
भारत के संविधान की प्रस्तावना में संशोधन की मांग
भारत के संविधान की प्रस्तावना में संशोधन की मांग
GS-2: भारतीय संविधान
(यूपीएससी/राज्य पीएससी)
प्रीलिम्स के लिए महत्वपूर्ण:
प्रस्तावना (Preamble), 42वें संवैधानिक संशोधन, केशवानंद भारती केस-1973, बेरुबारी यूनियन केस, 1960।
मेंस के लिए महत्वपूर्ण:
भारत के संविधान की प्रस्तावना, पृष्ठभूमि, विशेषताएं, महत्ता, निष्कर्ष।
13 फरवरी, 2024
ख़बरों में क्यों:
हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि क्या संविधान को अंगीकार किए जाने की तारीख 26 नवंबर, 1949 को बरकरार रखते हुए इसकी 'प्रस्तावना (Preamble)’ में संशोधन किया जा सकता है।
- दरअसल, राज्यसभा के पूर्व सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी और वकील विष्णु शंकर जैन ने प्रस्तावना से 'समाजवादी (socialist)' और 'पंथनिरपेक्ष (Secular)' शब्दों को हटाने की मांग की है।
- कोर्ट ने 'प्रस्तावना' में संशोधन के मुद्दे पर विस्तृत चर्चा की जरूरत बताई है।
प्रस्तावना की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
- गौरतलब है कि साल 1976 में इंदिरा गांधी सरकार द्वारा पेश किए गए 42वें संवैधानिक संशोधन के तहत संविधान की प्रस्तावना में 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द शामिल किए गए थे।
- इस संशोधन ने प्रस्तावना में भारत को 'संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य' से बदलकर 'संप्रभु, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य' कर दिया।
- "राष्ट्र की एकता" वाक्यांश को "राष्ट्र की एकता और अखंडता" से बदल दिया गया।
- मूल रूप से, प्रस्तावना के पाठ में भारत को एक 'संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य' घोषित किया गया था। 'संप्रभु' और 'लोकतांत्रिक' के मध्य 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द को जोड़ा गया था।
- संप्रभु: इस शब्द का अर्थ है कि भारत की अपनी स्वतंत्र सत्ता है और यह किसी अन्य बाहरी शक्ति का प्रभुत्व नहीं है। देश में विधायिका के पास कानून बनाने की शक्ति है जो कुछ सीमाओं के अधीन है।
- समाजवादी: इस शब्द का अर्थ है लोकतांत्रिक तरीकों से समाजवादी लक्ष्यों की प्राप्ति । यह एक मिश्रित अर्थव्यवस्था में विश्वास रखता है जहां निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्र साथ-साथ मौजूद रहते हैं।
- धर्मनिरपेक्ष: इस शब्द का अर्थ है कि भारत में सभी धर्मों को राज्य से समान सम्मान, सुरक्षा और समर्थन मिलता है।
भारत के संविधान की प्रस्तावना:
- भारतीय संविधान की प्रस्तावना मुख्य रूप से 1946 में जवाहरलाल नेहरू द्वारा लिखित 'उद्देश्य संकल्प' पर आधारित है।
- भारत के संविधान की प्रस्तावना राष्ट्र के मार्गदर्शक सिद्धांतों और आकांक्षाओं को रेखांकित करने वाला एक संक्षिप्त परिचयात्मक वक्तव्य है।
प्रस्तावना के घटक:
- संविधान के अधिकार का स्रोत - प्रस्तावना में कहा गया है कि संविधान अपना अधिकार भारत के लोगों से प्राप्त करता है।
- भारतीय राज्य की प्रकृति - यह भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक और गणतांत्रिक राज्य घोषित करता है।
- संविधान के उद्देश्य - यह न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को उद्देश्यों के रूप में निर्दिष्ट करता है।
- प्रस्तावना में ‘स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व’ की अवधारणा फ्रांसीसी क्रांति के आदर्श वाक्य से प्रेरित थी।
प्रस्तावना की महत्ता:
- प्रस्तावना संविधान की व्याख्या करने और कानून बनाने के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करती है।
- यह भारत के राष्ट्रीय लक्ष्यों और आकांक्षाओं को परिभाषित करती है।
- यह सभी नागरिकों के लिए मौलिक अधिकारों और मूल्यों के महत्व पर जोर देती है।
- यह राष्ट्रीय एकता और पहचान की भावना को बढ़ावा देती है।
क्या प्रस्तावना भारत के संविधान का हिस्सा है:
- बेरुबारी यूनियन केस, 1960 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, प्रस्तावना संविधान का हिस्सा नहीं है।
- लेकिन यह भी कहा गया, चूंकि प्रस्तावना हमारे संविधान निर्माताओं के दिमाग की कुंजी के रूप में कार्य करती है, इसलिए संविधान में किसी भी अस्पष्टता की व्याख्या करने में कुछ सहायता प्रस्तावना से ली जा सकती है।
- केशवानंद भारती केस, 1973: इस फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने प्रस्तावना पर अपना रुख पलट दिया और निम्नलिखित टिप्पणियाँ कीं-
- भारतीय संविधान की प्रस्तावना को अब संविधान का हिस्सा माना जाएगा।
- यह संविधान के क़ानूनों और अन्य विभिन्न प्रावधानों की व्याख्या में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
- एलआईसी ऑफ इंडिया केस, 1995: सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर फैसला सुनाया कि प्रस्तावना संविधान का एक अभिन्न अंग है, लेकिन इसे भारत में सीधे अदालत में लागू नहीं किया जा सकता है।
क्या प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता है:
- एक और महत्वपूर्ण चर्चा,- क्या प्रस्तावना को अनुच्छेद 368 के तहत संशोधित किया जा सकता है या नहीं।
- केशवानंद भारती केस, 1973: इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि प्रस्तावना संविधान का एक हिस्सा है और इसलिए इसमें संशोधन किया जा सकता है, बशर्ते कि संविधान की 'मूल संरचना' में कोई संशोधन न किया जाए।
निष्कर्ष:
दुनियाभर के संविधानों की प्रस्तावनाओं में भारत के संविधान की प्रस्तावना विचारों और अभिव्यक्ति के तौर पर एक सर्वश्रेष्ठ प्रस्तावना है। इसमें संशोधन का विषय एक विचारणीय मुद्दा है क्योंकि संविधान की प्रस्तावना एक स्वतंत्र राष्ट्र का निर्माण करना जो न्याय, स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे की रक्षा करता है, के उद्देश्य को पूरा करती है।
स्रोत: द हिन्दू
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मुख्य प्रश्न:
भारतीय संविधान की प्रस्तावना की पृष्ठभूमि, विशेषताएं एवं महत्ता को उजागर करते हुए इसमें संशोधन के औचित्य में अपने तर्क लिखिए।