॉल:

  • क्योटो प्रोटोकॉल एक अंतरराष्ट्रीय संधि है, जिसे ग्लोबल वार्मिंग द्वारा हो रहे जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए बनाया गया है। यह इस संधि में शामिल देशों को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए प्रतिबद्ध करती है।

मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल:

  • मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल, ओज़ोन परत के संरक्षण हेतु 16 सितंबर 1987 को अपनायी गयी एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जो 1 जनवरी 1989से प्रभावी है. 
  • जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन

भारतीय स्तर पर:

  • राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन
  • हरित हाइड्रोजन मिश्रण परियोजना
  • भारत नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करके पानी के अणुओं को विभाजित करके निर्मित हरित हाइड्रोजन को बढ़ावा दे रहा है।
  • पशुओं द्वारा उत्सर्जित मीथेन को कम करने के लिये समुद्री शैवाल आधारित पशु चारा को प्रोत्साहित करना
  • भारत ग्रीनहाउस गैस कार्यक्रम शुरू करना
  • जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना लांच करना
  • भारत स्टेज-VI मानदंड लागू करना
  • जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन ( 11 जनवरी, 2010)
  • अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (30 नवंबर, 2015)
  • राष्ट्रीय पवन सौर हाइब्रिड नीति (2018)
  • पीएम कुसुम योजना (फरवरी, 2019)
  • रूफटाप सौर योजना (1 फरवरी, 2020)  

आगे की राह

  • जलवायु कार्रवाई के लिए दुनिया के सभी देशों खासकर विकसित देशों को एक साथ काम करने की आवश्यकता है।
  • ग्रीन हाउस गैसों के नियंत्रण हेतु सभी व्यक्तियों की आधुनिक, मितव्ययी और विश्वसनीय सुविधाओं एवं सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
  • भारत द्वारा जलवायु कार्यान्वयन के लिए अपने घरेलू संस्थानों के निर्माण और सुदृढ़ीकरण पर ज़ोर दिया जाना चाहिए।
  • आगामी जलवायु परिवर्तन वार्ता में भारत द्वारा ‘सामान्य लेकिन विभेदित ज़िम्मेदारी’ (Common But Differentiated Responsibility- CBDR) के दीर्घकालिक सिद्धांत को लागू करवाने का प्रयास किया जाना चाहिए।
  • भारत को वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य लक्ष्य हासिल करने के लिए विशेष रूप से बिजली उत्पादन हेतु कोयले के उपयोग को वर्ष 2060 तक 99% तक कम करने की आवश्यकता है।
  • भारत को वर्ष 2050 से वर्ष 2070 के बीच सभी क्षेत्रों में कच्चे तेल की खपत को 90% तक कम करने की आवश्यकता है।
  • भारत का ऊर्जा भविष्य विकासात्मक आवश्यकताओं और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को ध्यान में रखते हुए निर्धारित किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष:

ग्रीन हाउस गैसों के नियंत्रण हेतु, भारत 2030 तक 2005 के स्तर से उत्सर्जन की तीव्रता को 45% तक कम करने के लिए जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (यूएनएफसीसीसी) की प्रतिबद्धता को पूरा करने की राह पर है।

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मुख्य परीक्षा प्रश्न

ग्रीन हाउस गैसों के सांद्रता प्रभाव की रोकथाम हेतु भारत समेत दुनियाभर में किए गए प्रयासों की समीक्षा कीजिए।