यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो एक्ट) में संशोधन की आवश्यकता

 

यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो एक्ट) में संशोधन की आवश्यकता

संदर्भ:

  • हाल ही के दिनों में, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष(यूनिसेफ) और किशोर न्याय पर बनी सुप्रीम कोर्ट की समिति ने देश में बच्चों के प्रति बढ़ते यौन अपराधों को रोकने के लिए पॉक्सो एक्ट में संशोधन करने सुझाव दिया है।

मुद्दा:

  • वर्तमान में देश के न्यायालयों के सामने पाक्सो कानून के अंतर्गत सोलह से अठारह वर्ष तक के किशोर-किशोरियों के मध्य आपसी सहमति से बने यौन संबंध के मामले अधिक आ रहे हैं।
  • गैर इरादतन अपराधी बने किशोरों को आपराधिक मामलों से बचाने के लिए पाक्सो कानून में यौन संबंध बनाने के लिए सहमति की उम्र से जुड़े मुद्दे पर न्यायालय बच्चों की उम्र में संसोधन पुनर्विचार करने की मांग कर रहा है।
  • हाल ही में ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं जो बताते हैं कि इस कानून में उम्र की सहमति से जुड़े मुद्दे में परिवर्तन समयानुकूल और अवश्यंभावी है।
  • वर्तमान में इस कानून से जुड़ा ज्वलंत मुद्दा आपसी सहमति से बने यौन संबंधों की सहमति को लेकर अधिक प्रबल होता जा रहा है।
  • आज के खुले और उदार माहौल में अब पाक्सो कानून में निर्धारित अठारह वर्ष से कम आयु में किशोर-किशोरियों के बीच आपसी सहमति से बने यौन संबंधों को नए सिरे से पारिभाषित करने की अति आवश्यकता है।
  • साल 2012 से 2021 तक के आंकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन बताता है कि बच्चों के यौन शोषण के मामलों में 48.66 फीसद आरोपी उनके करीबी परिचित ही रहे हैं।
  • पाक्सो से जुड़े मामलों के निपटान की गति को तीव्र करने की आवश्यकता है। वर्ष 2016 में साठ फीसद मामले एक साल में निपटाए गए, वहीं 2018 में यह औसत बयालीस फीसद रह गया।
  • 2020 में मात्र 19.7 फीसद और 2021 में मात्र बीस फीसद मामले ही निपटाए गए। जबकि पाक्सो अदालतों में लंबित मामले हर साल बीस फीसद से भी ज्यादा दर से बढ़ रहे हैं। दस फीसद से भी ज्यादा मामलों में न्याय मिलने में तीन साल से भी अधिक का समय लग रहा है। यानी बच्चों के यौन शोषण में जितने दोषियों को सजा मिल रही है, उससे तीन गुना ज्यादा दोषमुक्त हो रहे हैं।
  • आज पाक्सो के सबसे कम 19.7 फीसद मामले तमिलनाडु में और सबसे ज्यादा 77.7 फीसद मामले उत्तर प्रदेश में लंबित हैं।

बच्चों से संबंधित यौन अपराध के मामले:

  • नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में साल 2020 में बच्चों के खिलाफ अपराध के 1 लाख 28 हजार 531 मामले दर्ज किए गए हैं। इनमें से 47, 659 बच्चे यौन उत्पीड़न और छेड़छाड़ के शिकार हुए हैं। यौन शोषण पीड़ितों में लड़कियों की संख्या ज्यादा है। राहत की बात यह है कि 2019 की तुलना में 2020 में मामलों में 13.5 फीसदी की कमी आई है। 2019 में 1 लाख 48 हजार 90 मामले दर्ज किए गए थे।
  • असुरक्षित राज्यों में दूसरे नंबर पर यूपी रिपोर्ट के मुताबिक, देश में बच्चों के लिए सबसे ज्यादा असुरक्षित राज्यों में मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार और दिल्ली शामिल है।

राज्य

2017

2018

2 019

2020

मध्य प्रदेश

19,038

18,992

19,028

17,008

उत्तर प्रदेश

19,145

19,936

18,943

15,271

महाराष्ट्र

16,918

18,892

19,592

14,371

बिहार

5,386

7,340

9,320

6,591

दिल्ली

7,852

8,246

7,783

5,362

 

पॉक्सो अधिनियम के बारे में:

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15(3) में बच्चों के लिए विशेष उपबंध करने का प्रावधान किया गया है। इसलिए बच्चों को यौन हमले, यौन उत्पीड़न, बाल तस्करी और अश्लील साहित्य से जुड़े अपराधों से बचाने और ऐसे अपराधों पर विचार करने के लिए विशेष अदालतों की स्थापना करने के उद्देश्य से वर्ष 2012 में पाक्सो कानून लागू किया गया था।
  • इसमें कुल 46 धाराएं हैं।
  • बच्चों के विरुद्ध यौन हमले जैसे अपराधों के लिए न्यूनतम सात वर्ष से लेकर आजीवन करावास तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान इस कानून में किया गया है।
  • यह 19 जून, 2012 को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद अधिनियम बना था ।
  • यह अधिनियम 14 नवंबर, 2012 को पूरे देश में लागू किया गया था ।
  • इस अधिनियम का क्रियान्वयन शीर्षक: यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 से महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा किया जाता है।

देश में बच्चों की सुर​क्षा के लिए कानून

  • पॉक्सो अधिनियम, 2012
  • जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2015
  • अनैतिक देह व्यापार (निषेध) अधिनियम 1987
  • बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986
  • बंधुआ मजदूरी अधिनियम 1976
  • बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006
  • एकीकृत बाल संरक्षण योजना
  • राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना योजना
  • राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग
  • संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ)
  • बाल श्रम निषेध अधिनियम
  • शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009

POCSO अधिनियम की आवश्यकता:

  • भारत दुनिया में बच्चों की सबसे बड़ी आबादी वाले देशों में से एक है। वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, भारत में अठारह वर्ष से कम उम्र के बच्चों की आबादी 472 मिलियन है। राज्य द्वारा बच्चों के संरक्षण की गारंटी भारतीय नागरिकों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के द्वारा दी जाती है।
  • बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के हस्ताक्षरकर्ता के रूप में भारत की स्थिति को भी अनिवार्य किया गया है।

POCSO अधिनियम की मुख्य विशेषताएं:

  • अधिनियम के अनुसार "बच्चे" 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति हैं। यह अधिनियम लैंगिक-तटस्थ है।
  • यौन शोषण के विभिन्न रूपों को अधिनियम में परिभाषित किया गया है, जिसमें यौन उत्पीड़न, पोर्नोग्राफी, पेनिट्रेटिव और नॉन-पेनिट्रेटिव हमले शामिल हैं, लेकिन यह इन्हीं तक सीमित नहीं है।
  • यौन हमले को कुछ परिस्थितियों में "गंभीर" माना जाता है, जैसे कि जब बच्चा मानसिक रूप से बीमार हो। साथ ही जब दुर्व्यवहार किसी भरोसेमंद व्यक्ति जैसे डॉक्टर, शिक्षक, पुलिसकर्मी, परिवार के सदस्य द्वारा किया जाता है।
  • न्यायिक प्रणाली के हाथों बच्चे के पुन: उत्पीड़न से बचने के लिए पर्याप्त प्रावधान किए गए हैं। अधिनियम जांच प्रक्रिया के दौरान एक पुलिसकर्मी को बाल रक्षक की भूमिका सौंपता है।
  • अधिनियम में कहा गया है कि ऐसे कदम उठाए जाने चाहिए जो जांच प्रक्रिया को यथासंभव बच्चों के अनुकूल बनाते हैं और अपराध की रिपोर्ट करने की तारीख से एक वर्ष के भीतर मामले का निपटारा कर दिया जाता है।
  • अधिनियम ऐसे अपराधों और इससे संबंधित मामलों की सुनवाई के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना का प्रावधान करता है।
  • अधिनियम की धारा 45 के तहत, नियम बनाने की शक्ति केंद्र सरकार के पास है।
  • अधिनियम के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) और राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एससीपीसीआर) को नामित प्राधिकरण बनाया गया है। दोनों वैधानिक निकाय हैं।
  • अधिनियम की धारा 42 ए प्रदान करती है कि किसी अन्य कानून के प्रावधानों के साथ असंगतता के मामले में, POCSO अधिनियम ऐसे प्रावधानों को ओवरराइड करेगा।
  • अधिनियम यौन अपराधों की अनिवार्य रिपोर्टिंग के लिए कहता है। किसी व्यक्ति को बदनाम करने के इरादे से की गई झूठी शिकायत अधिनियम के तहत दंडनीय है।
  • मुआवज़े का अधिकार - पीड़ित बच्चे को उसकी राहत और पुनर्वास के लिए मुआवज़ा दिया जा सकता है
  • POCSO अधिनियम 2012 के तहत बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों की आसान और प्रत्यक्ष रिपोर्टिंग और मामलों के समय पर निपटान की सुविधा के लिए केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा नई दिल्ली में एक ऑनलाइन शिकायत प्रबंधन प्रणाली, POCSO ई-बॉक्स लॉन्च किया गया।

सुझाव:

  • पॉक्सो एक्ट के अंतर्गत विधायिका को सहमति की आयु कम करनी चाहिए ताकि 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों की सहमति के बावजूद भी यौन अपराधों को रोका जा सके।
  • बच्चों के यौन शोषण के मामलों में परिवारों को आगे आने की आवश्यकता है क्योंकि बच्चों का यौन शोषण परिवारों के भीतर ही एक छिपी हुई समस्या है।
  • सरकार को गुड टच (अच्छा स्पर्श) और बैड टच (बुरा स्पर्श) एवं बच्चों से सम्बंधित अन्य संवेदनशील मुद्दों पर जन जागरूकता अभियान शुरू करने चाहिए।
  • बच्चों के सर्वोत्तम हित और हक का संरक्षण करने के लिए कार्यपालिका और न्यायपालिका को इस मुद्दे पर हाथ मिलाने की आवश्यकता है।

 

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